wo baarah ghante ka pasina in Hindi Short Stories by AKANKSHA SRIVASTAVA books and stories PDF | वो बारह घण्टे का पसीना

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वो बारह घण्टे का पसीना

जमीन जल चुकी आसमा बाकी है
सूखे हुए कुएं तुम्हारा इम्तिहान बाकी है,
ऐ- बादल बरस जाना इस बार भी समय पर
किसी का मकान गिरवी तो किसी की लगन फीकी है,
टपकते है छत उसके कच्चे इमारतों के
फिर भी वो करता है दुआ बारिशो के आ जाने की।


कृषि प्रधान देश में आज आधी से भी कम आधी आबादी किसानी कर रहे है। आधुनिकता और भौतिकवाद ने आज हमें अपने शिकंजों में कस लिया है। आधी आबादी गाँव खेती से दूर शहरों के उन ऊँची इमारतों में बस रहे। दिन रात चकाचौंध में खट रहे। अठारह अठारह घण्टे की महेनत के बाद जब बॉस कहता ये भी कोई प्रोजेक्ट है,या इसमे कुछ नया डालो तब दिमाग बौखला उठता है। लेकिन वही जब एक खेत मे काम करने वाला किसान बारह घण्टे की लगन में एक बंजर खेत को लह-लाहती फसल देता है उसके पीछे उसकी कड़ी मेहनत, लगन, पसीना जुड़ा होता है। जब फसलें झूमती है तब जा कर एक किसान के चेहरे पर चमक निखर उठती है। इन्ही पर आधारित यह काल्पनिक लघु कहनी #किसान की बारिश

किसी ने खूब ही कहा है हर मेहनत - संघर्ष के पीछे खुशी छिपी होती हैं।बिलासपुर के गाँव मे बहुत ही छोटा सा परिवार था,जिस घर मे सास ससुर, पति रमेश और उसकी पत्नी माया रहा करती थी। उनके दो छोटे बेटे थे। उनकी हर सुबह भोर से शुरू हो जाती रमेश और उनके पिता खेतों में काम करने निकल पड़ते और बची घर मे महिलाएं गायों को नाद में चारा डालना,साफ सफ़ाई करना, पूरे घर को बहारना उसे लीपना।उसके बाद दोपहर में खाना बना खेत पर जा कर जुट जाना यह किसी संघर्ष से कम नहीं।
वह दिन- रात एक कर अपनी मेहनत से किसानी करते। कभी खेतों से अच्छी फसल होती,कभी नुकसान। लेकिन किसी तरह उनका जीवन यापन हो ही जाता। वक़्त बीतता गया और रमेश के दोनों बेटे बड़े हो गए। सास-ससुर के गुजरने के बाद अब रमेश माया के ऊपर ही सारा जिम्मा था। दो बेटे होने के बावजूद वो दोनों ही घर से लेकर खेत तक कि जिम्मेदारी को पूरा करते। दिन पर दिन वो कमजोर हो रहे थे। लेकिन उनके दोनों बेटे एक नंबर के आलसी और निकमे थे। दिनभर गाँव के लड़कों संग पेड़ के छाव में ताश की पत्तियां खेलते,यह सबदेख रमेश और माया खिन्न हो उठते। अक्सर उन्हें यही बात खलती की उन्हें दो औलाद भी हुए तो वो भी बुढ़ापे के लाठी नही बल्कि काल। जिन्हें ना तो घर की चिंता होती ना ही बूढ़े माँ-बाप की।