Manoj in Hindi Motivational Stories by Atul Kumar Sharma ” Kumar ” books and stories PDF | मनोज

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मनोज

कमरे में चारो तरफ मातम सा छाया हुआ था। सभी लोग लाचार से चुपचाप खड़े होकर बस जैसे उस मनहूस अनहोनी घड़ी का इंतज़ार कर रहे थे । बीच में पलँग पर एक कमजोर युवक अपने अंदर दर्द की लहरों को समेटे हुए ऊपर छत की तरफ शून्य में टकटकी लगाए खामोश लेटा हुआ था । केंसर की लास्ट स्टेज पर उस युवक की आँखों में एक अनंत खामोशी का सूना आकाश भरा पड़ा था । कमरे में सभी की आँखे भीगी हुईं थीं और दिल रो रहा था । सभी जैसे उस विश्वरूप से बस एक प्रश्न कर रहे हों की क्यों आखिर क्यों उस इंसान को ये सब सहना पढ़ रहा है जिसने अपनी जिंदगी को संघर्ष के उस मुकाम तक पहुंचा दिया था, जहाँ इंसान फरिश्ता बन जाता है।

" तुम मुझे बाहर ढूंढ रहे हो और में तुम लोगो का यहाँ इंतज़ार कर रहा हूँ ।"......दीवार फिल्म का ये दृश्य बड़े पर्दे पर आते ही पूरा सिनेमा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।। इन सबके बीच एक 8-9 साल का बच्चा बड़े गौर से ये सब देख सुन रहा था । उसके बालमन पर ये बातें अमिट छाप छोड़ रहीं थीं। अमिताभ बच्चन की हर अदा हर बात मानो जैसे वो अपने अंदर समा लेना चाहता हो । जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीने का बिंदास नज़रिया यहीं से उसके ज़ेहन में ऐसा उतरा की उसकी छोटी सी मगर बड़ी जिंदगी दूसरों के लिए एक मिसाल बन गई । वो था तो अमिताभ का फैन लेकिन राजेश खन्ना की आनंद फिल्म को जीवंत कर गया । उसने ये तभी तय कर लिया था कि कभी किसी से डरेगा नही । ......'' जिंदगी तो बेवफा है एक दिन ठुकरायगी मौत महबूबा है अपने साथ लेकर जाएगी । '" और बस यहीं से वो मरकर जीने की अदा सबको सिखा गया।...

ये कहानी एक ऐसे इंसान पर केंद्रित है जिसने कभी भी जिंदगी की चुनोतियों के आगे घुटने नही टेके। माँ वैष्णो के अनन्य भक्त और BIG B के फैन मनोज जो बचपन में ही अपने माता पिता को खो देने के कारण ज्यादा पढ़ लिख नही पाया, और कम उम्र में ही अपने कोमल हाथों को जीवनसंग्राम् की भट्टी में झोंक देने वाला ये असल जिंदगी का महानायक सबके लिए हमेशा हर हाल में खुश रहने वाली एक मिसाल बन गया।।...

सालों पहले उस मोहल्ले में बाहर से आये एक छोटे से बच्चे को तब कोई नही जानता था। मंगलवार को उस दिन मंदिर में बहुत भीड़ थी। लोगों की भीड़ को चीरता हुआ ये छोटासा 7-8 साल का लड़का जय श्री राम बोलते हुए हनुमानजी के सामने साक्षात दंडवत करता है । अपने मिलनसार व्यवहार संस्कार और हिम्मत से धीरे धीरे उसने सभी अनजान दिलों में जगह बना ली ।। छोटी सी उम्र में खुद्दारी का सबक भी उसे अमिताभ की फिल्म से मिला, जिसमे वो फेंके हुए पैसे नही उठाता है।। अपने महानायक की फिल्में देखता हुआ वो जवानी की दहलीज तक पहुँच गया।। और संघर्ष अभी जारी था। लेकिन महत्वाकांशाये और अरमान तो सब में होतें हैं, मनोज भी अपनी आँखों में तमाम ख्वाब सँजोये जीवनपथ की खुशियों की पिच पर अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा था।।...

समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा......लेकिन 6 फ़ीट हाइट और दुबले पतले शरीर वाला मनोज अभी भी अपनी हिम्मत के बूते जिंदगी की तमाम मुश्किलों को चुनोती दे रहा था। एक कम्पनी में बतौर ड्राइवर वो जिंदगी के फलसफे को समझ रहा था।......अपनी पहचान सबसे जुदा रखते हुए सबकी मदद को तैयार हमेशा हंसमुख रहने वाला और हर नामुमकिन शय को अपने फौलादी इरादों से नेस्तोनाबूत करने वाला ये जांबाज़ जिंदगी के सूनेपन से हार गया था । पर्दे के नायक के साथ तो कई नायिकाएं होतीं थीं , लेकिन इस यथार्थ धरातल के नायक की जिंदगी में वो और बस उसकी तन्हाई ही थे।...

अकेले घण्टो सूने आकाश में ताकते हुए अपने नसीब की जोर आज़माइश को समझने की कोशिश करता। लेकिन जब उदास होता तो किसी ना किसी की मदद करने पहुँच जाता। सब लोग भी उस पर आँखे बंद कर विश्वास करते थे। अपने दबंग और खुद्दार व्यक्तित्व के कारण लोंगो में विजय श्रीवास्तव के नाम से मशहूर हो चुका मनोज अपने ही अंदाज़ में सबसे पेश आता।...

अनीता घर का कामकाज जल्दी जल्दी निपटा कर कालेज जाने की तैयारी में लग गई, बूढ़ी माँ और छोटी बहन का भार उसी के कंधों पर था। पिताजी को गुज़रे ज़माना हो गया था,वो एक सरकारी महकमे में मुलाज़िम थे। अब उनकी पेंशन और अनीता की मेहनत के बूते ही जिंदगी की गाडी खिंच रही थी। लेकिन अनीता हार मानने वालों में से नही थी, उसने ट्यूशन पढ़ाकर और घर पर ही सिलाई वगेरह करके खुद की और छोटी बहन की पढ़ाई रुकने नही दी।.........अब अनीता कालेज में आ गई थी, पर पारिवारिक परिस्तिथियों के कमजोर होने के कारण अच्छे कालेज में एडमिशन नही मिल पाया, तो उसने एक सरकारी कोएड कालेज में दाखिला लिया। वहां उसको कुछ सरकारी रियायतेँ जरूर मिल गई थीं।लेकिन वहाँ का माहौल उसे बिल्कुल भी रास नही आ रहा था। चूँकि कालेज कोएड था , तो लाज़मी है कि लड़को और लड़कियों का टकराव आम बात थी। और फिर वहां स्थानीय नेतागिरी का भी दखल था।लेकिन अनीता इन सब बातों को नज़रंदाज़ कर सिर्फ अपने लक्ष्य के बारे में ही सोचती।उसका सपना था कि वो एक बहुत बड़ी सरकारी अधिकारी बने।

अपने पड़ोस में रहने वाली इस लड़की को मनोज रोज़ खामोश आते जाते देखता रहता, पर बात करने की उसकी हिम्मत नही होती।..........................

अनीता के कालेज में कुछ लड़के रोज़-रोज़ रैगिंग के नाम पर सभी नये छात्रों को परेशान करते । उनमे से एक लड़का तो अनीता के ही पीछे पड़ा रहता । मौका देखकर वो अनिता को परेशान करने लगता। पूरा कालेज उन लड़कों से ख़ौफ़ खाता और कॉलेज प्रबंधन भी खुलकर उन लड़कों के खिलाफ कुछ कार्यवाही नही कर पाता। ....धीरे धीरे पानी सर से ऊपर निकलने लगा।।अनीता इंसबसे बहुत तंग आ गई थी, और घर के टेरेस पर बैठी इसी सोच में डूबी हुई थी की अचानक उसकी नज़र सामने कुछ लड़कों को समझाते हुए मनोज पर पड़ी। मनोज 6-7 लड़कों से अकेला ही बहस कर रहा था, लम्बा चौड़ा शरीर और बड़ी बड़ी आँखे अच्छे खासे शख्स में ख़ौफ़ पैदा कर दें । वो मनोज को जानती तो थी,पर आज़तक कोई बात नही हुई थी। ...

