mera ghar in Hindi Short Stories by Sunita Agarwal books and stories PDF | मेरा घर

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मेरा घर

आज लगभग दो बर्ष का समय हो गया है सुदेश और शो की बोलचाल बन्द हुए। ऐसा नहीं कि शोभा बोलती नहीं वो सुदेश की हर चीज़ का ख्याल रखती है नाश्ता खाना हर चीज़ समय पर देती है। सुदेश से उसकी पसंद पूछती है ।सुदेश है कि या तो गर्दन हिलाकर जबाब देता है
या हाँ या ना में अकड़ जो कूट कूट कर भरी हुई है।
पिछले 25 बर्षों में कितना कुछ बदल गया बच्चे बड़े हो गए
पर नहीं बदला तो वह है सुदेश।ऐसा नहीं है कि सुदेश पहली बार रूठा हो सुदेश की यह पुरानी आदत है ।हर बार
छोटी छोटी बात पर रूठना और फिर महीनों बात नहीं करना ।शुरू शुरू में वह बहुत परेशान होती और गलती न
होते हुए भी सुदेश को मनाती उसकी खरी खोटी सुनती।
पर सुदेश को जैसे इसकी आदत पड गई थी।जब सुदेश नाराज होता और यदि शोभा की तबियत भी खराब हो जाती तब भी वह उसकी परवाह नहीं करता।आज भी याद
है उसे इन 25 बर्षों में कोई एक भी काम सुदेश ने उसकी मर्जी से किया हो ।उसे तो शोभा की इच्छा अनिच्छा से कोई
फर्क नहीं पड़ता था वह तो हर वक्त अपनी चलाता।कभी कभी वो सोचती कि औरत का अपना घर कौनसा है जिस घर को बचपन से सजाती सँवारती रही उस घर पर तो उसका कोई अधिकार नहीं वो वहाँ चार दिन अपनी मर्जी से नहीं रह सकती ।उस घर से उसकी मर्जी जाने बिना ही उसे शादी करके रुख़सत कर दिया जाता है ।और जिस घर में
वह जाती है उसे सजाने सँवारने में वह अपना जीवन लगा देती है ।लेकिन वह उस घर में सिर्फ नोकरानी बनकर रह जाती है।आज सुदेश की बेरुखी उसे ज्यादा तकलीफ नहीं
देती क्योंकि वह इसे झेलते झेलते इसकी आदि हो चुकी है।लेकिन आज अपने आत्मसम्मान पर होते लगातार प्रहार से
जैसे उसका जमीर जाग उठा। यह कैसा रिश्ता है कि अपनी
अर्धांगिनी को नीचा दिखाकर सन्तुष्ट होता है।वह तो सुदेश
से अपने प्यार के कारण अपने दिल से मजबूर होकर उसकी खरी खोटी सुनकर भी उसे भी मना लेती थी ।
लेकिन सुदेश तो उसे अपनी जीत समझता था।वह दिल से रिश्ता निभारही थी और सुदेश दिमाग से ।पर दिल कितना
भी नाजुक सही देर सबेर दिमाग की चालों को समझ ही जाता है।यही कुछ समय पहले शोभा के साथ हुआ सुदेश गुस्से में शोभा को ऐसा कुछ कह गया जो शोभा के नाजुक दिल को भेद डाला ।सालों से प्यार की जो परत उसके दिल और दिमाग पर चढ़ी हुई थी वह झटके से टूट गयी ।उसके दिल ने उसको धिक्कारा नहीं शोभा अब और नहीं अब इस रिश्ते को उठाने में तू और झुकी तो अपनी नजर में ही गिर जाएगी।जिस प्यार की खातिर वह बर्षों से अपने आत्म सम्मान से समझौता करती आ रही है यदि सुदेश को उसकी
जरा भी कद्र नहीं तो वही क्यों उसके लिए मरी जाए। जब उसके दिल में तेरे लिए कोई जगह ही नहीं तो क्या फर्क पड़ता है वह तुझसे बात करे या न करे। शोभा ने फैसला किया कि रिश्ता तो में अब भी मरते दम तक निभाउंगी पर आत्मा के खिलाफ जाकर कुछ ऐसा नहीं जिससे में अपनी
नजरों में ही गिर जाऊँ।