इन्ही बातो को लेकर उनके घर अक्सर झगड़े हुआ करते। लेकिन दोनों बेटों के जू तक न रेंगता। यह सब देख रमेश और माया अत्यंत दुखी रहते। कड़ी मेहनत और लगन के साथ दोनों पति-पत्नी हर रोज की तरह आज भी खेत में किसानी करने को गए। रमेश बैलों और हलो के सहारे पूरे खेत को जोत रहा था। चार रोज की मेहनत के बाद आज वो खुद को असहज,अस्वस्थ महसूस कर रहा था। उसके पैर अचानक मुड़ गए और वो वही खेतों में ही गिर पड़ा। माया ये देखते जोर जोर से चिल्लाने लगी । आस पास के किसान भाई- बहन भी माया की मदद के लिए दौड़ कर आए। अरे रमेश भैया का भवा जल्दी करा इनके पहिले पेड़े के नीचे सुतावा। भउजी तू भैया के पानी छिटकारा हम पास के डॉक्टर साहब के बुला लात हई।रमेश हाथो से इशारा किया,नही नही रुका। लेकिन वो नही रुके और दौड़कर डॉक्टर साहब को बुला लाए। जब डॉक्टर साहब देखे तो उन्होंने ह्दय रोग की बीमारी बताई और कुछ महीनों तक आराम करने को कहा। यह सब सुन अब रमेश और चिंता में पड़ गया। अब माया घर से लेकर खेत तक के काम अकेले ही निभाती। यह सब देख एक रोज रमेश बोला माया कुछ तो उपाय सोचो कि इन निकम्मो को अपने माँ बाप पर दया आ जाए। नही तो मुझे कुछ हो गया तो तुम किसके सहारे जियोगी। इस बार की फसल तो लग गयी मगर वर्षा न हुई तो तुम अकेले खेत तक पानी कैसे पहुँचाओगी। माया के आंखों से आंसू गिर पड़े और वो रमेश को सुझाव दी क्यों ना हम विजय की शादी कर दे। जब जिम्मेदारी बढ़ेगी तब ही अक्ल आएगी। तभी उन्हें जिम्मेदारी का बोझ समझ आएगा। रमेश कुछ पल सोचने के बाद जवाब दिया नही माया ये नालायक है ये हमारे गले ही उन्हें भी फान देवेंगे। हम हर रोज कड़ी धूप,बारिश,ठंडी को झेलते है मगर इन्हें तो सिर्फ और सिर्फ ताश की पत्तियों के अलावा कुछ नहीं दिखता। जिन्हें हमारी तकलीफ न दिखती हो,उन्हें जिम्मेदारी क्या खाक दिखेगी। वे अपनी जिम्मेदारी का भी बोझ हम पर ही मढ़ देवेंगे।