" क्यों ना मनोज की हेल्प ली जाए , वो दबंग है किसी से नही डरता । आसपास के इलाके में उसकी अच्छी खासी धाक भी है । लेकिन कालेज की बात अलग है वहां छात्र नेता हैं जिनसे कालेज प्रशासन भी डरता है । क्या मनोज को अपना बॉडीगार्ड बनाकर वहां ले जाना ठीक रहेगा । ""..............अनीता यही सोच रही थी , लेकिन मामले को यूँ भी नही छोड़ सकती थी ।........ उन लड़कों ने उसका और दूसरी लड़कियो का कालेज में जीना दूभर कर रखा था। हमेशा 10-15 के झुण्ड में आकर पूरे कालेज में उधम मचाते.....उसका दिमाग यही सब बातें सोच रहा था कि तभी माँ की आवाज़ उसके कानों में पड़ी , वो तुरन्त अपनी सोच को विराम देते हुए माँ के पास चली गई। ...............

आज क्लास खत्म होते ही अनीता अपनी सहेलियों के साथ कालेज के मेन गेट की तरफ बड़ चली। लेकिन तभी उसकी सहेली सुजाता तेज़ी से सामने दौड़ती हुई आई। ................

"" अनीता यहाँ से नही पीछे के गेट से चल, सामने वो लड़के फिर झुण्ड में कुछ लड़कियो के साथ बदतमीज़ी कर रहें हैं, फ़ालतू का पंगा ना हो जाए , हम पीछे से निकल चलते हैं। अब रोज़ रोज़ की इसी परेशानी से अनीता तंग आ गई थी, वो जानती थी की प्रबन्धन को शिकायत करने से भी कुछ नही होने वाला,उलटा उसकी ही परेशानी बढ़ जाएगी। उस दिन तो वो पीछे के रास्ते आ गई, लेकिन कब तक???????........आखिर कब तक ये सब चलता रहेगा, इंसबके चलते वो पढाई पर भी ध्यान केंद्रित नही कर पा रही थी, ऐसे तो वह फेल हो जाएगी, उसके सारे सपने धरे के धरे रह जाएंगे। ...........""नही नही में ऐसा किसी कीमत पर नही होने दूंगी.... मुझे हर हाल में इनसबसे छुटकारा पाना ही होगा""......उसने मन ही मन कुछ निर्णय लिया और फिर घर के काम में लग गई।.....

कालेज से आते हुए अनीता को रास्ते में मनोज दिखा, कुछ सोचकर मनोज के पास जाकर सकुचाते हुए खड़ी हो गई।........

मनोज भी एक दम भौंचक्का सा देखने लगा....." क्या हुआ आपको कुछ कहना है अनीता जी??????....."....मनोज ने सवालिया अंदाज़ में उसकी तरफ देखा।......

अनीता आँखों में आंसू लाते हुए धीरे धीरे बोली......" मुझे आपकी हेल्प की बहुत जरूरत है, क्या आप मेरी मदद करेंगे?..".................अनीता की बेबस आवाज़ और आँखे मनोज को विचलित कर गई।...........उसने हिम्मत कर अनीता से आगे पूछा....." आप बताइए में आपकी क्या मदद कर सकता हूँ।""...

अनीता ने पूरी बात मनोज को बताई।......मनोज आज़तक कालेज नही गया था, लेकिन उसने वहां के लड़को के किस्से बहुत सुन रखे थे....जिसके खिलाफ वो भी था।.....

" आप बेफिक्र होकर जाइये अनीता जी , मनोज कल नियत समय पर कालेज पहुँच जाएगा"..... उसने अनीता को आश्वासन दिया........लेकिन अनीता फिर भी डरी हुई थी...........उसने मनोज से कहा..."" लेकिन वो 10-15लड़के हैं, पूरे कालेज में उनकी धौंस चलती है, यहाँ तक की प्रिंसिपल भी कुछ बोलने की हिम्मत नही करते उन लड़कों से , और में कॉलेज में कोई पंगा ना हो इससे डरती हूँ ।और तुम तो अकेले हो।""........

"" हा हा हा हा हा ...... में अकेला ही चलता हूँ, मुझे दूसरो के कंधों का सहारा पसन्द नही । अपने बाजुओं पर यकीन है, झुण्ड में तो सिर्फ कुत्ते हमला करते हैं।"".......मनोज ने बड़े ही आत्मविश्वास से कहा।...

