उर्वशी
ज्योत्स्ना ‘ कपिल ‘
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शिखर का यह नियम था कि वर्ष में दो बार वह हर काम से छुट्टी लेकर पूरे परिवार के साथ भृमण पर निकल जाते थे। यही समय होता था अपनों के बीच क्वालिटी टाइम बिताने का, गिले शिकवे दूर करके जीवन रूपी पुस्तक में कुछ अविस्मरणीय पल संजोने का। इन दिनों वह व्यवसाय की कोई बात नहीं करते थे । ये दिन उन सबके जीवन में आयी नीरसता को मिटाकर नए रंग घोल देते थे, मन मस्तिष्क को तरोताजा कर देते थे। इस बार वे सभी दस दिन की छुट्टी पर स्विट्जरलैंड घूमने आये हुए थे। आज वे लोग ग्लेशियर ग्रोटो में बनी बर्फ की गुफ़ाओं का खूबसूरत नज़ारा देखकर लौटे थे। थकान बहुत हो गई थी, ज्यूरिख में दूसरा दिन व्यतीत हो चला था। सब कुछ अच्छा चल रहा था। शौर्य भी इस समय तनावमुक्त लग रहा था। उसका व्यवहार इस समय सामान्य लग रहा था। उर्वशी भी उसके साथ ढेर सारा समय गुज़ार कर प्रसन्न नज़र आ रही थी। पूरा समय साथ रहना, घूमना फिरना, मनोरंजन, सब कुछ कितना मोहक था।
ज्यूरिख स्थित होटल के अपने कमरे में शौर्य टीवी पर समाचार देख रहा था और वह बैठी मोबाइल चैक कर रही थी कि कहीं कोई आवश्यक सन्देश तो नहीं । तभी उसने एक ईमेल खोली, और उसमें निहित सन्देश पढ़ते ही वह आगबबूला हो गई। उसमें लिखा था -
अपने प्यारे पति की रासलीला के कुछ अनमोल क्षण, विशेष रूप से आपके लिए, बतौर सौगात। आशा है बहुत पसंद आएंगे।
आपका एक शुभचिंतक
उसके साथ अटैचमेंट में शौर्य और ग्रेसी की ढेर सारी तस्वीरें थीं, अभय के रिसॉर्ट में गुज़ारे गए रूमानी पलों की। उन तस्वीरों की तिथि व समय के साथ। जैसे जैसे वह तस्वीरें देखती जा रही उसका क्रोध बढ़ता जा रहा था। ठीक उसी समय शौर्य ने उसे करीब खींचा
" अरे यार, क्या मोबाइल लेकर बैठी हो। यहाँ आओ न ।" उसकी बाँह झटककर उर्वशी ने आग्नेय दृष्टि से उसे घूरा।
" मुझे नहीं पता था कि आप इस कदर रोमांटिक हैं कि एक अदद बीवी से आपका काम नहीं चलता। " वह आवेश में थी।
" मतलब ?" उसने हैरानी से उर्वशी को देखा।
" शादी से पहले कौन आपकी ज़िंदगी मे था, उसके साथ आपकी कितनी नजदीकियाँ थीं, इस बात से मुझे कोई मतलब नहीं। शादी के बाद भी, जब तक आप मुझसे दूर रहे, तब क्या किया, मैं उसे भी भूलने को तैयार हूँ, पर हमारे बीच सब कुछ ठीक होने के बाद आप दूसरी औरतों से सम्बन्ध रखें, यह काबिले बर्दाश्त नहीं। मुझे आपसे यह उम्मीद बिल्कुल नहीं थी शौर्य। "
वह अब भी कुछ न समझने के अंदाज में उसे देखे जा रहा था। तभी उर्वशी ने वह मेल उसे दिखा दी। तस्वीरें देखते हुए आवेश से उसका भी चेहरा लाल हो गया
' यू ब्लडी बिच, आ गई अपनी औकात पर, जान से मार दूँगा तुझे ' उसने मन ही मन मे ग्रेसी को सौ गालियाँ दे डाली।
" अब क्या एक्सक्यूज़ देने वाले हैं आप ? "
वह कुछ नहीं बोला
" शौर्य, मैं आपसे ही पूछ रही हूँ "
" हम उसकी बातों में आ गए थे, उसने हमें इमोशनली ब्लैकमेल किया । " वह धीमे स्वर में बोला।
" अब मुझे क्या करना चाहिए ?"
" हम शर्मिंदा हैं, आप भूल जाइये इस बात को ।"
" अगर आपकी जगह मैं होती, तब भी क्या आप इतनी आसानी से सब भूल जाते ?"
