Jannam - 12 in Hindi Moral Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | जननम - 12

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जननम - 12

जननम

अध्याय 12

श्री सभानायकम पहले से एक जानकार थे। किसी काम से उन्हें देखने आए। बातों ही बातों में संपत ने उनसे पूछा "गांव में सब ठीक हैं ?"

"अरे ऐसा क्यों पूछ रहे हो ! एक बड़ी दुर्घटना में हमारा पूरा परिवार ही चला गया !"

"क्या... क्या बोले !"

"हमारी बड़ी बहन, उसका पति उसकी बेटी सभी बस में गए थे वे सब दुर्घटनाग्रस्त होकर मर गए।"

"अरे ईश्वरा ! कब हुआ ?"

"हुए चार महीना हो गया। उसमें खास बात यह है हमारे पास समाचार आने में भी चार दिन लग गए। मेरे भाई के गांव से निकलकर दुर्घटना स्थल पर जाने के पहले ही उन्होंने बॉडी को दहन कर दिया। हम तो आखिरी बार उसका चेहरा भी ना देख पाए।"

"अरे बाप रे ! वे कहां से वहां गए आपकी बहन ?"

"तिरची से लौटते समय बस से रवाना हुए। रास्ते में बहुत तेज बारिश और तूफान था । वहां के नदी में बाढ़ आई हुई थी। उसमें बस डूब गई और सभी लोग खत्म हो गए।"

"सभी लोग ?"

"हां... नहीं एक लड़की उनमें से किसी तरह भगवान की कृपा से बच गई ।"

रघुपति एकदम से सीधे बैठ गए।

"कैसे ?"

"यही तो आश्चर्य है । एक लड़की जिंदा है ऐसा पेपर में देखने के बाद शायद मेरी बहन की लड़की होगी ऐसा सोच मेरे भैया भाग कर गए.... पर वह कोई और थी ?"

"कितनी उम्र की होगी ?"

"20 से 25 के बीच के उम्र की होगी ऐसा भैया बोल रहे थे।"

रघुपति के बड़े ध्यान से सुनते हुए संपत ने उस पर ध्यान दिया।

"कौन सी गांव की लड़की है वह ? उसको कोई गहरी चोट लगी है ?"

"कुछ भी पता नहीं चला । इसमें एक दया की बात तो यह है उसके सिर पर लगी है इसलिए वह लड़की पुरानी सब बातें भूल गई वह कहां की है कहां रहती थी कुछ भी पता नहीं। किसी को भी पता नहीं । तमिलनाडु के अखबारों में डाला कोई भी अभी तक आया नहीं ।'

रघुपति को इसे सुनकर सदमा लगा। "वह लड़की शायद उमा होगी क्या ? दुर्घटना घटे चार महीने हो गए। अब तक वहां होगी क्या वह लड़की ? उसे तुरंत एक योजना सूझी तमिलनाडु के एक कोने में कैसे जाकर फंसी होगी ?"

"अच्छी पढ़ी-लिखी लड़की है ऐसी दिख रही है। सिनेमा स्टार जैसे सुंदर लड़की है।"

वह सकपकाया-उमा ही होगी ?

क्यों नहीं हो सकती ? तिरुपति जाना है सोच कर अचानक कहीं से रवाना हुई हो सकती है ? उसने जल्दी से सभानायकम को देख कर बोला "वह पता, वह किस अस्पताल में है उस डॉक्टर का नाम वह सब मुझे आप दे दोगे ?"

"यह सब मुझे नहीं पता ! यह मेरे भैया को लिखकर पूछना पड़ेगा। आपको क्यों चाहिए ?"

"आपको मैं फिर विस्तार से बताऊंगा शुभानायकम।" संपत बोला "हां आप तुरंत अपने भाई को लिखकर पूछिएगा ?"

"ठीक है जी।" अपने पास विवरण न होने के कारण उनकी आवाज में एक अतृप्ति थी।

उनके जाने के बाद रघुपति मुस्कुराकर संपत की ओर देखा।

"यह सब प्रयत्न एक पागलपन लग रहा है संपत। मैं थोड़ा सैंन्टी हो गया।"

"अपने शांति के लिए पूछताछ करके देख लो ।"

संपत की आवाज में इतना विश्वास नहीं दिखाई दिया।

"वह अब मुझे नहीं मिलेगी। मर गई होगी एकदम से मन को बांध करके रखना संभव नहीं है संपत। यह एक मजाक जैसे है।"

संपत बिना कुछ बोले करुणा भाव से सुनता रहा।

"इन सब का कारण मेरे मन की इच्छा ही है मैं सोचता हूं। इच्छा की वजह से ही विश्वास बढ़ता है। यह दोनों मिलकर मुझे पागल कर देंगें।

"यह सिर्फ स्वार्थ की वजह से नहीं हुआ मैं जिंदगी में हार गया ऐसा एक फीलिंग मेरे मन में उमड़ता रहता है...!

