सेंधा नमक
सुधा त्रिवेदी
(2)
जिस दिन मां को आना था, उससे एक दिन पहले ही साहिल को एकाएक ऑफिस के काम से मुंबई जाना पड गया। सब कुछ वन्या को समझाकर वह भारी मन से मुबई गया । वन्या को ही सासुरानी को लेने एयरपोर्ट जाना पडा । फ्लाइट शाम में पहुंचनेवाली थी। आगे और जाने कितनी छुटिटयां लेनी पडें, यह सोचकर वन्या ने उस दिन ऑफिस से छुटटी नहीं ली । परमीशन डालकर जल्दी से एयरपोर्ट के लिए निकल गई। सासुरानी पहली बार पधार रही हैं। कमाउ सरदारनी बहू भी अच्छी बहू होती है, वह यह बात साबित करके रहेगी - इस चक्कर में वह पिछले पूरे हफते घर की सफाई, सजावट करने और सामानों की खरीदारी में लगी रही थी। उसकी एक कलीग जैन थी । उसी से कई व्यंजन बनाना सीख लिया था । मगर सुबह रसोई और घर की सफाई करते-करते साडी पहनने का समय न रहा । वैसे भी साडी पहनना और दिन भर उसे संभाले रखना और फिर इतनी दूर ड्राइव करना उसके लिए आसान न था, इसीलिए उसने अपने जानते पारंपरिक ड्रेस सलवार कुर्ता पहन लिया और बडा-सा कश्मीरी कढाई का कॉटन दुपटटा डाल लिया। ऑफिस के चपरासी से फूलों का सुंदर गुलदस्ता मंगवा लिया था । वही लेकर वह दुपट्टे से सिर ढंके एयरपोर्ट पर सासरानी की प्रतीक्षा करने लगी।
लेकिन सासरानी का मन तो जैसे वन्या को अपनी बहू न मानने के बहाने ढूंढता रहता था। उन्होंने उसे सलवार-कुरते में देखा और उतरते ही जैसे उनकी यह धारणा दृढ हो गई कि यह लडकी हमारे परिवार की परंपराओं को कभी नहीं निभा सकती। मुंह फुलाए रहीं और वन्या के पैर छूने पर केवल धीमी आवाज में -सदा सुहागन रहो ।
वन्या उन्ह एक जगह बिठाकर जाकर उनका सामान ले आई और बाहर ले आकर गाडी में रखा । पार्किंग से गाडी ले आकर फिर उन्हें बिठाते हुए अपनी तरफ से प्रसन्नता प्रकट करते हुए बोली – “सफर में कोई तकलीफ तो नहीं हुई ?”
सासुरानी – “पांच-पांच हजार रुपए क्या तकलीफ उठाने के लिए लगाए जाते हैं ?”
वन्या को ऐसे रूखे जवाब से चोट तो लगी पर उसने बात का रुख मोडने की गरज से कहा – “अभी आंख कैसी है ?”
सासुरानी – “अभी आंख कान सब ठीक है । देख भी सकती हूं, सुन भी सकती हूं और समझ भी सकती हूं। उमर से मोतिया का थोडा असर हो जाने का यह मतलब नहीं है कि अंधी हो गई हूं ।”
वन्या सकते में आ गई। अभी साहिल को आने में पूरे हफते भर की देरी थी, पता नहीं, कैसे निभेगी । वह चुपचाप ड्राइव करने लगी।
घर पहुंचकर उसने अपनी तरफ से सासरानी की तीमारदारी में कोई कसर न छोडी पर उन्हें प्रसन्न न कर पाई।
क्रमश..