आधा आदमी
अध्याय-30
मेरा इतना कहना क्या था कि ड्राइवर दनदनाते हुए बरामदे में आए और अपने दोस्तों लेकर चले गए।
ड्राइवर के जाते इसराइल ने अपनी प्रतिक्रिया दी,‘‘ भइया! ई सब लफड़ा न पालव.‘‘
इसराइल का इतना कहना क्या था कि मैंने उसे टाइट किया, ‘‘तुम्हें क्या पता जब मैं छिबरी पड़ी थी। तब किसी और ने नहीं ड्राइवर ने मेरी मदद की थी। आज उसी की ही देन हैं जो मैं यहाँ बैठी हूँ। इसलिए तुम अपनी जगह पर हो ड्राइवर अपनी जगह पर, अपना-अपना स्थान याद रखों। हमारे लिए तुम दोनों ही बराबर हो.‘‘
‘‘जैसी तुम्हारी मर्जी तुम जानों तुम्हारा काम जाने.‘‘
टयूशन्स पढ़ाने का टाइम होने के कारण ज्ञानदीप ने दीपिकामाई की डायरी के पन्ने उठा कर रख दिए और साइकिल लेकर निकल पड़ा।
जब तक यह नंगा खुला नहीं करायेगा
दईयाँ रे दईयाँ लल्ले को नज़र लागी
मैं डिबिया काजल की लेकर भागी
रे दइयां रूप्यों पे नज़र लागी
मैं डिबिया काजल की लेकर भागी
हे सासु आवे देवता मनावे
दइयाँ रे दइयाँ...................
तिलरी पे नज़र लागी
मैं डिबिया काजल.................
हे जेठानी आवे पंलगा बिछावैं
दइयाँ रे दइयाँ पैरी पर नज़र लागे
मैं डिबिया काजल.......................
हे नन्दी आवे कजरा लगावें
दइयाँ रे दइयाँ..............
कंगनों पर नज़र लागी
मैं डिबिया काजल.............
हे देवर आवे मुरली बजावैं
दइयाँ रे दइयाँ..............
घड़ियों पे नज़र लागी
मैं डिबिया काजल...........
हे हिजड़े आवे बढ़ती पनावैं
दइयाँ रे दइयाँ...............
ग्यारह सौ पर नज़र लागे
मैं डिबिया काजल.............
बिजली रानी गाने के साथ-साथ हाथ हिला-हिला कर नाच रही था। उसकी फेशकटिंग हुबूहु जानी लीवर की तरह थी। टिन्नी अम्मा सिर पर टोकरी रखे, ताली पीटे जा रही थी। मगर मज़ाल हैं कि टोकरी टस से मस हो जाए। गोली हिजड़ा ढोल बजाने में मस्त थी।
‘‘ऐ बधाई लेयाव, मोर हजार रूपया.‘‘ बिजली रानी ने ताली बजाकर कहा।
‘‘मालिक नाय हय.‘‘ पिचके गाल वाली महिला ने कहा।
आस-पास के लोग जमा थे। सभी दाँत-चियारे टुकूर-टुकूर देख रहे थे। कुछ बच्चे उनकी देखा-देखी ताली बजा रहे थे।
‘‘यहीं सब करना बड़े होकर.‘‘ महिला ने टोका।
‘‘अरी ई का कैं रही हव बिटिया, हम्म तो अल्लाह से इही दुआ करित हय कि कोई दुश्मन का बच्चा भी ई लाइन में न आवें.‘‘ टिन्नी अम्मा ने समझाया।
‘‘देखत नाय हव, कस ताली बजावत राहे तुम लौगन का.‘‘
‘‘सही कहत हव भौजी, छबीले का लौड़ा अइसन ताली बचपने में बजावत राहे आज उका देखव मेहरा बना घूमत हय.‘‘ तहमत वाले ने कमेंट की।
‘‘अइसन तो भैंया लोग हिजड़े बनत हय.‘‘ बूढ़े ने प्रतिक्रिया।
‘‘अरे बाबा, सुब-सुब बोलव अभी बच्चा हय उका का मालूम.‘‘ टिन्नी अम्मा ने कहा।
‘‘अरी गुरू भाई, तुम भी का लई के बईठ गई। बधाई लैव अउर निकलव इहाँ से.‘‘
‘‘अरी बहिनी कहाँ हय तोहरी बधाई?‘‘
‘‘ई लेव.‘‘ कहकर पिचके गाल वाली ने एक पुरानी बाल्टी लाकर उसके सामने रख दी।
‘‘ई हम्म लोहड़-लक्कड़ का करिब, हम्में बधाई दो.‘‘
‘‘होत तो काहे ई सब दीत.‘‘
‘‘इत्ते आदमी खड़े हय अगर दस-दस रूप्ये दई दें तो पाँच सौ होई जियैं.‘‘ काफी तयतोड़ के बाद उस महिला ने ढाई सौं रूपये दिए।