ये सुन अनीता बोली .."" लेकिन वो कुत्ते नही शेर हैं.. ..और कॉलेज में वो जंगल का क़ानून चलाते हैं यूँ समझ लो उनकी कई शेरो से यारी है, आजकल की बिगड़ी हुई प्रजाति हैं।..... किसी को कुछ नही समझते".......।।

मनोज बड़े गौर से अनीता की बाते सुन मन ही मन मुस्कुरा रहा था....."" अनिताजी हम भी अमिताभ के फैन हैं, यदि वो शेर हैं तो हम शिकारी हैं,और शिकारी कभी अपने शिकार से यारी नही करता। क़ानून जंगल का हो या दंगल का , जिस सरज़मी पर मनोज के कदम पड़ जाते हैं, वहां के नियम खुद ब खुद बदल जाते हैं।....आप बेफिक्र रहिये, ये तो छोटे मोटे सांप सीढ़ी के खेल हैं मनोज के लिए""..................मनोज के शब्दों में एक अलग ही ख़ौफ़ पैदा करने वाला आत्मविश्वास झलक रहा था।और वो जानती भी थी की मनोज जो कहता है वो करता भी है।...

उसकी बातों से बड़ी हिम्मत मिली थी अनीता को,

अगले दिन अनीता अपनी सहेलियों के साथ कालेज गई, लेकिन वो अंदर ही अंदर डरी हुई थी, .....""पता नही क्या होगा आज""..... यही सोचकर सहमी हुई थी कि तभी वही लड़के 8-10 बाइक्स पर सवार होकर हॉर्न बजाते हुये वहां आ गए।......और सबसे भद्दा मज़ाक करते हुए इधर उधर घूमने लगे। कुछ नए लड़को को रैगिंग के नाम पर शर्ट के तीसरे बटन से नज़रें नही हटाने का बोलकर
उन लड़कियो के पास आकर बदतमीज़ी करने लगे.....उनमे से एक अनिता के पास आकर बोलता है।

"" मेड्डमजी जी आइए आपकी खिदमत में देखिये कितने गुलाम हाज़िर हैं...""....उस लड़के के इतना कहते ही वहां खड़े सभी सीनियर लड़के जोर जोर से हंसने लगते हैं।

""रस्ते से हटो , मुझे क्लास में जाना है।""......अनीता ने एक तरफ होने का इशारा करते हुए कहा।....

""अरे मेड्डमजी इतनी जल्दी के हे , आँखों से आँखों की बात तो होने दीजिए, फिर चले जाइयेगा।... हा हा हा .....""......बड़े ही बेशर्म अंदाज़ में उसने अनिता को बोला।.......

अनीता कालेज के गेट पर नज़रें जमाई थी,लेकिन मनोज कही नहीं दिखा, वो थोड़ा डर गई।......उसने उन लड़कों से हाथ जोड़ते हुए बोला...."""" देखिये में एक गरीब लड़की हूँ, बड़ी मेहनत से पढ़ाई करके यहाँ तक आई हूँ, मेरे सपने हैं जिनको मुझे अपने परिवार के लिए पूरा करना है।.....""......

""..अरे मेड्डमजी तो हमने कब कहा कि आप अपना सपना पूरा मत कीजिये, बस उस सपने में हमे भी शामिल कर लीजिए।......क्यों भाइयो आपलोग तैयार होना मेडम के सपने में आने के लिए।.....""......उस लड़के की इस बात पर एक बार फिर सभी लड़के जोर जोर से हंसने लगते हैं।.........

अनीता की आँखों में आंसू आ जाते हैं।तभी उसकी सहेली सुजाता उसे उनलोगों से उलझने को मना करती है।.......""रहने दे अनीता , इनलोगो को किसी का डर नही , शायद भगवान का भी नही,सबको अपनी जेब में लेकर घूमते हैं ये लोग, हुंहः""......

वो सभी सीनियर लड़के बाकि सभी लड़के लड़कियों को एक तरफ चलने का बोलते हैं।......."" पढ़ाई वडाई सब बाद में होती रहेगी,लेकिन पहले तुम सभी को हमारी सल्तनत में मत्था टेकने आना पड़ेगा, समझे या नही...अबे साले तूने तीसरे बटन से नज़रे कैसे हटाई....""""" उनमे से एक ने तेज़ आवाज़ में एक लड़के से चिल्लाकर कहा,और उसके गाल पर दनादन बजा दिया। वो जूनियर लड़का रोते हुए माफ़ी मांगने लगा।सभी सीनियर ज़ोर का अट्टहास कर रहे थे।

तभी अचानक से वहां एक 6 फ़ीट हाइट का नोजवान आकर बड़े बिदास अंदाज़ में उनलोगों के बीच बैठ जाता है। ये देख वहां सभी सीनियर गुस्सा हो जाते हैं, और उसके पास आकर बोलते हैं...."" कोण हे भाई तू , तेरे बाप का राज़ है देखता नही सुलतान खड़े हैं और तू बैठ गया, अब तेरी तो लग गई.""..............एक लड़का अपना हाथ
की तरफ बढाते हुए बोलता है।

