अध्याय – 5
इधर चंदन दूसरे दिन सुबह फिर से रिया के फोन का इंतजार करता हरा परंतु दिन भर फोन नहीं आया। वह बिना नाश्ता किए ही ऑफिस चला गया। ऐसे ही उसके दो दिन बीत गए।
क्या भाई चंदन। दो तीन दिन से देख रहा हूँ, न तो तू कुछ बात करता है खोया रहता है, आखिर बात क्या? रमेश पूछा।
कुछ नहीं यार बस मन खराब है।
क्यों ?
आज तीन दिन हो गए रिया का फोन नहीं आया है यार। मैं परेशान हो गया हूँ वो इतनी लापरवाह कैसे हो सकती है। उसे मेरी कोई फिक्र नहीं है।
हो सकता है किसी काम से व्यस्त हो। रमेश बोला।
यार मुझसे बढ़कर उसके लिए और क्या काम हो सकता है।
उसके दादा-दादी! हो सकता है उसके दादा की तबियत ज्यादा खराब हो गई हो?
हाँ तुम सही बोल रहे हो। ऐसा हो सकता है, पर यार पाँच मिनट समय निकालकर तो फोन तो किया ही जा सकता है।
क्या पता। मुझे लगता है तुमको एक दो दिन और देख लेना चाहिए।
हाँ, शायद तुम ठीक बोल रहे हो। मैंने सोचा नहीं था कि ऐसी परिस्थिति किसी दिन आ गई तो उसको कान्टेक्ट कैसे करूँगा यार। मैंने कभी उसके पिता का नाम, दादा का नाम, एड्रेस, यहाँ तक की उसका पता भी नहीं पूछा। मुझसे बड़ा बेवकूफ भला और कौन होगा। किसी से प्यार करता हूँ और उसके बारे में कुछ भी नहीं जानता।
हे, रमेश तुम सुमन से पूछो ना, वो उसके बारे में पक्का कुछ जानती होगी।
देख यार सुमन की मानसिक स्थिति अभी ठीक नहीं चल रही है। वो अपनी बीमारी से परेशान है इसलिए मैं उसे तंग नहीं करना चाहता।
तो और कोई तरीका बता जिससे मैं उसके बारे में पता कर सकूँ।
एक तरीका है, उसके हॉस्टल से उसका एड्रैस मिल जाएगा। मै सुमन की किसी हॉस्टल की सहेली को बोलता हूँ उसका एड्रैस निकालने के लिए। तब तक तू थोड़ा धैर्य रख और ये भी तो हो सकता है कि कल सुबह उसका फोन आ जाए।
हाँ तू ठीक बोल रहा हे भाई। पर प्लीज वो एड्रैस निकलवाने की कोशिश करना।
हाँ कल ट्राई करवाता हूँ। रमेश बोला।
एड्रैस निकलवाने में दो दिन चले गए परंतु रिया का फोन नहीं आया।
तीसरे दिन बहुत ही निराशा की स्थिति में जब चंदन ऑफिस पहुँचा तो देखा रमेश उसे दूर से ही पुकार रहा था। चंदन उसके नजदीक गया तो उसने कागज का एक टुकड़ा बढ़ा दिया। चंदन ने नजदीक से देखा तो उस पर रिया का एड्रैस लिखा था। वह एकदम से खुश हो गया। उसने रमेश को गले से लगा लिया।
थैंक्यू रमेश।
किसलिए ?
