उर्वशी
ज्योत्स्ना ‘ कपिल ‘
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इसी तनाव में वह उर्वशी के साथ अक्सर चिड़चिड़ा जाता। समय इतना था नही की दोनो को अपेक्षानुसार दे पाता। जब ग्रेसी ने देखा कि वह पत्नी से जुड़ता जा रहा है और उसके खिलाफ कोई भी बात सुनकर नाराज़ हो जाता है तो उसे लगा कि अब यह उसके हाथ से निकल गया है। उसने निश्चय किया कि यदि वह उसका न हो सका तो किसी और का भी नहीं होने देगी। उसने तस्वीरें भेजकर उनके मध्य कटुता उत्पन्न करने की चाल चली। एक बार मियाँ बीवी के बीच कड़वाहट घुल जाए तो शौर्य को वापस उसके पास आना होगा।
इस हरकत ने शौर्य के मन मे उसके लिए घोर नफ़रत पैदा कर दी। अब वह ग्रेसी को सबक सिखाने को तैयार हो गया। परन्तु जब वे सब स्विट्जरलैंड से लौटकर आया तो उसे खबर मिली कि ग्रेसी कम्पनी से इस्तीफा देकर कहीं चली गई है। किसी को नहीं पता था कि वह कहाँ गई है। जैसे जैसे समय गुज़र रहा था वह पश्चाताप की अग्नि में जल रहा था। उसने पहली बार महसूस किया कि वह उर्वशी से बेहद प्यार करने लगा है। वह उसके जीवन का ज़रूरी अंग बन गई थी। कैसे हुआ, पर यह चमत्कार हो गया था, उसके बिना शौर्य कुछ सोच ही नहीं पा रहा था। उसके बिना घर का हर हिस्सा उसे काट खाने को दौड़ रहा था। वह इतना असंवेदनशील कैसे हो गया ? कैसे इतने कठोर शब्द कह बैठा ? अब वह कभी लौटकर नहीं आएगी। उसने हमेशा के लिए उर्वशी को खो दिया। वह मूर्ख है, दुनिया का सबसे मूर्ख इंसान, जिसने एक अनमोल रत्न गंवा दिया। उसका मन करा की जाकर बड़े भाई के पैर पकड़ ले कि आप उर्वशी को आने के लिए राजी कर लीजिए। मैं उसे सर आँखों पर बिठाकर रखूँगा।
वह अब नफरत करती होगी उससे, तभी तो ब्लॉक कर दिया, जिससे कभी उसकी आवाज़ न सुननी पड़े। अब उससे नज़र कैसे मिलाऊँगा ? मैं सबसे गन्दा आदमी हूँ। मैं डिज़र्व ही नहीं करता उसके जैसी बेहतरीन पत्नी। मैं हूँ ही इसी लायक कि वह मुझे कभी माफ न करे।
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उर्वशी को छोड़कर शिखर चले तो लगा की बस उनका शरीर जा रहा है, वह अपने प्राण तो वहीं छोड़ आये। अब राणा पैलेस सूना हो गया। उसकी सारी रौनक चली गई। वह श्रीहीन हो गया। दुनिया मे अब कुछ रहा ही नहीं, बस यंत्रचालित सी चल रही है। उसमें स्पंदन नहीं। घर आये तो इतना सन्नाटा जैसे किसी श्मशान में आ गए हों। दो दिन बाद पूरा परिवार स्विट्जरलैंड से लौट आया पर कोई खुशी महसूस नहीं हुई। बच्चे शांत, ऐश्वर्या अपनी धुन में, माँ सा चिंतित, शौर्य बहुत उदास, बेकल। उसके चेहरे पर मुर्दनी छाई थी। एक बार उन्हें उसका कुम्हलाया चेहरा देखकर तरस आ गया, पर फिर उसे कुछ जाहिर न होने दिया।
ग्रेसी के विषय मे उन्हें सारी रिपोर्ट मिल गई थी, की वह कैसे शौर्य को परेशान कर रही थी, उसके दाम्पत्य में ज़हर घोल रही थी और धन की उगाही भी कर रही थी। सुनकर उन्हें इतना क्रोध आया कि उसकी गर्दन मरोड़ दें। उसे दंड देने का उन्होंने फैसला कर लिया। दो दिन बाद ही उसे इस्तीफा देने के लिए विवश कर दिया गया। उसे यह भी कहा गया कि यदि वह उस शहर में नज़र आयी या शौर्य की ज़िंदगी मे वापस आयी तो किसी को भी पता नहीं लगेगा कि वह गायब कहाँ हो गई।