मनोज तुरन्त उस लड़के के हाथ को पकड़कर पीछे मरोड़ते हुए बोलता है।.......
"" हमारी तारीफ़ भी हमारी तरह जरा लम्बी है, बचपन से है सर पर माँ वेष्णो का हाथ और बजरंग बली हैं अपने साथ, डरता उसके सिवा किसी से नही, जो मेरे सामने आता है फिर दोबारा कहीं दिखता नही, शौक हमे भी है हड्डियां चटकाने का , तुम जैसो को औकात बताने का, जिसके आते ही बदल जाती है सबकी सोच , दोस्त प्यार से मन्नू कहते हैं, और दुश्मन ""मनोज'"....."""........और अपनी आँखों के क्षेत्रफल को गुस्से में चौड़ा करते हुए वहां खड़ी एक बाइक में जोरदार लात मारता है। चारों तरफ कुछ देर के लिए खामोशी छा जाती है।

मनोज फिर जोर से दहाड़ते हुए अनीता के पास आकर खड़ा होता है और उन लड़कों को इशारा करते हुये बोलता है..."" अगर आज के बाद तुम पिस्सुओं ने किसी भी शरीफ लड़के या लड़की को जरा सा भी तंग किआ तो तुम सभी के तीसरे तो क्या शर्ट के सभी बटन उखाड़ दूंगा....ये रैगिंग के नाम पर जो फ़ालतू की गुंडागर्दी मचा रखी है न इसे इसी वक़्त से बन्द कर दो, ये शिक्षा का मंदिर है, अपने से कमजोरों पर हिम्मत क्या दिखाते हो, अगर खतरों से खेलने से इतना ही शौक है तो बुलाओ कभी हमे अपने मोहल्ले में,खुदा ने चाहा तो सभी अरमान पूरे हो जाएंगे......** जितनी तुम लोगो की कमर है उतनी मनोज की उमर है **...इस फालतू की धौंस बाज़ी में कुछ नही रखा,अपने माँ बाप से धोखा मत करो, उनके पेसो को बर्बाद करने से पहले खुद कमाना सीखो।...""............

सभी बड़े गौर से मनोज की तरफ देख रहे थे।उसके आते ही वहां का नज़ारा बिल्कुल बदल चुका था। किसी सीनियर की भी इतनी हिम्मत नही हुई की उसे कुछ बोल दे..""......

रात को अनिता जब सभी काम निपटाकर अपने कमरे में आती है तो अचानक उसे मनोज की याद आ जाती है। जिस समस्या से वो इतनी डरी हुई थी , मनोज ने एक ही झटके में उसे दूर कर दिया था।कमाल का लड़का है मनोज।उसके लिए कुछ भी मुश्किल नही।वह मन ही मन मनोज को पसंद करने लगी।................अगले दिन जब वो कालेज जाने के लिए निकली, तो सामने मनोज दिखा। अनीता मनोज के पास आकर बोली......

"" आपका बहुत बहुत शुक्रिया, आपकी वजह से मेरी बहुत बड़ी परेशानी हल हो गई, वरना वो लड़के रोज़ मुझे तंग करते थे।

"" अरे धन्यवाद देकर क्यों आप मुझे शर्मिंदा करती हैं, आपलोगो के कुछ काम आ सका यही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है...ज्यादा पढा लिखा तो नही हूँ अनीताजी नही जानता की किस्से केसी बात करनी चाहिए....""......मनोज नीचे देखते हुए बोला।......

"" अरे नही नही.....उनलोगों से ऐसे ही पेश आना था। आपने बिल्कुल ठीक किया, मुझे नही लगता कि कल के बाद अब कोई परेशान करेगा..""......अनीता ने विश्वास भरे लहजे में कहा, और उससे विदा लेकर कालेज को निकल गई। रस्ते में वो मनोज के बारे में ही सोच रही थी।........समय अपनी गति से चलता रहा।अब कोई भी अनिता को परेशान नही करता, मनोज के कारण उसकी खासी धाक बन गई थी पूरे कालेज में,लेकिन वो इन सबसे दूर रहती और अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगाती।

