grejuat bahu in Hindi Moral Stories by Poonam Singh books and stories PDF | ग्रेजुएट बहू

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ग्रेजुएट बहू

"ग्रेजुएट बहू"

हर रोज बहू अपने ससुर को घंटों बागवानी करते देखती तो उसे मन ही मन झुंझलाहट होती ।
'इन बूढों को भी कोई काम नहीं होता ना जाने पूरा दिन इन पेड़ पौधों के बीच रहना इतना अच्छा क्यों लगता है।'
पर उसकी आँखो से एक बात छुपी नहीं थी कि वहाँ हर प्रकार के सुंदर फूल व थोड़ी बहुत सब्जियाँ खूब अच्छी मात्रा में उपजती थी। साथ ही उसके स्वसुर के आँखो में वो सागर सी शांति भी विराजमान थी जो उसने बरसो पहले महसूस किया था।

आज अचानक उसके हृदय में अतीत की बातें उभरने लगी जब वो ब्याह कर इस घर में आई थी।
शहर की पढ़ी लिखी ग्रेजुएट बहू ससुराल आई तो घर का वैभव देखकर उसकी आँखें चौंधिया गई । उसके मन में लालची जिह्वा ने अपना विस्तार करना शुरू किया। अचल संपत्ति की मालकिन बनने के ख़्वाब देखने लगी। सामान्य भाव में रहते हुए कुछ ही महीनों में हृदय युक्त विनम्र भाव से सबका दिल जीत लिया। गाँव के सीधे लोग थे उसके गलत इरादे को भांप नहीं पाए उसे मालिकाना हक देते गए। धीरे धीरे उसने अपना असली रूप दिखाना शुरू किया। पहले जिन आँखो में थोड़ी शर्म और मर्यादा हुआ करती थी, उन सबको ताक पर रख के आँखो में आँखे मिलाकर अब सीधा अपनी इच्छा का फरमान सुना देती।

"माँ जी हमें आपका बड़ा वाला कमरा चाहिए। आप लोग बगीचे के साथ वाला जो बंद कमरा है उसी में चले जाइयेगा। और घर में जितने भी पुराने नौकर है सब बदल के अब नए आधुनिक ख्याल वाले नौकर आएँगे। "

घरवालों ने सोचा शहर की बहू है अलग सोच होगी । शांति बनाए रखने हेतु कुछ नहीं बोले ।

"ठीक है बहू जिसमें तुम खुश रहो। हमारी तो उम्र हो चली कैसे भी रह लेंगे। किन्तु एक बात ध्यान रखना घर के बड़े बुजुर्ग और प्रकृति ये हमारे जीवन में आने वाली अनेक आपदाओं के लिए आगाह व रक्षा करती है। जिस किसी ने भी इनकी अवहेलना करने की कोशिश की है उनका सर्वनाश ही हुआ है। अपने लिए नहीं तो कम से कम अपने आने वाली पीढ़ी के लिए जरूर सोचना।"
पर अहंकारी बहू ने उनकी बात का महत्व ना देते हुए मुँह फेर कर वहाँ से चली गई।
इसी प्रकार उस पाषाणी ने धीरे-धीरे अपनी सारी सुविधाएं जुटाकर सास ससुर से मुँह मोड़ लिया और उन्हें अलग थलग कर दिया। वह दिन आया जब घर में नन्हे शिशु की किलकारी गूँजी। उसका बेटा तमाम सुख सुविधाओं के बीच पलने बढ़ने लगा। पर वो नादान इतना नहीं समझती थी कि बच्चें के पालन पोषण में बड़े बुजुर्गो के अनुभवी हाथो तथा उनके वात्सल्य प्रेम, व संस्कारों की आवयश्कता होती है। पैसे पर रखे हुए लोग सिर्फ पैसों की भाषा में मशीनी यंत्र की भाँति काम करते है।
इसका दुष्प्रभाव उसके बच्चे पर दिखने लगा।घर में किसी की बात नहीं मानना पढ़ाई लिखाई से जैसे नाता ही नहीं था। संस्कारों की परिधि से बिल्कुल बाहर होता जा रहा था।
" मम्मी क्या कर रही हो ? जल्दी से मुझे कुछ खाने को दो फिर मुझे खेलने जाना है ।" उसके बेटे ने पीछे से चिल्लाते हुए कहा। बेटे की आवाज़ पर अचानक वो चौकी और पीछे मुड़कर देखा। बेटे की इस हरकत ने उसकी आंखें खोल दी । आज उसे इस बागवानी का अर्थ समझ अा गया था। इससे पहले की समय निकल जाए उसने मासूम की अँगुली पकड़ अपने सास ससुर के पास ले गई। अपने बच्चें को उनकी ओर बढ़ाकर रोते हुए कहने लगी, "ये लीजिए संभालिए अपनी धरोहर पिता जी। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मुझे क्षमा कर दीजिए।"
उनके पैरों में गिर कर माफी माँगने लगी। माँ बाप हृदय से, विशाल एवं क्षमाशील होते है। उसे माफ कर भावी पीढ़ी को हृदय से लगा लिया।

स्वरचित / मौलिक
पूनम सिंह