Dah-Shat - 20 in Hindi Thriller by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | दह--शत - 20

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दह--शत - 20

एपिसोड -२०

वह उनके मोबाइल की कम्पनी में जाती है । वहाँ का अधिकारी कहता है, “वॉट’स ए जोक! आप शक्ल से तो पढ़ी लिखी लगती हैं क्या आपको पता नहीं है किसी के मोबाइल की कॉल्स की लिस्ट के लिए पुलिस में एफ़ आई आर लिखवानी पड़ती है या फिर वह व्यक्ति स्वयं लिखकर दे तो ये लिस्ट मिल सकती है ।”

वह उस चीखती औरत, “हाँ मैं बहुत बोल्ड हूँ..... बहुत बोल्ड हूँ ।” कहती औरत की कल्पना कर, मोबाइल की कॉल्स की लिस्ट के सामने उसका उतरा पराजित चेहरा देखना चाह रही थी । ये कल्पना कहाँ पूरी हो पाई ?उस बेशर्म औरत का सिर नीचा देखना चाह रही थी । उस अधिकारी से कैसे कहें कि हम स्त्रियाँ पढ़ लिखकर भी बच्चों की किलकारी, ज़ीरे के छौंक मे सिर दिये रहती हैं, दुनियादारी की बातों पर कितना ध्यान दे पाती हैं ? उसकी ये परेशानी रोली ने शनिवार को पहचान ली। इतवार को उसे घेर लिया, “मॉम! आप वैसे कहती है हम ‘फ़्रेंड्स’ हैं लेकिन आप व पापा में कहीं कुछ सीरियस बात हो गई है। आप मुझे बता नहीं रही हैं।”

इस बार रोली की ज़िद ने उसे बेबस कर दिया। उसने संक्षिप्त में उसे ये बात बताई, “देख! रोली, वो कहते हैं न कि बुराई से अच्छाई दस कदम आगे रहती है। मैं अस्पताल जाना टाल रही थी। अचानक तेरा आनंद जाने का प्रोग्राम बना और मैं वहाँ गई तो सुराग हाथ लगा।”

“मैं पापा से अभी बात करती हूँ।”

“तुझे मेरी कसम है। ये मेरे व अभय के बीच की बात है।”

सोमवार को अक्षत का फ़ोन आ गया। “ मॉम, मैं अभी आ रहा हूँ, रोली ने मुझे सब बता दिया है।”

“तुम्हें यहां आने की कोई ज़रुरत नहीं है अब तो बबलूजी को यह बात पता लग गई है। वो सब सम्भाल लेंगे।”

समिधा को अपनी गर्दन की झनझनाहट की आदत तो पड़ गई है लेकिन अभी रसोई में या बाज़ार में खड़े-खड़े ये झनझनाहट आरंभ हो जाती है तो वह असहज हो जाती है। हल्का तनाव होने लगता है।

X XXX

उधर नवरात्रि का उफ़ान पूरे गुजरात पर जैसे छा रहा है। सुन्दर लहँगे ब्लाऊज, लड़के के पहनावे। गरबा, डिस्को-गरबा दांडिया रास गरबा अनेक स्थलों पर गोल घेरे में हो रहे हैं। पृथ्वी में उपलब्ध सारे रंग तेज़ रोशनियों में डूब मन को तरंगित कर देते हैं। एक दिन महिला समिति में नवरात्रि महोत्सव का आयोजन होना ही है। तीज के बाद में दूसरा त्योहार होता है जब क्लब में रंग-बिरंगे लहंगों व गजरे की बहार होती है। ये संस्थान देश में से चुन-चुनकर पदाधिकारी ढूँढ़ता है। वे चुन-चुनकर अपने लिए पत्नियाँ। सुन्दर न भी हों लेकिन आभिजात्य घराने की सलीकेदार नवयुवतियाँ होती हैं। वैसे किसी बिल्ली के भाग्य से छींका भी टूट जाता है। ऐसे त्यौहारो पर सब दिल से सजती हैं। सारा क्लब, उनके शीशे जड़े लहँगों से चमचमा उठता है। तब क्लब में दक्षिण भारतीय या कर्नाटक के चेहरों में नारियल पानी की तरलता, हिन्दी प्रदेशों के सुगठित शरीर, बंगाली चेहरों के काले बालों में व काली आँखों में मछली की चपलता, पंजाबी छाछ-दही के रंग से रंगे सुगठित सबसे बिंदास शरीर, सब कुछ देखने को मिलता है। नफ़ासत भरा मुस्लिम सौन्दर्य कभी-कभी देखने को मिलता है।

लज्जिता पंजाब की है। सुगठित शरीर, बेहद बड़ी वह गहरी काली आँखें। एक से एक सुन्दर पंजाबी सूट, सधा मेकअप लेकिन लगता है जैसे कोई रेगिस्तान में जड़ी तस्वीर है। ख़ूबसूरती भी, लेकिन पथराई हुई। समिधा की उत्सुकता का उत्तर प्रवीना देती है, “बिचारी की शादी को सात वर्ष हो गये हैं लेकिन बच्चा नहीं हुआ है।”

