Yun hi raah chalte chalte - 30 in Hindi Travel stories by Alka Pramod books and stories PDF | यूँ ही राह चलते चलते - 30

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यूँ ही राह चलते चलते - 30

यूँ ही राह चलते चलते

-30-

सुमित ने मेट्रो ट्रेन और स्टेशन तक जाने का रास्ता बता दिया और सबको स्वतंत्र कर दिया घूमने के लिये।

अर्चिता ने यशील से पूछा तुम्हारा कहाँ जाने का इरादा है ?’’

‘‘हम तो पहले लंदन आई फिर मैडम टुसाड का म्यूजियम देखने जाएँगे’ ’यशील ने कहा।

‘‘ और तुम भी वहीं चलोगी ’’ यशील ने साधिकार कहा।

अर्चिता को उसका यह अधिकार जताना अच्छा लगा उसने इठला कर कहा ‘‘ अगर मेरा मन न हो तो?’’

‘‘ तो जहाँ तुम जाओगी वहीं मैं भी चला जाऊँगा’’ यशील ने बेचारगी से कहा, दोनो हँस पड़े। चंदन ने कहा ‘‘तो तय रहा मैं नक्शा लाता हूँ तुम टिकट ले लो, फिर देखते हैं कि किस ओर की ट्रेन में हमें बैठना है’’ यशील टिकट लेने चला गया। चंदन एक कोने में रखे नक्शे लेने के लिये मुड़ा तो वान्या यशील की ओर आ रही थी उसने चंदन से पूछा ‘‘ किधर जा रहे हो?’’

‘‘ नक्शा लेने।’’

‘‘कहाँ जाने का प्लान है तुम लोगों का?’’

‘‘ पहले लंदन आई फिर मैडम टुसाड म्यूजियम ।’’

‘‘ चलो हम भी तुम लोगों के साथ चलेंगे’’ वान्या ने कहा।

‘‘ पर .....’’चंदन समझ नहीं पा रहा था कि उसे बताये कि नहीं कि यशील उसका अपना और अर्चिता का टिकट लेने गया है, क्योंकि यह तो निश्चित था कि यदि वान्या को पता चल गया कि अर्चिता भी साथ जा रही है तो उसका मूड तो बिगड़ेगा ही अर्चिता के उत्साह के बुलबुले भी बैठ जाएँगे। पर यह कोई छिपाने वाली बात तो थी नहीं उसने धीरे से कहा ‘‘ वैसे यशील हम तीनों का टिकट लेने गया है। ’’

‘‘ तीन मतलब तीसरा कौन है’’ वान्या के छठी इन्द्रीय जागृत हो गयी।उसने उत्सुकता वश उत्तर सुनने को चंदन को देखा ।

चंदन ने कहा ‘‘ अर्चिता ।’’

वान्या अपनी आशंका को सच होते देख कर बिगड़ गई, उसने आवेश में कहा ‘‘ यह अर्चिता किस टाइप की लड़की है, जब देखो यशील के पीछे पड़ी रहती है उसको स्पेस तो देती ही नहीं है।’’

चंदन उसका मुँह देख रहा था, वह क्या कहे। तभी अर्चिता और यशील एक दूसरे का हाथ थामें टिकट ले कर किसी बात पर हँसते हुए आते दिखायी दिये।

वान्या को देखते ही यशील ने अर्चिता का हाथ छोड़ दिया जो अर्चिता को बुरा लगना ही था। दो नों आमने-सामने तनी खड़ी थीं और यशील राह ढूँढ रहा था, उन दोनों को संतुष्ट करने की। उसने समझते हुए भी अनजान बनते हुए कहा ‘‘ वान्या हम लोग लंदन आई देखने जा रहे हैं क्या तुम भी चलोगी?’’

अर्चिता को उसका यह प्रस्ताव बिल्कुल न भाया उसने कहा ‘‘ पर हम टिकट ले चुके हैं ।’’

वान्या कहने जा रही थी कि यदि अर्चिता जा रही है तो मैं नहीं जाऊँगी, यह सुन कर उसके विचार बदल गये। अर्चिता कैसे उसके जाने में बाधा लगा सकती है उसने कहा ‘‘ तो क्या हुआ चलो यशील हम एक टिकट और ले लेते हैं ’’ और वह यशील का हाथ पकड़ कर टिकट की खिड़की की ओर बढ़ गयी।

अर्चिता समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे न तो वह वान्या के साथ जाना चाहती थी न ही उसे यशील के साथ अकेले जाने देना चाहती थी । अन्ततः चारों लोग चल दिये लंदन आई देखने।

चारों उसके एक कैप्सूल में बैठ गये, वान्या और अर्चिता यशील के दोनों ओर बैठ गई यशील दो नों के मध्य बैठा दोनांे को बराबरी से महत्व देने का असफल प्रयास कर रहा था और चंदन किनारे बैठा यशील के भाग्य से ईर्ष्या अनुभव कर रहा था।