अनीता अपनी पढ़ाई करती रही और मनोज अपने जीवन से संग्राम लेता रहा। ग्रेजुयेशन कम्प्लीट करने के बाद अनिता एक कम्पनी में नोकरी करने लगी।वक़्त गुज़रता गया और वक़्त के साथ अनीता और मनोज की कहानी भी आकार लेती रही। अपने मिलनसार व्यवहार और हर परिस्तिथि में हंसते रहने की उसकी आदत सबके दिलों में राज़ कर रही थी।वो कभी किसी को मना नही करता,सबकी सहायता को हर दम तैयार। कई लोगो ने उसकी इस आदत का खूब फायदा उठाया तो कई लोग उसकी दिल से इज़्ज़त भी करते। लेकिन मनोज बिना इन सबकी परवाह किये अपनी दुनिया में मस्त रहता।उसका एक ही उसूल था कि नेकी कर और दरिया में डाल।

एक दिन मनोज अखबार में पढ़ रहा था, प्रशासनिक सेवाओं में चुने गये लोगों के परिचय और फोटो दिए हुए थे।उसके मन में आया क्यों ना अनीता जी को बोला जाए ,वो इतनी होशियार हैं जरूर ये एग्ज़ाम पास कर लेंगी। इस छोटी मोटी नोकरी में आखिर क्या रखा है। उन जैसी लड़की को तो बड़ा सरकारी अफसर होना चाहिए।बस फिर क्या था, मनोज ने तुरंत अनीता को बताया।ये सुनकर अनीता ने मना कर दिया।क्योंकि उसमें बहुत पढ़ना पडता था।और महंगी कोचिंग के लिए उसके पास इतने पैसे भी नही थे।वो तो जैसे तैसे एक कम्पनी में नोकरी कर अपने घर का खर्चा चला रही थी। मनोज ने अनिता की बात को बीच में काटते हुए कहा

"" जिंदगी जीने का असली मज़ा तभी आता है ,जब सुविधाएं कम हों और लक्ष्य बहुत बड़ा हो। आसान को आसानी से तो कोई भी कर सकता है, लेकिन मुश्किल को आसान बनाकर निपटना हर किसी के बस का नही। अनिताजी आप एक बार हिम्मत करके कोशिश जरूर करें, में आपके साथ हूँ।......अनिताजी पैसों की चिंता आप मत कीजिये, मेरे आगे पीछे कोई नही। सिर्फ आपको अपना मानता हूँ। जी जान लड़ा दूंगा, लेकिन आपकी पढाई रुकने नही दूंगा।। ."".......अनिता मनोज के जोश से भरे शब्दों को गौर से सुन रही थी।मनोज की बातों ने जैसे उसमे कुछ करने की क्षमता पैदा कर दी हो।उसने भी मन बना लिया, चाहे जो हो, कैसे भी सब मैनेज करूँ लेकिन कोशिश जरूर करूँगी।इतनी मुश्किलों से यहाँ तक पहुंची हूँ, इसलिए नही की सिर्फ एक छोटी सी नोकरी में ही जीवन गुज़ार दूँ। अब कुछ बड़ा करना है।

बस फिर क्या था, अनिता ने दिन रात एक कर नोकरी के साथ साथ पढाई जारी रखी। मनोज उसकी हर संभव सहायता करता। अपने पैसों से अनीता के लिए किताबें खरीदता और जब कभी अनीता की हिम्मत जवाब देने लगती तो मनोज उसमे अपने शब्दों से नई जान फूंक देता। ................

एक दिन मनोज ऐसे ही बैठा हुआ था, अचानक उसको पेट में दर्द के साथ चक्कर से आये। ऐसा पहले भी उसको अक्सर होता था। लेकिन उसने ध्यान नही दिया। पर आज अचानक उसके पेट में दर्द असहनीय हो रहा था। उसके घर परिवार में कोई था ही नही जो उसकी चिंता करे। लेकिन इस बार उसने दर्द को नज़रंदाज़ करना ठीक नही समझा। डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने कुछ जरूरी टेस्ट लिखे, मनोज ने वो सभी टेस्ट करवाये।अभी उसे जीवन के एक और कड़वे अनुभव से गुजरना था। टेस्ट में उसके पेट में ट्यूमर की पुष्टि हुई।एक दम से जैसे उसपर दुखों का पहाड़ टूट पडा हो।पैरो तले जमीन खिसक गई हो।वो एक दम से हताश होकर कुर्सी पर बैठ गया।उसके सारे सपने सारे अरमान जैसे धराशाई हो गये थे।उसने डॉक्टर से पूछा की क्या कुछ हो सकता है। डॉक्टर ने जवाब दिया की ऑपरेशन करके टयूमर को निकालना जरूरी है,वरना पूरे शरीर में इंफेक्शन फ़ैल जाएगा।और ये ऑपरेशन जितनी जल्दी हो जाए उतना अच्छा,नही तो ट्यूमर पेट में ही बर्स्ट हो जाएगा।।

