Urvashi - 15 in Hindi Moral Stories by Jyotsana Kapil books and stories PDF | उर्वशी - 15

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उर्वशी - 15

उर्वशी

ज्योत्स्ना ‘ कपिल ‘

15

दो मिनट बाद ही उसके दरवाजे पर हल्की सी दस्तक हुई। वह एकदम से बैठ गई। रात के साढ़े बारह बज रहे थे। वह यंत्रचालित सी उठकर दरवाजे के पास गई। फिर रुक गई, उसका हृदय कहने लगा कि खोल दे दरवाजा, और लग जाए उनके सीने से। उसके हाथ चिटखनी की ओर बढ़ गए, पर मस्तिष्क ने उसे डपट दिया। खबरदार जो दरवाजा खोला। वह पलट गई और फिर पीठ दरवाजे से लगा ली। दरवाजे पर पुनः दस्तक हुई। उसकी हथेलियाँ दरवाजे पर कस गईं। मूर्ख, खोल दे दरवाजा, इतना चाहने वाला किस्मत वालों को ही मिलता है। फिर तुझे किसका डर ? किसके लिए अपने अरमानों का खून करना ? उसके लिए, जो खुद बेवफ़ा है ? तुझे अधिकार है अपने प्रेम को पाने का। वो तुझे चाहते हैं, बेइंतहा। तू भी उन्हें चाहती है। आने दे उन्हें अपने पास ।

उसने अधीरता के साथ दरवाजा खोला, पर वह नहीं थे। वह दरवाजे से बाहर आ गई। वह मायूस कदमों से वापस जा रहे थे। तभी उन्होंने पलटकर देखा और उसे बाहर देखकर खड़े रह गए। कुछ पल ऐसे ही खड़े रहे, फिर उसकी ओर दो चार कदम बढ़ाए, अब कुछ पल थमे, और फिर पलटकर वापस अपने सुइट की ओर चले गए। वह खड़ी रह गई। जी चाहा कि दौड़कर जाए और उन्हें बुला लाए। फिर वह भी पलटी और कमरे के अंदर आकर चिटखनी लगा ली। उसके बाद बिस्तर पर गिर पड़ी और बिलखने लगी। थोड़ी देर बाद फिर फोन बजा

" मुझे माफ़ कर दीजिए। " उसने कहा।

" माफी माँगने की बारी हमारी है उर्वशी। यकीन मानिए, देह की चाहत कभी नहीं रही, पर आज पागल हो गए थे । रोक ही नहीं पाये खुद को। पहले ही आपका बहुत अहित कर दिया है । इससे ज्यादा नहीं करेंगे । अच्छा हुआ जो आपने दरवाजा नहीं खोला। "

" मैं भी हार ही गई थी, पर आपने हमारे प्रेम को कलंक लगने से बचा लिया। "

" आप सचमुच बहुत अच्छी हैं। "

वह कुछ न कह पाई।

" चलिए सोने की कोशिश करिये, गुड नाईट ।" फोन बंद हो गया, और वह देर तक सुबकती रही।

* * * * *

सारी रात वह फिर से करवटें बदलती रही, हृदय की जलन कुछ इस तरह हावी थी कि एक पल भी चैन नहीं मिला। अश्रु बहते रहे, ये कैसा खेल है भाग्य का ? जो मिला उसे कोई परवाह नहीं, जो प्रेम करता है वह मिल नहीं सकता। रिश्ता भी ऐसा बना लिया कि इस जीवन में पाया नहीं जा सकता। सारी उम्र यूँ ही गुज़ारनी होगी, तड़पते हुए । यह कैसा अन्याय है ईश्वर का, जिनके मन में प्रेम पैदा करता है उनके रास्ते मे इतनी अड़चनें,की न जी पाएं न मर पाएं । उसे यही करना होता है तो प्रेम पैदा ही क्यों करता है ! तेरी क़ायनात में इंसाफ़ नहीं ओ ख़ुदा। तुझे मज़ा आता है इंसान के साथ खिलवाड़ करके।

सुबह तक सरदर्द से बुरा हाल हो गया। उठकर उसने स्नान किया और एक कॉफी बनाकर पी। सोचती रही कि शिखर क्या कर रहे होंगे। रात में सो पाए होंगे या नहीं ? तभी फोन बज उठा

" हैलो, गुड मॉर्निंग। " उसने कहा

" गुड मॉर्निंग डियर, हमारे सुइट में आइए, नाश्ता कर लें। "

" जी। " उसने कहा और तुरन्त चल दी । वहाँ गई तो वह तैयार हो चुके थे और बेयरा टेबल पर नाश्ता लगा रहा था। एक गिलास छाछ, उपमा, टोस्ट, बटर, ऑमलेट, फिल्टर कॉफी और फ़ल थे। उसे देखकर एक मीठी सी मुस्कान दी और सोफ़े पर अपने पास बैठने का इशारा किया। उसे कुछ पल देखते रहे

