Vashuba in English Classic Stories by Yk Pandya books and stories PDF | वशुबा.

Featured Books
Categories
Share

वशुबा.

रोज़ सुबह ५ बजते ही वशु बा उठ जाती और अपने नित्या कर्म निपटाती , बड़ी सादी, सरल, वशु बा, सफ़ेद साड़ी, माथे पर चंदन का तिलक, गले में रुद्राक्ष की माला, हमेसा शिव शंभु की माला जपने वाली वसु बा, लोग बड़ा आदर करते थे उनका बच्चा तो बच्चा बड़े लोग भी उनको वशु बा ही कहके बुलाते थे, वो रोज़ अपने हाथ में पूजा की थाली जिसमें कंकु, चंदन, चावल, और फ़ुल लिए, दूसरे हाथ में ताम्बे का लोटा उसमें थोड़ा पानी और थोड़ा दूध मिलाकर नंगे पाँव ही अपने नुक्कड़ वाले मंदिर के लिए चल पड़ती.मंदिर का पुजारी भी उनको बड़े आदर के साथ शिव शंभु कहके अभिवादन करता वर्षों से यही नित्या क्रम था वशु बा का इसीलिए पुजारी उनहे कभी नहीं रोकता था बल्के उनको पूजा करने की सारी सुविधा कर देता था, शिवरात्रि के दिन बड़ी भीड़ लगी होती थी पर वशु बा की पूजा हो ये ज़रूर पुजारी निस्चित कर लेता था, कितनी भी बारिश हो, ठंड हो कुछ भी हो वशु बा अपनी पूजा नहीं चूकती थी.
संघर्स और साहस की जिति जागती प्रतिमा थी वशुबा, पूजा करके घर लोटकर अपने घर के काम में जुट जाती, गली में रहने वाली औरतें, पास में रहने वाली मास्तर की बहु हमेसा आ जाती और कहती वशुबा हमें बुलाया करो हम सारे काम कर देंगी और वशुबा प्यार से बोलती जबतक हाथपेर चलते हे तबतक तो में ही करूँगी आगे मेरा शिव शंभु जाने.
आज जब मंदिर से लोटी वशुबा तो पास में रहने वाला मास्तर हाथ में काग़ज़ लेकर आ गया और बोला वशुबा आपका पत्र आया हे मुंबई से, हल्की सी मुस्कान वशुबा के चेहरे पर खिल गयी.
शिवशंभु.....बड़े दिनो बाद आयी हे माँ की याद क्या लिखा हे मास्तर ज़रा पढ़ तो.
मास्तर ने कवर खोला और काग़ज़ निकाला, काले अक्षर देख थोड़ा ठहर सा गाया, पढ़ने से जिजकता हुआ देख वशुबा बोली, रुक क्यू गया पढ़ना.मास्तर संकोच करते काग़ज़ पढ़ा और वशुबा की और देखकर बोला, वशुबा समाचार शुभ नहीं हे, आपके बेटे और बहु की कार अकस्मात् में मोत हुई हे,वशुबा के पेरो तले ज़मीन खिसकी , और वो गिर पड़ी आँखो में आँसू लिए ऊपर की और देखकर बोली अभी तक क्यू ज़िंदा रखा तूने शिव शंभु अब कोनसा काम बाक़ी हे ?? सब ख़त्म हुवा अब तो मुजे भी बुला ले. वशुबा को पकड़े ऊपर बेठाकर मास्तर बोला आपकी पोती आ रही हे वशुबा... अब जाके वशुबा को मन में चमक हुई शायद इसीलिए ज़िंदा हूँ.
अगले दिन वही रोज़ की भाँति वशुबा हाथ में पूजा की थाली और ताम्र का लोटा लिए नंगे पाँव चल पड़ी मंदिर की और, रात भर बेचेनी और दुःख ने आवाज़ और चाल को धीरा कर दिया था पर शिव शंभु की पूजा नहीं रोक पायीं थी.घर लोटते वशुबा ने देखा आगंन में पोती अनु आके बेठी हुई हे गली वाले सारे उसके आसपास इकठे हुए हे, वशुबा अनु के पास आकर माथे पर प्यार से हाथ फिराकर बोली बेटा अगर काग़ज़ में आने का समय लिख देती तो मास्तर तुजे स्टेशन लेने आ जाता ना.अनु अपनी जगह से उठी बिलकुल बेजान सी उदास सी वशुबा से नज़रें मिलाए बिना उनके पाँव छूकर बोली जय शिव शंभु बा. वशुबा ने उसको पेर से लेकर माथे तक निहारा और उनकी पारखी नज़र सबकूछ भांप गयी. थोड़ी देर में सब अनु को सहानुभूति दिखाकर आशीर्वाद देकर चले गए, वशुबा ने घर का दरवाज़ा खोला और आ जा बेटी अंदर आ और आराम कर ले थक गयी होगी, अनु अभी भी वशुबा से नज़रें मिलाए बिना अंदर सीधे अपने कमरे में चली गयी.