कँपते हुए होठों से उसने डॉक्टर से इस ऑपरेशन में आने वाले खर्च के बारे में पूछा। डॉक्टर ने कहा उसके लिए उसको किसी बड़े शहर के अस्पताल जाना पड़ेगा।जहाँ इसकी सुविधाएं हैं। ऑपरेशन क्रिटिकल है , लाखों का खर्चा होगा।ये सुन मनोज डॉक्टर को बिना कोई जवाब दिए थके हुये कदमो से घर आ गया।जिंदगी में ये पहला मौका था जब वो खुद को इतना कमजोर महसूस कर रहा था। रात भर वह इसके और अनीता के बारे में ही सोचता रहा। बहुत विचार मंथन के बाद इस नतीजे पर पहुंचा की वो इसके बारे में किसी को नही बतायेगा।अनिता को तो बिल्कुल नही। पहले की तरह ही सबसे हंसकर मिलेगा, और अनीता से किया वादा जरूर पूरा करेगा।उसका सपना था अनीता को IAS के रूप में देखने का,जो वो कभी तोड़ नही सकता था। परीक्षा पास थी और मनोज जानता था यदि अनीता को कहीं से भी इसका पता चल गया तो वो कभी परीक्षा नही देगी, और उससे इलाज़ के लिए ज़ोर डालेगी। इस तरह उसकी अभी तक की मेहनत यूँ ही बर्बाद हो जाएगी। .........""नही नही, में ऐसा नही होने दूंगा, मनोज ने आज़तक केसी भी परिस्तिथि हो कभी हार नही मानी।आज भी नही टूटेगा, अपने होठों पर कभी निराशा दुःख को नही आने देगा, हमेशा मुस्कान बनाये रखेगा।..""........मन ही मन निर्णय कर वो उगते सूरज को प्रणाम कर उठकर खड़ा हो गया।

जैसे ही अनीता घर से निकली, बाहर मनोज छोटे छोटे बच्चों के साथ हंसाता खेलता हुआ मिल गया। उसके लिए ये कोई नई बात नही थी।मनोज की शख्सियत ही ऐसी थी की उसके ये काम किसी के लिए आश्चर्य का विषय नही होते थे। अनीता को देखते ही मनोज फ़ौरन उसके पास आ गया।

""आपकी परीक्षा की तारीख आ गई क्या??...."' मनोज ने अनीता से पूछा।.......

अनीता ने हाँ में सर हिलाते हुए कहा.."" हाँ , अब कम दिन बचें हैं, मुझे तो बहुत टेंशन हो रही है, क्या होगा। साल भर की मेहनत दांव पर लगी हुई है।..""......

"" अरे जी आप इतनी चिंता क्यों करती हैं। आपको भले यकीन ना हो लेकिन मुझे आपपर पूरा विश्वास है ,आप जरूर सफल होंगी।याद रखियेगा ये मनोज के शब्द हैं, आप जब बड़ी अधिकारी बन जाएंगी ना तो देखना ये मनोज आपको उस दिन जरूर सेल्यूट करेगा। ....""" मनोज ने अटेंशन की मुद्रा में आकर हंसते हुए कहा।उसके विश्वास से भरे ऐसे शब्द सुनकर अनीता आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गए।

परीक्षा के दिन भी आ गए, अनिता ने सभी पेपर अच्छे से दिए। और फिर वह दिन भी आ गया जब वो ख़ुशी से झूमती हुई मनोज के पास पहुंची।

"" देखो मनोज तुम्हारा विश्वास रंग लाया, मेरा सिलेक्शन हो गया, टॉप किया है मेने,.....ये ये ये ....."".......अनीता के चेहरे पर खुशी देखकर मनोज अपना सारा दर्द भूल गया। कल जो सपना उसने देखा था आज सच होने जा रहा था। दोनों ख़ुशी से झूम उठे। पूरे मोहल्ले में अनीता की इस कामयाबी का जश्न मनाया गया। अब सभी उस दिन के इंतज़ार में थे जब अनिता अपनी ट्रेनिंग पूरी कर वापिस आ जाए, और फिर सभी बड़ी धूम धाम से दोनों की शादी कर दें।