व्हील धीमे-धीमे चल दिया जिससे लोग सुगमता से लंदन के दूर-दूर के दृश्यों को देख सकें । जब व्हील सबसे ऊपर पहुँचा तो पूरे लंदन शहर का हृदयंगम दृश्य दिखाई दे रहा था। उस दृश्य को देखने के उत्साह में कुछ क्षण को दोनो अपनी प्रतिद्वन्दिता भूल कर एक साथ कह उठीं ‘‘ वंडरफुल ।’’

फिर अचानक चुप हो गयीं।लगभग आधे घंटे में व्हील ने पूरा-पूरा चक्कर लगाया और इसमें बैठे-बैठे सबने 55 से भी अधिक लंदन के दर्शनीय स्थल देखे।

कुछ ही देर में वो चारों मैडम टुसाड म्यूजियम पहुँच गये। यह स्थान लंदन का भीड़-भाड़ वाला क्षेत्र था। वहाँ टिकट ले कर वो सब प्रवेश की पंक्ति में लग गये। आगे ही पंक्ति में संजना ऋषभ, निमिषा, सचिन, रजत और अनुभा भी खड़े थे।

उन्हे देख कर संजना ने पूछा ‘‘तुम लोग कहाँ-कहाँ गये ?’’

अर्चिता ने बताया ‘‘ हम लोग लंदन आई से पूरा लंदन देख कर आ रहे हैं। ’’

निमिषा ने सचिन से कहा ‘‘ देखा हम कह रहे थे कि पहले वहीं चलो पर तुम किसी की सुनते ही नहीं । ’’

‘‘ ओफो क्या प्राब्लम है इसके बाद चले जाएँगे।’’

‘‘ पर तब तक उसके प्रवेश का समय खतम हो जाएगा ’’ वान्या ने बताया ।

सचिन ने उसे चुप रहने का इशारा किया, निमिषा ने देख लिया उसने सचिन को क्रोध से देखते हए कहा ‘‘ मैं कोई बच्ची नहीं हूँ कि बहला रहे हो मैंने देख लिया है।’’

सचिन ने तुरंत कान पकड़ कर इशारे से माफी माँग ली और झगड़ा होते-होते रह गया।

उन सबके अंदर जाने की बारी आ गयी। मैडम टुसाड म्यूजियम में अलग-अलग 14 जोन हैं। पहले जोन में विश्व के प्रसिद्ध सेलेब्रिटीज की मोम से बनी मूर्तियाँ थीं। अर्चिता ने कहा ‘‘ ओ माई गाड कितनी रियल लग रही हैं ये मोम की मूर्तियाँ मानों अभी बोल पडे़ंगी।’’

निमिषा इन मूर्तियों को देख कर लंदन आई न जा पाने का दुख भूल कर उत्साहित हो गयी और एक-एक मूर्ति के साथ फोटो खिंचवाने में लग गयी।कभी वैज्ञानिक अलबर्ट आइंन्स्टीन के साथ खड़ी होती तो कभी बराक ओबामा की खड़ी मूर्ति के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ कर फोटो खिंचवाती।

जब सचिन का धैर्य चुक गया तो उसने खीज कर कहा ‘‘ कम से कम मेरी एक फोटो तो ले लो, लोगों को पता तो चले कि मैं भी गया था।’’

यह हाल केवल निमिषा का नहीं सभी का था प्रत्येक दर्शक वहाँ की हर मूर्ति के साथ अपनी फोटो खिंचवाना चाहते थे यहाँ तक कि जिन मूर्तियों को वो पहचान नहीं पा रहे थे उनके साथ भी फोटो खिंचवाने को आतुर थे। इतनी भीड़ थी कि प्रत्येक मूर्ति के साथ फोटो खिंचवाने के लिये प्रतीक्षा करनी पड़ रही थी।

थोड़ा आगे जाने पर भारत की महान हस्तियों महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी, खिलाड़ी सचिन तेन्दुलकर, अभिनेता अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय, सलमान खान, शाहरूख खान आदि की मूर्तियाँ थीं।वान्या आइन्स्टीन के पास खड़े हो कर फोटो खिंचवा रही थी ।यशील अर्चिता की कमर में एक हाथ डाल कर दूसरा हाथ ऐश्वर्या राय की मूर्ति की कमर में डाल कर खड़ा हो गया और चंदन से बोला ‘‘ जरा विश्व की दो सुंदरियों के साथ मेरी फोटो ले लो। ’’

यह सुन कर अर्चिता के कपोल रक्तिम हो उठे उसने पोज देते समय धीरे से अपना सिर यशील के कंधे पर रख दिया। इस समय उसके हृदय की धड़कन स्पष्ट सुनी जा सकती थी।

वान्या ने सलमान को देखा तो बोली ‘‘ वाऊ मेरा फेवरेट सलमान भी है’’ उसने यशील से कहा ‘‘यशील कम आन प्लीज टेक माई फोटो।’’

यशील ने कहा ‘‘ क्या वान्या आय एम रियली डेस्परेट मेरे होते तुम सलमान के साथ फोटो खिंचवा रही हो। ’’

‘‘ और तुम मेरे होते जो दूसरों के साथ फोटो खिंचवा रहे हो उसका क्या?’’