अनु जब भी यहाँ अपने मातापिता के साथ छुट्टियों में या दिवाली में आती थी तो इसी कमरे में रहती थी, बेजान सी होकर अनु कमरे के एक कोने में की कुर्सी पर बड़ी देर तक बेठी रही वशुबा उसे थोड़ी देर अकेला ही छोड़ना चाहते थे, जब बहुत समय के बाद भी अनु बाहर नहीं आयी तो वशुबा खाने की थाली लेकर कमरे में गयी, अनु को इस तरह बेठा हुआ देख उनका मन दुःख से भर गया, बस पास जाकर प्यार से माथे पर हाथ रखकर उसको खाना खिलाने लगी.बस यही चलता रहा, अनु अपने कमरे से बहार आती ही नहीं यूँही गुमसम बेठी रहती और वशुबा उसको खाना खिलाते और ध्यान रखते.
ऐसे ही ५ महीने बीत गए ना वो कुछ बात करती नहीं वो कमरे से बहार निकलती बस वशुबा जो कहती वो चुपचाप करती रहती, वशुबा ने भी कुछ पूछना नहीं चाहा, उसे अपने आप दुःख से बाहर आने का इंतज़ार करती रही उनको पता था एक दिन उनकी पोती सारी बात ज़रूर बताएँगी. पर अब अनु का शरीर बदलने लगा था अब किसी से कुछ नहीं छुप सकता था अगर कोई सवाल करे तो जवाब देना बहुत ज़रूरी था पर वशुबा को अपने शिव शंभु पर और अपनी पोती पर विश्वास था इसीलिए चुप रहकर सबकूछ देखती रहती और अपना काम करती रहती.समय बीतता चला गया लोग पूछ भी लेते की अनु बाहर क्यू नहीं आती?क्यू किसिसे मिलती जुलती नहीं? वशुबा ये कहकर टाल देतीं की शहेर की रहने वाली हे अभी उसका मन नहीं लगता यह आदत हो जाएगी तो ज़रूर निकलेगी पर गली की औरतें थे आख़िर बस पीछे पड़ गयी घर में तांक जाँक करने लगी देर तक छुपा ना पायी वशुबा और आख़िर कार गली की औरतों ने देख भी लिया.वशुबा के आते जाते देख अंदर ही अंदर फुसफुसाने लगी थी.
आज सुबह पूजा पाठ करके जब वशुबा घर लोटी तो गली वाले सारे इकठे होके उनको रोकने लगे.
क्या बात हे मास्तर रास्ता क्यू रोक रहे हो??
वशुबा एसा कबतक चलेगा आप भी जानती हे हम क्या कर रहे हे, हमारे घर में भी बहु, बेटियाँ हे, वो तो आपका लिहाज़ कर रहे हे जो कुछ नहीं बोलते.आपको अब फ़ेसला लेना पड़ेगा, नहीं तो आप ये मोहल्लाछोड़ जा सकती हे.