तुमने मेरी बड़ी मदद की यार।
अच्छा, मुझे जब मदद की जरूरत होगी तो तुम भी कर देना, हिसाब बराबर।
पक्का भाई, ये भी कोई बोलने की बात है, जान हाजिर है दोस्त।
ठीक है ठीक है, एक काम कर तू दो-चार दिन की छुट्टी ले ले और उसके घर हो आ।
ठीक है मैं अभी अप्लाई करके आता हूँ बॉस के पास।
चंदन ने छुट्टी के लिए आवेदन दे दिया और रायगढ़ की टिकिट बुक करा ली। वो रमेश को धन्यवाद देते थक नहीं रहा था। उसको थोड़ी सी आशा जाग गई थी, अब शायद वो रिया से मिल पाए। उसी प्रतीक्षा में कि उसे कल सुबह जाना है पूरी रात उसने आँखों में ही काट दी।
दूसरे दिन 10.30 की ट्रेन से वो रायगढ़ निकल गया। शाम को जब वो रायगढ़ पहुँचा तो सोचा रात किसी नजदीक के होटल में रूक जाता हूँ और कल सुबह होते ही उसके घर जाऊँगा। और एड्रैस था -
रिया सिंग,
पिता - विक्रम सिंग,
क्वा. नम्बर बी./102, आनंद विहार, रायगढ़।
वो सुबह उठा और ऑटो लेकर सीधे उसके घर गया। घर के बाहर पहुँचा तो देखा एक पुराना मकान बहुत दिनों से सफाई नहीं हुई थी और मेन गेट पर ताला लटका था। बिजली का बिल ताले में फँसा हुआ। बिल उसने निकाला और नाम पढ़ा उस पर विक्रम सिंग लिखा हुआ था। मतलब वो सही घर पर पहुँचा था। किंतु ताला देखकर वो निराश हो गया। उसने सोचा अगल-बगल में पूछकर देखता हूँ, शायद उसके बारे में कुछ पता चले।
उसने बगल वाले घर का दरवाजा खटखटाया।
कौन ?
जी मेरा नाम चंदन है मुझे कुछ पूछना था।
एक अधेड़ सा व्यक्ति बाहर आया।
हाँ जी बोलिए।
जी मुझे पूछना है कि ये बगल वाले लोग कब से नहीं है और कहाँ गए हैं। आपको जानकारी है क्या ?
आप कौन हो ?
मैं उनका परिचित हूँ, रायपुर से आया हूँ। उन्होंने ही मुझे बुलाया था अब वो लोग खुद ही नहीं है, इसलिए वापस जाने से पहले जानना चाह रहा था। चंदन बोला।
अच्छा, मुझे इतना पता है कि कुछ आठ-दस दिन पहले सिंग साहब की तबियत खराब हो गई थी। उनकी पोती आई थी फिर हमने एक दिन सुबह देखा कि उनके घर में ताला बंद था। उस व्यक्ति ने बताया।
अच्छा क्या आपको मालूम है कि सिंग साहब का पूरा नाम क्या है ?
विक्रम सिंग।
नहीं, नहीं विक्रम सिंग के पिता का क्या नाम है ?
अच्छा वो कौन से हॉस्पिटल में एडमिट थे ये तो पता होगा आपको ?
नहीं ? आप एक बार आसपास भी पूछ लीजिए।
उसने आसपास पूरी एन्क्वारी कर डाली पर उसे उसके दादाजी का ना तो नाम पता चला और ना ही वो हॉस्पिटल जिसमें वो एडमिट थे। उनके समाज के ढेरों लोग उन दिनों में हॉस्पिटल में एडमिट हुए थे।
दो दिन में चंदन एकदम निराश हो गया।
तीसरे दिन वो ट्रेन लिया और रायपुर आ गया।
अगले दिन जब वह ऑफिस पहुँचा तो रमेश ने पूछा, क्या हुआ भाई ?
