Do kahaaniya in Hindi Short Stories by Anurag mandlik_मृत्युंजय books and stories PDF | दो कहानियां...

Featured Books
Categories
Share

दो कहानियां...

कहानी




कहानी - 1 मदद

भीड़भरी बस में एक बूढ़ी औरत चढ़ी।

"अरे आप अंदर तो आइए मैं जगह कर दूंगा.."

कण्डक्टर ने लगभग दबाते हुए उनको अंदर किया और पीछे खड़े लोगो पर दबाव डालते हुए फाटक बंद कर लिया। बस चल पड़ी।
पास खड़े लोगो ने खीझ भरी नजरों से उसको देखा,,
कुछ लोग धीरे धीरे कुछ नाराजगी भरे शब्द भी कहने लगे,

"क्या जरूरत थी यार इसको बस में चढ़ाने की?"
"पहले ही क्या कम भीड़ है जो इसको और चढ़ा लिया" कई लोग मुँह छिपाकर गन्दी गालियां भी दे रहे थे..
चेहरे पर असंतोष साफ झलक रहा रहा था। वो भी एकबार उनकी और देखकर बड़बड़ाते हुए अपने काम मे लग गया,
बुढ़िया से किया वादा वो अब भूल चुका था, किसको उठाता सीट पर से...सबने पैसे दिए थे।
वो भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़ गया।
बुढ़िया आशाभरी नजरो से अब सीट पर बैठे जवान लोगों को देख रही थी,,मगर किसी ने भी उस बुढ़िया की तरफ देखा तक नहीं।
कहीँ से आवाज आई...
"आप नीचे बैठ जाइए माताराम, कोई शरम की बात नही है,"वैसे भी आजकल लोगो मे संस्कार रहे कहाँ है कि कोई बुढी अम्मा को बैठने के लिए जगह देदे"
लगभग 30 साल की महिला ने पास बैठे लोगो की और देखते हुए कहा... स्वयं महिला अब भी सीट पर ही थी।....
बस अभी थोड़ी सी आगे बढ़ी ही थी कि एक खूबसूरत दिखने वाली कामकाजी युवती का बस में पदार्पण हुआ....
बस का माहौल अचानक से बदल गया, गालियां बिल्कुल रुक गयी, हर व्यक्ति सभ्य और सौजन्यता की मूर्ति बन बैठा,पांच ही मिनटों में छः लोग अपनी सीट देने के लिए उठ खड़े हुए, उन्ही में से एक सीट पर युवती बैठ गई और खुद को मोबाइल में व्यस्त कर लिया।
बुढ़िया नीचे बैठी मन मे कई विचार लिए सीट से खड़े हुए बाकी पांच लोगों की तरफ़ देख रही थी और..वे पांच लोग बुढ़िया से आँख मिलाने में शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे.....

©अनुराग माण्डलीक "मृत्युजंय"

कहानी - 2 ( आवारा लड़के)

थका हुआ गौरव जब शाम को अपने रूम में आया,आज उसकी आँखें फिर से लाल थी। सारे मोहल्ले वाले और पड़ोसियों में वही हमेशा की तरह कानाफूसी शुरू हो चुकी थी,, जाने क्या करते हैं ये लड़के? मुझे तो इनका मिजाज, रहन सहन, बिलकुल अच्छा नही लगता , बिलकुल आवारा किस्म के है, जाने कहाँ-कहाँ से आ जाते हैं और इस शहर की फिज़ा बिगाड़ते हैं।। आपकी बच्ची का भी ध्यान रखिएगा भाभी जी, आजकल ज़माने का ठिकाना नहीं है।।
इसी तरह एक दूसरे को हिदायत देते, मन में कईं बातें दबाकर खेर! छोडो हमे क्या करना है...कहते हुए सभी अपने अपने घर के अंदर चल दिए।

पर गौरव की आँखों के सामने नाच रहा था वो खौफनाक मंजर..जिससे वो अभी अभी मुखातिब हुआ था। वो लड़के जो एक हाई प्रोफाइल सोसाइटी में रहते है,,उन्ही के साथ कॉलेज जाने वाली वर्मा जी की बेटी के साथ शराब के नशे में ज्यादती पर उतारू थे,गौरव ने फ़ौरन जाकर मारपीट कर लड़को के चंगुल से वर्मा जी की बेटी को बचाया, उसे ऑटो में बिठाकर मोहल्ले के सामने तक छोड़कर वह ऑटो से उतर गया...और पैदल ही अपने रूम पर आ गया, लड़की के पूछने पर यह कहते हुए कि,,"मेरे साथ जाओगी तो तुम्हारी बदनामी होगी"।
सुबह जब गौरव काम पर निकला.. तो वर्मा आंटी की आँखों में उसके लिए एक इज्जत, आशीर्वाद और धन्यवाद के भाव थे,...सुबह फिर वही घटनाक्रम सामने आया तो गौरव ने वर्मा आंटी को मोहल्ले वालो की बात काटते हुए सुना....नही मिश्रा जी..."वो आवारा नही है"।

©अनुराग माण्डलीक "मृत्युंजय"