mansik rog - 10 in Hindi Fiction Stories by Priya Saini books and stories PDF | मानसिक रोग - 10

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मानसिक रोग - 10

आनन्द की देह को सामने देखकर श्लोका निरंक खड़ी रहती है। दूसरी ओर आनन्द के पिता अपने कलेजे पर पत्थर रखकर उसके अंतिम संस्कार की तैयारी करते हैं। थोड़ी देर में आनन्द को अंतिम संस्कार के लिए ले जाते हैं। आनन्द की माँ बेजान सी हो जाती हैं। श्लोक की माँ आनन्द की माँ को सहारा देती है। आनन्द की बहन आनन्द की दादी को हौंसला दे रही होती हैं। श्लोका एक कोने में खड़े अपने सारे लम्हें याद कर रही होती है जो उसने आनन्द के साथ बिताए थे।
अंतिम संस्कार की विधि पूरी करके सब वापस आ जाते हैं। श्लोका के माता पिता भी अब श्लोका को साथ लेकर वापस श्लोका के घर चले जाते हैं। घर आकर श्लोका फूट फूट कर रोती है। माँ श्लोका को समझाती हैं पर ये दर्द समझाने से जाने वाला कहाँ था। श्लोका रोते रोते ही सो जाती है। आनन्द की याद श्लोका के जहन से जा ही नहीं रही थी। श्लोका ने ऑफिस से भी कुछ दिन की छुट्टी ले ली थी। वह दिनभर घर में रहती और रोती। इस वक़्त श्लोका को अकेले छोड़ कर जाना भी सही न था इसीलिए श्लोका के माता पिता भी कुछ और दिन बेटी के पास रुक गए।

आनन्द को गुजरे हफ़्ता हो चुका था। श्लोका ने ऑफिस जाना भी शुरू कर दिया था किंतु अब ऑफिस में उसका मन न लगता था। वह सदैव निराश ही रहती। धीरे धीरे उसका काम से ध्यान हट रहा था। अंत में उसने नौकरी छोड़ ही दी। वह घर के अंदर बन्द रहती। न किसी से मिलना न किसी से बात करना। न ठीक से खाना खाती न सोती। नींद तो जैसे गायब ही हो गई थी उसकी। रातभर पँखे को देखती रहती। बात बात पर रो देती। बेटी की ऐसी हालत देख कर श्लोका के माता पिता उसे वापस अपने घर ले आये।
श्लोका को देखकर माता पिता बहुत चिंतित हो रहें थे। उन्होंने श्लोका को डॉक्टर को दिखाने का निश्चय किया। डॉक्टर ने श्लोका को मानसिक रूप से बीमार बताया। कुछ दवाएं भी दी। श्लोका की माँ उसकी दवाइयों का पूरा ध्यान रखती। समय निकल रहा था किंतु श्लोका की हालात पहले से और ज़्यादा खराब हो रही थी। आखिर वजह क्या थी, जब पिछली बार श्लोका को मानसिक रोग हुआ था तो बिना दवा के भी वो ठीक होने लगी थी तो इस बार दवाइयों के बावजूद असर क्यों नहीं हो रहा था। शायद वजह थी श्लोका, वह खुद ही उस अंधकार से आना नहीं चाहती थी या वह इतना ज़्यादा टूट चुकी थी कि अब जुड़ पाना असंभव था। श्लोका की तबीयत को सुधारने के लिए डॉक्टर उसे ज़्यादा असर वाली गोलियां देने लगे इसका दुष्परिणाम ये हुआ कि अब श्लोका पूरी तरह अपना आपा खो चुकी थी। सच में वह अब पागल हो चुकी थी। माता पिता के पास अब कोई चारा न था। वह श्लोका को पगलों के अस्पताल में भर्ती करा आये और हर माह उससे मिलने जाते किन्तु अब श्लोका ने किसी को पहचानना भी बंद कर दिया था। मानसिक रोग उसके आगे जीत चुका था।

समाप्त।