The Author Krishna Kaveri K.K. Follow Current Read आज फिर एक उम्मीद मिट गई By Krishna Kaveri K.K. Hindi Short Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books જીવન એ કોઈ પરીકથા નથી - 5 "જીવન એ કોઈ પરીકથા નથી"( ભાગ-૫)સમીરના ફોન પર અજાણ્યો કોલ આવે... શ્યામ રંગ....લગ્ન ભંગ....5 ભાગ-5કોલેજ ના દિવસો એટલે કોલેજીયન માટે તો ગોલ્ડન ડેઈઝ.અનંત ત... ક્ષમા વીરસ્ય ભુશણમ क्षमा बलमशक्तानाम् शक्तानाम् भूषणम् क्षमा। क्षमा वशीकृते... ભીતરમન - 56 હું કોઈ બહુ જ મોટા પ્રસંગની મજા લેતો હોઉ એવો મારો આજનો જન્મદ... તારી પીડાનો હું અનુભવી - ભાગ 20 આટલું બોલતા જ મિરાજ ભાંગી પડ્યો. એના ગળે ડૂમો ભરાઈ ગયો હતો.... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share आज फिर एक उम्मीद मिट गई (3) 2.1k 7.6k 1 उस दिन बहुत तेज बारिश हो रही थी। मैं अपनी लोकल ट्रेन में कॉलेज के एक ट्रेनिंग प्रोग्राम से वापस लौट रही थी। मेरे सामने की सीट पर एक 23 - 24 साल का नौजवान युवक बैठा था। उसने फॉर्मल कपड़े पहने रखे थे। उसके हाथों में रिज्यूम वाली फाइल्स थी जैसे की किसी इंटरव्यू से लौट रहा हो। ट्रेन अपने फुल स्पीड पर भागती जा रही थी। उस बोगी में बैठे लगभग सभी लोग अपने - अपने मोबाइल में खोएं हुए थे। कोई माने या ना माने लेकिन सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते इंसान ने अब गांधी जी के चौथे बंदर के रूप में अवतार ले लिया है। तभी अचानक मेरे सामने बैठा वो युवक मन ही मन धीमे स्वर में कुछ बड़बड़ाने लगा "मुझे पूरी तरह से बर्बाद कर दिया , मेरा सब कुछ छीन लिया , कही का नहीं छोड़ा" लेकिन सब अपने मोबाइल में इतने गुम थे की किसी ने भी उस युवक की बातों पर ध्यान नहीं दिया। मैं भी एक लेडीज मैंगनीज पढ़ रही थी। मुझे उसकी बातें सुनाई तो दे रही थी लेकिन मैं उसकी बातों पर गौर नहीं कर रही थी। फिर अचानक वो युवक अपनी सीट से उठा और उसके हाथों में जो रिज्यूम फाइल्स थी वो वही नीचे गिर गई। वो ट्रेन के दरवाजे की तरफ चला गया और फिर कुछ देर बाद लोगों की चिल्लाने की आवाज आने लगी। मैंने उठकर देखा तो मुझे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हुआ ट्रेन के दरवाजे के आस - पास उस युवक के शरीर के टुकड़े और खून के छींटे फैले थे। उसने शायद अपने शरीर का कोई हिस्सा ट्रेन से बाहर निकाल दिया होगा और फिर किसी चीज से टक्करा गया होगा। ट्रेन के दरवाजे पे खड़े लोगों ने कहा उसने ऐसा जान बूझ कर किया शायद वो आत्महत्या करने के उद्देश्य से ही ट्रेन के दरवाजे पे खड़ा हुआ था। लोग अपनी जिंदगी को कितना सस्ता समझते है। छोटी मोटी परेशानियों से भी हार कर आत्महत्या जैसा खतरनाक कदम उठा लेते है। मुझे ये कहते हुए बहुत अफसोस हो रहा है लेकिन आज की युवा जनरेशन गलत रास्ते पे जा रही है और अपने जीवन में सही फैसले लेने में भी बुरी तरह से असफल सावित हो रही है। उस हादसे के बाद मुझे खुद पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था। मैं इतनी लपरवाह कैसे हो सकती हूँ? , काश की उस वक्त मैंने उस युवक की बातों पर थोड़ा ध्यान दिया होता , ज्यादा कुछ नहीं तो थोड़ा बहुत बात ही कर ली होती उससे। कहते है जब हमारा दिमाग आत्महत्या जैसे खतरनाक विचारों के बारे में सोचता है , तब अगर कोई ऐसा व्यक्ति साथ हो , जो सकारात्मक विचार रखता हो , तो उसके विचारों का प्रभाव हमारे दिमाग पर भी होता है और - कभी कभी तो हम अपने विचारों को भी बदल लेते है। बदकिस्मती से आमतौर पर ऐसे नाजूक वक्त में हर किसी को ऐसे व्यक्ति का साथ नहीं मिलता है , जो उस वक्त उनकी मानसिक स्थिति को समझ सके। Written and Copyrighted by Krishna Singh Kaveri "KK" Download Our App