जब एकांत में बैठते, मुम्बई प्रवास के वे दो दिन उन्हें सबसे ज्यादा सुकून देते। हर वो क्षण जब वह उनके साथ थी, अनमोल था। उसकी स्वीकारोक्ति उनके लिए सबसे सुखद थी, की वह उनकी ओर आकर्षित थी, उनसे प्रेम करती थी। फिर अपना उन्माद याद आता, कैसे उस दिन वह उसके लिए पागल हो उठे थे। उस वक़्त अगर वह दरवाजा खोल देती तो मर्यादा तार तार हो जाती, फिर शायद वह कभी सर न उठा पाते। उसकी बेचैनी भी देखी थी, बस यह ख्याल, की उसने भी उन्हें बहुत चाहा है, एकदम से सुकून दे गई थी। लगा जैसे उनके तपते हुए मन पर शीतल फाहा सा रख दिया हो। वह एकदम शांत हो गए। उसका सम्मान उनके मन मे बहुत बढ़ गया। उस एक पल में ही वह उनके हृदय में बहुत उच्च स्थान पर आसीन हो गई। वह उसके लिए कलुषित विचार मन मे नहीं ला सकते। बस उसे सुख देना है। पर कैसे दें ? वह तो कुछ स्वीकार ही नहीं करती। काश वह उसके लिए कुछ कर पाते। उनके वश में होता तो अपनी सारी दौलत उसके कदमो में डाल देते।
उन्होंने कितना कुछ कहा था उससे, अपना दिल खोलकर रख दिया था। पर वह शांत ही रही। उसने कुछ भी न कहा। बस जो बात जबरन कुबूल करवा ली, उसके सिवा कुछ न कहा। कितनी पीड़ा थी उसके हृदय में, कैसा हाहाकार लिए बैठी थी, पर कितनी खामोश ! उसकी आँखें कितना कुछ कह देती थीं, पर जुबान खामोश ही रही। उसे उन्होंने क्या दिया ? सचमुच सर्वनाश ही किया है उसका। क्या हक़ था उन्हें उसको इस अग्नि में झोंकने का ? अपने स्वार्थ के लिए उसे उस व्यक्ति को सौंप दिया जो उसके लायक नही था।
उससे सब कुछ तो छीन लिया। वह अपराधी हैं उसके । उन्होंने उसके प्रेम का प्रतिदान एक दंड के रूप में दिया। वह सचमुच बहुत स्वार्थी हैं, बस अपनी खुशी सोची। पर उसका क्या ? अगर वह उसके जीवन मे न आये होते तो कितनी खुश होती वह, आज के समय में। अब तक शायद उसकी फ़िल्म शुरू हो गई होती। वह प्रसिद्धि के शिखर पर होती। एक से बढ़कर एक युवा उससे विवाह को लालायित होता। पर उन्होंने उसे एक दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया। लानत है उन पर। वह सर थाम कर बैठ गए। कई बार मन करता उससे बात करें, फोन उठाते, फिर रख देते। जब मन बहुत बेचैन हो जाता तो कुशलता पूछ लेते।
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उमंग ने उर्वशी को सुझाव दिया कि वह एविएशन का कोर्स कर ले और एयरहोस्टेस बन जाए। जबकि नील ने कहा की वह मास कॉम का कोर्स कर ले, उसमे उसकी रुचि भी रहेगी व सम्भावनाएं भी बढिया हैं। एक नाट्य समूह की गतिविधियां देखी थीं, पर वह उसे दिल्ली से तुलनात्मक रूप में कम पसन्द आया था। उसका जी चाह रहा था कि वह दिल्ली चली जाए, या मुम्बई। उमंग उसे प्रोत्साहित कर रहा था कि वह हर हालात में उसके साथ है। अगर मुम्बई जाना चाहे तो वह उसका साथ देगा। पर वह उसपर आर्थिक बोझ डालना नहीं चाहती थी।
नील उसमें खासी रुचि ले रहा था, उसके माता पिता भी उससे बहुत अच्छी तरह बात करते थे। जब भी उसके पास खाली समय होता वह उससे बात करने लगता। उर्वशी को भी उसका साथ अच्छा लगता था, क्योंकि वह जितनी देर रहता माहौल हल्का रहता। उसे उमंग से उर्वशी के विषय सब मालूम हो चुका था, इसलिए वह उससे और भी बात करता था। वह भी हैरान था कि इतनी अच्छी पत्नी के साथ शौर्य ऐसा कैसे कर पाया। उसे उर्वशी की सोच पर भी हैरानी होती कि वह क्यों उन लोगों से कुछ भी स्वीकार करने को तैयार नहीं है ?