कुछ भी नहीं पता चला यार। मैं क्या करूं, समझ में नहीं आ रहा है। पता नहीं कहाँ चली गई। धरती खा गई या आसमान निगल गया। कैसे पता चलेगा, तुम्हीं बताओं रमेश।
जैसे-जैसे दिन बीतते जा रहे थे उसका विश्वास डाँवाडोल हो रह था पर अब भी यकीन था कि वो कहीं ना कहीं तो होगी और सोचता कि वो जहाँ भी हो सुरक्षित हो। भगवान उसे खुश रखे, आबाद रखे, पर उसकी चिंता में धीरे-धीरे वो क्षीण होते जा रहा था। एक दिन अचानक उसके मन में विचार आया कि क्यों न मैं अपना ट्रांसफर रायगढ़ करा लूँ। अगले दिन उसने रमेश से बात की।
रमेश मेरी एक मदद करोगे ? चंदन बोला।
हाँ बताओ चंदन ?
मेरा ट्रांसफर करो दो रायगढ़।
क्यों ?
वहाँ रिया के घर के आसपास ही रहूँगा। क्या पता किसी दिन आए तो मुलकात हो जाए।
तू इतना चाहता है उसको कि उससे मुलाकात हो जाए करके ही ट्रांसफर करा रहा है।
हाँ मैं बहुत चाहता हूँ उसको। जब तक वो नहीं मिलेगी या उसकी कोई खबर नहीं मिलेगी तब तक मैं वापस नहीं आऊँगा। अच्छा ठीक हे मैं बॉस से बात करके देखता हूँ वहाँ अगर वैकेंसी हुई तो ट्रांसफर हो जाएगा।
थैंक्स यार। तू मेरा सच्चा दोस्त है।
रमेश ने बॉस से बात की तो पता चला कि वहाँ पर वैकेंसी है और डायरेक्टर ऑफिस से परमिशन मिल जाए तो उसका ट्रांसफर हो सकता है।
चंदन ने अप्लाई कर दिया। कुछ एकात सप्ताह में वहाँ से परमिशन आ गया। उसने जाने से पहले रमेश को कहा कि वो सुमन से मिलना चाहता है। रमेश उसे अगले दिन अपने घर लेकर गया।
हैलो ब्यूटीफूल गर्ल। चंदन उसका मूड ठीक करने के लिए कहा। वो बेड पर लेटी थी। चंदन को देखते ही बैठ गई। ब्यूटीफूल और मैं आईये बैठिए चंदन जी। सुमन बोली।
क्यों तुम सुंदर नहीं हो सुमन ?
क्या रिया से ज्यादा सुंदर हूँ ?
ज्यादा नहीं पर उससे कम सुंदर भी नहीं हो।
हाँ आप तो उसी का पक्ष लोगे ना। वो आपकी होने वाली पत्नि जो है।
नहीं, नहीं पर तुम उससे ज्यादा साहसी हो सुमन ?
अच्छा, अच्छा ये बताईये कि रिया का क्या न्यूज है उससे बात हुई कि नहीं। भैया बता रहे थे बहुत दिनों से रिया का कुछ पता नहीं चल रहा है।
हाँ सुमन। पता नहीं कहाँ चली गई है। उसका घर भी बंद है। आसपास के लोगों को भी पता नहीं है कि वो कहाँ गए है। इसीलिए मैंने अपना ट्रांसफर वहाँ करा लिया है कभी ना कभी तो अपने घर वापस आऐंगे ना?
तब हो जाएगी मुलाकात।
बहुत चाहते हो रिया को ?
बहुत।
और वापस नहीं आई तो ?
तो तुम तो हो ना तुमसे शादी कर लूँगा, हा हा हा।
मुझसे, हिम्मत है आपमें ये जानते हुए भी कि मुझे ब्रेस्ट कैंसर है।
तो क्या हुआ मन तो तुम्हारा सुंदर है ना ?
और तन ?
तन कितने दिन सुंदर रहेगा भाई, वो तो धीरे-धीरे करके नष्ट होते ही जाएगा, मैं भी क्या हमेशा जवान रहने वाला हूँ।
आप मेरे अच्छे दोस्त हो चंदन जी। मुझे छोड़कर मत जाओं। यूं आपकी तरह मुझे सहारा कौन देगा।
चंदन की आँख मे आँसू आ गए।
आरे आप तो रो रहे हो। ये आँसू मेरे लिए हैं। मैं तो बड़ी भाग्यशाली हूँ कि मेरे परिवार के अलावा और कोई है जो मेरे लिए रोता है।
तुम्हारा हाथ दिखाओं सुमन। छू सकता हूँ ना तुमको ?
