Munh dekhi baat in Hindi Children Stories by Kusum Agarwal books and stories PDF | मुँह देखी बात

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मुँह देखी बात

दीपिका, तुम्हारी बेटी तराना कितनी क्यूट है और बेटा तन्मय भी। बिल्कुल विलायती गुड्डे-गुड़िया जैसे हैं। तुम भी कितने प्यार से रखती हो इनको। तुमने इनके नाम भी बहुत सुंदर रखें हैं- एकदम हीरो-हीरोइनों जैसे।” किटी पार्टी में आई हुई मम्मी की सहेलियों ने जब ये बात कही तो तन्मय और तराना, दोनों भाई-बहन इतराने लगे।


ये रोज की ही बात थी। जब भी कोई मेहमान घर आता था या बाहर कहीं कोई जानकार मिलता था, तन्मय और तराना को देखते ही उनके रंग-रूप की प्रशंसा करना शुरू कर देता था क्योंकि वे थे ही इतने सुंदर। गोरा रंग, तीखे नैन-नक्श तथा आकर्षक शारीरिक गठन। बन-संवर कर जब किसी पार्टी में जाते थे तो सभी की नजरें उनकी पर ही टिकी रहती थीं।


दीपिका को अपने बच्चे बहुत प्यारे लगते थे। वह उनके लिए तरह-तरह की पोशाकें भी लाती थी ताकि वह हमेशा ही सुंदर और स्मार्ट दिखें।


थोड़े बड़े होने के बाद दीपिका ने अपने बच्चों को ब्यूटी-पार्लर ले जाना भी शुरू कर दिया था। वह हेयर ड्रेसर को कहती, “दोनों बच्चों के बाल सुंदर तरह से सेट करना। वह घंटों पार्लर में बैठकर उनकी सुंदरता को निखारने के अन्य उपाय भी करती रहती थी।


इसका नतीजा यह हुआ कि दोनों बच्चों को केवल सजने-सँवरने में ही मजा आने लगा। वे अपने कपड़ों को जरा भी गंदा नहीं होने देते थे। खुद को इतना स्टाइलिश समझते थे कि सीधे-सादे बच्चों की ओर देखकर नाक-भौंह सिकोड़ते रहते थे तथा उनका मजाक उड़ाते थे। वे अपनी पढ़ाई की तरफ भी बिल्कुल ध्यान नहीं देते थे। फलस्वरूप दोनों बच्चे पढ़ाई में पीछे रह गए। इतना कि इस बार तो - सी रैंक ही आई थी। यानी कि फेल होते-होते बचे थे। फिर भी दीपिका और दोनों बच्चों को इसकी परवाह नहीं थी।


एक दिन की बात है, दीपिका को किसी पार्टी में जाना था। सदा की तरह उसने दोनों बच्चों को बहुत सुंदर तैयार किया। नए, काले रंग के पार्टी वियर पहनाकर चेहरों पर हल्का सा मेकअप कर दिया। तराना ने जिद करके होंठों पर लिपस्टिक तथा गालों पर रूज भी लगवा लिया। दीपिका ने उसके बालों पर सुनहरा रंग कर शैंपू तो पहले दिन ही कर दिया था। आज हेयर स्टाइल से सँवार कर स्टाइल से खुला छोड़ दिया। अंत में दोनों को काला चश्मा भी पहना दिया‌। और तो और, उसने तराना के हाथ में एक लाल रंग का पर्स भी दे दिया।


अपनी यह साज-सज्जा देख कर दोनों बच्चे फूले नहीं समा रहे थे। वे दर्पण में बार-बार स्वयं की छवि निहार रहे थे तथा सेल्फियाँ ले रहे थे।


जब पार्टी में चलने का वक्त हुआ तो पापा की नजर बच्चों पर पड़ी। वे बच्चों का यह पहनावा देख कर हक्के-बक्के रह गए। वैसे भी वे काफी समय से यह महसूस कर रहे थे कि बच्चे और उनकी माँ अपनी सुंदरता को लेकर काफी सजग हैं।


अपने बच्चे उन्हें भी सुंदर लगते थे परंतु इतनी छोटी उम्र में सजने-संवरने की प्रति बच्चों इतना आकर्षण उन्हें उचित नहीं लगता था।