"कुछ बातें मनुष्य के बस में नहीं होतीं हैं । मैं और रघु कुछ नहीं कर सकते ?"

चार महीने पहले होता तो इसके लिए मैं सेशन रखा होता। उस समय किसी भी घटना पर विश्वास करने लायक मेरा मन था।

"क्या बात है ?" कमला ने पूछा।

बात का विवरण पता चलते ही......

"यह क्या 'मयूर पंख' की कहानी जैसे है ?" कहकर वह हंसी।

"शट अप कमला ! तुम्हें कब, क्या बोलना है मालूम नहीं" संपत बोला।

"मजाक में बोली !"

"यह क्या मजाक ?"

"ओके.... ओके...!"

वह जल्दी-जल्दी जा रही थी उसे देख रघु को अजीब सा लगा। इसमें कितना बचपना है ! कल यही कैसे बिना स्वार्थ के अपनत्व से बात कर रही थी!

"उसके बोलने को तुम गलत मत लेना !"

वह जल्दी से हंसा।

"ओ... नो अभी मैं इतनी खराब स्थिति में नहीं हूं संपत !"

एक हफ्ते बाद ही वह पता मिला। डॉ आनंद रामाकृष्णन एक इतना लंबा नाम देखकर उन्हें एक बड़ी उम्र का आदमी जैसे लगा।

"एक बड़ी उम्र का आदमी छोटे से गांव में अस्पताल चला रहा है सोचने में कैसा अजीब सा है देखो। वहां बीमार रहे तो भी उसे इतने दिनों में उसे सैप्टिक, निमोनिया कुछ भी होकर ही मर गई हो तो मुझे आश्चर्य नहीं होता।"

"रघु ! तुम्हारे अमेरिका के चश्मे को थोड़ा उतार के रखना पड़ेगा ।"

"मन को कैसे उतार के रखूं बोलो अभी मुझे यही फिकर है....!"

"समय आने पर वह अपने आप उतर जाएगा।"

"शट अप कमला !" संपत बोला। दोबारा हंसी आई रघु को। अचानक कमला के ऐसे विपरीत बात करने के लिए या तो सामर्थ्य चाहिए या बेवकूफी ऐसा उसे लगा।

उस दिन रात को बहुत देर सोचकर दो-तीन बार लिखकर फाड़ कर किसी तरह एक पत्र लिखकर खत्म किया। लिखकर खत्म करते हुए भावना में बहने से उसका गला भर आया। आंखों में आंसू टपकने लगे। यह कैसे पागलपन की कोशिश, वह निश्चित रूप से वहां नहीं होगी ऐसी निराशा ने उसके मन को दबाया। उस पत्र को लेटर बॉक्स में डालकर घंटों वह उस 15वीं मंजिल के बालकनी में बैठकर आकाश को देखता हुआ कभी नीचे जो स्त्री-पुरुष, वाहन जा रहे थे उन्हें देखता रहा पर उसके मन में कुछ समझ में नहीं आ रहा था फिर भी बैठा रहा।

"वहां उमा नहीं है। मालूम होने पर क्या कर लोगे ? कमला के एक बेवकूफी भरे प्रश्न का उसने धैर्य पूर्वक जवाब दिया।

"वह मर गई ऐसा फैसला लेकर मैं अमेरिका के लिए रवाना हो जाऊंगा !"

"वह उमा होकर आपको ना पहचाने तो ?"

"नहीं पहचाने तो !"

उसने अपने आप को संभाल लिया। उसे देखते ही उसको निश्चित रूप से पुरानी यादें वापस आ जाएंगी।

नहीं आए तो ?

आएगी जरूर आएगी। कैसे नहीं आएगी। अपने शादी की फोटो को दिखाकर उसको न्याय के हिसाब से रहने की जगह कौन सी है महसूस करवाना मुश्किल का काम नहीं होगा।

यह सब समस्याएं यदि वह लड़की उमा होगी तब पैदा होगी। उमा ही नहीं हो तो फिर कोई समस्या ही नहीं।

वह तुरंत चकित रह गया। कौन सी समस्या को देखना नहीं हैं और किन्हें देखना हैं ? इस समस्या को संभालना ज्यादा मुश्किल है ?

