रहस्यों से भरा ब्रह्माण्ड
अध्याय 3
खंड 1
वसुंधरा एक सुंदर और विशाल राज्य जिसकी सुंदरता और मनमोहक दृश्य किसी को भी मन्त्र मुग्ध कर दे।
जितना ये राज्य सुंदर है। उससे कई गुना विशाल है। जो अपने भीतर सदियों से कई रहस्य समाए हुए है। इसकी तीन दिशाओं को घेरे हुआ अद्भुत जंगल राज्य के लिए एक वरदान से कम नहीं जो बड़े से बड़े राज्य की विशाल सेनाओं को अपने भीतर चमत्कारी रूप से हमेशा के लिए समा लेता है। और वसुंधरा राज्य की सीमा की सदैव सुरक्षा में किसी अटल सैनिक की भांति खड़ा रहता है। इसके अतिरिक्त शेष बची चौथी दिशा में ऊंचे ऊँचे भीमकाय पर्वत जिनपर खड़ी चिकनी चट्टान और विष धारी जीवों के रहते चढ़ना असंभव है। यदि चढ़ भी गए तो पर्वत की चोटी पर बैठे वसुंधरा के निडर और साहसी तीर अंदाज़ आपका स्वागत यमराज बन कर करेंगे जिसके बाद आपकी मृत्यु निश्चित है।
अब बात करते है यहाँ के शासक की जिनका नाम चंद्र प्रताप राणा है। ये पराक्रमी साहसी राजा चंद्र भान के वंशज है। अपने पूर्वजों की भांति शूर वीरता और न्याय प्रियता इन्हें विरासत में मिली है। अपने युवा काल से ही ये एक निष्पक्ष व्यक्ति रहे है। जो कभी भी जाति धर्म या धन संपत्ति के आधार पर निर्णय नहीं लेते थे। इनके इन्हीं गुणों के कारण एक हिन्दू होने के बावजूद एक मुस्लिम शहजादी गुल नाज़ इन से प्रेम करने लगी थी और राणा जी भी उनके प्रेम बंधन में बंध गए,
राणा ने समाज के विरुद्ध जा कर गुल नाज़ से प्रेम विवाह किया, जिसके चलते दोनों धर्मों के कट्टर पंक्तियों ने भरपूर विरोध जताया और उनके विवाह में अनेकों अर्चन पैदा की।
राजा चंद्र प्रताप राणा का मानना था यदि संसार की रचना करने वाला ईश्वर किसी एक धर्म को ही सत्य मानता तो उसके अतिरिक्त सभी धर्मों का अंत करने में उसको क्षण भर का भी समय नहीं लगता। संसार में विभिन्न प्रकार के धर्मों का जीवित होना इस बात का प्रमाण है। कि ईश्वर के समक्ष प्रत्येक धर्म प्रिय है। और प्रत्येक व्यक्ति उसकी संतान है।
किसी भी बाग में अगर एक ही शेणी के फूल हो तो उसकी तुलना में विभिन्न प्रकार के फूलों वाला बाग अधिक आकर्षित और सुंदर होगा। ठीक इसी प्रकार से ये संसार ईश्वर का बाग है। जिसकी सुंदरता विभिन्न प्रकार के धर्मों और लोगों के होने से है।
बस इसी प्रकार की सोच से भरे हुए थे राजा चंद्रा,
खेर इन्हीं सकारात्मक विचारों के चलते वसुंधरा राज्य में प्रत्येक धर्म का सम्मान और स्वागत होता था। राजा को सबसे अधिक नफरत भेदभाव रखने वाले व्यक्तियों से थी। और उन्हें सबसे अधिक प्रसन्नता साहसी लोगों से मिल कर होती थी। खेर विवाह पश्चात राजा की तीन संतानें हुई। जिनमें से दो पुत्र और एक पुत्री थी।
इनका नाम करण भी रानी द्वारा बड़े ही अनूठे रूप से हुआ। वो प्रत्येक संतान को जन्म देते ही अपनी प्रजा के समक्ष लाती और उनके नाम की विशेषता बता कर उनका नाम करण करती,
जैसे जब प्रथम पुत्र का जन्म हुआ तो रानी गुल नाज़ उसको दोनों हाथों से उठा कर बोली " ये है जिंदा शेर को अपने हाथों से बीच में से फाड़ देने वाला हम्जा
और प्रथम बेटे का नाम हम्जा राणा रखा गया
दूसरी संतान भी पुत्र हुई जिसका नाम अधर्मियों को अपने पंजों से चिर कर उनका कलेजा निकालने वाला नरसिम्हा राणा रखा,