ज्ञानदीप ने यह सारा नज़ारा खिड़की के उस पार से देखा। हिजड़ों को जाता देखकर, ज्ञानदीप ने टयूशन पढ़ाना बंद किया और साइकिल लेकर उनके पीछे-पीछे चल पड़ा।
चाय की दुकान देखते ही नेपाली चेहरे वाली हिजड़ा बोली, ‘‘अरी चल री पानी-पत्ता कर लिया जाए.‘‘
उन तीनों के साथ-साथ ज्ञानदीप भी होटल में चला गया और उन्ही के सामने वाली टेबल पर चाय का आर्डर देकर बैठ गया।
बिजली रानी चाय-समोसा का आर्डर देकर टिन्नी अम्मा की तरफ़ मुख़ातिब हुई, ‘‘गधा मरे कुम्हार का धोबिन सती होय। अरी का जरूरत हय ई सब कहने की बधाई बजावे गई हों तो बधाई लेव.‘‘
‘‘अरी जाव बहिनी तुम तो ज़बान पकड़ कैं बईठ गई.‘‘
‘‘न पकड़ी तो का करी.‘‘
लड़का चाय-समोसा रखकर चला गया।
‘‘अरी ई सब छोड़व पहिले पेट पूजा करव.‘‘ गोली हिजड़े के कहने का स्टाइल नरेन्द्र मोदी की तरह था।
होटल में बैठे लोग उन्हें ऐसे देख रहे थे जैसे कोई अजूबा हो।
‘‘अरी भागव बहिनी, आज का देन बहोत खराब हय सुबह से बधाई बजावत-बजावत चार बज गई अउर मिला का ढाई सौ रूप्ल्ली.‘‘ कहकर टिन्नी अम्मा समोसा खाने लगी।
‘‘आय री बहिनी, बताव ई उमर में लौंड़ा पइदा करत हय.‘‘ गोली ने प्रतिक्रिया दी।
‘‘तीन किलव की बुर चोदियें भड़वे........अउर बधाई दें में लौड़ा फटत हय.‘‘
ज्ञानदीप चाय की चुस्की के साथ-साथ उनकी बात बड़े ध्यान से सुन रहा था।
‘‘अरी बहिनी, सबकी सब बातें सब सुनत तो हय, पर हम्म लोगों को सुनना तो दूर लोग देखना भी पंसद नाय करत हय.‘‘ बिजली रानी ने अपनी पीड़ा व्यक्त की।
‘‘सरकार चाहे तो हम्म लोगों के लिये का नाय कर सकती?‘‘
‘‘अरी भक, ई गाँडू सरकार हम्म लोगों के लिये का करेगी। अपनी ही खूमड़ अउर गाँड़ भर ले इही बहोत हय.‘‘
‘‘सही कहत हव गुरू भाई, इत्ती सरकारें आई पर किसी ने हम्म लोगों के लिये कुच्छ नाय किया.‘‘ टिन्नी अम्मा ने गोली की बातों की पैरवी की।
‘‘सच तो ई हय गुरू भाई, हम्म लोग कोई बहोत बड़ा वोट बैक तो हय नाय। इसलिये हम्म लोगों को हमेशा नज़रअंदाज किया जाता हय.‘‘
चाय-नाश्ता करने के बाद टिन्नी अम्मा ने दुकानदार को पेमेंट किया और दुकान के बाहर आ गई। उनके पीछे-पीछे ज्ञानदीप भी चल पड़ा था।
वे सब ताली बजाते हुई गली में चली गई। सारे मकान लाइन से थे और उनके दरवाजें आमने-सामने खुलते थे। बज़बज़ाती नालियों के बीच खड़न्जा अपने को असहाय महसूस कर रहा था। बदबू के मारे हिजड़े बार-बार नाक-मुँह सिकोड़ रही थी।
‘‘अरी सेठ! निकाल अपनी तिजोरी हलकी कर तू तो नाना बन गया.‘‘ दरवाज़ा खटखटाती हुई गोली हिजड़े ने कहा।
दरवाजा खोलते ही अधेड़ उम्र का व्यक्ति गरज उठा, ‘‘यहाँ क्या भीख माँग रही जा के उधर माँग.‘‘
‘‘ऐ भड़वे, तुमैं का हम्म लोग भिखारी लगित हय। चल हमारी बधाई निकाल.‘‘
वह अधेड़ उम्र का व्यक्ति दरवाज़ें को ऐसे छेंके था जैसे फुटबाल का गोली नेट को छेंकता हैं। वह प्रेमचोपड़ा स्टाइल में बोला, ‘‘यहाँ तुम्हारी चोद विद्या चलने वाली नहीं, कही और जाकर आजमाओं.‘‘
‘‘गुरू भाई, जब तक ई नंगा खुला न करय्हें तब तक के ई बधाई न देहैं.‘‘ बिजली रानी ने आँख मटका कर कहा।
‘‘जब ई बात हय तो नंगी होय के पीटना डाल देव.‘‘
यह सुनते ही वह अधेड़ उम्र का व्यक्ति कच्छा उतार कर नंगा खड़ा हो गया। बोला, ‘‘मैं तुम लोगों से बड़ा नंगा हूँ.‘‘