स्टेशन पर सभी अनिता को छोड़ने आये थे, आज वो अपने सपने के इस अंतिम पड़ाव को पार करने जा रही थी। अनीता मनोज के गले लग गई, और बोली "" आज ये जो सम्भव हुआ है वो सिर्फ तुम्हारे कारण मनोज।वरना में सपने में भी नही सोच पाती ऐसा करने को, सब तुम्हारी मेहनत और दुआओं का असर है।बस कुछ दिन और, फिर हमदोनो हमेशा साथ रहेंगे।"".......तभी ट्रैन का सिग्नल हो गया।और ट्रेन धीरे धीरे पटरियों पर दौड़ने लगी। मनोज बहुत देर तक वहीँ खड़ा खड़ा हाथ हिलाता रहा। उसकी आँखों में ख़ुशी के आंसू के थे।

कुछ महीने गुज़र गये। मनोज अब धीरे धीरे कमज़ोर होने लगा था। उससे ज्यादा काम नही हो पाता। लेकिन फिर भी वो कभी किसी का सहारा लेना पसंद नही करता। जब तक सम्भव हुआ सबसे छिपाता रहा,लेकिन एक दिन अचानक वो सड़क पर गिरकर बेहोश हो गया। लोगों से उसे अस्पताल पहुंचाया। जब मोहल्ले वालो को मालूम पड़ा तो सभी उसे देखने अस्पताल पहुँच गये। सबने जानना चाहा की उसे क्या हुआ है। डॉक्टर ने मेडिकल चेकअप करके बताया कि उसके पेट में बहुत बड़ा ट्यूमर है, जो अब केंसर में बदल गया है।पूरी बॉडी इंफेक्टेड हो चुकी है, इनसे पहले ही कहा गया था कि समय पर उसका ऑपरेशन करा लेना चाहिए।लेकिम इन्होंने बाद में कोई जवाब नही दिया।।और अब कुछ नही हो सकता। बस चंद दिन ही शेष हैं अब इनकी जिंदगी के।

डॉक्टर के मुंह से ये शब्द सुनकर सबको मानो सांप सूंघ गया हो, सबकी आँखों में आंसू थे। सबके पूछने पर मनोज ने उनको वो सब बता दिया , किस तरह से उसने अनीता का सपना पूरा करने के लिए इतना बड़ा समझौता किया। मनोज ने सभी से कहा की वो तब तक अपने प्राणों को रोक कर रखेगा,जबतक अनीता को सामने से सेल्यूट न करे,उसने वादा जो किआ था।

मंगलवार का दिन था, कमरे में सभी मनोज के पास खड़े हुए थे। बरसो पहले उनके मोहल्ले में आये एक अंजान छोटे से लड़के के लिए आज उन सभी की आँखों में सम्मान के आंसू और चेहरे पर दुःख के भाव परिलक्षित हो रहे थे। मनोज चुपचाप पलँग पर लेटा हुआ किसी का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था।कही देर ना हो जाए नही तो जिंदगी में पहली बार मनोज किसी से किआ वादा पूरा नही कर पायेगा।

कमरे का दरवाजा अचानक खुला, एक सभ्य और सुन्दर बड़ी अधिकारी सी दिखने वाली एक औरत घबराते हुए मनोज के पलँग के सामने आकर खड़ी हो गई। सभी लोग उसकी तरफ आश्चर्य से देखने लगे। उसने डबडबाती आँखों से मनोज की आँखों में देखा। मनोज के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान दौड़ गई।वो बोल नही पा रहा था, बस भीगी हुई आँखों से अपने कँपते हुए हाथों को माथे पर रख सेल्यूट किआ, और जैसे चारों तरफ अनंत ख़ामोशी छा गई थी।मनोज के चेहरे पर एक असीम शान्ति थी। जिंदगी में किये हुए अपने आखरी वादे को उसने पूरा जो कर दिया था। ख़ामोशी को तोड़ मनोज का धीरे से स्वर गूँजा......

"" मनोज मंगल के दिन आया था और मंगल के दिन ही जा रहा है। ..""....ये कहते ही उसकी शख्सियत हमेशा के लिए खामोश हो गई।।