माया यह सब सोचते हुए बोली- आपकी बात सौ टका सच है। लेकिन क्या कोई उपाय नही इन्हें सुधारने का,कि उन्हें ये समझ आए की मेहनत कितना जरूरी है। माया भी अब थक जाया करती,दिन भर खेती में और रात को पति की सेवा,घर का काम,गायो की देखरेख।साथ ही ईश्वर से प्रार्थना करती की हे ईश्वर इस बार अच्छी बारिश हो जाए। जिससे फसल अच्छी तरह हो जाए। खुदा की दुआ काम कर गयीं। इन्ही बीच रमेश के बड़े लड़के की शादी तय हो गयी। अब घर की जिम्मेदारी बढ़ गयी। वक्त के साथ रमेश और माया भी अस्वस्थ हो गए। कच्चे फूटे मकान जर्जर हो गए और जगह जगह से चुने लगे। दिन पर दिन जिम्मेदारियों का पलड़ा भारी होता गया।अब विजय और उसके छोटे भाई को समझ आ चुका था की यदि हम अब कुछ न किये तो खाने के लाले पड़ जाएंगे।

दोनों भाइयों ने कुछ दिन तक तो एक साथ मेहनत की अंततः दोनों में नोकझोक होने लगी क्योंकि अच्छी बारिश न होने से फसल का नुकसान होने लगा। इस तरह से दो साल गुजर गए।दोनों बेटों ने मुंबई जाने का निर्णय लिया और वहाँ नौकरी करने लगे। लेकिन वे जितना भी कमाते उनके भर का ही रहता।घर तक ना आता।इधर रमेश की तबियत बिगड़ने लगी और उन्ही बीच रमेश की मौत हो गयी। अब माया किसी तरह खेत मे हल और बैलो को चलाती लेकिन उतनी मेहनत न कर पाती। एक रोज माया की बहू माया से झगड़ने लगी। तब माया ने उपाय सुझाया और बोली तुम लोग इसे न सम्भाल पाओ तो मैं ये खेत की जमीन किसीको दान दू। क्योंकि अब मुझसे नही हो पाता। तब माया की बहू ने कहा- आजकल खेती कौन करता है। ये सब सुन माया को बेहद तकलीफ हुई,वो सोचने लगी जिस किसानी से आजतक उसका घर जीवित रहा ये उसी पर उंगली उठा रही तब उसने बहू से कहा- बहू खेत मे तेरे बाऊजी धन की पोटली गाड़े है उसी की देखभाल आज तक हम करते आए है। उसी धन के खेती से हमारा परिवार जिंदा है। इतना सुन बहू ने झट से ये सूचना विजय तक पहुँचा दी। दोनों लड़के मुम्बई छोड़ अपने घर अपने गाँव वापस आ गए। दिन रात एक करके पूरे खेत को खोद डाले। यह देख माया बेहद खुश हुई कि चलो लालच ही सही इन बंजर जमीन पर किसी ने हल तो जोता।

एक हफ्ते की मेहनत के बाद भी उन्हें धन ना मिला,वो दोनों ही भाई माँ से आकर झगड़ने लगे। तब माया ने कहा- बेटों तुमने इतनी मेहनत की है तो अब उसमें ये बीज छिड़क आओ। पहले तो वो तैयार न हुए बाद में ना जाने क्या सोचकर उन्होंने बीज को छिड़क दिया। उस वर्ष बारिश भी खूब हुई और माया के खेत फिर से लह-लहा उठे। तब माया ने समझाया अब इन फसलों की कटाई छटाई के मदद से तुम इन धानो को अलग कर के बाजारों में बेच सकते हो,उससे तुम्हे बहुत सारा धन मिलेगा। यही ये धन है जो आज तक मैं तुम्हारे पिता जी उस खेत मे निरंतर धन को गाड़ते रहे।ताकि घर की स्थिति सामान्य रहे। अब दोनों भाई समझ चुके थे। उन्होंने ठीक वैसा ही किया और उन्हें माँ के कहे अनुसार बहुत सारा धन प्राप्त हुआ।अब वो समझ चुके थे कि कौन सा धन है जो जमीन में गड़ा है। इस तरह से वो दोनों भाई मिलकर खेती करते। अब उनके घर की स्थिति भी लगभग सुधर चुकी थी।उस धान से उन्हें अब ढेर सारा धन मिल जाता उनकी मेहनत रंग लाई। शायद इसी को कहते है निरंतर परिश्रम सदैव सुख देता है। काश वो पहले ही रमेश की बात सुन लिए होते तो उनकी जिंदगी भी कुछ और होती।

वाक़ई, एक किसान की मेहनत लगन ही है जो हर घर के सदस्यों का पेट भरता है।वरना आज हम आधुनिकता में दौड़ तो लगा रहे लेकिन इस मेहनत की ओर एक बार भी ध्यान नही देते। कभी कोई उनसे पूछे उनका दर्द समझे,जो निरतंर अपने कार्य को पूर्ण करने में बारह घण्टे तक खेत मे पसीना बहाते है। हमे किसानों के मेहनत और लगन का सम्मान करना चाहिए।

नोट : इस लघु कहानी में जो भी त्रुटि हो उसे माफ करिएगा और अपनी प्रतिक्रिया में जानकारी दीजिएगा। क्योंकि मैं कभी ना गाँव गई हूं ना,खेती करते हुए देखी हूँ ,लेकिन जितना सुनी हूं उसी पर लिखने का प्रयास कर रही हूं। उम्मीद करती हूं आप को पसंद आए।