Sainik in Hindi Short Stories by Atul Kumar Sharma ” Kumar ” books and stories PDF | सैनिक

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सैनिक

ठण्ड और बढ़ती जा रही थी।भयंकर बर्फ के बीच अपनी पोस्ट पर मुस्तेदी से पहरा देते हुए रूपेश और अकबर पल भर के लिए भी आँख नही झपका सकते थे।

"" आज वाक़ई में हाथ पैर जम् ही जायेंगे।""..रूपेश बोला,रात के करीब 12 बजने को थे। और दोनों सामने नज़र जमाये एक दूसरे को हिम्मत और दिलासा दे रहे थे।....

"हाँ यार लेकिन सैनिक का खून इतना गर्म होता है कि ये बर्फ भी उसके इरादों को नही जमा सकती'.""..... अकबर ने जोश से भरकर कहा।...

कुछ देर खामोशी छाई रही फिर रूपेश ने चुप्पी तोड़ते हुये बोला.......

"" अकबर भाईजान, हम लोगो की जिंदगी भी इन जंगलो और पहाड़ों में रम सी गई है....देश की हिफाज़त करते करते हम भी एक दम सख्त और पत्थरदिल हो जाते हैं......जज़्बातों के लिए कोई जगह नही।...""......

" यही तो फर्क है एक सैनिक और आम इंसान में.....हमारे लिए हमारा कर्तव्य पहले, 24 घण्टे हथेली पर जान लिए सिर्फ देश की हिफाज़त और कुछ नही।......सच पूछो तो बहुत अच्छा लगता है कि इस मिटटी का कुछ तो कर्ज उतार रहे हैं हम...अरे हाँ अगले महीने दिवाली है इस बार तो सबके साथ मनाएंगे आप दिवाली."....अकबर ने कहा।...

"हाँ भाईजान,इस दिवाली को अपने घर पर खूब जोर शोर से मनाऊंगा.....जबसे फ़ौज़ में आये हैं, घर वालों के साथ कोई त्यौहार पूरी तरह नही माना पाए। इस बार सारे अरमान निकालूंगा।बेटी के साथ पहली दिवाली होगी ये, और फिर भाईजान जीयेंगे एक दिन अपनी जिंदगी भी जब नमक का कर्ज अदा कर देंगे। मेने तो बहुत कुछ सोच रखा है,यदि जिंदगी ने साथ दिया तो यहाँ से जाने के बाद शहर में ही सेटल होऊंगा। माँ बाउजी और बीवी बच्चों समेत इस बदलती दुनिया को नजदीक से देखूंगा....गाँव में अब कुछ नही रखा, खेती भी अब पहले जैसी नही होती, बस मेहनत ही हाथ रहती है।"......रूपेश ने सोचते हुए बोला।...

ये सुनकर अकबर भी अपने भविष्य के सपने बुनने लगा......."" में भी अम्मी के पास रहूंगा....बचपन में अब्बू के गुज़र जाने के बाद अम्मी ने बड़ी मेहनत से मुझे पाला....अब्बू की दिली ख्वाहिश थी की में फ़ौज़ में जाऊं, अम्मी ने भी उनकी इस ख्वाहिश को पूरा करने में कोई कसर नही छोड़ी....जब मेरा सिलेक्शन आर्मी में हुआ तब अम्मी ने पूरे गाँव में मिठाई बंटवाई थी""....

"पता है अकबर भाईजान मेरी छोटी सी गुड़िया का मेरे जीवन में आना मेरी जिंदगी का सबसे हसीन पल है, बहुत प्यार करता हूँ में उससे.".....रूपेश के चेहरे पर अचानक चमक आ गई...........ये सुनकर अकबर बोला...." में तो अभी कुंवारा ही हूँ भाई, अम्मी का खत आया था कह रहीं थीं इस बार छुट्टी में आओगे तो एक लड़की देख रखी है ,बस तुम्हारी हाँ का इंतज़ार है, .......अब तो में भी सोच रहा हूँ जल्द ही निकाह कर लूँ, अम्मी को भी आराम हो जाएगा, और मेरे पीछे वो अकेली नही रहेंगी, बड़ी चिंता रहती है उनकी."...........

रूपेश हंसते हुए बोला.." हा हा हा .....अम्मी की चिंता है या अपनी भाईजान...".....

