Yun hi raah chalte chalte - 31 - last part in Hindi Travel stories by Alka Pramod books and stories PDF | यूँ ही राह चलते चलते - 31 - अंतिम भाग

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यूँ ही राह चलते चलते - 31 - अंतिम भाग

यूँ ही राह चलते चलते

-31-

आज यात्रा अपने किनारे पर आ चुकी थी, सब को वापस जाना था । अन्तिम रात्रि को फेयरवेल डिनर था जहाँ सब की एक आलीशान पार्टी थी। इस पार्टी का वातावरण अद्भुत था । इतने दिनों के अपन- पराये, क्षेत्रवाद आदि का भेद भूल कर सब वापस जाने से पहले अति भावुक हो गये थे। सब एक दूसरे से संपर्क करने के लिये मोबाइल नम्बर, ईमेल, आई-डी, पता आदि का आदान-प्रदान कर रहे थे। कुछ लोग तो इतने भावुक हो गये थे कि बिछुड़ने की सोच कर उनकी आँखें नम हो रही थीं तो कुछ लोग आज मुफ्त में मिल रहे स्वादिष्ट खाने और जाम का अधिक से अधिक रसास्वादन करने में व्यस्त थे। कुछ जाम के सुरूर में कुछ आवश्यकता से अधिक आत्मीय हुए जा रहे थे।

सभी एक दूसरे से बातों में व्यस्त थे अर्चिता और वान्या दोनों ही आज एक-एक पल यशील के संसर्ग में व्यतीत करना चाहती थीं और एक पल को भी उसे छोड़ने को तैयार नहीं थीं मानों यदि एक पल भी चूक गयीं तो दूसरी उसे उड़ा ले जाएगी। यशील वान्या अर्चिता एवं चंदन आज के बाद भारत पहुँच कर कब कहाँ कैसे मिलेंगे इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि तभी सुमित ने यशील से कहा ‘‘ यशील देअर इस सम बडी वान्ट्स टु मीट यू।’’

यशील ने पूछा ‘‘ मुझसे यहाँ कौन मिलना चाहता है?’’

यशील सुमित के साथ आगे बढ़ा ही था कि एक लड़की आई और यशील को देखते ही लगभग दौड़ते हुए आई और यशील के गले लग गई। यशील उसे देख कर चैांक गया उसने आश्चर्य से कहा ’’तुम यहाँ कैसे ? ‘‘

‘‘मै नें सोचा तुम्हे सरप्राइज दूँ अब तुम्हे वापस मेरे साथ लंदन में कुछ दिन और रुकना होगा’’ उसने यशील के गले में झूलते हुए कहा।

लम्बी छरहरी लाल ड्रेस में वह कोई माडल लग रही थी। यशील सकपकाया सा समझ नहीं पा रहा था कि क्या कहे।

अर्चिता और वान्या ही नहीं वहाँ उपस्थित ग्रुप के सभी लोग उत्सुकता से उस आधुनिक आगंतुका को देख रहे थे। जब अर्चिता से नहीं रहा गया तो यशील के पास आ कर उस पर अपना अधिकार प्रदर्शित करने के उददेश्य से उसकी बाँह पकड़ कर पूछा ‘‘ यशील ये कौन है तुमने वैसे अपने घरवालों फ्रेंड्स के बारे में मुझे बताया पर इसके बारे में कभी नहीं बताया ?’’

‘‘ वो....वो... ये मेरी फ्रेंड है, मैं बताना भूल गया होऊँगा ।’’

‘‘क्या मैं तुम्हारी फ्रेंड हूँ बस ’’ उस लड़की ने पूछा।

‘‘ नहीं मेरा मतलब क्लोज फ्रेंड है’’ यशील ने अटकते हुए कहा।

‘‘तु म्हें क्या हुआ है यशील ’’अब उस लड़की का संयम जवाब दे रहा था।

अर्चिता का हाथ जो अब तक यशील की बाँहों पर था जबरदस्ती हटाते हुए उसने अर्चिता से कहा ‘‘ मैं आयषा हूँ, ही इज माई फियान्सी, हम लोग यशील के इंडिया आने के बाद जल्दी ही शादी करने वाले हैं ।’’

‘‘क्या......?’’ अर्चिता वान्या और संकेत एक साथ बोल पड़े ।

‘‘पर यशील तुमने तो हमें कभी नहीं बताया’’ वान्या ने उसके सामने खड़े होते हुए जवाब तलब किया।

‘‘ इसमे बताना क्या था ’’ यशील ने बुझी सी आवाज में कहा।

‘‘ तुम इतने दिनों से हमसे दोस्ती बढ़ा रहे हो और तुमने यह बताना जरूरी नहीं समझा कि यू आर इंगेज्ड?’’

