आशा है के गुनाहगार कोन ? इस धारावाहिक का दुसरा भाग आपको पसंद आया होगा । अभी हम इसके अगले भाग की तरफ बढ़ते है ।
सम्मेलन :
इस समुह मे जो सम्मेलन होता है उसे इजतेमा या इस्तेमा कहते है, जो हर साल छोटे-बड़े स्तर पर आयोजित किया जाता है । जो पुरे दुनिया से लेकर देश-राज्य-जिला-तालुका-सर्कल स्तर तक आयोजित होता है वह भी सरकार की परमिशन लेकर । इन बड़े सम्मेलनो मे लाखों की संख्या मे भीड एकजुट होती है जो प्रशासन पर दबाव ना आने देते हुए इसकी सारी जिम्मेदारी इस से जुड़े हुए स्वयंसेवक उठाते है, फिर चाहे वह ट्रैफिक से लेकर अन्य कोई भी चिज हो । इतने बड़े पैमाने पर किसी और पंथ, मज़हब के सम्मेलन नही होते । इस सम्मेलन मे आज तक ना किसी मजहब और ना ही किसी पार्टी के उपर कोई टिप्पणी की गई, जिससे यह साबित होता है सके यह 50 लाख लोंगों को एक जगह जमा कर कर इंसानियत का पाठ पढ़ाते है । इस संमेलन मे बाते बहोत सादगी से की जाती है कोई भी बात लोगों को किसी दुसरे के प्रति नफरती नही होती ।
इन मे से कुछ सम्मेलन पुरी दुनियाभर के लोगों के लिए आयोजित किए जाते है, जिसे आलमी इस्तेमा कहते है । ऐसे कुछ इस्तेमा को मेरा जाना हुआ, लाखों के भिड़ अगर सने हो तो लोग अपनी मनमानी की बातें करने लगते है लेकिन यहाँ इन तिन-चार दिनों मे हम अपने माँ-बाप,भाई-बहन,रिश्तेदार, अडोस-पडोस के लोग और इनके साथ कैसे रहे यह सिखाने पर जोर दिया जाता है । साथ ही मजहब की बातें बताकर धार्मिक ज्ञान भी दिया जाता है ।
कुछ जगहों पर जो मुसलमान नही है, अन्य मज़हब से ताल्लुक रखने वाले लोग अपना लाखों का नुकसान करवाकर अपनी जगह, खाने-पिने का इंतजाम करते है, ऐसा सामजिक मिठापन मुझे महाराष्ट्र के वारकरी संप्रदाय मे ही देखने को मिलता है । यही हमारे संतो,महापुरुषों की हमे दि गई सिख है ।
महाराष्ट्र मे एक किसान ने इस सम्मेलन के लिए अपनी पुरी 'अनार' और अन्य फलों की पुरी की पुरी बाग़ ही तुड़वा दी कारण यह सम्मान औरंगाबाद को पहली दफ़ा मिल रहा था । अगर वह ना कहता तो बहोत सी परेशानी उन आयोजकों को उठानी पड़ती । लेकिन उस किसान को इस संप्रदाय के काम के बारे मे पुरी जानकारी थी उसने कुछ क्षणों मे ही इसके लिए हाँ करदी ।
मुल उद्देश्य :
मनुष्य को सच्चा मजहब समझाना, यही इस समुह का मुख्य उद्देश्य है । अगर इस समुह को दुनिया मे अपना अस्तित्व प्राप्त नही होता, तो दुनिया की तस्वीर कुछ और ही होती और उसमे नफरत सबसे उपर होती ।
इनको जमात मे ले जाकर हो या अपने डेली रूटीन लाइफ मे 6 मुख्य बातों पर अमल करने को सिखाया जाता है । हमारी बात एक मजहब के पंथ पर हो रही है, ना की दुनिया के किसी मानवतावादी विषय पर फिर भी हमे धर्म की बातों के साथ मानवतावादी विचारों से कितना प्रभावी तौर पर काम किया जा रहा है यह जानने को मिलेगा । इसलिए इसमे धर्म की प्रथाओं को शामिल होना तो स्वाभाविक है , यह लोग धर्म के साथ मानवता कितनी सिखाते है उसको सिखाने का जमात कितना अच्छा प्रभावी माध्यम है यह काबीले तारीफ है अगरचे आप उस नजरिए दे देखेंगे तो ! और मेरी जानकारी के हिसाब से किसी अन्य जगह पर इतनी बेसीक बाते नही बताई जाती है, आगे आप इसका अनुभव करेंगे । इसका मतलब यह नही के दुसरे बुरे है और यह सही, दुसरे भी पंथो मे समाजहित की कुछ दुसरी बातें भी इनसे अच्छे ढंग से पेश की जाती होंगी, उसमे कोई शक नही है ।
इसमे छह प्रमुख बातों पर अमल करना सिखाया जाता है जो हम अगले भाग मे जानने की कोशिश करेंगे ।
(जारी रहेगा ...)
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