do dhruvon par mitrata ke rang in Hindi Short Stories by कल्पना मनोरमा books and stories PDF | दो ध्रुवों पर मित्रता के रंग 

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दो ध्रुवों पर मित्रता के रंग 



दो ध्रुवों पर मित्रता के रंग

“हेलो सुजाता, क्या मैं अभी बात कर सकती हूँ ?”
“हाँ हाँ क्यों नहीं | दिन में दो से चार बार फोन करोगी और बार-बार क्या यही पूछती रहोगी...|”
“अरे यार….तुम कितनी अच्छी हो सुजाता |”
“अच्छा मन ही दूसरे की अच्छाई को समझ सकता है रितु!खैर..तू बता क्या बात है ?”
“मैं एक चित्र बना रही हूँ, कुछ बता न कि तू होती तो इसमें क्या करती ?”
रितु ने सुजाता से पूछा ; जो कि हर दिन और हर ड्राफ्ट की बात बन गयी थी | इसलिए बिना किसी औपचारिकता के सुजाता अपनी राय उसके आगे रखने लगी |
“मैं, तो इसको…….इस प्रकार करना उचित समझूँगी |”
“सही कहा तुने | इस प्रकार से तो अर्थ गहरा हो जाएगा |”
"हाँ जी इसीलिए कहा |"अपने मित्र के काम आकर हमेशा सुजाता फूली न समाती |
“हेलो सुजाता क्या मैं अभी बात कर सकती हूँ !”दो -तीन घंटे बाद रितु ने फिर फोन लगा दिया |
“हाँ जी बोल रितु |”
“सुजाता, मेरे मन में अगले चित्र ले लिए एक थीम है ; सुनेगी ?”
“बोलो न !”
सुजाता ने कहा तो रितु अपनी थीम के बारे में उससे बहुत देर तक विस्तार से चर्चा करती रही |
“तेरा ख्याल ठीक है लेकिन मैं और भी गहराई देख रही हूँ इस थीम वाले चित्र में |” सुजाता ने कहा |
“न न न अभी मत बताना मुझे; पहले मुझे अपना दिमाग लगाने दे |” सुजाता की बात पर रितु बोली तो उसने भी कहा "ठीक है, जब चाहे पूछ लेना |"
“बहुत सोच लिया लेकिन मुझे नहीं समझ आया अब तू ही अपनी बात बता वैसे मैं उसको अपनाऊँगी नहीं लेकिन जानना चाहती हूँ | और मैं ये भी चाहती हूँ कि तू अपना वाला चित्र इसी थीम पर किन्तु "डिफरेंट वे" में बनाकर मुझे दिखा |”
रितु ने फोन पर कहा |
“अरेरेरे एक साँस में क्या क्या बोल गई... मैं सुन भी नहीं पाई |”
“मैंने ये कहा तू अपनी डिफरेंट बात बता |”
रितु के कहने पर सुजाता ने अपनी बात बताई | आडिया सुनकर रितु दंग भी रह गयी लेकिन पैतरा बदलते हुए थोड़ा थमकर रूखे और उखड़े स्वर में बोली |
“अब ऐसा है इसको थोड़े दिनों के लिए अपने पास रख | मैं अपना चित्र पहले प्रसारित करुँगी क्योंकि इस थीम पर चित्र बनाने का आडिया तो मेरा ही था न !” कहते हुए उसने फट से फोन काट दिया |
सुजाता हतप्रद रह गयी |
"क्या हुआ इसे? इसके कहने पर मैंने रंग की कूँची उठाने का मन बनाया | कितनी बार मेरा आडिया लेकर मुझी से कहती थी “ये मैंने खुद सोचा है तेरी बात तो उसी दिन भूल गयी थी|”तब भी मैंने बुरा नहीं माना | लेकिन अब तो हद ही हो गयी |” बुदबुदाते हुए उसने रितु को फोन लगा दिया |
“ रितु,तेरी तबियत तो ठीक है न! फोन क्यों काट दिया ?"
“तुझे चित्रकारी सीखनी थी इसलिए फोन कर लेती थी | वह काम तो पूरा हुआ...वैसे जब तेरा मन हुआ करे तू फोन कर सकती है|”
“हेंSS तूSS मुझे चित्रकारी सिखा रही थी !”सुजाता को लगा कि उसे चक्कर आ जाएगा |
“अरे सुन न! जो कहना है जल्दी कह सुजाता ! तेरी तरह मैं फ्री नहीं रहती |”
रितु के इस नए रंग ने सुजाता के मन को बेरंग कर दिया।

-कल्पना मनोरमा