एक दिन जब उमंग नहीं था तब उर्वशी से बात करते हुए नील ने उसे सुझाव दिया कि इस बार वह अपने लिए ऐसे साथी का चुनाव करे जो बहुत परवाह करने वाला हो, और उसे प्रेम भी करता हो। इस पर उर्वशी ने उत्तर दिया कि अब वह अपना जीवन अकेले ही बिताएगी, उसे किसी के साथ कि आवश्यकता नहीं। यह सुनकर नील का चेहरा उतर गया। वह समझ गई थी कि नील उसके प्रति आकर्षित है, पर वह अब किसी को अपने जीवन में लाने की उत्सुक नहीं थी। उसने सर्वश्रेष्ठ पुरूष का चयन किया था, पर यदि वह उसके भाग्य में नहीं तो कोई बात नहीं। वह अकेले ही जीवन काट लेगी।
अब वह अपने दिल्ली के साथियों व निर्देशकों के सम्पर्क में भी आ गई थी। एक दिन आशुतोष ने उसे फोन करके कहा कि उनके पास दूरदर्शन के लिए एक टेलीफिल्म के निर्देशन का प्रस्ताव है, जिसे उन्हें तुरंत शुरू करना है। नायिका का चयन वह कर चुके हैं पर यदि वह चाहे तो सहायक अभिनेत्री का एक सशक्त चरित्र वह उसे देना चाहते हैं। पैसा भी ठीकठाक मिल जाएगा। उसने उमंग व नील से मशवरा किया तो दोनो ने उसे तुरंत प्रस्ताव स्वीकार कर लेने को कहा। सोच विचार कर वह ऑडिशन के लिए दिल्ली रवाना हो गई। उसके ठहरने का इंतजाम आशुतोष ने नाट्य समूह की ही एक लड़की के साथ कर दिया था। ऑडिशन में उसे चरित्र में बिल्कुल फिट पाया गया और टेलीफिल्म में उसे कास्ट कर लिया गया।
इस फ़िल्म की सबसे अच्छी बात यह थी कि वह कहानी लखनऊ की ही पृष्ठभूमि की थी, अतः सारी शूटिंग लखनऊ में ही होनी थी। वह कॉन्ट्रेक्ट साइन करके लखनऊ वापस लौट आयी। अब वह काफ़ी खुश थी। बस एक बार शुरुआत हो जाए, फिर वह पलटकर नहीं देखेगी। वह सिर्फ अभिनय के लिए बनी है, इसी काम में वह अपना बेहतरीन दे सकती है। नया काम मिलने की खुशी में उमंग, नील व उसकी तिकड़ी ने बाहर डिनर करके जश्न मनाया।
शूटिंग शुरू हो चुकी थी। इन दिनों वह काफ़ी कमजोरी महसूस कर रही थी। सुबह उठने का मन नहीं करता, जबर्दस्ती उठती तो काम करने का दिल नहीं करता। खाना पीना भी बहुत कम हो गया था, उमंग से वह कुछ कहती नहीं थी कि बेकार में फिक्र करने लगेगा। चेहरा भी कुम्हला गया था। उस दिन सुबह से वह शूट में व्यस्त थी। जी चाह रहा था कि थोड़ा आराम कर ले, पर शूटिंग बहुत तेजी से हो रही थी। आशुतोष कम बजट व समय मे वह फ़िल्म पूरी कर लेना चाहते थे। अधिकतर कलाकर नाट्य समूह के ही थे, तो कोई दिक्कत नहीं थी। वह सभी पूरा सहयोग कर रहे थे। सबकी यही अभिलाषा थी कि फ़िल्म जल्दी से पूरी होकर राष्ट्रीय चैनल में टेलीकास्ट हो जाए, तो सबके भाग्य का भी निर्णय हो जाए।
एक दृश्य का फिल्मांकन होते समय उसे सब कुछ गोल गोल घूमता नज़र आया। इससे पहले की वह गिरती उसके साथी अभिनेता ने जल्दी से उसे थाम लिया और शूटिंग रोक दी गई। जल्दी से उसे नारियल पानी पिलाया गया। थोड़ी देर में उसकी तबियत कुछ ठीक महसूस हुई। आशुतोष ने उसे उस दिन आराम करने की सलाह देकर घर भिजवा दिया। नील उस समय घर पर ही अपना ऑनलाइन काम कर रहा था, उसने जल्दी से डॉक्टर को फोन कर दिया । यद्यपि उर्वशी ने मना किया पर वह नहीं माना। साथ ही उसने उमंग को भी फोन कर दिया। थोड़ी देर में डॉक्टर व उमंग, दोनो आ गये । डॉक्टर ने मुआयना करके उसके गर्भवती होने की सूचना दी । आवश्यक दवाएं लिखकर डॉक्टर तो चली गई, पर उमंग और नील एक दूसरे को देखने लगे। वह सब बहुत खुश नजर आ रहे थे, फिर न जाने क्या सोचकर उमंग गम्भीर हो गया।
क्रमशः