Chhalava in Hindi Moral Stories by Vijay Singh Tyagi books and stories PDF | छलावा

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छलावा

छलावा
छलावा और भूत का नाम तो समाज में पुराने समय से ही चला आ रहा है। मैंने भी बचपन में अपने बुजुर्गों से छलावा का नाम खूब सुना था। ‌मेरी दादी जी, बाबा जी और पिताजी छलावे के अनेक किस्से सुनाते रहते थे। छलावे और भूत के कुछ तो निश्चित से स्थान भी बताई जाते थे कि वहां उस बेरी के पेड़ पर छलावा रहता है, उस जामुन के पेड़ पर छलावा रहता है, उस पीपल पर छलावा और भूत रहते हैं। बड़े बुजुर्ग बच्चों को समझाते रहते थे कि वहां उस जगह पर दोपहरी में अकेले मत जाना, वहां छलावा रहता है। हमने सैकड़ों ऐसे किस्से सुने थे कि वहां अमुक आदमी को छलावा मिल गया था तो छलावे ने उसे बहुत मारा था। उसे मारते-मारते अधमरा कर दिया। कई किस्से तो ऐसे भी सुने थे कि छलावे के मारने से उसके मन में ऐसी दहशत बनी कि वह एक-दो महीने के अंदर मर ही गया।
हमारे गांव में रबूपुरा के एक नाई बाल काटने आते थे। उनका नाम सहीद था। एक दिन मेरी दादी जी ने बताया कि -
"एक बार सहीद नाई, हमारे गांव में बाल काट कर दोपहर के समय अपने घर वापस जा रहे थे। तो रास्ते में उन्हें छलावा मिल गया। छलावे ने सईद को बहुत मारा। मारते-मारते अधमरा कर दिया था। लगभग पन्द्रह दिन तक सहीद गांव में बाल काटने नहीं आये थे।"
मेरे मन में जिज्ञासा बनी कि क्यों न किसी दिन सहीद ताऊजी से ही छलावे का वह किस्सा सुना जाए। उस समय मेरी उम्र लगभग दस-ग्यारह बरस की रही होगी। एक दिन सहीद ताऊजी जब हमारे गांव में बाल काटने आए तो मैंने उनसे कहा - ताऊ जी मैंने सुना है कि आपको छलावे ने बहुत मारा था। ताऊ जी आज मुझे छलावे की वह कहानी सुनाओ। मैं जानना चाहता हूं कि छलावा कैसा होता है और छलावे ने आपको क्यों और कैसे पीट दिया था। यह सुनकर सहीद ताऊ जी ने कहा -
"पहले मैं कुछ लोगों के बाल काट दूं। तब दोपहर को तुम्हारे नीम के पेड़ के नीचे ही आराम करूंगा और तभी सारी कहानी बताऊंगा।"
फिर तो मैं दोपहर को उनके लौटने का बड़ी बेचैनी से इंतजार करता रहा। और अपने कुछ दूसरे साथियों को भी मैंने छलावे की कहानी सुनने के लिए इकट्ठा कर लिया था। जब वे दोपहर को लौट कर आए तो मैंने कहा - ताऊ जी अब छलावे की बात सुनाओ यह सुनकर वह बोले -
"अब तो मेरी उम्र 60 बरस की हो गई है बुढ़ापा आ रहा है लेकिन उस समय तो मैं जवान था। शरीर में बहुत ताकत थी। दोपहर का समय था, मैं बाल काट कर यहां से अपने घर जा रहा था। गर्मी बहुत अधिक होने के कारण जंगल में दूर-दूर तक कोई आदमी दिखाई नहीं दे रहा था। रास्ते में जहां वह जामुन के पेड़ खड़े हैं, सभी लोग बताते थे कि वहां जामुन के पेड़ों पर छलावा रहता है। मुझे भी अपनी ताकत पर घमंड था। मैं निडरता के साथ वहां होकर आता जाता रहता था। उस रोज जब मैं जामुन के पेड़ों के पास पहुंचा तो मुझे सफेद कपड़ों में एक आदमी बिजली की-सी गति से जामुन के पेड़ से नीचे उतरता हुआ दिखाई दिया। बस वह मुझे पेड़ से उतरता हुआ दिखाई दिया था या एकदम से वह मुझ पर टूट पड़ा। मैं कुछ नहीं समझ पाया था कि यह कौन है। मैं भी अपनी पूरी शक्ति से उससे भिड़ गया। परंतु उसकी बिजली जैसी गति के आगे मुझे पता ही नहीं चला कि उसने मुझे कब उठाकर जमीन पर दे मारा। मेरा उस पर कोई बस नहीं चल पा रहा था। वह मुझे बार बार उठा-उठा कर पटक कर मार रहा