" देखिये हमारा दिमाग खराब मत करिये, हमें किसी को भी एक्सप्लेनेशन देने की ज़रूरत नहीं। " वह जिद्दी स्वर में बोला।
" ज़रूरत है मिस्टर शौर्य प्रताप सिंह, मैं पत्नी हूँ आपकी, यह पूछना अधिकार है मेरा। "
" हमारा दिल जो चाहेगा वो करेंगे हम, किसी को इतना हक़ नही दिया हमने,की वह हमें कंट्रोल करे। "
" मुझे कानून ये हक़ देता है, समाज ये हक़ देता है। "
" तो ले लीजिये कानून और समाज से अपना हक़, हम आपको अपनी ज़िंदगी से बेदखल करते हैं। "
" शौर्य, ये रिश्ते हैं, कोई मजाक नहीं कि जब जी चाहा अपना लिया और जब जी चाहा ठुकरा दिया। "
" उर्वशी, मत भूलिए की आप किससे बात कर रही हैं । आपकी औकात नहीं हमसे सवाल जवाब करने की। अगर इस घर मे आ गईं, तो किसी गलतफहमी में मत रहिएगा । भाई सा को आदत है खूबसूरत चीजें लाकर घर सजाने की। आप भी बस एक डेकोरेटिव पीस से ज्यादा हैसियत नहीं रखतीं।"
" बस कीजिये, आज आपने सारी सीमाएं पार दीं। अब आपके साथ एक पल भी रहना गुनाह है। " कहते हुए वह कमरे से बाहर निकल गई। बाहर आकर वह स्वयम को शांत करने का प्रयास करने लगी। फिर उसने मोबाइल निकालकर शिखर का नम्बर डायल किया
" हैलो " दूसरी घण्टी पर ही उन्होंने फोन उठा लिया।
" आप जितनी जल्दी से जल्दी मेरी वापसी की टिकट करवा सकते हैं करवाइए। मुझे अपने घर जाना है। " आवेश भरे स्वर में वह बोली।
" उर्वशी, आप बच्चों वाले रूम में आइए। " उन्होंने आदेश दिया और फोन काट दिया। वह पल भर को खड़ी रही, फिर बच्चों के कमरे की ओर चल दी। उसी समय शिखर भी वहाँ पहुँच गए। उन्होंने अपने दोनों बच्चों को कहा कि वह उर्वशी से कुछ ज़रूरी बात करना चाहते हैं इसलिए वो लोग थोड़ी देर को अपनी माँ के पास चले जाएं। स्वस्ति और सौम्य ने मुड़कर चाची की ओर देखा और फिर तुरंत वहां से चले गए।
" बताइये क्या बात है ?"
" मुझे वापस जाना है "
" वजह ?" वह खामोश रही।
" उर्वशी, वजह बताइये। "
" आज सब खत्म हो गया, शौर्य ने हर लिमिट क्रॉस कर दी। " कहते हुए उसने सब कुछ बता दिया। सुनकर शिखर का गुस्से से चेहरा लाल हो गया।
" हम अभी बात करते हैं उनसे। "
" मैं अब यहाँ एक पल भी रुकना नहीं चाहती और मुझसे वापसी की उम्मीद मत रखियेगा। "
" उर्वशी, इस तरह तो आप …."
" इस अपमान के बाद किसी कीमत पर भी मैं नहीं रुक सकती। हम, आप लोगों जितने रईस नहीं, पर यह रिश्ता मेरे घर से नहीं आया था, आप आये थे मेरे घर। "
" हाँ उर्वशी, हमने कब इनकार किया, हम ही आये थे। क्योंकि आपसे बेहतर हमें कोई नहीं लगा। शौर्य मूर्ख हैं, जिन्हें हीरे और काँच में फ़र्क नहीं मालूम। उनकी तरफ से हम आपसे माफी मांगते हैं । " कहते हुए उन्होंने सचमुच हाथ जोड़ दिए।
" प्लीज़ ऐसा मत करिये, बस अब कोई गुंजाइश नहीं बची। "
" आप सही कह रही हैं, पर हम कैसे भूल जाएं की यह बात हमारे खानदान के लिए बेहद शर्मनाक है। "
" जिस व्यक्ति से मेरा रिश्ता जुड़ा था, जब उसे ही कद्र नहीं तो किसके लिए मैं यहाँ रहूँ ? आप खुद सोचिये, अगर स्वस्ति के साथ उसका पति ऐसा व्यवहार करें तो क्या आप अपनी बेटी को उस घर मे रुकने देंगे ?"
" नहीं। " उन्होंने धीरे से कहा। " ठीक है, एक इमरजेंसी आ जाने की वजह से हमें कल मुम्बई जाना पड़ेगा। आप हमारे साथ चलिए। दो दिन बाद हम खुद आपको वहाँ लेकर चलेंगे। आपके पिता से माफ़ी भी माँगनी होगी, कि हम उनकी बेटी का ख्याल नहीं रख पाए। "
" मैं अकेली जा सकती हूँ।"
" आप अकेली नहीं जाएँगी, हम छोडकर आएंगे आपको ।".