हॉल के बीच में दुर्गा माँ की देवी स्थापित की है। सभी कुर्सियों पर बैठी गरबा आरम्भ होने का इंतज़ार देख रही हैं। समिधा द्विविधा में है कविता आयेगी या नहीं। अब कैसे हिम्मत करेगी?..... बेशर्म बहुत है आ भी सकती है। गरबे का कैसेट बज उठता है। सब एक-एक करके गरबा का गोल घेरा बनाती जा रही है। समिधा की नज़र मुख्य द्वार पर है। नीता व अनुभा उसे बार-बार इशारों से गरबा करने बुला रही है लेकिन उसके पैर जकड़े हुए हैं। उसकी नज़र दीवार पर लगी घड़ी की तरफ़ पड़ती है; अब वह क्या आयेगी? तभी उसका पसंदीदा गरबा गीत बजा उठता है।

“तारा विना शाम मने, एकलड़ू लागे, रासे रमवा वेलो आवजे।”

वह भी गोल-गोल गरबा करती घेरे में आ जाती है। संगीत के तेज़ होते ही उसके पैर तेज़ी से थिरक रहे हैं। वह उन्मत्त होती जा रही है, निश्चिंत होती जा रही है। कितना बड़ा संकट था उसके जीवन में। गरबा करते हुए उसकी दृष्टि दुर्गा माँ की तस्वीर के नीचे बनी रंगोली पर रखे पीले, लाल रंग के मंगल कलश पर टिकी है। क्या यही है वो आद्यशक्ति जिसने उसे लड़ने की ताकत दी है? इसी शक्ति ने इस पवित्र स्थल से उसे दूर उठाकर फेंक दिया है।

अंत में आरती के समय उसके होंठ देवी माँ की आरती उतारते दिये की लौ से थरथरा रहे हैं। वह इतनी पारम्परिक तो कभी नहीं थी। सब आँखें बंद करके आरती गा रही हैं इसलिए देख नहीं पा रहीं क्यों वह बेहद भावुक हो रही है। क्यों उसके गालों पर आँसू फिसलते जा रहे हैं।

अब वो सुकून से सो सकेगी।

चार पाँच दिन बाद अनुभा का फ़ोन आता है, “बबलू जी के पिताजी का देहान्त हो गया है। वे लोग जाने वाले हैं। हम लोग उनसे मिल आते हैं।”

वह बहाना बनाती है, “मैं बाद में अभय के साथ जाऊँगी।”

वे बुज़ुर्ग थे, गंभीर बीमार थे उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना ही की जा सकती है लेकिन अंधेरे में डूबे कविता के फ़्लैट को देखकर समिधा की आत्मा तृप्त होती रहती है। विशेषकर दीपावली के दिन जब कि हर घर में रोशनी अपनी मुस्कराहट बिखेर रही है।

कुछ दिन बाद ही उस घर के पर्दे खिसकते हैं, रोशनी जल उठती है। समिधा अंदर से लापरवाह है अब उसने अपनी चिंता बबलूजी को सौंप दी है।

उन्नीस नवम्बर का उसका घर जाने का आरक्षण है। समिधा अस्पताल से ट्रेक्शन लेकर लौटी है, अभय ऑफ़िस जाने के लिए तैयार खड़े हैं। उसने पूछा, “आज आप जल्दी जा रहे हैं?”

“हाँ, बॉस का फ़ोन आ गया है।”

समिधा स्टेशन पर ट्रेन में बार-बार नोट कर रही है अभय अपने आप में खोये हुए हैं, उनकी भावुक दृष्टि भागते हुए पेड़ों में, बादलों में कुछ ढूँढ़ रही है।

घर पहुँचकर समिधा की माँ पूछती है, “अभय थके हुए क्यों लग रहे हैं?”

“कल दोपहर में आराम नहीं कर पाया। बॉस ने बात करने बुला लिया था।”

समिधा बीच में बोल उठती है, “बातें करने? आप तो कह रहे थे कि उन्होंने काम से बुलाया है।”

“ बात तो वही है। ”

दो दिन बात वह माँ से पूछती है, “शर्मा आँटी क्यों नहीं मिलने आई?”

“कुछ मत पूछ उनका हाल बहुत ख़राब है।”

“क्या हुआ?”

“उनका बेटा महाराष्ट्र से बी.ई. करने गया था। एक महीने बाद ही वहाँ से भाग आया। दो महीने तक घर में बदहवास पड़ा रहा। किसी से बात नहीं करता। न खाने की ज़िद , न घूमने की ज़िद करता है। बस कहता है मैं पढ़ने वहाँ नहीं जाऊँगा।”

“वहाँ लड़कों ने उसकी बहुत तगड़ी रेगिंग की होगी?”