था। पता नहीं, उसने मुझे कब तक और कितना मारा। जब मुझे होश आया तो मैं धूप में अधमरा सा पड़ा था। मेरी उठने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी, पूरा शरीर दर्द कर रहा था । काफी देर मशक्कत करने के बाद मैं हिम्मत करके उठा। मुझे दूर-दूर तक कोई आदमी दिखाई नहीं दे रहा था,जिससे मैं कुछ मदद लेता। मैं बहुत घबरा रहा था। धीरे-धीरे मैं अपने घर की ओर चल दिया। मेरे मन में बड़ी भारी दहशत बन गई थी। मुझे घर पहुंचते-पहुंचते ही बुखार आ गया था। मेरा पूरा शरीर पिटाई के कारण दर्द कर रहा था। मैं लगभग दो हफ्ते में ठीक हुआ। यदि कोई दुबला पतला आदमी होता तो इतनी पिटाई से मर ही जाता।"
सहीद ताऊ जी से छलावे की कहानी सुनकर मेरे मन में छलावा देखने की तीव्र जिज्ञासा पैदा हुई। मैं भी देखूं आखिर छलावा होती क्या बला है, कैसे सबको मारता है । मैंने एक दिन अपने ताऊ जी से पूछा कि ताऊजी छलावा कैसा होता है। लोग बताते हैं कि छलावा जंगल में ही रहता है और वह अकेला आदमी देखकर ही हमला करता है। वह इतना ताकतवर होता है कि अगर वह जंगल में किसी को मिल जाए तो उसे मारता है। यह सुनकर ताऊ जी बोले -
"एक बार हमारे बाड़े के खेत में कपास बहुत अच्छी खिल रही थी। चांदनी रात थी। मैं खाना खाने के बाद घूमता हुआ खेत की तरफ चला गया। मुझे खेत में एक आदमी दिखाई दिया, मैंने सोचा कि कोई चोर कपास बीनने के लिए आया है। मैंने उसे आवाज लगाई, अरे कौन है तू खेत में? वह नहीं बोला। मैं उसे डांटते हुए उसकी ओर लपका। मैं उसकी तरफ चला ही था कि वह पलक झपकते ही मेरे पास आ गया और उसने तुरंत ही मुझ पर हमला कर दिया। मैं असमंजस में था कि यह क्या बला है, जो मुझ पर इतनी बुरी तरह से हावी हो रहा है। मेरा उस पर कोई बस नहीं चल रहा था। इतने ही मेरी नजर उसके पैरों की तरफ गई तो मैंने देखा कि उसके तो पैर उल्टे हैं।
मैंने ताऊ जी से पूछा, कि ताऊजी उल्टे पैर कैसे होते हैं।
"ताऊ जी ने बताया कि जैसे हमारे पैर आगे की तरफ होते हैं, वैसे ही छलावे के पैर पीछे की तरफ होते हैं। उल्टे पैर देखते ही मैं समझ गया कि यह तो छलावा है। किसी आदमी की तो मुझसे इस तरह भिड़ने की हिम्मत ही नहीं थी। बस एक कपास के पेड़ में उलझकर मेरी धोती खुल गई। धोती खुलते ही वह मुझे छोड़कर दूर भाग गया और पता नहीं कहां चला गया। छलावे की बहुत तेज गति होती है, अभी यहां है तो पलक झपकते ही बहुत दूर दिखाई देगा। उसकी गति का कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है।"
मैंने ताऊ जी से पूछा कि धोती खुलने पर ही वह क्यों भागा। इसका क्या तात्पर्य है ताऊ जी ने बताया-
" कि यदि छलावा मिल जाए तो तुरंत ही नंगे हो जाना चाहिए। फिर छलावा पास नहीं आएगा या फिर आग जला दो, आग जलने पर भी छलावा दूर भाग जाता है। जहां तक आग की रोशनी दिखाई देगी, वहां तक छलावा नहीं आ सकता।"
ताऊजी लंबे ठाड़े बलशाली आदमी थे लेकिन छलावे के सामने उनकी भी एक न चली। फिर तो मेरे मन में छलावा देखने की उत्सुकता और भी ज्यादा बढ़ गई । मैं निडर प्रकृति का बालक था और मेरे मन में हर चीज को नजदीक से देखने की उत्सुकता रहती थी। समय बीतता गया। मेरी उम्र जब 15 सोलह बरस की हो गई, तो मेरे मन में अपने शरीर को बलिष्ट बनाने के भाव जगे। खाने पीने की घर में कोई कमी नहीं थी। मैंने व्यायाम करना शुरू कर दिया। खूब दंड और बैठक लगाते थे और खूब खाते-पीते थे। व्यायाम करने से शरीर पूरा बलिष्ट बन