Prem in Hindi Love Stories by Poonam Singh books and stories PDF | प्रेम

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प्रेम

" प्रेम"

"क्या हुआ दीदी तब से देख रही हूँ रसोई घर में इधर से उधर घूम रही हो कुछ ढूंढ रही हो क्या?"
"नहीं तो !" सुरभि ने थोड़ा अनमने ढंग से कहा, "और तू घर का क्या मुआयना करने में लगी है ? तू आकर बैठ में खाना लगाती हूँ। "
"यह क्या मेरी प्लेट में इतना कुछ और अपनी प्लेट में सिर्फ एक रोटी और एक सब्जी !"
" ठीक तो है। इससे ज्यादा की भूख नहीं। "
"क्या ठीक है ?"
"आपने अपनी सेहत देखी है? आधी हो गई हो सुख कर । आँखें धस कर कोटरो में चली गई है और इन आँखों में जो आँसुओं का सैलाब भरा पड़ा है उसे निकलने क्यों नहीं देती, भीतर ही भीतर डुबो देगा तुम्हे ये।" विधि ने अधिकार पूर्ण लहजे में कहा।

" ऐसा कुछ भी नहीं है यह वहम है तेरा।"

"वहम ? इसी वहम को समझने के लिए ही तुम्हारे घर का मुआयना कर रही थी मैं । जाकर देखो गुसल खाने में लॉन्ड्री के कपड़ों की ढेरी लगी है। मंदिर में भगवान को फूल अर्पित किया पर दीप प्रज्वलित करना भूल गई और तो और आज तुमने बिट्टू को लंच में रोटी पैक कर दिया पर सब्जी का डिब्बा डालना भूल गई । यह सब क्या है दीदी ? कहाँ खोई रहती हो तुम आजकल? " पर सुरभि के मुख पर कोई भाव नहीं थे।
"चलो आज मै तुम्हें थोड़ा घुमा कर लाऊ । "
"हम्म.. ठीक हैं।" सुरभि ने खोई हुई आवाज में कहा।
विधि ने अपनी गाड़ी का मुख मंदिर की तरफ मोड़ा। "यह तो मंदिर का रास्ता है। मैं तो यहाँ सुबह ही आई थी। "
" हाँ मुझे मालूम है । "
"तुझे कैसे मालूम? " सुरभि ने विधि की तरफ देखते हुए आश्चर्य भरे शब्दों में पूछा।
"तुम्हारे घर के मंदिर में फूलों की ढेरी देखकर। मंदिर से मिले हुए फूल ले जाकर वही रखती हो ना तुम। "
"वैसे आजकल रोज मंदिर के फेरे क्यों लगा रही हो?"
" सुरभि ने थोड़ा रुक कर गंभीर स्वर में कहा,
...ईश्वर से माफी मांगने। "
" माफी मांगने ! किस बात के लिए माफी?"
"अच्छा चलो थोड़ी देर पार्क ही में बैठते हैं । वहीं बैठकर सारी बाते करेंगे।"
" हाँ ठीक है । "
दोनों पार्क में एक बेंच पर जाकर बैठ गई।
" हाँ तो अब बताओ इतनी परेशान क्यों हो ?" कुछ पल की खामोशी पसरी रही ।

" ..धीरज !" सुरभि ने खोई हुई आवाज में शून्य में नजरें गड़ाए हुए कहा ।
" पर धीरज को अपने से अलग करने का फैसला भी तो तुम्हारा ही था ना। कितना प्रेम करता था तुम्हें ! कितनी पाती लिखी उन्होंने तुम्हारे लिए! ,पर तुमने एक का भी जवाब नहीं दिया।"
" ...कैसे जवाब देती विधि! जब भी कदम बढ़ाने की सोचती मीता का चेहरा मेरी आँखों के सामने घूमने लगता।"
"हाँ तो, मीता के साथ-साथ वो तुम्हे भी तो अपनाना चाहते थे ना।"
"नहीं विधि, मीता उनका पहला प्रेम है। मीता की आँखों में धीरज के लिए असीम प्रेम, जिंदगी देखी है मैंने। विधि.., प्रेम जीवन में बहती हुई एक नदी के धारा के समान होती है जिसमें एकरूपता, ताजगी, सहज प्रवाह बनी रहती है और यही नदी अगर बीच में रास्ता फुटकर एक अलग रास्ता बना ले, तो आगे जाकर ये धारा अपना अस्तित्व खो देती है। यह प्रकृति का नियम है और इस सहज बहती हुई प्रेम की धारा में मै मीता को देखना चाहती हूँ । "
"फिर दुख किस बात का हैं ?"
सुरभि ने अपनी नज़रे शून्य से हटाकर जमीन की तरफ गड़ा ली । कुछ पल खामोशी के बाद उसने कहा,- "धीरज के लिए मेरे द्वारा कहे गए वह कड़े और रूखे शब्द।" इतना कहते हुए उसकी आँखों से झर झर आँसू निकलने लगे।

"पर तुम्हें उन शब्दों की जरूरत ही क्यों पड़ी?"

" क्या करती विधि कितनी दफा तो मैंने उन्हें सरलता और प्रेम से ही कहने का बारंबार बार प्रयास किया की मेरा उनके जीवन में शामिल होना असंभव है। किन्तु उनका मेरे प्रति चाहत बार-बार मेरे नजदीक ला रहा था । समझ नहीं पा रही थी कि क्या करू? एक तरफ धीरज का बेइंतहा प्रेम दूसरी तरफ मीता .. अंततः मेरे पास फिर एक ही विकल्प बचा। मैंने उन्हें अपने से अलग करने के लिए दिल पर पत्थर रखकर कड़े शब्दों का सहारा लिया। खलनायिका बन गई मैं । उनके दिल को आघात पहुँचाया । उनके दिल में अपने लिए नफरत पैदा कर दिया , ताकि वो सिर्फ मीता के पास रह सके।" इतना कहते हुए सुरभि फफक - फफक कर रोने लगी।
"अपने आपको संभालो दीदी.. मत रो! अपने लिए एक नई दिशा की तलाश करो।" सुरभि के पीठ पर प्यार से हाथ सहलाते हुए विधि ने कहा। कुछ पल के पश्चात सुरभि ने अपनी गर्दन उठाते हुए कहा , "तू ठीक कह रही है विधि !" फिर ऊपर आकाश की तरफ देखते हुए सुरभि ने पूछा, "वह देख विधि, ऊपर आकाश में क्या दिखता है तुझे ?"
विधि ने अपनी गर्दन ऊपर की तरफ उठाते हुए कहा ," नीला आसमान !
"हाँ - हाँ, वो तो हैं ही । पर , कुछ और ? "
"नहीं इसके अलावा कुछ भी तो नहीं।"
"जहाँ कुछ नहीं दिखता वहाँ शून्य होता है विधि। अब मेरी यात्रा इस शून्य से उस शून्य तक की होगी..।"

"जिंदगी लंबी है दीदी इतना आसान नहीं इन रास्तों पर चलना । "
".. सच्चे प्रेम में बहुत शक्ति होती है विधि! उसका अदृश्य डोर इंसान को एक दूसरे से बाँधे रहता है और जीवन में आगे बढ़ने की निरंतर प्रेरणा देता हैं।"

सुरभि के चेहरे पर दृढ़ इरादों की चमक स्पष्ट दिखाई दे रही थी ......।

पूनम सिंह
स्वरचित/ मौौलिक