और अंतिम पुत्री का नाम पापियों और दुष्टों का नरसंहार कर लोगों का उद्धार करने वाली दुर्गा,
हम्जा नरसिम्हा और दुर्गा ये तीनों ही अपने पिता के सद्गुणों और प्रजा के प्रति सहानुभूति से भरे पड़े थे।
वसुंधरा के तीन दिशाओं को घेरने वाला जंगल जितना बाहरी लोगों के लिये प्राण घातक था उतना ही वसुंधरा के लोगों के लिए भी था। इसलिए वसुंधरा के राजाओं ने वसुंधरा में प्रवेश करने का मार्ग बेहद ही गुप्त रूप से उन विशाल पर्वतों के भीतर से बना रखा था जो वसुंधरा के सैनिकों से सदैव भरा रहता वहाँ पर उपस्थित 100 सैनिक भी ऊँचाई पर होने के कारण किसी बाहरी आक्रमण द्वारा किए हजारों सैनिकों पर भी भारी पड़ते थे।
वैसे तो राजा के कई शत्रु थे किंतु सबसे अधिक शत्रुता रखने वाला व्यक्ति जंगलों की दूसरी ओर के विशाल राज्य गजेश्वर का राजा भानु उदय सिंह था।
गजेश्वर राज्य वसुंधरा की तुलना में 10 गुना अधिक विशाल था और उनकी सेना शक्ति भी दस गुना अधिक थी, फिर भी वसुंधरा को पराजित करने में असमर्थ था। जिसका कारण वसुंधरा की विचित्र संरचना थी।
भानु एक क्रूर और अन्यायी राजा था जो प्रजा को केवल सुख भोगने वाली वस्तु के समान समझता था उसकी दुष्टता से दुखी होकर उसके राज्य के अनेकों ईमानदार हुनर कार लोग गजेश्वर राज्य से भाग कर वसुंधरा राज्य की शरण में जा पहुँचे थे। और अपने राज्य के भगोड़ों को शरण देते देख, राजा भानु को लगता कि राजा चंद्रा उसका अपमान करता है। खेर इसी प्रकार से राज्य के अन्य लोगों ने भी वसुंधरा राज्य के राजा के गुणगान सुने हुए थे और वो भी वसुंधरा की शरण में जाना चाहते थे। लेकिन राजा भानु ने अपनी प्रजा के भीतर इतना खोफ भर रखा था कि वो चाह कर भी नहीं जा पाते यदि कोई व्यक्ति भागते हुए पकड़ा जाता तो उसके सम्पूर्ण परिवार को धीरे धीरे प्रताड़ित करके मार दिया जाता, फिर चाहे उसके परिवार में 90 वर्ष का वृद्ध हो या 6 माह का शिशु सब के सब ये दर्दनाक पीड़ा भोगते, और ये सब सम्पूर्ण प्रजा के समक्ष किया जाता, ताकि आगे से वो ध्यान रखे के वो यहाँ से जाने का विचार त्याग दें।
भानु उदय की पत्नी एक दयावान रानी थी पर अपने पति के डर ने उसको विवश कर दिया था। और अब पति कैसा भी हो पति धर्म निभाना उसका प्रथम कर्तव्य था।
भानु उदय की दो संतान थी एक पुत्र और दूसरी पुत्री।
पुत्र का स्वभाव बिल्कुल अपने पिता समान दुष्ट था किंतु पुत्री का स्वभाव अपनी माता समान था। हाँ बस इतना अंतर था कि अपने पिता के प्रभाव में उसके भीतर का दया भाव मर चुका था। साथ में वो अत्यंत सुंदर भी थी। उसने भविष्य में किसी भी संकट से बचने के लिए युद्ध नीति में अच्छा प्रशिक्षण भी प्राप्त किया हुआ था।
उसके बाद आता है। गजेश्वर के अन्य सभा सदो का परिचय जिनमें कुछ अत्याचारी और लोभी मंत्रियों के साथ साथ राजा भानु का विश्वास पात्र वजीर नागेश्वर जो राजा से भी अधिक धूर्त था। ऐसा नहीं था कि गजेश्वर राज्य में कोई भी अच्छा व्यक्ति सभासद बनने योग्य ना हो, असल में कोई भी सद्भाव वाला व्यक्ति उस सभा में अन्य धूर्त सभासदों की दुष्ट नीतियों का आसानी से शिकार बन जाता था जिसके कारण उस दरबार में कोई भी अच्छा व्यक्ति अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह पाता था
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