dekhna fir milenge - 4 in Hindi Love Stories by Sushma Tiwari books and stories PDF | देखना फिर मिलेंगे - 4 - मिले हो तुम नसीबों से

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देखना फिर मिलेंगे - 4 - मिले हो तुम नसीबों से

बस कंडक्टर की आवाज पर तन्द्रा टूटी तो सारे वापस अपनी अपनी सीट पकड़ने को आतुर दिखे।
रात अभी बाकी थी। जाने हर रात उकता देने वाली रात आज छुट्टन को भा रही थी। लग रहा था जैसे सीने पर रखा कोई पत्थर हल्का हो चला है। पर उसकी किस्मत को उससे दुश्मनी ही थी जो बस जल्दी रिपेयर हो कर आ गई। छुट्टन अपनी सीट पर बैठा तो सारी झुंझलाहट जा चुकी थी। अब ना तो उसे पैर फैलाने को जगह कम लग रही थी और ना सफर उबाऊं। खिड़की से आती हल्की हवा ने पलकों को भारी कर दिया और वह सो गया बैठे बैठे ही। जैसे जन्मों से जगा हुआ बच्चा माँ की लोरी सुन कर सो जाता है ठीक वैसे ही। कानो में रंगीली की जैसे फुस्स से कह गई हो " शाबाश! छुट्टन.. बहुत बढ़िया बे, इहे तो हम चाहते थे "।
किसी ने कन्धे पर हाथ रखा तो झटके से नींद खुली तो देखा कि साथ वाली मोहतरमा बैग लिए खड़ी थी।
" जी हमारा सफर यही तक साथ था.. वैसे भी हम अकेले ही सफर करते हैं.. उम्मीद है आप भी अब सफर आनंद से खत्म करेंगे। और यह किताब आप रख लीजिए, हम पढ़ चुके हैं। "
एक साँस लेकर वह फिर बोली
" आप लक्ष्य के पक्के है बस निराश जल्दी हो जाते हैं.. मैंने देखा शुरू से ही आपका लक्ष्य किताब को पाना था.. कोई दूसरा होता तो शायद हम पर ट्राई करता पर आप जनाब आपका किरदार हमे पसंद आया, यूँ ही ज़ज्बा बनाए रखिए और अपनी लिखी किताब हमे भिजवा दीजियेगा, हम जरूर पढ़ेंगे "
कहकर मोहतरमा बस से उतर गईं।
" अरे हम .. पर आपको.. आपका नाम तो बता दीजिए?" छुट्टन जैसे कि चाहता था कि वह कह दे की हम रंगीली ही है.. पहचाना नहीं।
" नाम में क्या रखा है जनाब! आप किताब पढ़िए, हमसे फिर कभी बात करियेगा.. जिंदगी रही तो फिर मिलेंगे "
बस चल पड़ी ।छुट्टन उसे आँखों से ओझल होने तक देखता रहा। किताब के पन्नों को पलटते हुए नीले स्याही से कुरेदे नाम पर पड़ी "खुशी"।
छुट्टन के चेहरे पर मुस्कान तैर गई। हाँ खुशी ही थी वो, रंगीली के जाने के बाद जिंदगी से मकसद छिन कर रंगीली के त्याग को भूल ही गया था छुट्टन। वो वजह याद ना रही जिसके लिए रंगीली दूर हुई ताकि छुट्टन जिंदगी में अपने मुकाम को हासिल कर ले ना कि उसके इर्द गिर्द ही बँधा रह जाए। आज इस सफर ने छुट्टन के जिंदगी की गाड़ी का एक्सीलेटर दबा दिया था, जैसे अभी कई स्टॉप आने बाकी है। लेखक बनना उतना भी मुश्किल नहीं था उस नाम के साथ जिस नाम से रंगीली ने प्यार किया था, मुश्किल था तो खुद को संभालना उसके जाने के बाद। छुट्टन को अचानक एहसास हुआ कि वह रंगीली के छोड़ने से ज्यादा खुद के नाकामयाबी से परेशान था। वैसे भी इश्क मजबूत बनाता है और उसने तो खुद को और कमजोर बना दिया था। आज उसे लग रहा था कि काश! बस का आखिरी स्टॉप कभी आए ही नहीं। रंगीली से बिछड़ने के बाद आज पहली बार उसे ऐसी खुशी मिली थी।