Arman dulhan k - 2 in Hindi Fiction Stories by एमके कागदाना books and stories PDF | अरमान दुल्हन के - 2

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अरमान दुल्हन के - 2

अरमान दुल्हन के भाग -2

हम सब बहन भाई भी नई नवेली भाभी को कितनी देर तक घेरकर बैठे उटपटांग सवाल किये जा रहे थे ।भाभी भी चार-पांच घंटे का सफर करके आई थीं और थकी हुई थी ।फिर भी हमारे साथ जबरन मुस्कुरा रही थीं।तभी मां ने आकर हम सबको कित्ती जोर से डांट दिया था।
तभी किसी के पास बैठने आहट से वह वर्तमान में लौटी।
सरजू पास आकर बैठ गए थे और धीरे से फुसफुसाते हुए पूछा- "तन्नै कुछ खाया पीया सै के न्हीं।"(तुमने कुछ खाया पीया है या नहीं)

नई दुल्हन कुछ जवाब देती उससे पहले ही एक दनदनाती हुई आवाज आई ।
" रै घणा ना कान मै फुसफुस करै, लै यो दूध आधा पीले अर आधा छोड दिये।"(अरे ज्यादा ना कान में फुसफुसा, ये ले दूध आधा पी लेना और आधा छोड़ देना)

सरजू ने चुपचाप दूध लिया और आधा पीकर लौटा दिया।
"लै ए बोहड़िया यो आधा दूध तैं पीले।" ( लो बहू ये आधा दूध तुम पी लो)
उसी गौरी बुढिया की दनदनाती आवाज फिर से कानों से टकराई।
"मैं... मैं.......ना मैं दूध ना पीया करूँ।" नई दुल्हन ने धीरे से संक्षिप्त सा जवाब दिया।
सरजू फिर धीरे से फुसफुसाया-"पी ले नै ना तै बुआ नाराज होज्यागी!"
नई दुल्हन को न चाहते हुए भी दूध पीना पड़ा क्योंकि ये एक रस्म होती है ।कहते हैं कि दुल्हे का जूठा दूध दुल्हन पी लेती है तो दोनों का रिश्ता आत्मिक रूप से जुड़ जाता है। मरती क्या न करती गटगट करती हुई दूध डकार गई । गनीमत यह रही कि दूध ठंडा और मीठा था गर्म दूध दुल्हन को बिल्कुल पसंद नहीं था। उसने मन ही मन बुआ जी का शुक्रिया अदा किया।उसे जोरों से भूख भी लगी थी तो उसे भूख से थोड़ी राहत भी महसूस हुई।
तभी कैमरा मैन द्वारा पोज देने के लिए एक कमरे में बुला लिया गया। कमरे में दो कुर्सियां लगी हुई थी। उन कुर्सियों पर दुल्हा-दुल्हन को बैठा दिया गया। कमैरामैन ने दुल्हन का घूंघट खुलवा दिया और पोज लेने लगा।
"आप इधर देखिए मेरी ऊंगली की तरफ, बस बस यहीं देखते रहिए।" और वह फ्लैश मारने लगा।कभी गर्दन को दाएँ कभी बाएं घुमवा रहा था।कभी मेंहदी दिखाने का पोज तो कभी दुल्हे द्वारा दुल्हन के कंधे पर हाथ रखवाकर खुद भी टेढा मेढ़ा होकर परफैक्ट पोज लेने की हर संभव कोशिश कर रहा था। एक तो गर्मी से बूरा हाल ऊपर से ये पोज उफ्फ ! गहनों और दुल्हन ड्रेस में लदी दुल्हन अपने आप पर संयम रखे हुए थी। गुस्सा भी आ रहा था पर करे भी तो क्या?
तभी दनदनाती हुई बूआ ने कमरे में प्रवेश किया।
"हाय राम यो के(ये क्या), कमीण के बीजो थम्मनै यो के करया घूंघट ऊगड़वा दिया म्हारी बहू का। सरजूड़े तन्नै न्हीं दिख्या आज ए इसका घूंघट खुला दिया तड़कै फेर या न्हीं करैग्गी जिब मत ना कहियो।" बूआ गुस्से से उफन पड़ी । कमैरामैन ने अपना सामान उठाया और भागने में ही अपनी गनीमत समझी।
बूआ की आवाज़ सुनकर बाकी लोग भी कमरे में आ गए थे। सरजू भी बूआ से नजरें बचा कमरे से बाहर खिसक लिया।
"के होया (क्या हुआ) बूआ?" एक सामान्य कदकाठी की सुंदर सी लड़की ने पूछा।
दुल्हन उस गौरी सी लड़की को अपलक देखती रही जैसे कोई अप्सरा स्वर्ग से उतर आई हो।मोटी मोटी आंखें, तीखी नाक , नागिन सी लहराती लंबी चोटी कहर ढ़ा रही थी। उसकी मीठी वाणी जैसे वातावरण में मिश्री घोल रही थी। उसके हाथ भी गोल मटोल से बहुत सुंदर थे।
तभी दुल्हन के मुहं से अनायास ही निकल पड़ा- "हाये आपके हाथ कित्ते सुणे!(कितने सुंदर)"
सब लोग जोर से हंस पड़े और दुल्हन झेंप गई।

क्रमशः
एमके कागदाना
फतेहाबाद हरियाणा