उन्होंने दीपिका को कहा, “तुम बच्चों को इस तरह से तैयार करके पार्टियों में ले जाती हो यह मुझे ठीक नहीं लगता। मैं देख रहा हूँ इन सब की वजह से बच्चों की आदतें भी बिगड़ रही है तथा वे पढ़ाई-लिखाई में भी पीछे रह रहे हैं।”


यह बात सुनकर दीपिका नाराज हो गई और बोली, “आपको नहीं अच्छा लगता तो मैं क्या करूँ। आजकल का यही चलन है। फिर बाकी सब लोग तो बहुत प्रशंसा भी करते हैं। एक आप ही खुश नहीं होते। जब देखो टोकते रहते हो। कभी-कभी तो मुझे ऐसा लगता है कि आप इनको अपना नहीं समझते और बिल्कुल भी प्यार नहीं करते।”


दोनों बच्चे भी अपने पापा की बात सुन रहे थे। उन्हें भी अपने पापा की बात बिल्कुल अच्छी नहीं लगी। आज तो वे नए कपड़े पहन कर, उस पर काला चश्मा लगाकर तैयार थे तथा अपने पापा से भी बहुत प्रशंसा की उम्मीद कर रहे थे और पापा थे कि नाराज हो रहे थे।


“पापा तो ऐसे ही बोलते रहते हैं। अभी देखना पार्टी में कितना मजा आएगा। जब सब आंटी बोलेंगी, “तराना तो बिल्कुल कैटरीना लग रही है।” तराना ने अपने भाई को धीरे से कहा।


इस पर तन्मय बोला, “हाँ, हाँ रूबी आंटी तो मेरी फैन हैं। वह तो मुझे रणबीर कपूर कहती है। और कभी-कभी तो मेरी पुच्ची भी ले लेती है। मुझे तो लगता है पापा से ज्यादा प्यार मुझे रूबी आंटी करती है।” कहता हुआ वह शरमा गया और फिर दोनों भाई बहन कार में बैठ गए।


पार्टी में पहुँचकर अभी वे खाना ले ही रहे थे कि रूबी आंटी उनके पास से गुजरीं। उन्होने एक कुछ उचटती सी नजर तन्मय और तराना की पर डाली फिर पास खड़ी मिसेज खुराना से बोलीं, “आपको पता है, ये दोनों बच्चे सिर्फ फैशन करते हैं। पढ़ने-लिखने में बिलकुल जीरो हैं। माइनस सी ग्रेड आई है दोनों की। उस पर इतने घमंडी। मेरा बेटा सुधांशु बता रहा था सब। उसी की स्कूल में पढ़ते हैं ये दोनों।”


रूबी आंटी की बात सुनकर मिसेस खुराना बोली, “यदि पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान नहीं देंगे तो ऐसा ही होगा। अरे जरा से सुंदर है तो क्या? हुआ पढ़ना-लिखना और अच्छा व्यवहार भी तो जरूरी है। भला अनपढ़ और अवगुणी व्यक्ति की भी कोई कदर होती है। असली सुंदरता तो सद्गुणों से ही होती है। पर ये भी क्या करें? इनकी मम्मी ने ही बिगाड़ा है इनको।”


ये बातें सुनकर तन्मय और तराना की सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया। कहाँ तो वे प्रशंसा की उम्मीद लेकर आए थे और यहाँ उनकी बुराईयाँ हो रहीं थीं। उधर दीपिका का भी यही हाल था।


पापा ने भी सारी बातें सुनी। परंतु वे दुखी होने की बजाय खुश हो रहे थे क्योंकि उन्हें लग रहा था कि शायद अब बच्चों और उनकी मम्मी की आँखे खुल जाएँगी और उनके सिर से फैशन का भूत उतर जाएगा। साथ में उनके यह भी समझ में आ जाएगा कि जो हमें सच्चा प्यार करता है, वह हमारी भले-बुरे दोनों की सोचता है। हमारी गलतियों पर हमें टोकता भी है और हमें समझाता है। ना कि केवल मुँह देखी बात करता है।


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सर्वथा मौलिक एंव अप्रकाशित रचना

कुसुम अग्रवाल

हरि कृपा

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