गणेश वन में दस हाथी अपने अपने परिवार के साथ रहते थे.ग्याहरवां हाथी अंतू अकेला ही रहता था.उसके बीबी-बच्चे नहीं थे.उसने शादी ही नहीं की थी.परिवार के झमेले उसे पसंद ही नहीं थे.
वैसे तो हर मौसम में हाथियों की अच्छी गुजरती थी.लेकिन, बरसात के मौसम में उन्हें थोड़ी चिंता रहती. क्योंकि बरसात के मौसम में गन्ने के खेंतों के चारों ओर दलदल हो जाती.
तब वहां जाकर गन्ने खाना जान जोखिम में डालना होता.फिर भी वह मेहनत से इस मुश्किल को आसान कर लेते.
इस बार भी बरसात के आसार नजर आते ही, सारे हाथी गन्ने के खेत की ओर चल दिए.हाथियों ने अंतू से भी गन्ने लाने को कहा. अंतू हँसते हुए लापरवाही से बोला-"तुम लोगों का ही परिवार का झमेला है.तुम लोग ही ढुलाई करो.अपन को क्या चिंता?अकेला पेट है.जब भूख लगेगी जाकर खा आयेंगे."
"अंतू, बरसात में खेत में जाना मुश्किल होगा."एक बुजुर्ग हाथी ने अंतू को समझाना चाहां.
"काका, बुढापे की धूल अभी अपन पर नहीं चढ़ी.बाजुओं में दम है.हिम्मत भी.कौन सी मुश्किल अपन से हल नहीं होती."अंतू अंहकार से सूंड हवा में लहरा कर बोला.
"बेटा!दलदल में ताकत और बुद्धि काम न करेगी."एक अन्य बुजुर्ग हाथी ने अंतू को समझाया.
"आप लोग मेरी चिंता न करें. अपने परिवार के लिए ढुलाई करें. अपन तो घुमड़ते हुए मेघों की छटा देखने जा रहे हैं."कहता हुआ अंतू विपरीत दिशा में मस्त चाल से चल दिया.
भैंस के आगे बीन बजाने से कोई फायदा नहीं है.सारे हाथी समझ गए. वे चुपचाप गन्ने के खेत की ओर चल दिए.
कुछ दिन बाद ही तेज बरसात शुरू हो गई. गन्ने के खेतों के चारों ओर दलदल भर गया.
अंतू के पास कुछ खाने को न था.जबकि सारे हाथियों के पास गन्ने के ढेर लगे थे.
जब अंतू गन्ने के खेंतों की ओर जाने लगा तो उसके साथियों ने कहा-""अंतू, तुम हमारे गन्ने खा लो.आगे से ऐसी गलती नहीं करना."
एक पल के लिए उसने सोचा कि इनके गन्ने खा ले.लेकिन, वह अपनी नीची नहीं करना चाहता था. वह मुँह बिचकाकर बोला-"मुझे बासी गन्ने खाने की आदत नहीं."
सभी साथियों ने उसे रोकना चाहां. लेकिन अंतू झूमता हुआ खेंतों की ओर चल दिया.
लेकिन खेतों के पास पहुँचते ही अंतू के पैर दलदल में धँस गये. अंतू जितना बाहर निकलने की कोशिश करता.उतना ही गहरा धँसता जाता. अंत में अंतू बेबस होकर अपने साथियों को पुकारने लगा.
हाथियों ने अंतू की आवाज सुनी तो दौड़ पड़े.लेकिन अंतू दलदल में बहुत गहरे तक धँस चुका था.किसी को समझ नहीं आ रहा था कि अंतू को बाहर कैसे निकाला जाये.
तभी एक बुजुर्ग हाथी ने सलाह दी-"तुम सब अपनी सूड़ों में पानी भरकर दलदल में छोड़ो. पानी भरने से दलदल पतला हो जायेगा ,तभी अंतू बाहर निकल सकेगा."
यह बात सभी हाथियों को समझ आ गई. सारे हाथी नदी से पानी लाकर नदी में डालने लगे.
अंतू बेबस निगाहों से अपने साथियों को देख रहा था.
उसका घंमड चकनाचूर हो गया था.साथ ही बड़ों का कहना न मानने की उसे नसीहत भी मिल गई थी.
कई घंटों के प्रयास के बाद अंतू दलदल से बाहर निकल सका.
Abha yadav
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