" नहीं सो पाई न ?" उसने इनकार में सर हिला दिया। आँखें उनकी भी लाल थीं।

" आप भी तो नहीं सोए। "

" कैसे सोते ?" प्रश्न पर वह कोई जवाब न दे पाई फिर अपने लिए टोस्ट में मक्खन लगाने लगी। तभी चम्मच में उपमा लेकर उन्होंने उसके मुँह की ओर बढ़ा दिया। उसने भी थोड़ा उपमा उन्हें खिला दिया। दोनो चुपचाप नाश्ता करते रहे ।

" अब हमें निकलना पड़ेगा, कोशिश करेंगे की जल्दी आ जाएं। " नाश्ता समाप्त होने के बाद वह बोले।

" कोशिश करना सोने की, या फिर स्विमिंग कर लेना, स्पा ले लेना। चाहो तो कहीं घूम आना। कुछ शॉपिंग कर लेना। " कहते हुए उन्होंने अपने वॉलेट में से क्रेडिट कार्ड निकाल कर उसकी ओर बढ़ा दिया। उसने इनकार में सिर हिला दिया।

" ज़रूरत नहीं। "

" एक काम करिये, नींद की गोली ले लीजिये और सो जाइये। वरना तबियत बिगड़ जाएगी। " कहते हुए अपने बैग में से उसे एक गोली निकालकर दी।

" अगर एक गोली से नींद न आई तो ?"

" तो जागती रहना, इससे ज्यादा नहीं मिलेगी। "

" तो ये भी क्यों दे रहे हैं ?" उसने झूठमूठ की नाराजगी ज़ाहिर की।

" क्योंकि आपकी फिक्र है हमें, पर इतनी ज्यादा भी नहीं ।" कहते हुए वह मुस्कुरा दिए " अब विदा लेते हैं। अपना ख्याल रखना। " उसके साथ वह कमरे के बाहर चल दिये। उसने देखा,थोड़ी दूर पर कुलकर्णी टहल रहा था।

" कुलकर्णी को अपने साथ ले जाइए, उसे क्यों मेरे सर पर बिठा रखा है ? मैं कहीं नहीं भागी जा रही। "

" आप पर नज़र रखने के लिए नहीं छोड़ा है। आप नहीं जानती कि किस सिचुएशन में हम यहाँ आये हैं। सेफ़्टी के प्वाइंट ऑफ यू से है। "

" पर मुझे कौन जानता है ?"

" हमारे साथ तो हैं ।"

" मतलब ? आप किसी खतरे में हैं ?"

" परेशान मत होइये, सिचुएशन थोड़ी डिफिकल्ट है। "

" हुआ क्या है ?"

" यह सब आपको सोचने की ज़रूरत नहीं। पर हम सावधान हैं। " उसने घबराहट में उनका हाथ पकड़ लिया।

" हम अपना ख्याल रख सकते हैं । " उन्होंने उसका हाथ थपथपाया और फिर तेज कदमो से चल दिये।

वह थोड़ा इधर उधर घूमने चल दी, सोचा जिम और स्विमिंग पूल की तरफ देखकर आये। थोड़ी देर इधर उधर चहलकदमी करती रही, कुलकर्णी सावधान मुद्रा में साये की तरह उसके साथ चलता रहा। एक बार सोचा बीच की ओर निकल जाए, पर धूप अच्छी खासी थी, तो इरादा बदल दिया। फिर अपने कमरे में आकर उसने नींद की गोली खाई और सोने का प्रयास करने लगी।

न जाने कितनी देर सोती रहती, अगर फोन के स्वर से आँख न खुल जाती। शिखर का ही फोन था, पर उसका उनींदा स्वर सुनकर उन्होंने उसे सो जाने को कहा और फोन बंद कर दिया। वह फिर सो गई। थोड़ी देर बाद फिर फोन आया। इस बार पापा का फोन था। उसने नहीं उठाया, एक तो वह उन्हें नई परिस्थिति के विषय मे कुछ बताना नहीं चाहती थी, दूसरे झूठ भी नही बोलना चाहती थी। अब जो बात होगी घर जाकर ही होगी। क्या होगा ? सबकी क्या प्रतिक्रिया होगी ?