अभय की आँखों में चिन्ता झलक उठी, “रेगिंग तो लड़के झेल जाते हैं लेकिन जब उन्हें ग़लत ढंग से तंग किया जाता है तो उनका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है।”

“तेरी शर्मा आँटी बेटे के आने के दो महीने बाद मेरे पास आकर बहुत रोई कि मैं इसकी जन्मपत्री दिखलाऊँगी लेकिन मैंने उन्हें समझाया पंडितों के पास भागने की कोई ज़रूरत नहीं है। बेटे को प्यार से विश्वास में लो उसे आगे पढ़ने के लिए प्रेरित करो।”

“वह माना या नहीं?”

“हाँ, पहले तो वह आगे पढ़ने को तैयार नहीं था किन्तु अब बी.ई. करने को तैयार हो गया है।”

अचानक अभय का मोबाइल बज उठता है। उस पर बात करने के बाद उन्होंने बताया, “डॉक्टर भाईसाहब का फ़ोन था उन्होंने किसी दूसरी जगह फ़्लैट ले लिया है।”

“पिछले वर्ष ही तो उन्होंने नया फ़्लैट खरीदा था।”

“मैंने भी यही पूछा तो कह रहे थे कि जब मिलोगे तब कारण बताऊँगा।”

इन्हीं भाईसाहब के यहाँ दिल्ली जाना है। वह जब दिल्ली ऊँची इमारतों के बीच से गुजर रही है। वाहनों की चिल्लाहटों व धुएँ से विचलित है। उसे अपने शहर की लहलहाते पेड़ों वाली कॉलोनी याद आ जाती है। अभय के भाई का घर भी ऐसी इमारतों के बीच की इमारत का फ़्लैट है। भाभी ने दरवाजा खोला। जब उन दोनों और उनके बेटे निखिल ने हाथ जोड़कर मुस्करा कर नमस्ते की तो ऐसा लगा कि उन्होंने अपने होठों पर ज़बरदस्ती मुस्कराहट को खींचकर जड़ लिया है। उन सबकी आँखों में एक बुझापन है, उदासी है।

डाइनिंग टेबल पर चाय पीने के बाद वे सब ड्राइंग रूम में आ बैठे। समिधा ने नोट किया इस घर की साज-सज्जा पहले फ़्लैट जैसी ही है बल्कि खिड़की के पर्दे तो नाप के भी नहीं थे, छोटे से उन पर लटक रहे थे। उससे रहा नहीं गया, “भाभी जी ! आप तो इतनी शौकीन हैं इस नये घर में पुराने घर के पर्दे लगा लिये है? सही नाप के न होने से बेढंगे लग रहे हैं।”

“क्या करें जान ही मुसीबत में फँसी हुई है।”

अभय भी चिंतित हो पूछने लगे, “भाभी जी ऐसी क्या बात हो गई?”

“हमारे पुराने फ़्लैट के सामने वाले फ़्लैट में एक कुमार फ़ेमिली रहती थी न।”

“हाँ, आपने बताया था। मिस्टर कुमार ज़रूरत से अधिक काले थे।”

“जैसा उनका रंग था वैसे ही वह निकले। उनके कारण ही हमें वह फ़्लैट छोड़ना पड़ा। कितने प्यार से व चाव से उसकी एक-एक चीज़े खरीद कर उसे बनवाया था।” भाभी की आँखें छलछला उठीं। वह हिचकी लेकर रोने लगीं।

भाई साहब उन्हें समझाने लगे, “तुम रो क्यों रही हो? पहले से अच्छी जगह फ़्लैट लिया गया है, पड़ौसी भी अच्छे हैं।”

“पड़ौसी, शब्द मेरे सामने मत बोलिए मुझे इस शब्द से ही घृणा हो गई है।”

समिधा भाभी के पास आकर उन्हें चुप करवाने लगी, “भाभी। चुप हो जाइए। क्यों इतना अपसेट हैं? ऐसा क्या हो गया?”

“उस दुष्ट कुमार ने हम पर मुकदमा कर दिया है। उस घर में हमारा दम घुटता था।”

समिधा कह नहीं पाती कि वह स्वयं किसी गहरे डिप्रेशन में चली गई है। उसका दिमाग उनींदा सा, गहरे अवसाद में है। अपने ही घर में कुछ अदृश्य काला तरल कुछ तैरता दिखाई देता है।

भाभी तो अपनी बात बता रही हैं अभय व समिधा को ऐसा लग रहा है जैसे वे सब उनकी आँखों के सामने साकार होता जा रहा है।

..... उस दिन भाईसाहब व निखिल के ऑफ़िस जाते ही कॉलबेल बज उठी । भाभी ने दरवाज़ा खोला तो देखा एक चिकनी चुपड़ी छोटे बालों वाली एक गोरी मोटी महिला खड़ी है। वे बहुत दिलेरी से मुस्कराई, “नमस्कार! मैं सामने वाले फ़्लैट की मिसिज कुमार हूँ।”

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नीलम कुलश्रेष्ठ

ई –मेल---kneeli@rediffmail.com