गेम्स पीरियड था। पर नेहा खेल के मैदान में न होकर कक्षा में अकेली बैठी थी। वह बेंच पर सिर टिका कर बैठी कुछ सोच रही थी।
नेहा इस स्कूल में इसी वर्ष पढ़ने आई थी। उसे एडमिशन लिए महीना भर हो गया था परंतु उसकीअभी तक किसी से दोस्ती नहीं हुई थी। होती भी कैसे? कुछ तो वह खुद शर्मीले स्वभाव की थी। उस पर उसे इस स्कूल की लड़कियां भी कुछ घमंडी लगी थीं। जब देखो किसी न किसी को देखकर खुसर-पुसर करके खीं-खीं हंसती रहती थीं। मानो किसी का मजाक उड़ा रही हों। कई बार नेहा को लगता था कि जैसे वह उसी का मजाक उड़ा रही हैं।
इससे पहले नेहा एक सरकारी स्कूल में पढ़ती थी। नेहा के पिता एक मामूली कर्मचारी थे। नेहा उनकी इकलौती संतान थी इसलिए वह चाहते थे कि नेहा खूब पढ़े-लिखे और उनका नाम रोशन करे। नेहा भी खूब मेहनती थी। अपनी मेहनत और लगन के कारण वह पिछले वर्ष में पूरे जिले में उच्चतम अंक लेकर उत्तीर्ण हुई थी।
उसकी योग्यता देखकर शहर के सबसे अच्छे स्कूल के प्रिंसिपल ने उसे अपने स्कूल में निशुल्क प्रवेश देने की घोषणा की थी तथा इसे अपना सौभाग्य समझते हुए नेहा के पिता ने उसे इस स्कूल में भर्ती करवा दिया था।
चूंकि यह स्कूल महंगा था इसलिए यहां की अधिकतर लड़कियां उच्च घरानों की ही थीं। एक साधारण स्कूल व परिवार से आई नेहा स्वयं को यहां असहज महसूस करती थी। वह अक्सर अपनी कक्षा में चुपचाप बैठी रहती थी तथा बहुत कम बोलती थी।
आज नेहा को अपने पुराने स्कूल की बहुत याद आ रही थी। कितना अच्छा था वह स्कूल। लड़कियां कैसे घुलमिल कर रहती थीं। समय का तो पता ही नहीं चलता था वहां। पढ़ने में भी खूब मन लगता था। यहां तो पढ़ने का बिल्कुल भी मन नहीं करता। यदि ऐसा ही रहा तो इस वर्ष उसका नतीजा बहुत खराब होगा। यह सोच कर वह बहुत चिंतित हो रही थी।
उस दिन वह घर जाकर बहुत रोई।
वह अपने पिताजी से बोली- पिताजी, आप मुझे फिर से मेरे पुराने स्कूल में भर्ती करवा दीजिए। इस स्कूल का वातावरण अच्छा नहीं है। यहां सब पैसे वाले घरों की लड़कियां हैं जो कि बहुत घमंडी हैं। वे मुझसे दोस्ती भी नहीं करना चाहती।
- मगर बेटी इस स्कूल की पढ़ाई तो बहुत अच्छी है। सभी शिक्षक उच्च योग्यता प्राप्त हैं। इससे तुम्हें फायदा ही होगा। नेहा के पिताजी ने उसे समझाते हुए कहा।
- पिताजी फायदा तो तब होगा जब मैं जी लगाकर पढ़ाई करूंगी। एक महीना हो गया मुझे इस स्कूल में आए पर ना जाने क्यों अभी तक पढ़ने में मन ही नहीं लगता। मुझे अपने पुराने स्कूल की बहुत याद आती है। मुझे लगता है कि मेरे लिए उसी स्कूल में पढ़ना ठीक रहेगा।
- ठीक है बेटी। जैसी तुम्हारी इच्छा। मैं कल ही तुम्हारे प्रिंसिपल से मिलकर तुम्हें तुम्हारे पुराने स्कूल में फिर से भर्ती करवाने की बात करता हूं। कहकर पिताजी सोच में डूब गए।
अगले दिन नेहा जब स्कूल गई तो मन ही मन बहुत प्रसन्न थी। वह सभी लड़कियों को देखकर मन ही मन सोच रही थी- देखा अपने घमंड का नतीजा। मैं तुम्हारे स्कूल में पढ़ने के लिए तैयार ही नहीं। अब किसी देखकर हंसोगी? मैं तो मेरी पुरानी सहेलियों के पास लौट जाऊंगी और फिर कभी नहीं आऊंगी तुम्हारे पास।
यह सोचते-सोचते वह चलती ही जा रही थी कि उसे पता ही ना चला कब गलियारा खत्म हो गया और नीचे जाने के लिए सीढ़ियां शुरू हो गई। अतः वह स्वयं पर नियंत्रण न रख सकी तथा लुढ़कते-लुढ़कते सीढ़ियों से नीचे गिर गई।