बाहर ज़ोरसोर की आवाज़ ने अनु को चमका दिया, बेचेनी से बाहर आके उसने देखा वशुबा लोगों के सामने बिलकुल सर जुकाए खड़ी थी, और गिड़गिड़ा रही थी की मोहल्ला ना छुड़वाए, अनु बिलकुल अवाक सी रह गयी पहेले कभी अपनी वशुबा को यू किसी के सामने जुकते नहीं देखा था, बहुत कम उम्र में अपने पति को खो दिया था अकेले ही अपने बेटे को सम्भाला,बड़ा किया, पढ़ाया लिखाया था, किसी भी परिस्थिति के आगे नहीं जुकी थी वो, और वो आज जुकी हुई खड़ी थी लोगों के सवालों का जवाब नहीं दे पा रही थी, क्यूँ?? अनु मन ही मन सोचती रही केसे देगी सवालों के जवाब...मेने कभी उनको बताया ही नहीं क्या हुवा था वशुबा ने कभी पूछा ही नहीं,अनु अंदर ही अंदर सहम सी गयी, सब मेरी वजह से हुआ हे, ये सोचकर उसकी साँस फूलने लगी अचानक दर्द होने लगा उसने वशुबा को आवाज़ लगायी और वही बेठ गयी, परिस्थिति का ध्यान आते ही वशुबा अनु की तरफ़ दोड पड़ी अनु को सम्भालते बोली कुछ नहीं होगा बेटा, शिव शंभु सब सम्भाल लेंगे और वो मास्तर की और मूड कर कहेने लगी अच्छा मास्तर तू जो कहता हे में करूँगी पर अभी जा गाड़ी या रिक्शा मँगवा मुजे अनु को डॉक्टर के पास ले जाना हे गली की औरतें भी अनु के आसपास आ गयी और मास्तर को जाने के लिए ज़ोर देने लगी, इतने सालो के रिश्ते का लिहाज़ करते मास्तर गाड़ी लाने चल दिया,
अनु दर्द से बेहाल हो रही थी और वशुबा बड़े प्यार से उसके माथे को सहलाती रही जब अनु की दर्द भारी चीखे काम हुई तो एक रोने की आवाज़ से वशुबा को शांति मिली, ऊपर देखकर बोली शिव शंभो. वशुबा ,अनु के माथे पर हाथ फेराकर बोली आराम कर बेटी, तेरे जेसी ही लक्ष्मी आयी हे, और मुड़कर जाने लगी तभी अनु ने वशुबा का हाथ थाम लिया, और जेसे सब्र का बाँध टूट पड़ा वो वशुबा के हाथ को लिए बिलख बिलख कर रो पड़ी वशुबा ने भी उसको नहीं रोका उसे मन भर रोने दिया, जब अनु शांत पड़ी तब खुद ही बोलने लगी.
वशुबा में ही कारण हूँ की आज पापा, ममा, मेरे और आपके पास नहीं, मेरी ही वजह से वो अकस्मात् हुआ था, अपनी साथ पढ़ते एक लड़के से में प्यार कर बेठी थी, कई पल बिताए उसके साथ मुजे नहीं पता था की वो मुजे छोड़ देगा, मेने उसे ममा,पापा से मिलाने की बात की तो उसने बहाने बना लिए, और मुजे अनदेखा करने लगा, और जब मुजे पता चला की अब मुजे उसे मिलना ही चाहिए क्योंकि समय पास हो चुका था, और में उसे मिलने उसके घर चली गयी वहाँ पता चला की वो दो दिन पहेले ही अमेरिका जा चुका था में टूट गयी अपनी हालत किसिको नहीं कह पाती थी जब घर लोटी तो माँ ने मुजे मेरी हालत देखकर पूछा और मेने उनको सारा हाल बता दिया, कोई बदनामी ना हो इसिलिये माँ और पापा मुजे अपने पहेचान वाले डॉक्टर के पास ले जा रहे थे तभी पापा चिंता चलते गाड़ी सम्भाल नहीं पाए और वो अकस्मात् हुआ था, वशुबा में ना जाने क्यू बच गयी ??क्यू भगवान ने मुजे नहीं उठाया ??कहकर फिर से वो टूट टूट कर रोने लगी.
वशुबा उसका हाथ छुड़ाकर पालने में सोई बिटिया को ले आयी और उसे देकर बोली इसकी वजह से भगवान ने तुजे नहीं बुलाया बेटा, ये तेरे प्यार की निशानी हे, तूने तो सच्चे मन से प्यार किया था कपट तो उसने किया तो तू क्यू उसकी सजा भुगते. ले सम्भाल इसे अब यही हे तेरा सबकूछ तुजे इसके लिए जीना हे. शिव शंभु पर भरोसा रख वो ज़रूर सब ठीक कर देगा . अनु का मन एकदम शांत हो गया अपनी बेटी को हाथ में लेकर उसे बस देखती रही.
पर ना जाने क्यू विशुबा कुछ सोचती रही उसे पता था की उसका शिव शंभु एसा नहीं कर सकता, पर फ़िलहाल उसने अनु की तरफ़ ही ध्यान दिया, जब अस्पताल से लोटी अनु तो उसने आँगन में रोहित को खड़े देखा वही जिसने उसका साथ छोड़ दिया था, अचानक सामने पाकर बोखला गयी अनु पर उसकी आँखो में शर्मिंदगी और आंशु देख कुछ शांत पड़ी, नज़रें नहीं मिला पा रहा था रोहित तभी वशुबा दोनो को देख समज गयी यही हे जमाईराज आगे आके अपने दोनो हाथों से रोहित के सर पर से बलाई लेते बोली आपका स्वागत हे जमाई राज...पोती और जमाई को अकेला छोड़ शिव शंभु बोलते बोलते घर में चली गयी वशुबा....