उस दिन रात को अस्पताल का एक कमरा खुला रह गया था. बालकनी में कोइ खड़ा फोन पर बातें कर रहा था.उसकी बातों से ये लग रहा था कि आज रात को वह एक लड़की का पिता बना है और वह यह खबर अपनी पत्नी रेखा, की माँ को सुना रहा है, मै ये सब देख कर बहुत खुश हो रहा था. इसी बीच, नर्स आकर कुछ कहती है, वह लड़का अपनी बात रोक कर फ़ोन जेब में रखते हुए कमरे में चला जाता है.
कमरे का दरवाजा बंद हो जाता है.
मेरे हाँथ पर पानी की कुछ बूंदें पड़ीं और बहुत धीमी बारिश होने लगी उस बरसात में कोइ आवाज नहीं थी, सड़क धीरे धीरे पानी की बूँदों से गीली होने लगी. कुछ देर तक मै अपनी बालकनी से देखता रहा मगर अस्पताल के उस कमरे का दरवाजा नहीं खुला...
रात काफी हो चुकी थी, सड़क पर इक्का दुक्का रिक्शे चल रहे थे. अस्पताल के कुन्ने पर एक बिजली का खम्भा था, खम्बे की आड़ से एक चाय का खोखा खुला था, चाय वाला अपने खोखे को एक बड़ी पन्नी से ढक रहा था, वो दुकान रात भर खुली रहती है. दो एक रिकशे वाले बेंच पे वहां बैठे बीड़ी सुलगा रहे थे दीवाल की उस तरफ से कोइ तेज आवाज में बोलता चला जाता है, "प्राइवेट चार में तीन चाय"... चाय वाला तीन चाय के गिलास अपने खोखे से लगी अस्पताल की दीवाल पर रख देता है,
"तीन चाय प्राइवेट चार, उठा लो". चाय के खोखे से रात भर यही आवाजें बीच बीच में आती रहती है.
मैं भी अपनी बालकनी के दरवाजे बंद कर सोने चला जाता हूं.
अगली सुबह....आसमान कहीं नीला कहीं सफ़ेद बादल थे. सूरज बादलों में छुपा था. सामने चाय वाले की दुकान सुबह की नई उमंग में थी, दीवाल की उस तरफ से तेज आवाजें सिलसिलेवार ढंग से आती जा रहीं थीं, "नीचे 2 नo पलंग पर चार चाय",थोड़ी देर बाद, "प्राइवेट 2 में तीन चाय" बोलने वाला उधर से एक पर्ची दीवाल पर रखता जा रहा था, ऊपर पलंग नo 3 पर दो चाय. पलंग का मतलब यहाँ वार्ड में लगे पलंग से है 3 या 4 पलंग के नo हैं. ऊपर और नीचे, फ्लोर बताते हैं एक जेनरल वार्ड नीचे है और एक ऊपर.
ये मेरी बालकनी का सुबह का नज़ारा है. दीवाल की उस तरफ से आवाजें आती रहती हैं, चाय वाला पर्ची उठा के दीवाल पर चाय रखता रहता है. ये आवाजें सुबह और रात में ही आती हैं दिन में तो ट्रैफिक तेज होने से कुछ सुनाई नहीं देता. एक हाँथ दीवाल पर थोड़ी थोड़ी देर में चाय रखता रहता है दूसरा हाँथ दीवाल की उस तरफ से चाय उठाता रहता है. अगर बालकनी में खड़े हो कर देखो तो ये भी बात बहुत मजे देती है. लेकिन मैं यहाँ आज इस मजे के लिए नहीं बल्कि रात की उस जिज्ञासा के लिए खड़ा था, जो मेरे साथ ही सो के उठी थी. घर का दरवाजा बजता है, दरअसल सामने से एक गिलास चाय यहाँ भी आती है. मैं अपनी चाय का घूंट ले के अस्पताल के उस कमरे को देखने लगता हूं. कमरा रात की ही तरह बंद था. सड़क चलने लगी थी, ज्यादा नहीं, कुछ रिक्शे, साइकिलें, अखबार वाला घरों में अखवार डाल रहा था, कभी एक दो मोटर साइकिल, कारें गुजर जाती मगर अस्पताल की उस बालकनी पर शांति थी. मेरी जिज्ञासा बढ़ती ही जा रही थी. मैं उस लड़के को दोबारा उतना ही खुश देखना चाहता था, जितना की वह कल रात में था.
जब वह एक लड़की का पिता बना था. उसके चेहरे पर एक चुलबुलाहट थी जो उसने रेखा, उसकी पत्नी, की माँ से बात करते समय दबा रखी थी. मैं आगे देखना चाहता था की वो, कैसे अपनी पत्नी को धन्यवाद देता है जिसने इतना दर्द सह के उसे एक लड़की का पिता बना दिया है. अब वो उसके लिए क्या कर सकता है उसको क्या उपहार दे सकता है. यह सब वो उस से ज़रूर पूछता और वो कुछ ना कहती उसकी आँखों से एक आंसू की बून्द गिरती और चेहरे पर एक छोटी मुस्कान आजाती.
दरवाजे की चटखनी खुलने की आवाज आती है. वार्ड बॉय उस कमरे के दरवाजे को खोलता है झुक झुक कर वह चाय की दुकान में देख रहा था वहाँ कोइ नहीं था. वार्ड बॉय अपनी ऊँगली से एक तेज सिटी बजाता है जिससे चाय वाला बाहर निकल आता है. वार्ड बॉय तीन चाय का इशारा करते हुए अंदर चला जाता है. सामने बालकनी के दरवाजे पर पर्दा लगा था जिस से अंदर कुछ दिखाई नहीं दे रहा था.
मेरी चाय भी ख़त्म हो गई थी. मैं अंदर जाने लगता हूं, तभी एक बच्चे की रोने की आवाज आती है, मेरी ऑंखें बिना देखे ये जानती हैं की ये वही लड़की है जो कल रात सामने उस कमरे में आयी है, उस बच्ची के सर पर एक कपड़ा बंधा है उसकी ऑंखें बंद हैं उसका चेहरा गुलाबी हो रखा है. वह अपने पिता की गोद में है, वह धीरे धीरे उसके कपड़े की तह को हटाता है और रौशनी दिखाता है. सूरज की पहली किरण उस बच्ची पे पड़ती है और वो चौंक जाती है यह देख के उसके पिता और मेरे चेहरे पर एक मुस्कुराहट सी आजाती है. थोड़ी देर में एक बादल आकर सूरज को ढँक लेता है. वो सवेरा रात को भी वहीं बालकनी में टिका रहता है.