Safed rang - 1 in Hindi Short Stories by Namita Verma books and stories PDF | सफेद रंग - भाग 1

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सफेद रंग - भाग 1

माँ बाजार से आते वक्त मेरे लिए रंग बिरंगी चूड़ियां ले आना ना -मुन्नी ने मां से विनती करते हुए कहा ।
कितनी चूड़ियां इकट्ठी करेगी तू मुन्नी -मां ने उसे प्यार से डांटते हुए कहा...
देख ले मां मैं ब्याह हो कर चली जाऊंगी ना फिर तू तरसेगी मुझे चूड़ियां पहनाने को,
ऐसा क्यों रे मुन्नी ,
अरे मां ,बाबा मुझे दूर ब्याहेगे ना तो,
अच्छा ठीक है ले आऊंगी ज्यादा मक्खन ना लगा ....
रसोई घर में तरकारी रखी है वो काट लियो और अंदर से दरवाजा भेड लियो... हाँ माँ ठीक है,
मां की जाते ही मुन्नी ने अपना खजाना निकाला आहाहह चूड़ियों का,
संसार भर में जितने रंग ना होंगे उतनी रंगो की चूड़ियां इकट्ठी कर रखी हैं हमारी मुन्नी ने,
क्या है ना हमारी मुन्नी को रंगों से बड़ा लगाव था हर तरह के रंग उसे भाते थे सिवाय श्वेत रंग के....
माँ आने वाली होगी जल्दी-जल्दी चूड़ियां समेट देती हूं ...हाय राम तरकारी भी काटनी थी मुन्नी ने खुद ही बडबडाते हुए कहा..
मुन्नी- मुन्नी आई कौन है ,
रे बिटिया मैं तुम्हारा गिरधर काका,
अरे काका प्रणाम मां -बाबा तो घर नहीं है काका ,
ठीक है बिटियां, मां की आते ही उन्हें कह दियो कि काका आए थे ,
ठीक है काका,
काका रुको
क्या हुआ बिटिया माँ आ ही गई काका,
अरे भाभी प्रणाम -गिरधर कैसे हो और कैसे आना हुआ इतने दिनों बाद ,
हाँ भी अंदर चलिए तनिक शांति से बताएंगे एक खुशखबरी है अच्छा ठीक है, मुन्नी जा भीतर ओर काका के लिए चाय बना दे,
हाँ माँ, पहले वो थैला दो, अरे बावली लाई हुँ तेरी चूड़ियां भी,
मुन्नी चहकती हुई थैला लेकर भीतर गई,
कितनी उतावली हो रही थी वो,
मानो उसका बचपना कही गया ही ना हो,
आहाहह कितने प्यारे रंग की चूडियां है,
ओर साथ ही ये रंग बिरंगा दुपट्टा....
मां कितनी अच्छी है ना हमेशा ही मेरी पसंद का ख्याल रखती है।
रे मुन्नी- हाँ माँ ...
पहले काका की चाय बना दे ,फिर देख लियो
धत काका को भी अभी आना था क्या -मुन्नी ने झुंजलाते हुए कहा ठीक है मां....
ओर वो अपने बचपने को वही रख,
रसोईघर में चली गई ....
हां गिरधर अब बताओ तुम,
कैसे आना हुआ ,
भाभी अब तो आप मुँह मिट्ठा करने की तैयारी कर लो बस,
अरे वो क्यों गिरधर
भाभी अपनी मुन्नी के लिए रिश्ता जो मिल गया है ...
"अरे वाह" दरवाजे से आवाज आई....
लो तुम्हारे भैया भी आ गए ,
कहां का रिश्ता बता रहे हो तुम गिरधर और लड़का क्या काम करता है ।
अरे मुन्नी के बाबा इतनी जल्दी क्या है अभी तो अपनी मुन्नी 16 बरस की तो है ,अरे मुन्नी की मम्मी तुम भी तो 14 बरस की आई थी ,
मगर तब तो परिस्थितियां अलग थी अभी तो अपनी मुन्नी नादान है ना ....
