Kala Chashma in Hindi Short Stories by Lalit Rathod books and stories PDF | काला चश्मा

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काला चश्मा

बचपन में पहली बार चश्मा लगाकर किस तरह का चेहरा बनाया होगा याद नहीं, लेकिन हीरो जैसा तो कतई नहीं होगा। मां के जिद पर पहली बार स्कूल के एनुअल फंक्शन में चश्मा पहनकर डांस करने पर राजी हुआ था। सभी का कहना था, सफेद शर्ट और काले पेंट के साथ काले चश्मे में हीरो लगेगा। मां मोतियाबिंद के तरह देखने वाले चश्मे को पहनाकर, तैयार कर बाहर दर्शकों में शामिल हो गईं। जाते-जाते कह गईं, बाहर निकलना मत वरना सब देख लेंगे। फिर तू पुराना हीरो बन जाएगा, जिसे सब जानते हैं। नया हीरो बनने रहने की काेशिश में अकेले ही चश्मा पहनकर घंटों आईना देखता रहा। इस बीच रूम में कोई दाखिल होता हड़बड़ाते हुए चश्मा निकालकर फिर सामान्य व्यक्ति बन जाता। थोड़ी शंका भी होती क्या किसी ने हीरो बनते मुझे देख तो नहीं लिया! काले चश्मे में दिन के दोपहर में शाम को दिखा रहा था। ऐसा लगा मानों यह चश्मा दिन की उम्र घटाकर हीरो बनाता है। एक दिन में खूबसूरत शाम दो बार देखने को मिलेगा। यह उस समय की खुशी थी। तेज धूप में शाम को देखना कितना सुखद हाेता है। वह पहला अनुभव था। तभी विचार आया जिस शाम को दोपहर में देख रहा वह डांस करते वक्त भी साथ रहेगी। शाम को मेरा डांस करने का नंबर आएगा। शाम भी दर्शकों में कहीं शामिल होगा। लेकिन काले चश्मे में शाम तो बिल्कुल रात जैसी होगी। यह नहीं दिखने वाला दुख था। उस वक्त गांव में लाइट बार-बार आ-जा रही थी। इसलिए कई लोगों काे डांस करने का मौका नहीं मिला। जब मेरा नंबर आया उस वक्त लाइट थी। भगवान से कहा, बस डांस करते वक्त लाइट नहीं जानी चाहिए। खासकर चश्मा लगाते वक्त। गाना शुरू होती मंच में डांस करने कूद पड़ा। पहली दृष्टी में मां को देखा जो हंसते हुए ताली बजा रही थीं। उन्हें इशारों से पूछना चाहता था, क्या मैं सही तरह से डांस कर रहा हूं? दूसरी बार में कैमरा मेन दिखाई पड़ा। जो मेरी अच्छी फोटो लेने की कोशिश में अपनी जगह बार-बार बदल रहा था। जैसे उसने फोटो लेने आंख छोटी की मैंने डांस के स्टेप धीमे कर दिए। मुझे चश्मा गाने के मध्य में लगाना था। जब पैसा-पैसा..., वाली लाइन आएगी। चश्मा लगाने की उत्सुकता में डांस करते हुए गाने के बाेल भी ध्यान से सुनता रहा। उस लाइन के आने से पहले जेब से चश्मा निकाल चुका था। वह दृश्य सामान्य व्यक्ति से हीरो बनने जैसा था। जब कोई उस व्यक्ति का सत्य नहीं जानता जो लोगों को सामान्य नजर आ रहा है। फिर अंत में व्यक्ति सभी काे सच अपना बताकर सामान्यपन हमेशा के लिए छोड़ देता है। गाने में चश्मा लगाने का अर्थ यही था। लेकिन जब वह लाइन आई तभी लाइट चली गई। मंच में स्थिर खड़ा रहा। मेरे हाथों में चश्मा था जो हवा में लहराने लगा था। सभी तालियां बजा रहे थे लेकिन मां नहीं। उन्हें पता था, इस वक्त मैं दुखी हूं। वह भी मुझे डांस में हीरो बनते हुए देखना चाहती थीं। तभी पीछे से आवाज आई चलो हो गया डांस तुम्हारा। मुझे रोना आया कि लोगों ने केवल मेरा सामान्य होना ही देखा। जबकि मैं उन्हें अपने डांस में हीरो बनकर दिखाना चाहता था। सारा गुस्सा भगवान पर टूटा। वह उस दिन भी अपने चमत्कार दिखाने में व्यक्त थे। मां ने दिलासा देते हुए कहां, कोई बात नहीं। ऐसे मौके बार-बार आएंगे। चहरें में आंसू लिए कहने लगा, कब..कब..कब? कुछ दिनाें बाद मां ने फिर घर में वही गाना चालाया और मैंने आंगन में काला चश्मा पहनते हुए पूरा डांस किया। दर्शक में केवल मां और कैमरा था। जिसकी तस्वीर आज भी एल्बम में उस वक्त की यादों को समेटे हुए है। उस दिन से बचपन के सभी डांस में काला चश्मा पहने हुए नजर आने लगा।