इंसान जैसा बीज बोता है वैसे ही फल उसे काटने पड़ते हैं। जवानी में माया देवी ने गुनाह का जो बीज बोया था उसका फल उसके सामने था। आज जिंदगी के उस मोड़पर जब उसके जीवन का सूर्य कभी भी अस्त हो सकता है वह नितांत अकेली और बेसहारा है तो सिर्फ अपने कर्मों के कारण ।कहने को माया देवी दो बेटों और दो बेटी की माँ है लेकिन आज उसे माँ कहने वाला कोई नहीं था और थे भी तो उससे बहुत दूर ।
माया और उसका पति अपने बुरे व्यवहार के कारण सब नाते रिश्तेदारों और आस पड़ोस में काफी बदनाम थे।बेटियों की शादियाँ तो किसी तरह हो गईं। पर बेटों के विवाह की बात जहाँ भी चलती उनके व्यवहार की खबर लड़की वालों तक पँहुच जाती।और इस प्रकार बात बनते बनते बिगड़ जाती।माया देवी के रिश्ते के भाई ने उनके बड़े बेटे सोमेश के लिये एक रिश्ता बताया ।लड़की के पिता की हैसियत ज्यादा अच्छी नहीं थी। वह ज्यादा दान दहेज नहीं दे पाएँगे यह बात लड़की के पिता ने पहले ही बता दी थी पर माया देवी को तो लड़के की शादी करनी थी इसलिए वह तैयार हो गई। शालिनी देखने में सुंदर सुशील और संस्कारी थी। माया देवी और सोमेश को पहली नजर में ही पसंद आ गई। शुभ मुहूर्त देखकर सोमेश और शालिनी की शादी कर दी गई । शालिनी के पिता ने अपनी सामर्थ्य से बढ़कर दान दहेज दिया।शालिनी दुल्हन बनकर ससुराल आ गई।शालिनी की सास माया देवी ने दहेज का सामान देखकर मुँह बनाया कैसे भूखे नंगे लोग हैं।कोई ऐसे अपनी बेटी को विदा करता है। औकात नहीं थी तो शादी ही क्यों की ? शादी क्या की है अपना बोझ उतारा है ये सुनकर शालिनी की आँखों में आँसू आ गए उसने जो अपने नए घर के सपने देखे थे एक पल में बिखर गए।
शालिनी के मायके से हर त्यौहार पर कुछ न कुछ सामान जरूर आता पर उसकी सास को कुछ भी पसंद नहीं आता ।वह सामान में कमी निकालकर शालिनी से क्लेश करती ।इस प्रकार शालिनी हर त्यौहार पर आँसू बहाती ।उसके माँ बाप भी इस बात को जान गए थे इसलिये अच्छे से अच्छा भेजने की कोशिश करते।पर उसके ससुराल वाले किसी भी तरह खुश नहीं रहते।जैसे जैसे वक्त गुजरता गया शालिनी पर ससुराल वालों की प्रताड़ना बढ़ती गई।अब उसकी सास ससुर और पति उसके साथ मारपीट भी करने लगे।उसको चप्पलों से पीटा जाता उसको अलग थलग कर दिया जाता।यहाँ तक कि उसके पति सोमेश को भी उससे अलग रखा जाता ।वह सब सहती रही पर उफ तक न करती क्योंकि उसकी दो बहिनें और थीं। वह ये सब बात बताकर अपने माँ बाप को परेशान नहीं करना चाहती थी।उसने इस तरह की जिंदगी को ही अपनी नियति मान लिया था।इसी तरह चार बर्ष गुजर गए अब उसके ससुराल वाले उसे बाँझ कहकर और प्रताड़ित करने लगे।और एक दिन धोखे से उसके तलाक के कागजों पर दस्तखत करवा कर उसे मायके भेज दिया। जब कोर्ट से सम्मन आया तब जाकर बात खुली। फिर क्या था कोर्ट में तारीखें पड़ीं और उनका तलाक हो गया।
कुछ माह बाद माया देवी ने सोमेश का रिश्ता दूसरी जगह कर दिया।दूसरी बहु रेखा बहु बनकर घर में आ गई पर माया देवी इस बार भी दहेज से खुश नहीं हुई। माया और उसके पति महेश ने शालिनी की तरह रेखा को भी तंग करना शुरू कर दिया और उस पर भी मायके से ज्यादा से ज्यादा लाने का दबाब बनाने लगे।पर रेखा शालिनी की तरह कमजोर नहीं थी उसे शालिनी के बारे में सारी बातें मालूम थीं। अतः उसने उनके अत्याचारों का जमकर विरोध किया।और एक दिन जब उसके ससुर महेश ने उसे मारने के लिये चप्पल उठाई तो वह बिफर पड़ी और उसने महेश के हाथ से चप्पल छीनकर उसी पर तान दी।यह कहते हुए " खबरदार मुझपर हाथ उठाने की जुर्रत मत करना में शालिनी नहीं रेखा हूँ, चप्पल चलाना मुझे भी आता है में उस खानदान से हूँ जो रातों रात तुम्हें मरवा देंगे और उनका बाल भी बांका नहीं होगा "अपनी बहु का यह रौद्र रूप महेश सहन नहीं कर सका ।उसको हार्ट अटेक का दौरा पड़ा और वह स्वर्ग सिधार गया।रेखा भी अपने ससुर की तेरहवीं होते ही अपने पति के साथ अपने मायके चली गई और वही अलग घर लेकर वह रहने लगे और वहीं पर किराने की दुकान कर ली।थोड़े समय बाद छोटे बेटे राकेश ने भी एक लड़की नेहा से प्रेम विवाह कर लिया और वह घर जँवाई बनकर ससुराल में रहने लगा।
