mansik rog - 9 in Hindi Fiction Stories by Priya Saini books and stories PDF | मानसिक रोग - 9

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मानसिक रोग - 9

पिछले भाग में आपने पढ़ा आनन्द का पप्रोमोशन हो जाता है। घर के सब लोग असमंजस में आ जाते हैं। अभी तो सगाई की तारीख़ तय हुई है, श्लोका यहाँ है, आनन्द का परिवार भी यहाँ है। आनन्द को समझ नहीं आ रहा वह इस स्थिति में क्या करे। श्लोका और परिवार वालों ने आनन्द को प्रोत्साहन दिया कि वह अपने कैरियर में आगे बढे। और फिर आनन्द कुछ ही समय में दूसरे शहर में रहने लगा। शुरुआत में थोड़ा मुश्किल था। आनन्द कभी अपने परिवार से दूर नहीं रहा था और अब तो श्लोका का साथ भी उसे बेहद याद आता। सबसे फ़ोन पर बात तो हो ही जाती थी पर मिलने की कमी तो हमेशा रहती।
श्लोका और आनन्द हर दिन बात करते। दूर रहकर भी एक दूसरे का पूरा ख़्याल रखते। कभी कभी आनन्द श्लोका के माता पिता से भी बात करता। घर के सब लोग श्लोका और आनन्द की सगाई की तैयारी में लगे हुए थे। अब सगाई को कुछ ही दिन बचे थे। सगाई इसी शहर में होनी तय हुई थी वरन श्लोका के माता पिता भी सारी तैयारी के साथ कुछ दिन पूर्व ही श्लोका के पास आ गए। दो दिन बाद आनन्द भी अपने शहर सगाई के लिए आने वाला था। ऑफिस में छुट्टी की अर्जी भी दे दी थी।
अब तक तो सब अच्छा ही था किन्तु होनी को कौन टाल सकता है। अगले दिन आनन्द ऑफिस के लिए निकला। ऑफिस से कुछ दूर पहले ही आनन्द के साथ दुर्घटना हो गई। पीछे से तेज गति से आती गाड़ी ने आनन्द को टक्कर मार दी। टक्कर इतनी भयानक थी कि आनन्द ने घटनास्थल पर ही दम तोड़ दिया। मौके पर पहुँची पुलिस ने आनन्द के घर सूचना दी। ये ख़बर सुनते ही आनन्द के घर कोहराम मच गया।
आनन्द की माँ सिर पीट पीट कर रो रही थी। माँ को सँभाल पाना बहुत मुश्किल हो रहा था।
श्लोका भी अपने ऑफिस पहुँची ही थी कि उसे भी ये सूचना मिली। श्लोका के तो पैरों तले जमीन ही खिसक गई। ऑफिस के लिए निकलने से पहले ही तो उसकी आनन्द से फ़ोन पर बातचीत हुई थी। अचानक से ये सब हो गया। वह स्तब्ध ही रह गई। श्लोका के साथ काम करने वाली उसकी सहेली ने उसे सँभाला, पानी पिलाया और फिर वो दोनों आनन्द के घर के लिए निकल जाती हैं। इसी बीच ये सूचना श्लोका के माता पिता को भी मिलती है। वह लोग भी आनन्द के घर के लिए निकल जाते हैं।
श्लोका जैसे ही आनन्द के घर पहुँचती है आनन्द के माता पिता को देखकर वह निःशब्द हो जाती है। कहने को कुछ नहीं है बस आँखों से आँशुओ का सैलाब बह रहा है। वह आनन्द की माँ को हौंसला देती है, जो ख़ुद अंदर से टूट रही है। कुछ ही देर में श्लोका के माता पिता भी वहाँ पहुँच जाते हैं। सब दुःखी हैं फिर भी एक दूसरे को हौंसला दे रहें हैं। लंबे इंतजार के बाद देर शाम पुलिस आनन्द का देह लेकर उसके घर पहुँचती है।
आनन्द के देह को देखकर श्लोका अन्धकार में चली जाती है। वह एक दम ही निरंक हो जाती है।

अगर आप आगे की कहानी जानना चाहते हैं तो उसके लिए आपको पढ़ना होगा मानसिक रोग का अगला भाग।