अब राशि की हर सुबह इन्ही सब मे कब बीत जाता उसे महसूस भी ना होता। ऊपर से शकुंतला जी हर बात पर ये कहती ये घर अब सिर्फ तुम्हारा है। इसे तुम्हे ही अब सवारना है। राशि बिना जवाब दिए काम करती रहती। रोज जब हर कोई सोता रहता तभी राशि की सुबह हो जाती।देवर का कॉलेज, पतिदेव का आफिस,ननद का स्कूल, और सुबह का सबका नाश्ता।हर रोज राशि अपने परिवार के लिए जल्दी उठती और अपने कार्य मे जुट जाती। अब आप कहेंगे इसमें नया क्या है? यह तो हर गृहिणी की कहानी है।
जिसकी दिनचर्या ही परिश्रम से शुरू होती हो और परिश्रम पर बन्द। यही तो है महिलाओं का काम जो मर्द प्रधान को बहुत ही आसान लगता है।मगर कभी निभा कर तो देखिए जनाब एक दिन में ही एक महिला का परिश्रम समझ आ जाएगा। रोज सुबह का कार्य पूरा करने के बाद, घर में झाड़ू-पोछा,धूल को झाड़ना-पोछना,कमरे को ठीक करना,घर के राशन खरीदने की लिस्ट बनाना,सबके कपड़े धोना और उसे सुखाने के लिए छत तक कि दौड़, यही तो है अब राशि की जिंदगी का हिस्सा। वक्त की सूई अपने हिसाब से दौड़ लगा रही तो वही,राशि के शादी को देखते देखते एक साल गुजर गए।
उन्ही बीच घर मे एक साथ दो खुशिया आई पहली राशि प्रेग्नेंट थी तो दूसरी भावना की शादी। राशि को लगा शायद अब तो आराम कुछ दिन कर ही लूंगी मगर उन्ही बीच घर मे भावना की शादी पड़ने से राशि के लिए पूरा दिन ही बिल्कुल हैट्रिक हो जाता है। लेकिन कौन सा घर पोते की आस में बहू को आराम नही देता। शकुंतला जी ने भी राशि के कामो को कम करने का प्रयास किया कुछ दिन के लिए बाई और महराजिन लगा ही दिया। लेकिन बिन महिला आँगन सुना है वाकई यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है राशि पर दिनभर की दौड़ अभी भी कहा कम थी घर की बड़ी बहू जो ठहरी।
वक़्त बिता और भावना की शादी भी किसी तरह राशि ने बिता ही डाला।वक़्त भी अपनी रफ्तार पकड़े दौड़ रहा था,कुछ ही महीनों में राशि का माह पूरा होने को हो ही गया और उसकी डिलीवरी हुई मुबारक हो बेटी हुई है। राशि यह सुन उदास हो गयी कि मम्मी जी को तो चिराग चाहिए था।
बेटी की आने की खुशी जहाँ एक ओर सबको थी वही शकुंतला जी को बिल्कुल नही। वक़्त बिता और शकुंतला जी का गुस्सा भी बदला आखिर उन्होंने एक हफ्ते वाद अपनी लक्षमी को स्वीकार ही लिया वो भी ये बोलते हुए की जल्दी अपनी मम्मी को बोलना कि तुम्हारे लिए एक भैया लेती आए। सभी उनकी ये बात सुनकर खिल खिला दिए मगर राशि सिर्फ मुस्कुरा कर मम्मी जी की वो फरमाइश सुन रही थी जो उसके हाथों में नही बल्कि भगवान के हाथो में होती है। बेटा बेटी तो एक स्वरूप है।ना तो बेटी कम है ना बेटा कम है शकुंतला जी ससुरजी ने सासूमाँ को टोकते हुए कहा। हमारी भावना अंकिता व्योम या इन दो नालायको से कम है क्या। अरे बहू अच्छा हुआ नालायक जन्म न लिया वरना ये तीन मिलकर उसे भी खराब कर देते।
देखिए जी पोती होने का घमंड ज्यादा ना करो,पोती भी तो मेरे नालायक की वजह से हमारे आँगन में है सासूमाँ ससुरजी से ठुनकते मिजाज में बोली और पोती का नाम झट से रख दिया, गौरी। गौरी गौरी गौरी यही गूंज रहती हर जगह घर के हर कोनो से।
समय के साथ गौरी बड़ी होती गयी और मेरी आफ़ते बढ़ती गयी। अब घर में एक हिस्सा ऐसा था जिस का ख्याल जायद से ज्यादा मेरे ऊपर ही डिपेंड था। गौरी को दूध पिलाना,उसका ख्याल रखना खाना पीना। सब कुछ मुश्किल था। गौरी की पूजा पाठ पे भी सबकुछ मुझे ही तो निभाना था। निभाते निभाते सासूमाँ की हर बात को अमल करते करते में भी थक सी रही थी। शादी होने के बाद सुनती आई थी सबकुछ बहुत अच्छा होता है लेकिन उस अच्छे की कड़ी ये है। जिसे मैं निभाई जा रही मगर निभ ही नही रही।
काश घर के किसी कोने से मेरे लिए पुकार आए की बहू तुम भी आराम कर लो। ना नीद पूरी होती है ना गौरी की भूख।पूरे दिन जगना रात रात भर गौरी का जगना उसके पीछे मुझे भी जगना उसके बाद सुबह के काम,परिवार कितना मुश्किल का सफर है लड़कियों का । फिर भी सबको उसमे कमी दिख ही जाती हैं।