मुन्ने की मां ने उदास होते हुए कहा ,
(ये कौनसी नई बात हैं हमारे समाज मैं औरत का उसकी संतान पर हक ही कहां हुआ है ,
वो तो सिर्फ़ उसे जन्म दे सकती हैं, उसमे इतनी समझ कहाँ, जो अपनी संतान के जीवन के फैसले में भागीदारी दे सके हेना? )
अरे भाभी काहे परेशान होती हो,
मुन्नी हमारी भी बिटिया जैसी है बहुत ही अच्छा रिश्ता है अपनी पूरी बिरादरी में ऐसा रिश्ता किसी को ना मिला,
मैं देख कर आती हूं चाय बनी कि नहीं ये कहकर मुन्नी की माँ वहां से चली आई,(ये कोई नई बात थोड़ी थी, यहाँ भी वही हुआ, दो मर्दों की बीच एक माँ अपना मन मोस वहाँ से आ गई ) रे मुन्नी चाय बनी की नही,
बन गई मां मैं लेकर आ ही रही थी ,
ठीक है ठीक है ले जा ,
लो काका चाय ,यहां रखदे राधिका बिटियाँ ,
अरे काका आप तो प्यार से मुझे मुन्नी बुलाते होना,
हाँ बिटियाँ लेकिन अब राधिका नाम सुनते रहने की आदत बना ले,
आगे सब तुझे मुन्नी नाम से थोड़ी ना बुलाऐगे ...
मुन्नी गर्दन झुका कर आंखों में एक सवाल लिए वहां से आ गई , मां क्या हुआ क्यों चीख रही हैं मुन्नी,
माँ वो गिरधर काका ये क्यो कह रहे थे कि अब तुझे मुन्नी नाम से कोई नहीं पुकारेगा, तु छोड़ उनको ...इतना कह कर मुन्नी की माँ चुप हो गई,
उसे इस वक्त मुन्नी में अपना चेहरा दिखाई दे रहा था,
बचपन की पीडा उसके जहन में फिर उठ रही थी...
याद आ रहा था कि कैसे उसके पिता जी ने उससे दुगने उम्र के इंसान के साथ उसे बांध दिया था ...
उस वक्त भी उसकी माँ की किसी ने ना सुनी थी,
और आज मुन्नी की माँ कि?
माँ- माँ की आवाज़ ने उसके इस भयानक स्वप्न को तोड़ दिया,
सपना टुटते ही उसने मुन्नी को गले से लगा लिया
अरे माँ कहाँ खो गई,ओर क्या हुआ तुझे....
कुछ नही मुन्नी, ठीक है मां मै गीता के घर पढ़ने जा रही हूं एक-दो घंटे में आ जाऊंगी,
बाय बाबा,
बाय काका ,बाए बिटिया
ध्यान से जाईओ,
हाँ बाबा, की धीमी सी आवाज़ आई,
( पढ़ना तो एक बहाना था हमारी मुन्नी भी शातिर थी यहां कोई उसे कुछ बता नहीं रहा था कि माजरा क्या है? जानने के लिए गई वो अपनी सहेली के पास जो है गिरधर काका की बेटी)
ओर हमारी मुन्नी की पक्की सहेली उसे सारे मोहल्ले की खबर रहती है ।
भैया फिर आगे बात चलाऐ,
हां गिरधर ये भी कोई पूछने की बात है..
ठीक है फिर इतवार को बुला लेते लड़के के परिवार को अरे इतनी जल्दी,
अरे भाभी हमारी बिटिया को देखने ही तो आएंगे उसी दिन थोड़ी ब्याह के ले जाएंगे ...भैया लड़के का नाम राजीव है, यही बनारस में ही रहते हैं लड़का पढ़ा लिखा है ,
ओर उम्र मुन्नी की माँ ने पुछा,
गिरधर ने जरा हिचकते हुए कहा,
हमारी बिटिया राज करेगी वहां ...
उम्र क्या है मुन्नी की माँ ने फिर पुछा ..