जब नेहा को होश आया तो उसने देखा कि वह स्कूल के प्राथमिक चिकित्सा कक्ष में लेटी हुई है तथा उसके सिर पर पट्टी बंधी हुई है। उसे होश में आया देखकर एक लड़की, जो कि उसी की कक्षा में पढ़ती थी, उसकी ओर आई और बोली- लेटी रहो। तुम्हारे सिर में चोट आई है। ज्यादा हिलना डुलना ठीक नहीं है।
- पानी…….. नेहा के मुंह से निकला ही था कि एक दूसरी लड़की झटपट पानी ले आई और धीरे-धीरे नेहा को पानी पिलाने लगी।
पानी पीकर नेहा ने चारों ओर नजर दौड़ाई। करीबन 10 लड़कियां उसके चारों और खड़ी थी और ये सब वही थीं जिन्हें वह घमंडी समझती थी।
तभी वहां डॉक्टर आए। नेहा को होश में आया देख कर बोले- भगवान का शुक्र है तुम्हें होश आ गया है। यह तो अच्छा हुआ जो तुम्हारी सहेलियां तुम्हें वक्त पर यहां ले आईं वरना अधिक खून बहने से तुम्हें अधिक नुकसान हो सकता था। अब तुम ठीक हो। तुम चाहो तो अपनी कक्षा में भी जा सकती हो।
- हां, हां, चलो हमारे साथ। गणित की घंटी है। आज सर नया फार्मूला सिखाएंगे। यदि आज तुम कक्षा में न गईं तो तुम्हारी पढ़ाई का नुकसान होगा। उनमें से एक लड़की ने कहा।
- हम चाहते हैं कि तुम फिर से पूरे जिले में टॉप करो तथा हमारे स्कूल का नाम भी रोशन करो। दूसरी ने कहा।
- तुम तो हमारी कक्षा की शान हो। पता है हमको तो तुमसे बात करते हुए भी डर लगता है। तुम इतनी होशियार जो हो। हम सब तो बुद्धू हैं। एक अन्य लड़की ने हंसते हुए कहा।
जैसे-जैसे नेहा सब की बातें सुन रही थी, उसकी आंखों के आगे से गलतफहमी का पर्दा हट जा जा रहा था। कितना गलत समझ रही थी वह सबको? वे सबको सीधी-सादी लड़कियां थीं। इनसे दोस्ती करना तो बहुत आसान था। मैं अपने संकोची स्वभाव के कारण नहीं पहल न कर सकी। हो सकता है यह सब मुझे घमंडी समझतीं हों? नेहा ने सोचा। फिर अचानक उसे ध्यान आया कि उसने पिता जी को स्कूल में आकर प्रिंसिपल से बात करने के लिए कहा था। कहीं पिताजी आ न गए हों? यह सोचकर वह ऑफिस की ओर चल पड़ी। सभी लड़कियां हैरानी से उसके पीछे-पीछे चल रही थीं।
ऑफिस पहुंचकर उसने देखा कि उसके पिताजी अभी तक वहां नहीं पहुंचे थे। यह देखकर उसने चैन की सांस ली। ऑफिस से ही नेहा ने अपने घर फोन किया। संयोग से उसके पिताजी घर पर ही थे। वे स्कूल के लिए निकल ही रहे थे। नेहा ने कहा- पिताजी अब आपको स्कूल आने की जरूरत नहीं है। यहां सब ठीक हो गया है। पर बेटी अभी-अभी तो स्कूल से फोन आया है कि तुम सीढ़ियों से गिर गई हो और तुम्हारे सिर पर चोट लगी है। मैंने सोचा तुम्हारे प्रिंसिपल से भी बात कर लूं और तुम्हें घर भी ले आऊं। तुम बहुत उदास होगी।
- नहीं, नहीं, पिताजी। ऐसा कुछ नहीं है। चोट तो मामूली है। मेरी सहेलियों ने ठीक समय पर मेरी मदद कर दी। इस वजह से अब मैं बिल्कुल ठीक हूं।
- मगर वह कल वाली बात? पिताजी ने पूछा।
- अब उसकी कोई जरूरत नहीं है। मैं घर आकर सब समझा दूंगी। नेहा ने कहा और फोन रख दिया।
- एक गलतफहमी का शिकार होकर मैं कितना बड़ा फैसला करने जा रही थी। शुक्र है ईश्वर का जिसने वक्त पर मेरी आंखें खोल दीं। यह कह कर नेहा ने अपने सिर पर हाथ रखा। हाथ रखते ही उसे दर्द का एहसास हुआ क्योंकि वहां तो चोट लगी थी। परंतु इस समय नेहा को यह दर्द व चोट भी किसी वरदान से कम नहीं लग रहे थे। क्योंकि ना तो वह सीढ़ियों से गिरती और ना ही उसे अपनी सखियों के प्रेम का पता चलता। ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है। यह सोचकर वह सबके साथ कक्षा की ओर चल दी।
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