‘‘ मुझे तो यह पहले ही फ्राड लग रहा था यहाँ तो दोनों से फ्लर्ट कर ही रहा था अपनी फियांसी को भी मूर्ख बना रहा था’’ संकेत ने इतने दिनों से मन में दबी अपनी भड़ास निकाली।

अर्चिता तो अवाक उन्हें देख रही थी मानो किसी ने उसकी वाणी ही हर ली हो ।

उसकी आँखों से अश्रु अविरल बहे जा रहे थे और उसे सुध ही नहीं थी। श्रीमती चन्द्रा उसे देख कर घबरा गयीं और उसे बाँहों के घेरे में ले कर सांत्वना देने लगीं।

आयषा ने कहा ‘‘ व्हाट इज दिस यशील तुम तो रोज मुझसे बात करते थे पर तुमने मुझे कभी नहीं बताया कि यहाँ क्या चल रहा है, मुझसे तो तुम यही कहते थे कि यू आर मिसिंग मी वेरी मच ।’’

यशील इस परिस्थिति के लिये उपस्थित नहीं था उसने सोचा भी नहीं था कि आयषा ऐसे आ टपकेगी।

उसने आयषा के पास आ कर उसे समझाते हुए कहा ‘‘ मैं सच में तुम्हे बहुत मिस कर रहा था अब तो बस यही लग रहा था कि जल्दी से जल्दी तुम्हारे पास पहुँचूं ।’’

‘‘ और मेरे और अर्चिता के साथ तुम क्या कर रहे थे ’’ वान्या ने कठोर वाणी में पूछा।

‘‘ पर मैंने तुम दोनों से कोई कमिटमेंट तो नहीं किया था।’’

अब तक अर्चिता भी सँभल चुकी थी उसने उसकी आँखों में सीधे देखते हुए पूछा

’’यशील हर बात स्पष्ट कहना जरूरी नहीं होता बहुत कुछ इंसान अपने हावभाव और आँखों से कह देता है’’ उसकी वाणी में विश्वासघात का दर्द स्पष्ट झलक रहा था।

वान्या ने कहा ‘‘ अगर तुम्हारा इरादा गलत नहीं था तो तुम हमसे आयषा और आयषा से हमारे बारे में छिपाते नहीं । ’’

लता जी ने चंदन से कहा ‘‘ चंदन तुमने भी कुछ नहीं बताया ।’’

चंदन चुप ही रहा । उसके पास कुछ कहने को नहीं था वह तो बस दोस्ती निभा रहा था, वैसे उसने एकांत में यशील को कई बार समझाया था पर उसने सुना कहाँ था।

अब तक आयषा के समक्ष सारी स्थिति स्पष्ट हो चुकी थी, वह हतप्रभ थी, उसने सोचा भी नहीं था कि यशील जिसका उससे वर्षों का कमिटमेंट था और अगले माह शादी की योजना थी वह यहाँ दो-दो लड़कियों से फ्लर्ट कर रहा था। एकाएक वह उठी और उसने यशील को अपनी सगाई की अँगूठी वापस देते हुए कहा ‘‘यशील नाऊ इट्स ओवर, मैं वापस जा रही हूँ ।’’

यशील ने उसकी राह रोकते हुए कहा ‘‘डोन्ट बी सिली मैं तुमसे प्यार करता हूँ, इन लोगों से हँस बोल लिया और इनको गलतफहमी हो गयी तो मेरी क्या गलती इसके लिये तुम मुझे डिच नहीं कर सकती, और ...और वान्या का तो फ्रेन्ड यह संकेत है ’’उसने अपने बचाव में कहा।

‘‘ और यह लड़की, इसका क्या जवाब है तुम्हारे पास ’’ आयषा ने अर्चिता की ओर उँगली उठा कर पूछा।

‘‘ इनसे हँसते बोलते तो ठीक था पर तुम मुझसे यहाँ की हर बात बताते थे पर इन दोनो का नाम तक नहीं लिया, क्यों?’’

‘‘ अरे तुम्हें बिना बात शक होता इसलिये अवायड कर गया’’ यशील ने कहा।

‘‘ तब तो शक होता पर यहाँ जो देखा सुना उससे तो विश्वास हो गया है कि तुम मेरे जीवन साथी बनने लायक नहीं हो’’ आयषा उल्टे पाँव लौट गई। यशील उसे रोकने के लिये पीछे दौड़ा पर उसने आयषा ने उसे पलट कर कठोर दृष्टि से देखते हुए कहा ‘‘ प्लीज यहाँ नाटक मत करो, एण्ड डोन्ट फालो मी ।’’

अब यशील को होश आया वह कुछ क्षण हतप्रभ खड़ा रहा फिर अर्चिता के पास गया ‘‘ अर्चिता तुम्हीं एक समझदार हो जो मुझे समझ सकती हो’’ फिर घुटने पर बैठ कर उसने उसका हाथ अपने हाथ में ले कर कहा ‘‘ क्या तुम मुझसे शादी करोगी?’’

