TANABANA - 9 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | तानाबाना - 9

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तानाबाना - 9

9

एक तरफ तो सतघरे में गाँव की बारह से सोलह साल के बीच की सभी लङकियों की शादी की तैयारियाँ जोर -शोर से चल रही थी, दूसरी ओर सतघरे की सुरक्षा के लिए शहर को जाती दोनों सङकों पर पीतल के कोके वाले लम्बे - चौङे फाटक लगाए जा रहे थे । पहरेदारी के लिए युवकों की टीमें बनाई गयी । जगह जगह गतका और लाठी चलाना सीखने वाले अपना खून पसीना बहाते दिखाई देने लगे । कोई शहर जाता तो वहाँ से आसपास की खबरें साथ चली आती । लोग पहले ही डरे होते । यह खबरें सुनते तो और डर जाते ।

एक दिन जमना और फूला लाला भगवान मल की पंसारी की दुकान पर गयी और ढेर सारी संखिया की छोटी छोटी शीशियाँ खरीद लायी । घने नीम की छाया में गली की सभी सत्रह लङकियों को खङा किया गया । उन्हें साहिबजादों की कहानी सुनाई गयी । छोटे बच्चों ने दीवार में चिनवाया जाना मंजूर किया पर अपना धर्म नहीं दिया । रानी करणावती, रानी पदमावती के जौहर की कहानियाँ सुनायी गयी । जोधपुर की राजकुमारी रूपकुँअर और सूरजकुँअर की बहादुरी और बुद्धिमानी की कहानी सुनाई गयी कि सिर्फ 13-14 साल की ये बहादुर लङकियाँ युद्ध में महाराज जोधपुर पिता के शहीद हो जाने पर अन्य लोगों के साथ बंदी बना ली गयी । सेनापति मीरकासिम इन राजकुमारियों के साथ साथ कई मन सोना – चाँदी, हाथी, ऊँट तथा भारी संख्या में युद्ध बंदी लेकर दिल्ली के लिए रवाना हुआ । तीन दिन तीन रात लगातार चलकर ये काफिला दिल्ली पहुँचा । ये सब बंदी अलाउद्दीन खिलजी के सामने पेश किए गये । नाजुक सी राजकुमारियाँ गम और थकावट से निढाल हुई पङी थी । पर उस बेहाली में भी खूबसूरती छिप न सकी । खिलजी ने इन लङकियों को अपने हरम में पहुँचाने का हुकम दिया । अचानक लङकियों ने जोर जोर से रोना चिल्लाना शुरु कर दिया –

हुजूर हम आपके काबिल नहीं हैं । इस मीर ने हमें रास्ते में नापाक कर दिया । हमारे हीरे नीलम जङे सारे जेवर भी रख लिए । ङुजूर इसके कमरबंध की तलाशी लीजिए । अभी सच सामने आ जाएगा ।

खिलजी ने अपने खास गुलाम को मीरकासिम की तलाशी का ङुक्म दिया तो कमर के फेंटे से जयपुरी जङाऊ हार निकल पङा । मीर कासिम हैरान रह गया, ये हार उसके कमरबंद में कैसे आया . कब आया, किसने डाला । उसे पता ही नहीं चला । वह लाख गिङगिङाया, सौ सफाईयाँ दी पर खिलजी ने अमानत में खयानत करने के जुर्म में उसकी खाल में भूसा भरवा दिया । जैसे ही राजकुमारियों ने दुश्मन के मरने की खबर सुनी – अट्टहास करते हुए कमर से जहर बुझा खंजर निकाल अपने सीने में घोंप लिया । मर गयी पर दुश्मन को जीते जी अपनी देह को हाथ नहीं लगाने दिया ।

ऐसे ही तुम सब भी ये जहर हमेशा अपने जंपर की जेब में रखना । अपने धर्म और इज्जत पर आँच आने से पहले मर जाना पर अपना धर्म न देना । उस दिन के बाद से हर घर में सोते बैठते ये सीख दिन में कई कई बार दी जाती ।

बाहर दूर - पास के गाँवों में हत्याओं, बलात्कारों, आगजनियों की खबरें फैलने लगी थी । जो लोग लाहौर काम से जाते या डाकखाने जाते, ऐसे ही दिल दहला देने वाले समाचार लेकर लौटते । लोग डर जाते पर अपना गांव, घर छोङ जाने की बात उनके गले न उतरती । ऐसा तो अंग्रेजों के जमाने में भी नहीं हुआ, तो अपने सुराज में किसी को घर, वतन से बेदखल क्यों होना पङेगा, वह भी बिना अपराध के, ऐसा जुल्म क्यों भाई ?