भाभी 25 बरस, हमारी बिटिया ठहरी सोलह की हम नहीं करेंगे ,भाभी मेरी गीता का भी तो अगले महीने ब्याहा है वो लड़का भी 27 बरस का है,
तुम रुको तुम्हें कुछ ना पता मुन्नी के पापा ने झिडकते हुए कहा ,
गिरधर तुम बात चलाओ- ठीक है भैया,
क्या मुन्नी की मम्मी हमारी बिटिया राज करेगी राज ,फिर भी तुम भी जरा जांच पड़ताल कर लेना ना लड़के के बारे में ,ठीक है अब खुश
चल गिरधर मैं तुझे छोड़ देता हूं,
ठीक है भैया,
गिरधर ये बता लडके में कोनो ऐब तो नही है ना?
मुन्नी के पापा ने जरा हिचकते हुए पुछा ...
अरे भैया बड़े लोग हैं उनके यहां मांस मच्छी दारु दुरु तो आम बात है,
काहे टेंशन ले रहे हो ,
फिर भी, अरे भैया मैं गारंटी लेता हूं कि अपनी बेटी राज करेगी....
ठीक है तू कहता है तो मान लेता हूं ..
उधर मुन्नी पहुँच गई गीता के घर...
रे गीता कहां मर गई...
नमस्ते काकी ,नमस्ते बिटिया कैसी है बिटिया
काकी गीता कहां है ,
ऊपर है मुन्नी बिटिया वो,
ठीक है काकी,
अरे गीता जीजा से बतिया रही है क्या?
हठ पगली, गीता ने जवाब दिया...
अच्छा छोड़ देख ना माँ मेरे लिए क्या लाई ,
दिखा...
आहा इतनी प्यारी चूड़ियां, देख ना मैं तेरी बहन हूं ना कुछ चूड़ियां इनमें से मुझे भी दे । क्यों दूं ,मुन्नी देख अगले महीने तो मैं जा रही हूं, दे देना ...
तू कहीं को जा मैं नहीं दूंगी ...अच्छा ये बता गिरिधर काका मेरे घर क्यों आए हैं..
मैं क्यों बताऊं अब तुझे,
अच्छा दे दूंगी चूड़ियां जल्दी बता...
पहले दे अच्छा ठीक है ये ले ,
अब बोल ना गीता ..वो बाबा ने तेरे लिए एक लड़का देखा है ना..
बहुत ही बड़ा परिवार है उसकी वजह से तुम्हारे घर गए थे..
गीता ने चूड़ियों को देखते हुए कहा ..
लडका मेरे लिए ,
वो तेरे बाबा क्यों ढुंढेगे..
तेरे बाबा ने ही तो कहा था,
ये सुनते ही मुन्नी सुन पड गई ,पर मेरे बाबा तो कहते हैं कि मुझे तो अभी और पढ़ाएंगे ,शादी नहीं करेंगे
मुन्नी नें आंखों में आंसू भरते हुए कहा ...
नहीं रे मुन्नी ये बातें तो मेरे बाबा भी कहते थे मुझसे।
तू झूठी है, मेरे बाबा ऐसे नहीं हैं, दे मेरी चूड़िया वापस, मुन्नी आंखों में आंसू लिए झूंझलाकर वहां से चली गई...
क्या हुआ रे मुन्नी कहां चल दी ,
काकी की बात अनसुनी कर मुन्नी हडबडी में वहां से निकल गई...
पूरे रास्ते बढ़बडाती रही,
वो गीता की बच्ची मेरे बाबा को थोड़ी ना जानती है ,
कभी बात नहीं करूंगी उससे,
उसके बाबा उसे ब्याहा रहे है तो,
ये थोड़ी कि मुझसे बदला लेगी ...
मुन्नी का मासूम मन अब बिन बुलाऐ डर और पीड़ा से घिर रहा था...
अनगिनत सवालों का बोझ लिए अब घर तक का रास्ता काटना उसके लिए मृत्यु बराबर था.....
To be continue..