वह आगे क्या करेगी ? दिल्ली जाना ठीक होगा या नहीं ? उसे तो बस एक काम आता है, अभिनय, वह करने पर शिखर को अच्छा नहीं लगेगा। हालाँकि अब वह इस परिवार से नाता तोड़ आयी है, उस हिसाब से तो वह जो चाहे करे, उसे अधिकार है। पर गृह त्याग का निर्णय तो उसका है, अभी उसे कोई भी उस घर से अलग नहीं मानेगा। फिर क्या करे वह ? कोई नौकरी ? पर नौकरी हासिल करना इतना आसान कहाँ। उसके लिए कोई व्यवसायिक योग्यता चाहिए। और कुछ उसने सोचा ही कहाँ था, उसे तो बस रंगमंच पर छाना था।

तभी शिखर का फ़ोन आ गया, उन्होंने बताया कि वह होटल आ चुके हैं और वह फ़टाफ़ट तैयार हो जाए, ताकि वे लोग समुद्र तट तक घूम कर आ सकें । उसने जल्दी से जीन्स, टॉप डाला और तैयार हो गई । थोड़ी देर में वह लोग अक्सा बीच पहुंच गए। मुम्बई का अपेक्षाकृत कम भीड़भाड़ वाला समुद्र तट। जहाँ गन्दगी का पहाड़ नहीं था, और सुकून से कुछ पल गुज़ारे जा सकते थे। दूर तक फैली निःसीम जलराशि, जो समय समय पर विकराल रूप ले लेती है, इस समय एकदम शांत थी। सूर्यास्त होने वाला था। क्षितिज पर नारंगी रंग घुलने लगा था। एक चट्टान पर शिखर के साथ बैठी वह देर तक क्षितिज व लहरों की अठखेलियाँ देखती और मुग्ध होती रही। लहरें आकर उसके पाँव चूमती रहीं, उत्साह उसके चेहरे पर साफ नजर आ रहा था और शिखर उसे निर्निमेष, सम्मोहित से देखते रहे । फिर थोड़ा दूर जाकर मोबाइल में उसकी कितनी ही छवियाँ कैद कर लीं। उसका ध्यान गया तो अपनी स्वलीनता पर वह झेंप गई। उसने और तस्वीर लेने पर अपनी असहमति व्यक्त की तो उन्होंने मोबाइल रख दिया।

करीब आये तो अपनी तस्वीर देखने की इच्छा व्यक्त की। वह कुछ हिचकिचाते से नज़र आये। उसने पुनः आग्रह किया तो उन्होंने गैलरी खोलकर मोबाइल उसे पकड़ा दिया। अभी की आठ दस तस्वीरें थीं। पानी मे पैर डुबाए,उछाह के साथ पानी देखती हुई। कन्धे पर बिखरे, हवा से अठखेलियाँ करते केश, उड़कर चेहरे को चूमती हुई एक लट, बालों को उंगलियों से सँवारती हुई वह, डूबते हुए सूरज के साथ, और भी कितनी ही छवियाँ। तभी उसका ध्यान गया कि पूरी गैलरी अधिकतर उसकी ही तस्वीरों से भरी हुई है। कहीं वह अपने विभिन्न रंगमंचीय अवतार में तो कही दुल्हन की वेशभूषा में। कहीं किसी पार्टी के अवसर पर तो कहीं स्विट्जरलैंड की विभिन्न झाँकियाँ। उसने तस्वीरें देखते हुए उनकी ओर देखा तो वह दूसरी ओर देखने लगे। वह समझ गई कि इसी वजह से वह उसके हाथ मे अपना मोबाइल देते हुए झिझके थे।

" इतनी सारी तस्वीरें ?"

" इनके सिवा और है ही क्या हमारे पास ?"

उनके पीड़ा भरे स्वर ने उसे भावुक कर दिया, वह उनकी आँखों मे देखती रह गई, और उसे मालूम ही न हुआ कि कब शिखर की उँगलियों ने उसकी उँगलियों को जकड़ लिया। उसने एक बार उनकी ओर देखा फिर पलकें बन्द करके भावात्मक आवेग को पलकों में ही रोक लिया। शिखर उसे देखते रहे, फिर निगाह फेरकर देखा कि कुलकर्णी और दूसरा अंगरक्षक थोड़ी दूर पर सावधानी की मुद्रा में खड़े थे। फिर उसकी ओर देखा

" समझ नहीं आ रहा, कि कैसे शौर्य किसी और पर ध्यान भी दे पाया। " बहुत देर बाद उनका स्वर सुनाई दिया।

" प्लीज़ लीव दिस टॉपिक ।"

" सॉरी ।" उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया। उन स्नेहिल क्षणों में एक कड़वी बात का जिक्र करना ठीक नहीं था।

" चलें, अब यहाँ सिक्योरिटी बढ़ने लगी है, शाम के बाद समुद्र तट खतरनाक होने लगता है। "

" जी " वह तुरंत उठ खड़ी हुई। वे सभी होटल की ओर वापस चल दिये। अलस्सुबह ही दिल्ली की फ्लाइट थी। वापस लौटते हुए दोनो मौन थे। फिर बात भी क्या करते, ड्राइवर के अलावा दो व्यक्ति और भी थे। कोई व्यक्तिगत बात कर नही सकते थे, कुछ और बात करने का मन नहीं था। दोनो के बीच पर्याप्त दूरी थी । हाँ इतना लाभ अवश्य उठा लिया था कि शिखर ने उसका हाथ थाम रखा था।

क्रमशः