अर्चिता ने हताश स्वरों में कहा ‘‘ मैं कब से इंतजार कर रही थी कि कब तुम मुझे प्रपोज करोगे और विडंबना देखो कि आज जब तुम मुझे प्रपोज कर रहे तो मेरा जवाब है, नहीं कभी नहीं। ’’

यशील चैांक पड़ा ‘‘बट यू लव मी।’’

‘‘ यस आई लव्ड यू पर मेरे मन के साथ मेरे पास सोचने की शक्ति भी है मैं तो आयषा की आभारी हूँ जिसने आ कर मेरी आँखें खोल दीं नहीं तो पता नहीं मैं क्या-क्या सपने देखती रहती ।’’

अर्चिता अपनी आँखों में आये अश्रुओं को रोकने को छिपाने के लिये तेजी से पलट गई ।

यशील मुड़ा तो सामने वान्या थी, उसे अपनी ओर देखता देख उसने बढ़ कर संकेत का हाथ दृढ़ता से थाम लिया। वान्या का क्या जवाब होगा वह समझ गया अतः यशील ने उसके समक्ष निवेदन करने की नासमझी नहीं की। यशील ने दृष्टि घुमायी तो हरेक के चेहरे पर उसके लिये उपेक्षा थी। पूरी यात्रा में सबका चहेता यशील आज उनकी दृष्टि का सामना करने में अक्षम था।

वान्या ने यशील को उपेक्षित करते हुए आगे बढ़ कर व्यथित अर्चिता के कंधे पर हाथ रख कर कहा ‘‘ सारी अर्चिता। ’’

अर्चिता के रुके अश्रु वान्या की सहानुभूति पा कर प्रवाह की राह पा गये उसने वान्या के गले लगते हुए कहा ‘‘ मैं भी।’’

आज दो विपरीत ध्रुव एक से आघात पा कर एक पक्ष में थे। उनके आघात साझा थे, उनके अपमान साझा थे, उनके भाव साझा थे और दोनों ने एक दूसरे का हाथ थाम कर बिना कहे ही एक मूक समझौता कर लिया था मित्रता का।

अगली सुबह सबमें एक दूसरे से मिलने के वायदे हो रहे थे अनुभा भी एक-एक कर सबसे मिल रही थी अचानक उसकी दृष्टि यशील पर पड़ी। आज वह यशील जो अब तक सब के आकर्षण की धुरी था एक कोने में खिसिआया सा खड़ा था और अर्चिता और वान्या एक दूसरे से पुनः मिलने का वादा ले रही थीं।

तभी मिसेज चंद्रा ने झिझकते हुये लता जी से कहा ‘‘लता जी हमारा कहा सुना माफ करियेगा बच्चे तो अनुभव हीन हैं पर हम भी न जाने क्यों इतने नासमझ हो गये थे कि बिना कुछ जाने अपने बच्चों का भविष्य के सपने देखने लगे । वो तो ईश्वर की कृपा है कि हम बच गये।‘‘

लता जी बोली ‘‘नहीं नहीं मिसेज चन्द्रा मैंने भी तो आपको क्या कुछ नहीं कहा और बस यही सोचती रही कि इस प्रतियोगिता में वान्या जीत जाये।’’

महिम मान्या से कह रहा था ‘‘तुम इनको देख कर जेलस थी न, कह रही थी न कि शादी से पहले इनकी तरह रोमांस में मजा है थ्रिल है अब देखो इसकी हालत ।’’

बस एअरपोर्ट पहुँच गई थी यहाँ से सब के रास्ते अलग-अलग थे किसी को मुम्बई की उड़ान भरनी थी तो किसी को दिल्ली की और किसी को चेन्नैई की। ।आज सबकी आँखों में नवीन अमूल्य अनुभवों का खजाना था जिसे सँभाल के अपने घर जाने को, अपने देश पहुँचने को और अपने इष्ट मित्रों से इस खजाने को बाँटने को सब आतुर थे।

फ्लाइट में बैठी अनुभा सोच रही थी कि इन बीस दिनों में उसने कितने देशों को देखा, संस्कृतियों को परखा, इतिहास को जाना, और मात्र यहाँ से वहाँ की धरती की दूरी नहीं नापी वरन कितने मनों को पढ़ने समझने का अवसर भी मिला, उसने आशाओं को जागते भी देखा प्रेम की कोमल भावना का स्फुरण भी देखा, उस नव प्रस्फुटित अंकुर को अपनी मौत मरते भी देखा, अनुभवी आँखों को भी धोखा खाते देखा और हृदय को खिलौना समझने वाले को जीवन में दाँव हारते भी देखा ।

यशील को अपने कर्मों का दंड मिल गया था, वान्या को तो संकेत देर सबेर क्षमा कर ही देगा पर अर्चिता जैसी भावुक लड़की को सँभलने में समय लगेगा। अचानक उसने रजत से कहा ‘‘ सुनिये यह अर्चिता अपने प्रियांष के लिये कैसी रहेगी’’?

रजत ने उसे अविश्वास से देखते हुए कहा ‘‘ इतना सब होने के बाद भी तुमने कुछ नहीं सीखा, जीवन के निर्णय इतनी शीघ्रता से नहीं लेते, पहले प्रियांष का मन तो जानों मैडम।’’

-समाप्त-

अलका प्रमोद

pandeyalka@rediffmail.com