Shakuntala Devi Film Review in Hindi Film Reviews by Mahendra Sharma books and stories PDF | शकुंतला देवी फ़िल्म रिव्यू

Featured Books
  • चाळीतले दिवस - भाग 6

    चाळीतले दिवस भाग 6   पुण्यात शिकायला येण्यापूर्वी गावाकडून म...

  • रहस्य - 2

    सकाळ होताच हरी त्याच्या सासू च्या घरी निघून गेला सोनू कडे, न...

  • नियती - भाग 27

    भाग 27️मोहित म्हणाला..."पण मालक....."त्याला बोलण्याच्या अगोद...

  • बॅडकमांड

    बॅड कमाण्ड

    कमांड-डॉसमध्ये काम करताना गोपूची नजर फिरून फिरून...

  • मुक्त व्हायचंय मला - भाग ११

    मुक्त व्हायचंय मला भाग ११वामागील भागावरून पुढे…मालतीचं बोलणं...

Categories
Share

शकुंतला देवी फ़िल्म रिव्यू

विद्या कसम ये फ़िल्म आपको सह परिवार देखनी चाहिए।
 
शकुंतला देवी एक ऐसी शख्सियत हैं जिनपर पूरा भारत गर्व करता है। एक विलक्षण प्रतिभा जिहोंने कई बार कम्प्यूटर की गिनती को भी मात दे दी थी। विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ, ज्योतिष शास्त्री व लेखक शकुंतला देवी के नाम गिनिस बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड भी है। इन जैसी प्रतिभाओ पर फ़िल्म बनाकर एक बड़ी तादाद में लोगों को प्रेरणा देने का बढ़िया काम आज कल फिल्मों के माध्यम से हो रहा है जो बहुत ही प्रशंसा के पात्र है।
 
शकुंतला देवी के कार्यकाल की विडंबना यह भी रही की तब स्त्रियों को समाज में बौद्धिक कार्यों वाले स्थान अल्प संख्या में प्राप्त थे। तभी शायद उनके स्वभाव में एक नारीवादी सुधारक की झलक भी दिखाई दी।
 
अब फ़िल्म की बात करते हैं। यहां मुख्य भूमिका में मतलब शकुंतला देवी के किरदार में हैं विद्या बालन। विद्या का एक खास अंदाज़ है जिसमें वह दिन प्रतिदिन निखरती जा रहीं हैं। जहां हिंदी फिल्मों में लीड रोल पुरूष कलाकार कर रहे थे वहां विद्या ने आकर पुरुषों को टक्कर दे दी है। जैसे पुरूष नायक वाली फिल्मों में कोई भी हीरोइन ले लो, एक दो गाने करवा लो, थोड़ा रोना धोना और बस, हीरो की जय हो जाती है और फ़िल्म खत्म। वैसा विद्या की फिल्मों में पुरुष कलाकारों का हाल हो रहा है, कई फिल्मों में आप हीरो को या तो पहली बार पर्दे पर देख रहे होते हैं या फिर कोई जूनियर कलाकर उनका हीरो हो जाता है। मामला शुरू हुआ तब जब इश्किया और डर्टी पीक्सचर में नसीरूदीन शाह से ज़्यादा विद्या के काम को सराहा गया। फिर क्या था, कोई बड़ा हीरो इनके साथ काम करने को तैयार नही होता। अपने मज़बूत कंधों पर इन्होंने बड़ी फिल्में सुपर हिट करवाई हैं। तुम्हारी सुलु, मिशन मंगल हो या कहानी, फ़िल्म की सफलता का क्रेडिट विद्या को मिला है।  परिणीता और भूल भुलैया में पहले ही विद्या अपनी एक्टिंग का जलवा दिखा चुकी हैं।
 
विद्या बालन पर शकुंतला देवी का किरदार निखर रहा था। वह गरूर और आत्मविश्वास शायद ही कोई और हेरोइन दिखा पातीं।
फ़िल्म की कहानी में डायलोगस आपको रोमांचित करेंगे। एक दृश्य में जब शकुंतला छोटी है और उसे पता चल चुका है की वह गणित की प्रतिभा से बहुत आगे जाएगी तब उन्हें उनकी बड़ी बहन कहती है " शकुंतला तू बहुत बड़ा आदमी बनेगी तब शकुंतला कहती है की में "मैं बड़ा आदमी नहीं बड़ी औरत बनना चाहती हूं"।  शकुंतला देवी ने गणित की गिनतियों को एक कला बना दिया और उनके लाइव शो दुनिया भर में होने लगे थे। तभी उनकी मुलाकात एक स्पेनिश व्यक्ति से हुई जिनसे उनको प्यार भी हुआ पर उसने इसलिए शकुंतला का साथ छोड़ा क्योंकि वह आदमी शकुंतला के सामने खुद को तुच्छ समझने लगा। शकुंतला का कहना था "मैं पेड़ की तरह एक जगह टिक नहीं सकती, मुझे आसमान में उड़ना है"।
 