अब माया देवी बिल्कुल अकेली रह गई ।घर में छोटी सी किराने की दुकान थी माया देवी अब उसी से अपना गुजारा कर रही थी।पहले घर में एक आटा चक्की भी थी पर पति और बेटों के जाने के बाद से बंद हो गई । शुरू शुरू में तो दोनों बेटे कभी कभार माँ से मिलने आ जाते थे पर धीरे धीरे उनका आना भी बंद हो गया।बेटियों के ससुराल वाले भी इस घटना के बाद से उन्हें मायके नहीं भेजते थे। अब माया देवी अपनी करनी पर आँसू बहाती रहती थी।
आज दिवाली का दिन है माया देवी को कल से ही बुखार है ।वो दो दिन से दुकान भी नहीं खोल पायी है।आज उसने चाहा कि उठकर घर की साफ सफाई करके नहा धोकर पूजा तो करले।उसने उठने की कोशिश की पर शरीर ने साथ नहीं दिया धम्म से बिस्तर पर बिखर गई ।आँखों से आँसू बह निकले अतीत की एक एक घटना चलचित्र की भाँति उसकी आँखों के आगे नाचने लगीं ।उसे कुछ साल पहले की वो दिवाली याद आ रही थी जब शालिनी बड़े उत्साह से जल्दी जल्दी घर के सब काम निबटा रही थी और वो उस पर हुक्म चला रही थी ।उस दिन भी उसने शालिनी को नहीं बख्शा था क्योंकि वह पूजा के थाल में गुड़ रखना भूल गई थी ।उसने खूब क्लेश किया था उसका सारा उत्साह ठंडा पड़ गया था और आँखों से झर झर आँसू बहने लगे थे।क्या नहीं किया था शालिनी ने इस घर के लिए खुद को पूरी तरह झोंक दिया था ।त्यौहार पर उसको कुछ देना तो दूर प्रेम के दो मीठे बोल भी नहीं मिले।
सुबह मुँह अंधेरे से देर रात तक घर के सारे काम करना, दौड़ दौड़ कर घर के एक एक सदस्य की फरमाइशें पूरी करना ,रात को सास के पैर दबाकर सोना तब जाकर उसे तानों के साथ दो वक्त का खाना नसीब होता था।उस वक्त तो माया देवी पर शैतानियत सवार थी वह भूल गई थी कि वह भी दो बेटियों की माँ है खुद एक औरत है।जिस शालिनी को बाँझ करार देकर उसे तलाक दिया था उससे सोमेश को मिलने ही कितना दिया था बहाने बना बना कर दोनों के बीच हमेशा एक दूरी बनाकर रखी ।क्योंकि उसे डर था कि कहीं सोमेश अपनी पत्नी के प्रेम में पड़कर अपनी माँ की अवज्ञा न करने लग जाए फिर बच्चे कैसे होते ।वो बाँझ कहाँ थी बाँझ तो वो खुद है अब चार चार बच्चे पैदा करने के बाबजूद कोई माँ कहने वाला नहीं है शालिनी तो फिर भी माँ बन गई उसके पिता ने उसकी दूसरी शादी कर दी अब वह दो प्यारे प्यारे बच्चों की माँ है।माया देवी के भी चार बच्चे और कई नाती पोते हैं पर अफसोस उनसे उनका कोई वास्ता नहीं है।सच है इंसान अपने अच्छे आचरण से परायों को भी अपना बना सकता है वहीं अपने बुरे आचरण से अपनों को भी पराया कर देता है। जो गुनाह माया देवी और उसके पति महेश ने किया उसकी सजा तो उन्हें मिलनी थी। अब माया देवी दिन रात पश्चाताप की अग्नि में जलती रहती है सोचती है काश शालिनी एक बार मुझे मिल जाए तो में उसके पैरों में गिरकर माफी माँग लूँ ।पर गुजरे पल कब लौट कर आते हैं इंसान को अपने कर्मों का फल इसी जन्म में भुगतना पड़ता है।
अचानक दरवाजे पर आहट से माया देवी की तंद्रा टूटी ।उसे लगा जरूर सोमेश या राकेश आया होगा।वह जैसे तैसे उठी और उठकर दरवाजा खोला।लेकिन किसी को सामने न देख निराश हो गईं।शायद यह एक हवा का झोका था जो माया देवी की आखिरी उम्मीद को भी उड़ा ले गया था।