" एक बात और, मुझे अब एक अलग रूम भी चाहिए, उस रूम में वापस नहीं जाऊँगी। अकेले रहना चाहती हूँ। किसी से बात करने का भी मन नहीं मेरा।"
" हो जाएगा इंतज़ाम, तब तक आप यहीं रुकिए। " कहकर वह बाहर निकल गए।
थोड़ी देर में उसके लिए अलग कमरे का इंतजाम हो गया। उसका सामान भी उसके कमरे में पहुँचा दिया गया, जिसमें से एक नाइटी और एक जोड़ी जीन्स टॉप के सिवा कुछ भी लेने से उसने साफ़ इनकार कर दिया।
" यह सब आपका ही है उर्वशी " उन्होंने उसे समझाना चाहा।
" जिस घर से अब सम्बन्ध टूट गया वहाँ से अब कुछ भी लेना मेरे पापा का अपमान है। " शिखर उससे कुछ न कह पाए।
* * * * *
अलग कमरे में आते ही वह फूट फूट कर रो पड़ी। खूब रो ली तो दिल हल्का हो गया। अब वह विचार करने लगी कि आगे क्या कदम उठाए। घर मे अभी उसने कुछ न बताने का निर्णय लिया। उसने यह भी निर्णय लिया कि वह अब राणा खानदान से कोई भी चीज़ स्वीकार नहीं करेगी। उससे मूर्खता हुई जो भावनाओं में बह कर वह विवाह के लिए तैयार हो गई। यदि उस समय ही मना कर देती तो एक सुनहरा भविष्य उसका इंतजार कर रहा था। उसने स्वयं अपनी किस्मत के दरवाजे बंद कर दिए। लड़कियाँ सचमुच परले दर्जे की मूर्ख होती हैं। कभी समाज के भय से तो कभी परिवार का सोचकर अपनी हर इच्छा का गला घोंट देती हैं। कभी प्रेम के वशीभूत होकर अपना जीवन स्वाहा कर देती हैं। ऐसी मूर्ख लड़कियों को सज़ा मिलनी ही चाहिए, तभी दूसरी लड़कियों को अक्ल आएगी।
सुबह नाश्ता उसके कमरे में ही आ गया था। यह अच्छा हुआ कि किसी ने भी उससे बात करने की कोशिश नहीं की। शायद शिखर ने इसके विषय मे सबको आवश्यक निर्देश दिए थे। यह देखकर उसने चैन की साँस ली। अगर कोई उससे बात करने या मनाने आ जाता तो वह धर्मसंकट में पड़ जाती। बड़ों की बात को टालना उसे असभ्यता लगती, और वहाँ ये सब होने के बाद रुकना अपना अपमान। शौर्य ने उसके स्व का, उसके नारीत्व का अपमान किया था। ऐसे व्यक्ति के साथ रहना बहुत लज्जाजनक बात है। वह अपना स्वाभिमान कुचलकर नहीं रह सकती।
इससे पहले शिखर कभी अपनी छुट्टियाँ स्थगित करके वापस नहीं लौटे थे। परंतु इस बार ऐसी समस्या आ खड़ी हुई थी कि उन्हें वापस लौटने का निर्णय करना पड़ा। समस्या भी ऐसी की आये बिना काम नहीं चलता। बाकी परिवार अभी वहीं रुकने वाला था। उन्होंने शौर्य के विषय मे पड़ताल करने के निर्देश भी दे दिए थे। माँ को उर्वशी व शौर्य के झगड़े के विषय मे बताया। सुनकर उन्होंने दोनो से बात करने और समझाने के लिए कहा, पर शिखर ने उन्हें रोक दिया, यह कहकर की अब कोई फ़ायदा नहीं, उर्वशी बहुत बुरी तरह आहत हुई है, अब वह कभी नहीं मानेगी । माँ ने शौर्य को बुलाकर खूब झाड़ लगाई, वह चुपचाप सब सुनता रहा। शिखर ने उससे कुछ भी न कहा, और बिन बोले अपनी नाराजगी जता दी।
झगड़ा होने के थोड़ी देर बाद ही शौर्य को अहसास हो गया था कि उसने क्या कर दिया है। वह पश्चाताप कर रहा था, परन्तु तीर कमान से निकल चुका था, और जो सर्वनाश करना था, कर चुका था। दूसरे दिन उसने उर्वशी को क्षमायाचना का संदेश भेजा। थोड़ी देर तक इंतजार करने के बाद जब कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी तो उसने फोन लगाया, पर एक घण्टी जाकर बन्द हो गई। उसने बाद में भी कई बार प्रयास किये पर हर बार यही हुआ। उर्वशी ने जब उसका सन्देश देखा तो तुरंत उसे मिटा दिया। इसके बाद उसने शौर्य का नम्बर भी ब्लॉक करके मोबाइल से मिटा दिया।
जब उन लोगों के मुम्बई जाने का समय आया तो स्वस्ति, सौम्य, ऐश्वर्या और माँ सा विदा देने के लिए आये। बच्चे हैरान थे कि चाची अचानक वापस क्यों लौट रही हैं ? ऐश्वर्या सहज थी, मानो यह अपेक्षा किये बैठी थी कि एक दिन यही होगा। माँ सा परेशान दिखीं। उन्होंने उर्वशी को गले लगा लिया और उसके मस्तक पर स्नेहचिन्ह अंकित करके ढेर सारे आशीर्वाद दिए। गाड़ी चली तो ऐश्वर्या ने हाथ हिला दिया। दो जोड़ी आँखें भी चुपके से विदाई का यह बोझिल दृश्य देख रही थीं। उनमें सूनापन और उदासी थी।
क्रमशः