subhah ke char baje in Hindi Motivational Stories by Krishna Timbadiya books and stories PDF | सुबह के चार बजे

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सुबह के चार बजे

में हमेशा से लिखना और पढ़ने पसंद करती हूं। मेरे पढने के अनुभवों के बाद मेंने लिखना शुरू किया। कुछ कहानियों को मैंने अपने निजी ज़िंदगी से जोड़ के देखा। मानो जो ढूँढ रही थी, मेरी जिंदगी का मक्सत मिल गया। इन कहानी से में वाचक मित्रों के साथ शेर करके अपना अनुभव बाटना चाहती हुं। में आशा करती हू आप सभी को ऐ कहानीया पसंद आये।

एक किस्सा जो मुझे बेहद पसंद हैं। ऐ अनुभव किसी ना किसी के साथ अवश्य हुआ होगा।

मैं विश्वविद्यालय में विद्यार्थी था। मेरे एक अध्यापक थे। में रोज सुबह चार बजे घूमने जाता। उन्होंने भी जिंदगी भर बड़ी कोशिश की थी की सुबह चार बजे उठकर कभी घूमे। मगर कोशिश कभी सफल नहीं हो पायी थी।

मुझसे उन्होने कहा कि तुम रोज घूमने जाते हो, मेरी जिंदगी भर से आशा है कि बह्ममूहतॅ में कभी में भी उठूं, मगर यह हो ही नहीं पाता। में तो नौ बजे के पहले उठ ही नहीं पाता। मैंने कभी सूबह का सौन्दर्य और सुबह की ताजगी महसूस नहीं
की। अगर तुम मुझे उठाओ तो शायद बात बन जाए।

मैंने कहा, में उठाऊंगा।

उन्होंने कहा लेकिन में एक प्रार्थना करता हूं, जब तुम उठाओगे तो मैं आसानी से राजी नहीं होऊंगा। क्योंकि मेरे पिताजी भी मुझे उठाते थे, खींचते थे तो भी में उठ नहीं पाता था। बस, सुबह तो मैं बेहोश हालत में होता हूं। अलार्म बजता है तो घड़ी को पटक देता हूँ। और मैं ही अलार्म भर के सोता हूं। मैंने कई घडि़या तोड़ डा़ली है, कि यह दुष्ट घड़ी सुबह सुबह फिर से बजने लगी। धीरे धीरे मेरे परिवार के लोगों ने यह बात ही छोड़ दी। सबसे में कह चूका की मुझे उठाओ। जो भी मुझसे उठाता है उसे ही झगडा हो जाता है सुबह। तो यह में तुम्हें बता देता हूँ।

मैंने कहाँ, आप अपनी फिकर छोडे़। आप अपना ख्याल रखना।

उन्होने कहाँ, मतलब?

मैं ने कहा में जिस कार्य में लग जाता हूं, फिर लग ही जाता हूं। अगर तुम जिंदा मिले तो उठाऊंगा ही।अगर, मर जाओ तो बात अलग है।

तो मैं तीन चार लोगों को लेकर पहुंचा। मैंने कहा की अब पता नहीं, अकेले सम्हले ना सम्हले! उठा-उठाकर खींचा उनको, चांटे भी लगाए। मेरे अध्यापक थे, बड़े गुस्सा होने लगे, आँखें तरेरने लगे कि तुम मेरे विद्यार्थी हो के मुझे मार रहे हो, मैंने इस वक्त कोई विद्यार्थी नहीं और कोई अध्यापक नहीं। इस वक्त जगानेवाला और सोने वाला।

यह बकवास नहीं चलेगी। आज ब्रह्ममूहृतॅ का दर्शन करवाऐंगे। खींच-खींचकर, बाल्टी भर पानी उनके पर डालकर - वे गालियां देते जाए; उन्हें मैंने कभी गालियां देते देखा नहीं, एकदम गालियां देने लगे, की बदतमीज हो तुम लोग, ऐसै हो, वैसा हो; हमने कहां इस सब का कोई सार नहीं है, आप बकते रहो-- जबर्दस्तती उनके कपड़े पहना दीए। उनको लेकर बाहर धुमने चले-- चार आदमी उनको पकड़े हुए।

जब सुबह की ताजगी ने थोड़ा उन्हें शांत किया और जब ऊगते सूरज के आनंद को देखा, बहुत माफी मांगने लगे कि क्षमा करना हमने जो गालियां दीं।

हमने कहां, आपका क्षमा माँगना ठीक नहीं, हमें क्षमा चाहिए।