शकुंतला देवी अपने हर शो में साड़ी पहनकर एकदम भारतीय लुक में जातीं रहीं ताकि लोगों का भारतीय औरतों को देखने का नज़रिया बदले। यह मानसिकता की भारतीय औरतें सिर्फ चूल्हे चौके में ही लगीं रहतीं है, शकुंतला जी ने इस विचार को बदल दिया। फ़िल्म में जब लाइव ऑडियंस के बहुत ही कठिन गणित की पहेलियों के जवाब शकुंतला मिनिटों या सेकंडों में देतीं हैं तो लोगों के रौंगटे खड़े हो जाते हैं। ताज्जुब की बात है की शकुंतला देवी ने कोई स्कूल कॉलेज की डिग्री प्राप्त नहीं की। पर जब यही बात उन्हीने अपने बेटी को सिखाना चाही तो बेटी ने मना कर दिया।
 
जैसे की मशहूर और अति प्रतिभाशाली लोगों के साथ अक्सर होता है, उनकी निजी ज़िंदगी इतनी सुंदर व सुखी नहीं होती। उनके लिए अपने पारिवारिक जीवन व अपने व्यवसाय के बीच संतुलन बनाना कठिन बन जाता है। वही शकुंतला जी के जीवन में हुआ, शादी का टूटना, बेटी के साथ रिश्ते में कठिनाइयां, और इन सब के बीच आपने श्रेष्ठ प्रदर्शन को बरकार रखना उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा।
 
शकुंतला की बेटी अनुपमा का किरदार निभाया है दंगल वाली बबिता मतलब सानिया मल्होत्रा ने, जिसे आप बधाई हो में आयुष्मान के साथ देख चुके होंगे। एक बेटी के लिए एक माँ ही उसका जीवन होता है और यहां उन्ही अपेक्षाओं और जीवन की प्राथमिकताओं को संजोने में शकुंतला जी को बहुत कुछ खोना पड़ा। एक तरफ शकुंतला का जीनियस वाला काम और दूसरी तरफ था बेटी का एक नॉर्मल जीवन जीने का आग्रह। आप को फ़िल्म में रिश्तों में आते उतार चढ़ाव बखुबी देखने को मिलेंगे।
 
विद्या बालन का कॉमिक टाईमिंग भी बढ़िया है। डाइरेक्टर अनु मेनन को लंदन से काफी लगाव है, उनकी पहली फ़िल्म थी लंदन, पेरिस , न्यूयॉर्क और यहां शकुंतला जी भी जीवन का काफी हिस्सा लंदन में बिता रहीं हैं। फ़िल्म निर्देशन में अच्छा काम किया गया है और किरदारों को पूरी तरह से निखरने का मौका दिया गया है। डायलॉग्स में कॉमेडी अच्छी है, जैसे एक जगह शकुंतला से उनके होने वाले पति पूछते हैं 
"तो क्या हम शादी करें? " तो शकुंतला कहतीं हैं
"मैने तो सिर्फ तुमसे बच्चा पैदा करने की बात कही थी"
 
इस रिव्यू के माध्यम से मैं प्रशासन से एक सवाल करना चाहूंगा की जब शकुंतला देवी जैसी विलक्षण प्रतिभाएं देश में थीं तो उन्हें पाठ्य पुस्तकों में स्थान क्यों नहीं मिला? क्यों इनकी गणित की प्रतिभा को एक शिक्षा प्रणालि के तौर पर अपनाने का कार्य नहीं किया गया? उनकी चंद किताबें छपीं पर क्या गिनती के उनके तरीके पर शोधकार्य हुआ? क्या हम शकुंतला देवी जैसीं अन्य प्रतिभाओं को अब शिक्षा में स्थान दे रहे हैं?
 
वैसे शायद यह फ़िल्म उनको बिल्कुल पसंद नहीं आए जिनको स्कूल कॉलेज में भी गणित अच्छा नहीं लगा था। वैसे फ़िल्म में गणित की क्लास नहीं मनोरंजन भरपूर है। वेब सीरीज़ जैसे जुर्म और सेक्स की भरमार नहीं, कॉमेडी और एक्टिंग का तालमेल है। सह परिवार ज़रूर देखें।