टिन्नी अम्मा को ऐसा लगा जैसे किसी ने उनके वर्चस्व को ललकारा हो। उनके नथुने फूलने लगे। तालियाँ ऐसे बजने लगी जैसे कम्टीशन हो रहा हो तालियों का।
उन्होंने न देखा आव और न देखा ताव, उसी झुंझलाहट में उस अधेड़ व्यक्ति का लिंग पकड़कर तैश में बोली, ‘‘भड़वे साले, बजाय हिजड़ो को बधाई देने के नूनी-पेल्हर दिखावत हव। अभी तुमरा किसी बीहड़ हिजड़े से पाला नाय पड़ा हय। आज हम्म तुमैं बताती हूँ, हम्म अपना हक दरोगा-पुलिस से भी लें लेती हय तो तुम कहा के लौड़े नवाब हो जो हिजड़ो के आगे नंगे होत हव....।‘‘
‘‘बहन जी छोड़ दीजिए.‘‘ अधेड़ उम्र का व्यक्ति विनती करने लगा। सभी अपने-अपने घरों से निकल आये थे। क्या पुरूष, क्या स्त्रियाँ, क्या लड़के-लड़कियाँ और क्या बच्चे-बूढ़े। पतली गली में काफी लोग जमा हो गए थे।
ज्ञानदीप साइकिल लाँक करके उसी भीड़ में तब्दील हो गया।
अधिकतर महिलाएँ आँखें फाड़-फाड़कर दरवाजें के ओट में खड़ी देख रही थी।
‘‘पिछवाड़ा दिखायी हैं तो अगवाड़ा भी दिखा दें.’’ भीड़ में से किसी ने कमेंट की।
‘‘आज खाना नसीब न होंइय्हे.‘‘ महिला ने अपने साथ वाली से कहा।
‘‘हम भी तो देखे कि हिजड़ों का अगवाड़ा कैसा होता हैं.’’ गंजें सिर वाले ने कहा।
‘‘ले लें देख ले.’’ गोली हिजड़ा धोती उठाकर ऐसे घूम गया जैसे किसी चीज़ का ऐड कर रहा हो।
लोग देखने के लिए एक-दूसरे पर ऐसे टूटे। जैसे असम में अनुसूचित जनजाति की सोलह साल की निर्वस्त्र लड़की को देखने के लिए टूट थे।
अधिकतर लोग मोबाइल से मूवी बनाने लगे। यह सब देखकर ज्ञानदीप का मन खौल उठा।
‘‘अबे, इके तो लन्डैं नाय हय.‘‘ लम्बे बाल वाले ने अपने साथ वाले से कहा।
‘‘ई सब कटवाये लेत हय.‘‘
‘‘बहन जी छोड़ दीजिए मैं आप के पैर पकड़ता हूँ.‘‘ अधेड़ उम्र का व्यक्ति गिड़गिड़ाया।
‘‘पहले ई बताव हमारी बधाई देत हय कि नाय.’’
‘‘दूँगा-दूँगा.....।‘‘ उसके इतना कहते ही टिन्नी अम्मा ने उसका लिंग छोड़ दिया। वह तेजी अंदर गया और वापस आकर उसने दो सौ इक्यावन देकर हाथ जोड़ दिया।
वे सब ताली पीटती गली से चली गई।
‘‘आज बुढ़वा फँस गवा साला, चलती लौड़ियेन की गाँड़ में उगली करत राहें.‘‘ भीड़ में से एक ने कहा।
ज्ञानदीप जब तक उनका पीछ करता वे न जाने किधर चली गई। काफी खोज़बीन के बाद जब वे लोग नहीं मिले।
ज्ञानदीप घर आ गया और पुनः दीपिकामाई की डायरी पढ़ने बैठ गया-
शाम होते ही ड्राइवर आ गये। फिर मैं, इसराइल और ड्राइवर ने मिलकर शराब पी। शराब पीने के बाद ड्राइवर ने ग़ज़ल सुनाने की ज़िद् की। तो मैं उन्हें मना न कर सकी,
फूल से ख़ुशबू भ्रमर से गुनगुनाहट छीन ली
एक मौसम ने हमारी खिलखिलाहट छीन ली।
मुझको जिन क़दमों का अब भी हैं हर एक पल इंतज़ार
मेरे दरवाज़ें से किसने उनकी आहट छीन।
सोचिए तब दिल मेरा ये किस तरह जी पाएगा
तुमने भी, जो दिल से उसकी थरथराहट छीन ली
जाने ये कैसी हवाएँ है जिन्होंने आजकल
फूल की हर पांखुरी से मुस्कराहट छीन ली।
मैं उसे दुष्मन कहूँ या दोस्त, जिसने.................
मैं गाती-गाती फफक पड़ी थी। इसराइल ने मुझसे ढोलक छीन कर टाँग दिया।
ड्राइवर मेरे आँसू पोछनें लगे, ‘‘जो हुआ सो उसे याद करके रोने से क्या फायदा.‘‘
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