हाँ क्यूँ नहीं, ये लीजिए।
चंदन जैसे ही सुमन का हाथ पकड़ा।
समुन ने आँखे बंद कर ली। उसने एकदम शांति का अनुभव किया।
जब भी तुमको आवश्यकता हो सुमन मुझे बुला लेना। मैं सिर्फ तुमसे मिलने आऊँगा।
मुझे यकीन है चंदन जी, मेरे कहने पर आप कभी मना नहीं करेंगे।
कितने कीमो हो गए सुमन।
टोटल पाँच साईकल कराना है चंदन जी, अभी सिर्फ दो ही हुए है।
क्या कुछ इम्प्रूवमेंट है।
बोल तो रहे हैं डॉक्टर्स। थर्ड के बाद ही पता चलेगा, कुछ पॉज़िटिव है कि नहीं।
सब ठीक हो जाएगा। तुम सिर्फ अपना धैर्य बनाए रखना और जब मन करे मेरे ऑफिस में फोन कर लेना।
ठीक है चंदन जी। और थैंक्स।
थैंक्स किसलिए ।
आपका आना, आपका स्पर्श और आपका हौसला मेरे लिए ताकतवर अहसास है। मैं इसे याद रखूँगी।
माई प्लेजर ब्यूटीफुल गर्ल। फ्रेन्ड्स ? ऐसा कहकर चंदन ने अपना हाथ बढ़ाया।
ओके। कहकर सुमन ने भी अपना हाथ बढ़ाया।
तो तुम मेरी गर्लफ्रैंड हो गई सोच लो। चंदन हँसने लगा।
तो क्या गर्लफ्रैंड का फायदा उठाओगे ?
उठा भी सकता हूँ क्या पता ?
अच्छा, इतनी हिम्मत, भागो यहाँ से।
अच्छा बाबा जात हूँ, तुम अपना ख्याल रखना।
ठीक है बॉय।
सुमन ने अपना हाथ हिलाया और बॉय किया।
चंदन के आने से सुमन में बीमारी से लड़ने की हिम्मत आ जाती थी और ये बात चंदन अच्छे से जानता था।
इसीलिए वो जाने से पहले सुमन से मिलने आया था।
अगले दिन सारी फार्मालिटिस पूरी करके रमेश और चंदन रेल्वे स्टेशन पहुँच गए।
चंदन, मैंने रायगढ़ वाले सेल्स मैनेजर से बात कर ली है। तुम उसी के रूम में शिफ्ट हो जाना और अलग से मकान किराए पर मत लेना।
मैं तो रिया के घर के आसपास ही घर लूँगा सोच रहा था। चंदन बोला।
अरे यार, रायपगढ़ है कितनी बड़ी जगह। रोज एक राउंड मार लेना उधर। कम से कम घर खोजने के झंझट से तो बच जाएगा।
हाँ ये तो तू ठीक बोल रहा है भाई। अच्छा ठीक है तूने यहाँ मेरे परिवार की तरह मदद की है रमेश। मैं हमेशा याद रखूँगा।
तरह मतलब क्या ? तेरा परिवार ही हूँ भाई। तू अपना ख्याल रखना और जैसे ही रिया मिले तुरंत वापस आ जाना।
ठीक है भाई। थैंक्स फॉर एवरीथिंग। और हाँ सुमन का ख्याल रखना।
ऐसा कहकर वह ट्रेन में बैठ गया और ट्रेन धीरे-धीरे करके अपने गंतव्य की ओर निकल पड़ी। रमेश अपने घर की ओर लौट गया।