गया। भूत-प्रेतों की अनेक कहानियां सुनते रहते थे पर कहीं देखने को नहीं मिला। स्कूल छोड़ने के बाद खेतों में रात दिन काम करने लगे। हमारे खेत पर जाने वाले रास्ते पर गांव से दूर एक बेरी का पेड़ था। लोग कहते थे कि इस बेरी पर भूत रहता है। रात में खेत जोतने के लिए हल लेकर जाते थे या रात में जब पानी लगाने के लिए जाते थे तो वहां पहुंचते ही याद आ जाता था कि यहां पर भूत रहता है। इसलिए वहां पर पहुंचकर सतर्क होकर जाते थे कि कहीं भूत या छलावा न आ जाए। मन में एक जिज्ञासा थी, कि किसी दिन छलावा मिल जाए, तो हम भी देख लें कि छलावा कैसा होता है। उससे हम भी दो- दो हाथ करके देख लेंगे। मैंने रात-दिन जंगल में खेतों पर काम किया पर मेरे जीवन में वह दिन कभी नहीं आया कि मैं छलावा या भूत देख पाता।
फागुन का महीना था। चांदनी रात खिल रही थी। दूर-दूर तक सब कुछ दिखाई दे रहा था गेहूं की फसल पूरी बढ़ी हुई थी। बालिया निकल रही थी। मै गेहूं में पानी लगा रहा था तभी भोला, जो थोड़ी दूर पर अपने खेत में पानी लगा रहा था, दौड़ कर मेरे पास आया, और बोला -
"भैया मुझे अभी-अभी छलावा दिखाई दिया है। मैं मेंड पर खड़ा था, मैंने दूर से उसे देख लिया वह मेरी तरफ बढ़ता ही आ रहा था। तो मैं डर गया और तुरंत ही गेहूं के खेत में घुसकर झुककर दौड़ता हुआ तुम्हारे पास आया हूं। मुझे बहुत डर लग रहा है"
मैंने तुरंत ही अपनी लाठी उठाई और उससे बोला, चल जल्दी से मुझे बता तू , कहां है छलावा? उसने कहा-
"भैया वह इस मेंड पर ही आगे को सीधा चलता आ रहा था। यह मेंड़ काफी दूर तक सीधी होने के कारण मुझे वह आदमी दूर से ही दिखाई दे गया था। बस मैं तुरंत वहां से भाग लिया।"
मैं तुरंत दौड़कर उस मेंड पर पहुंचा, मैंने देखा कि भोला मुझसे काफी पीछे रह गया है। मैंने मेंड़ पर पहुंचकर उसके आने वाली दिशा में नजर उठा कर देखा तो मुझे कुछ भी दिखाई नहीं दिया। चांदनी रात में दूर तक का दिखाई दे रहा था। इतने में भोला भी आ गया। उसने दूसरी दिशा में देखा, तो बोला-
" भैया इधर देखो, वह जा रहा, उस कीकर के पेड़ की तरफ।"
मैंने तुरंत ही उधर नजर घुमाई तो मुझे भी दिखाई दिया, बस मैंने उधर ही दौड़ लगाई। जब तक मैं वहां पहुंचा, वह कीकर की छांव में ओझल हो गया था। कीकर के पास पहुंच कर मैंने चारों तरफ गेहूं के खेत में दूर तक देखा, पर कहीं दिखाई नहीं दिया। कुछ ही दूरी पर एक सिद्ध बाबा का मंदिर था। मन्दिर पर भी ट्यूवैल चल रही थी, जिस पर दूसरे गांव वाले कंछी जाटव का लड़का पानी लगा रहा था। मुझे इस बात का पहले से ही पता था। हम मन्दिर की तरफ चल दिए, वहां जाकर देखा, कंछी जाटव बैठे गुड़गुड़ी पी रहे हैं। कंछी को बैठा देखकर मेरे मन में जो छलावे की बात थी, अब खत्म हो गई। क्योंकि मुझे पता था कि यहां पानी तो कंछी का लड़का लगा रहा है। मैंने कन्छी से पूछा, भैया तुम यहां कब आए थे और किस रास्ते से होकर आए हो। कंछी बोला, मैं तो भैया गांव से अभी-अभी, तुम्हारे आगे-आगे ही आ रहा हूं। तुम्हारी मेंड़ पर होकर ही आया हूं। फिर मेरे मन से छलावे की शंका दूर हो गई। वह छलावा नहीं, वह कंछी ही था। मुझे जीवन में कभी कोई भूत और छलावा दिखाई नहीं दिया। मेरी छलावा देखने की जिज्ञासा अधूरी ही रह गई। लगता है कि शायद जीवन में अब कभी पूरी भी ना हो सके। पता नहीं, उस समय छलावा और भूत का नाम, शायद भ्रम ही था। यदि कोई चीज पृथ्वी पर है, तो वह इतनी जल्दी खत्म नहीं होती है।