और फिर इन्हीं बतकहियों के बीच एक दिन देश आजाद हो गया । जगह जगह लड्डू बाँटे गये । उल्लास मनाया गया । अंग्रेज अफसरों ने अपना सामान बाँधना शुरु कर दिया । कुछ अफसर इंग्लैंड वापिस भेज दिए गये, कुछ को एक साल और काम करना था, वे यहीं रह गये । सुराज जिसका सपना हर हिंदोस्तानी देखा करता था आखिर आ ही गया था । अंग्रेजों के जुलम से निजात मिल गयी । अब कोई सुखदेव और भगतसिंह फांसी नहीं चढाए जाएंगे । हङताल, जुलूस का दौर खत्म होगा । लोग सोच सोच खुश हो रहे थे ।

ये खुशी लंबे समय तक नहीं रही । अचानक वही हुआ, जिसका डर था । देश आजाद तो हुआ पर तीन टुकङे हो गया । एक तरफ पूरबी पाकिस्तान, दूसरी तरफ पश्चिमी पाकिस्तान, बीचोबीच भारत । दोनों पाकिस्तान मुसलमानों के, बीच का हिंदोस्तान हिंदुओं का । बीच बीच में छोटे-छोटे रजवाङे अलग राग अलाप रहे थे ।

पूरे देश में भगदङ मच गयी । फिर भी आम जन को भरोसा ही नहीं हो रहा था । जमीन उनके बाप दादे की खून पसीने से रची बसी है । कागज सरकारी उनके पास हैं । पटवारी की जिल्द चढी बही में लिखापढी देख ले कोई भी । उनके बुजुर्गों के शमशान और समाधियाँ यहाँ हैं । ऐसे कैसे कोई उन्हें उनके जद्दी घर से निकाल सकता है । जहाँ चार लोग इकट्ठे होते, यही चर्चा होती । अगर यहां से जाना पङा तो जाएंगे कहाँ । फिर उन्हीं में से कोई कह उठता – हम क्यों जाएंगे अपना घर छोङ के । कोई निकाल के तो दिखाए । पर भीतर से सब डरे हुए थे । दशहरा आते आते पूरे हिंदोस्तान से मुसलमान निकल निकल कर पाकिस्तान की ओर कूच करने लग गये । उनका जन्नत पाकिस्तान जो बन गया था । मकान खाली होने लगे थे । भय और अविश्वास का दौर शुरु था । उधर से लोगों को जबरदस्ती भगाया जा रहा था । लोग रेलगाङियों में बैठकर हिंदुस्तान जाते । रास्ते में ही कहीं गाङी लूट ली जाती । बूढों, जवानों को मार दिया जाता । लङकियों और जवान औरतों का अपहरण कर लिया जाता । गाङी जब दिल्ली, अंबाला या अमृतसर के स्टेशन पर पहुँचती, उसमें खून के दरिया बह रहे होते । लाशों के ढेर लगे होते । दो दिन बीते होंगे कि हिंदुस्तान से आने वाली ट्रेनें भी लाशों से भरी आने लगी । हिंदु, मुसलमान दोनों धर्मों के निर्दोष लोग मारे जा रहे थे । रावी, ब्यास और चनाब का पानी लाल हो गया था । हिंसा का नंगा नाच हो रहा था ।

एक दिन भोर का समय था । लोग उठने की तैयारी कर रहे थे । अभी लोग नींद में थे . उनींदे थे । कुछ फरागत के लिए जंगलों और खेतों में चले गये थे । कुछ गाय भैंसों की चारा-सानी में व्यस्त थे । औरतें चूल्हे चौके लीप रही थी कि मिल्ट्री की गाङियों के भोंपू और हूटर बजने लगे । फौजी गाङियाँ सतघरे की गलियों में लगातार मुनादी करती घूमने लगी थी ।