‘‘ अरे तो आओ तुम्हारे साथ भी एक शाट हो जाए ।’’

वहाँ संकेत भी आ गया पर वान्या और यशील को देख कर पलट कर जाने लगा, उसने निर्णय ले लिया था कि अब वह वान्या से दूर ही रहेगा। पर यशील ने उसे जाता देख कर कहा ‘‘ संकेत कहाँ जा रहे हो आओ हम सब मिल कर फोटो खिंचवाते हैं ।’’

संकेत ने कहा ‘‘ तुम लोग खिंचवाओ मैं जरा स्पोर्ट जोन में देख कर आता हूँ। ’’

उसका उतरा हुआ चेहरा देख कर वान्या को अपने किये व्यवहार पर पश्चाताप हुआ पर यदि वह संकेत को महत्व देगी तो अवसर का लाभ उठा कर अर्चिता यशील के और पास आ जाएगी अतः उसने अपने क्षणिक पष्चाताप के भाव को किनारे झटक दिया रजत ने अनुभा से कहा‘‘ एक बात तो हेै इन्होने किसी भी क्षेत्र की महान हस्तियों को नहीं छोड़ा खिलाड़ी, ऐतिहासिक लोग, फिल्मी हस्तियाँ, लेखक वैज्ञानिक, विचारक, राजनैतिक नेता सभी क्षेत्रों के लोगों को जगह मिली है। ’’

‘‘ हाँ और हरेक इतनी जीवन्त मूर्ति है मानो अतीत स्वयं आ खड़ा हुआ हो ।’’

आगे बढ़ने पर एक हारर जोन था जहाँ ऐसा भयावह और रहस्यमय वातावरण बनाया गया था कि जा कर कोई भी डर जाए। जो भी जा रहा था भय से चीख रहा था। कभी चलते-चलते अचानक कोई भूत जैसा आ कर डरा देता तो कभीं सामने से तलवार समाने आ जाती। कहीं बिल्कुल अंधकार में कोई पकड़ लेता। इसी अंधकार और वातावरण में जब अर्चिता डर से चीखी तो उसके डर का लाभ उठा कर यशील ने अर्चिता को अपने बाहुपाश में जकड़ लिया। अर्चिता भी कहाँ छूटना चाह रही थी। इस सुखद अनुभूति को जितनी देर अनुभव कर सकते थे वो करते रहे पर चंदन ने पीछे से आकर हड्डी में कवाब बन कर उनके तिलिस्म को तोड़ दिया।

वान्या भी तो वहीं थी उसने अर्चिता को सुनाते हुए कहा ‘‘ क्या सब बिना बात के सब बच्चों की तरह डर रहे हैं जब कि सबको पता है कि यह वास्तविक नहीं है।’’

अर्चिता अपनी सुखद अनुभूति और विजय में इतना खोयी थी कि उसने वान्या के व्यंग्य को अन्यथा नहीं लिया।

आगे-जाने पर एक राइड थी। इस बार वान्या अवसर चूकना नहीं चाहती थी वह आगे बढ़ कर राइड पर बैठ गयी और यशील को बलाया ‘‘यशील कम आन इधर आओ।’’

यशील ने अर्चिता को देखा कुछ क्षण को ठिठका फिर वान्या के पास जा कर बैठ गया। यशील की यही हरकतें अर्चिता का विश्वास डगमगा देती थी उस पर वान्या का आत्मविश्वास उसे और भी डरा देता । वह समझ न पाती कि यशील के मन में क्या है। यदि वह उसे पसंद करता है तो वान्या के प्रस्ताव पर उसे मना क्यों नहीं कर देता, क्या आजीवन वह जो भी उसके समीप आएगा उसके पास खिंचा चला जाएगा, उसका यशील के साथ जीवन व्यतीत करने का निर्णय डाँवा-डोल हाने लगता।

उधर वान्या ने जीवन में अभी तक जो सोचा वह प्राप्त किया था उसके इसी आत्मविश्वास ने उसे निश्चिंत कर रखा था। उसने सोच लिया था कि येन-केन प्रकारेण वह यशील को पा कर ही रहेगी।

राइड चल पड़ी राइड के दोनों ओर संस्कृति की प्रतीक झांकियाँ थीं अन्त में मैडम टुसाड की मूर्ति भी थी जिन्होंने इस संग्रहालय की स्थापना की थी।

क्रमशः----

अलका प्रमोद

pandeyalka@rediffmail.com