"अब,कैसी हो?" एक अजनबी आवाज सुनकर मैंने आवाज की तरफ अपनी गर्दन घुमानी चाही तो मेरे होठों से एक दर्द भरी सिसकारी निकल गई.
"बहुत दर्द हो रहा है?"
अपने ऊपर एक पुलिस वाले को झुका देखकर मैं घबरा गई.
"आप...आप..कौन..?"मैं ...यहां.. कैसे..?"मैं कभी उस पुलिस वाले को देख रही थी. कभी अपने हाथ में चढ़ते ग्लूकोज को.
"आप परेशान न हो.सड़क पार करते हुए आपको ऑटो चालक टक्कर मारकर चला गया था.शायद आपके सिर में चोट आयी.आप गिरने के बाद बेहोश हो गई. मैं वहां ड्यूटी पर था.आपको यहां भर्ती कर दिया. पास में यही अस्पताल था."वह कहता चला गया.
"ओह,धन्यवाद."मैंने धीरे कहा. मुझे याद आया .मैं अपने घर से भाई को राखी बाँधने के लिए घर से निकली थी.बस पकड़ने के लिए सड़क पार कर रही थी. तभी.. शायद.
"धन्यवाद कहने की कोई आवश्यकता नहीं है.यह मेरा फर्ज था.वैसे भी पुलिस वाला हूँ.नागरिकों की सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी है."कहकर वह हल्के से हँसा.
मुझे उसका सौभ्य सा चेहरा अपना सा लगा.
"मेरी बजह से आपकी ड्यूटी..."
"आप चिंता न करें. मैंने फोन कर दिया है.आज की छुट्टी मिल गई है मुझे. वैसे यह भी मेरी ड्यूटी ही है."कहकर वह फिर हल्के से हँसा.
इस बार मैंने उसे गौर से देखा. पुलिस की वर्दी में भी वह बहुत भोला लग रहा था. उसकी वर्दी पर लगे स्टार बता रहे थे कि वह इंस्पेक्टर है.
"सर,आप नीला के साथ हैं. यह दवाएं और इंजेक्शन ले आइए."नर्स ने दवा का पर्चा पुलिस वाले को देते हुए कहा और हाथ में चढ़ रही ड्रिप निकालने लगी.
"नीला....आपको मेरा नाम...आप तो कह रहे थे कि मैं गिरते ही बेहोश हो गई थी."मैं संशय में पड़ गई.
"यह नाम मैंने ही लिखवाया था.आप बेहोश थीं. मुझे और कुछ समझ नहीं आया."
"लेकिन, आपको...."मेरी बात अधूरी ही रह गई. वह दवाई लेने निकल गया.
मैं गुत्थियां सुलझाने लगी.इसे मेरा नाम कैसे पता. जानता होगा. लेकिन कैसे. अपनी जान-पहचान बालों में मुझे उसका चेहरा नहीं मिल रहा था. मैंने अपनी यादों के पन्ने पलटने शुरू किए तो दिमाग पर जोर पड़ते ही मेरे मुंह से सिसकी निकल गई.
नर्स ने प्यार से मेरे माथे पर हाथ रखा-"जायदा दर्द हो रहा है?जख़्म गहरा है न !काफी खून निकल गया था. टांके लगाने पड़े.अभी दर्द का इंजेक्शन लगेगा ,आराम हो जायेगा."
"जी..."मैं होठ भींच कर दर्द को पीने की कोशिश करने लगी.
"वह तो अच्छा हुआ .इंस्पेक्टर समय से आपको यहां ले आये. काफी खून वह गया था. देर होने पर काफी मुश्किल होती."नर्स मेरे हाथ से निडिल निकाल कर रूई से मेरा हाथ साफ कर रही थी.
मैं उसके ख्यालों में डूब गई .पुलिस वाले भी अच्छे होते हैं. लोग यूँही उन्हें बदनाम करते हैं.
वह वापस आया तो उसके हाथ में दूध का गिलास और बिस्किट का पैकेट भी था.उसने दवाएं नर्स को दीं और दूध का गिलास टेबल पर रखकर बिस्किट का पैकेट खोलने लगा-"कुछ खा लीजिए. आपको इंजेक्शन लगेगा."
उसने मुझे सहारा देकर बैठाया.
"मुझे राखी बाँधनी है.इंजेक्शन घर पर..." मैं ने कहा.
"ओह,रूकें."वह मेरी बात काटते हुए जेब से पर्स निकाला और एक नीला रूमाल मेरी ओर बड़ा दिया.
रूमाल मेरे हाथ में था.मैं कुछ पुरानी यादें जोड़ने की कोशिश कर रही थी. मैंने रूमाल पूरी तरह खोला तो अचानक मेरे मुँह से निकल गया-"अरे,यह रूमाल तो मेरा है.आपके पास कैसे. मैंने पहली बार इस पर अपना नाम काढ़ा था."
"तुम ही नीला हो?"उसकी आँखों में खुशी के जुगनू एक साथ जगमगा गये.
"हां,याद आया. यह रूमाल तो बचपन में रक्षाबंधन को मैंने एक पुलिस वाले को बांधा था.मैंने याद करते हुए कहा.
"मुझे याद है. तुम्हारे स्कूल की लड़कियां अफसरों के राखी बांध रही थीं. उस समय मैं रंगरूट था.तुमने मुझे एक कोने में चुपचाप खड़ा देखा. राखी तुम अफसरों को बांध चुकी थीं. तुमने राखी की जगह यह रूमाल मेरी कलाई में बांध दिया. तुम स्कूल की यूनीफार्म के साथ भी पैरों में पायल पहने हुए थीं. तुम्हारे पैर छूते हुए मैंने देखा था.उस समय तुम्हें देने के लिए मेरे पास कुछ न था.मेरी कोई बहन भी न थी. मैंने इस रूमाल को संभाल कर रख लिया. तब से रक्षाबंधन पर इस रुमाल को किसी भी बहन से कलाई पर बँधवाता हूँऔर सगुन में पायल देता हूँ."वह बिना रूके कहता चला गया.
मैं मंत्रमुग्ध सी उसे देख रही थी.
"क्या सोच रही हो .अब सचमुच में मिल गई हो तो बाँधों न !"मुझे खोया देखकर वह बोला.
"हां!भैया."कहते हुए मैंने उसकी कलाई पर वह रूमाल बाँध दिया.
उसने जेब से पायलें निकाली और बड़े स्नेह से मेरे पैरों में पहनाने लगा.
जिदंगी के इस इत्तेफाक पर वह भी खुश और मैं भी.
ःःःःः
Abha yadav
7088729321