" हा हा हा ....नही भाई दोनों की है.".... अकबर ने भी चुटकी ली.............

खून को जमा देने वाली ठंड में लिपटी वो रात धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी। रूपेश और अकबर आपसी बात में ठंड के असर को कम करने की जी तोड़ कोशिश कर रहे थे।ऐसा लगता था दोनो ही अपनी जिंदगियों की तमाम बातें उसी रात एक दूसरे से शेयर करना चाहते थे। थर्मस में से चाय निकालकर दोनों पीते पीते बात कर रहे थे।

" आपकी शादी कैसे हुई भाईजान, भाभीजान क्या खुद की पसन्द थी या घर वालो की.."... अकबर ने कहा...

"नही भाई अपनी पसंद से तो एक नेकर भी नही खरीद सका आज तक में, लड़की क्या पसन्द करूँगा......हा हा हा ..... बस माँ बाऊजी ने जिसका हाथ पकड़ा दिया उसी के हो गए..... लेकिन बहुत खूबसूरत और प्यारी है मेरी उर्मी.... बहुत प्यार करता हूँ में उसे, जब भी छुट्टियों में जाता हूँ, सबके लिए कुछ ना कुछ ले जाता हूँ, लेकिन अपने प्यार के लिए कोई ख़ास तोहफा नही ले जा पाया......सोचता हूँ अबकी बार दिवाली की छुट्टियों में जब जाऊंगा, तो एक सुन्दर सी साडी और नेकलेस खरीदूंगा उसके लिए, बहुत खुश होगी, सबके लिए कितना कुछ करती है लेकिन कभी खुद के लिए कुछ नही माँगा....इस बार उसकी सारी इक्छा पूरी कर दूंगा।....................इस दिवाली सबको खुश कर दूंगा...बहुत प्लान हैं .."..........

" जरूर करना भाई, आखिर बीवी ही तो अपने सुख दुख की सच्ची साथी होती है, मेने भी अपनी होने वाली बेगम को लेकर कई सपने संजो रखे हैं.......में भी यहाँ से जाने के बाद खुद का धंदा करूँगा, ईमानदारी की दो रोटी मिलती रहे और उसे बनाने वाली हमे देखती रहे, और क्या चाहिए जीवन में, अल्लाह अपने बन्दों को खैरियत से रखे बस इसी मुकाम पर जिंदगी मुक्कमल है।"......अकबर हथेलियों को आपस में रगड़ते हुए बोला........

अब रात के 3 बजने को थे, अकबर की नज़र दूर अँधेरे में बर्फ की जमीन पर रेंगती कुछ मानवीय आकृतियों पर पड़ी, दोनों सतर्क हो गए, रूपेश ने वायरलेस पर मैसेज कर बाकी दूसरी पोस्ट को अलर्ट कर दिया। दोनों धीरे धीरे उन सायों का पीछा करने लगे। कुछ दूरी पर बर्फ के अंदर एक सुरंग के रास्ते वो साये अंदर चले गए। दोनों ने देखा की 20-25 घुसपेठिये थे। साथ में कंधे पर बैग्स में विस्फोटक सामान लादे थे, और आगे की योजना बना रहे थे। उनलोगों की बाते सुनकर दोनों अंदर तक दहल गये। आतंकवादियों का प्लान बहुत खतरनाक था। ऐसा लगता था जैसे इस दिवाली देश में कई जगह धमाके करने की योजना थी उनकी।

रूपेश ने धीरे से अकबर से कहा....."अगर ये अपने इरादों में कामयाब हो गए तो गज़ब हो जाएगा।.... इनके पास बम और दूसरे हथियार हैं।हमे इनको यहीं रोकना होगा। ......... दोनों ने आँखों में कुछ इशारा किया ......... और आगे बढ़ गए.......

अगले दिन सुबह उन सभी आतंकवादियों की खून से लथपथ लाशें पड़ीं थीं.....और पास में ही 2 सैनिको के शव........शहीद सैनिकों के शवों को तिरंगे में लपेटकर हेडक्वार्टर लाया गया।... आतंकवादियों की बहुत बड़ी साज़िश नाकाम हो चुकी थी......

दिवाली आ चुकी थी और सारा देश दिवाली की ख़ुशीयों में डूब चुका था... चारों तरफ बधाइयां और शुभकामनाओं का दौर जोरो पर था।।

*जय हिंद*