दिमाग खराब हो गया उसे ऐसा लगा। जब भी इस कमला से बात करना शुरू करो जो थोड़ी बहुत सोच है वह भी चली जाएगी उसे लगा ।

भगवान के ऊपर भार डाल दो बड़े सरलता से संपत ने बोल दिया । कितनी भी शांति से रहने की सोचें पर मन असमंजस में पड़ जाता है ।

उस दिन शाम को एक पत्र आया। उसे पढ़कर वह घबराकर उसके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया । निश्चित रूप ये भगवान की दया है उसे ऐसा लगा। डॉक्टर आनंद रामाकृष्णन का पत्र संक्षिप्त में था।

'आपका पत्र मिला। चार महीने पहले एक बस की दुर्घटना में एक लड़की आश्चर्यजनक रूप से बच गई। अभी वह पूर्ण रूप से स्वस्थ है। परंतु उसे पुरानी यादें नहीं है। इस कारण उसकी खबर किसे दें पता नहीं चला। उसको इस स्थिति में कहीं भी भेजना उचित नहीं है सोच यहां के स्कूल में ही उसे नौकरी दिला दिया। यहां रहने के लिए सुविधाएं भी उसे दे दी। आपने जो विवरण दिया है उसके हिसाब से यह वही लड़की है लगता है।

आप आकर देखिएगा । आते समय, यह आपकी पत्नी हैं ऐसे प्रूफ के साथ एक फोटो भी लेकर आने का अनुरोध करता हूं।

तुरंत उसका मन पंख लगाकर उड़ने लगा। विश्वास का गीत बज रहा है ऐसे उसके कानों में एक भ्रम पैदा हुआ।

संपत एक प्रश्न पूछता हुआ उसके सामने खड़ा हुआ तो उसने उसका आलिंगन किया।

"संपत, उमा जिंदा है ! वह उमा ही है। मुझे उमा मिल गई !" भावावेश में बोला।

…… ……… ……

"डॉक्टर साहब ! डॉक्टर साहब!"

आनंद ने मुड़ कर देखा।

एक आदमी उसे देख कर दौड़ा आया। शोक्कलिंगम के पन्नैय घर का मुनीम है यह वह समझ गया।

"डॉक्टर साहब ! मालिक की तबीयत ठीक नहीं है।"

"क्या हो गया ?"

"छाती की धड़कन तेज हो रही थी फिर बेहोश होकर गिर गए ।"

वह एकदम से सचेत हुआ।

"अभी आता हूं।"

वह जल्दी-जल्दी चला ।पड़ोस के गली में शोक्कलिंगम के घर में घुसने के पहले उसने सारी बातें विस्तार से मालूम कर लीं । जीभ, शरीर और मन को बस में ना करने वाले शोक्कलिंगम को एक दिन अचानक कुछ होगा यह संभावना उसे पहले से थी।

शोक्कलिंगम की पत्नी और लड़कियां रोती हुई खड़ी थी । शोक्कलिंगम अपनी वीरता को खोकर आंखों को बंद कर बिस्तर पर पड़ा था। उसकी नाड़ी की धड़कन बहुत धीमी चल रही थी।

"तुरंत अस्पताल लेकर जाना पड़ेगा। गाड़ी है क्या ?"

"है साहब ड्राइवर भी है ।" शोक्कलिंगम के लड़के ने बोला।

उसने और ड्राइवर ने मिलकर उसे गाड़ी में डाला।

"खाने के विषय में बहुत ही बंदिश से रहना पड़ेगा मैंने बहुत पहले बोला, ऐसे था क्या ?"

लड़के ने सिर को नीचे कर लिया और बोला "अप्पा को किसी भी बात में कंट्रोल नहीं है डॉक्टर।"

उसकी आवाज में क्रोध और नफरत दिखाई दिया। वह दूसरे तरह का आदमी है सोच कर उसे तृप्ति हुई।

यह एक बिखरा हुआ परिवार है उसे विरक्ति से बोलते देख बहुत दया आ रही थी। शोक्कलिंगम मर जाए तो उनके लिए आंसू बहाने वाले उनकी पत्नी और लड़कियां ही होगी उसने सोचा।

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क्रमश...