मैं, मैसेज और तज़ीन
- प्रदीप श्रीवास्तव
भाग 2
नेहा की बातों के कारण मैं उस दिन देर तक सो नहीं सकी थी। वैसी बातें मैंने पहली बार की थीं। तमाम बातें पहली बार सुनी थीं। उसकी बेलाग बातों में से जहां कुछ शर्म पैदा कर रही थीं, वहीं कुछ बातें रोमांचित कर रही थीं। अजीब सा तनाव पैदा कर रही थीं। बहुत देर से सोने के कारण सवेरे मां की आवाज़ पर उठ तो गई लेकिन आंखें दिन भर कड़वाती रहीं। दिन भर शाम को पापा डाटेंगे यह सोच-सोच कर भी परेशान होती रही। पढ़ाई में दिनभर मन नहीं लगा। अपनी उन सहेलियों को देखा जो मोबाइल पर कॉलेज में भी किसी न किसी तरह बातें करती ही रहती थीं। तमाम रोक के बावजूद वो मोबाइल लाने, मौका मिलते ही बातें करने से बाज नहीं आती थीं। ऐसी दो सहेलियां थीं जिनसे मेरी ज़्यादा करीबी दोस्ती थी बल्कि आज भी है। एक नमिता और दूसरी काव्या। कॉलेज में मौका मिलते ही मैंने इस बारे में दोनों से बात की। यह छिपाते हुए कि पैसे की तंगी के कारण मेरे घर में मोबाइल का टोटा है। एक जर्जर मोबाइल किसी तरह पापा की या यह कहें कि घर भर की गाड़ी खींच रहा है।
उन दोनों से मैंने नेहा की एक-एक बात बता दी। सेक्स वाली बातें भी जस की तस बता दीं। जिन्हें सुनकर दोनों कभी हंसती तो कभी बेशर्मों की तरह आहें भरतीं, पूछतीं तुमको कैसा लग रहा था। मुझसे बार-बार वही बातें रिपीट करवातीं जो नेहा ने कही थीं। मैं जब गुस्सा होकर वहां से चलने को होती तो दोनों मुझे पकड़ लेतीं। मुक्ति तब मिली जब फिर क्लास का टाइम हुआ।
उस दिन घर पहुंचने तक भी मेरी बेचैनी कम नहीं हुई थी बल्कि पापा के आने और उनकी डांट को लेकर बढ़ गई थी। यही सोच-सोच कर परेशान थी कि वो पूछेंगे कि किसको फ़ोन किया था तब क्या बताऊंगी। हालांकि डायल नंबर तो डिलीट कर दिया था। घंटों की यह बेचैनी तब खत्म हुई जब शाम को पापा आए और कुछ भी नहीं कहा। मैं डरी-सहमी सारे काम करती रही। और फिर देखते-देखते रात का खाना-पीना सब खत्म हुआ और रोज की तरह सब अपनी-अपनी जगह सो गए। मगर मुझे नींद नहीं आ रही थी।
नेहा की बातें दिमाग में अब फिर से ज़्यादा उमड़नें-घुमड़नें लगीं थीं। नज़र बार-बार प्लग में लगे ज़ुगाडू चार्जर की जलती-बुझती छोटी सी लाल लाइट पर जा रही थी। जिसे मैज़िक चार्जर कहते हैं। जैसे-जैसे रात बीतने लगी नेहा से बातें करने को मन मचलने लगा। बार-बार अपनी जगह से सिर उठाकर भाई-बहन को चेक करने लगी कि दोनों सो गए कि नहीं। घंटे भर इंतजार करने के बाद जब मुझे लगा कि दोनों सो गए हैं, तो इतमिनान कर लेने की गरज से बाथरूम जाने के बहाने उठी कि ठीक से जांच लूं कि दोनों सो गए हैं। बाथरूम जाकर लौटने के बाद जब मुझे यकीन हो गया कि दोनों सो गए हैं तो मुझे ऐसा लगा कि मानो मैं आज़ाद हो गई हूं।
कदम जैसे अपने आप ही चार्जर की तरफ बढ़ गए। जल्दी-जल्दी मोबाइल फिट किया और उस पर्ची को निकाल कर नेहा को नंबर मिला दिया जिस पर कल नंबर नोट कर मैंने रख लिया था। नंबर तुरंत मिल गया। नेहा तुरंत लाइन पर आ गई। उस दिन उसकी बातों से यह भी पता चला कि यह नंबर ही उसकी आई.डी. है। इसे डॉयल करने पर सीधे उसे ही मिलेगा। उसने यह भी बताया कि जैसे ही एंगेज मिले तो फ़ोन काट दिया करो। नहीं तो किसी दूसरी आई.डी. पर मिल जाएगा। मुझसे बात नहीं हो पाएगी। उस दिन भी नेहा ने ऐसी-ऐसी बातें कीं कि फ़ोन काटने का मन ही न कर रहा था।
मन के एक कोने में यह डर भी सता रहा था कि बैलेंस खत्म हो रहा है। मगर नेहा की बातें खत्म ही नहीं हो रही थीं। उसकी बातों से जब शरीर में कई जगह मैं तनाव, सिहरन सी महसूस करने लगी तो फ़ोन काटकर डॉयल नंबर डिलीट किया और चार्जर में बैट्री लगा कर अपने बिस्तर पर लेट गई। नेहा ने ऐसी बातें कहीं थीं कि तन-मन कल्पना के रंगीन सागर में गोते लगाने लगा था। उस दिन जीवन में पहली बार अपने ही अंगों को अपने ही तन को जगह-जगह कुछ अलग सा अहसास करते हुए छुआ। अंगों के साथ अजीब से खिलवाड़ भी किए जैसा नेहा से सीखा। इन सबसे जैसी अनुभूति हुई वह सब मेरे लिए पहला अनुभव था।
अगले दिन काव्या और नमिता से मैं बात करने की सोच ही रही थी कि दोनों ने मौका मिलते ही खुद ही पूछताछ शुरू कर दी। मैंने कई बातों को छुपाते हुए तमाम बातें फिर बता दीं। फिर उस दिन दोनों ने मुझे जो बताया उससे मैं असमंजस में पड़ गई। उन दोनों ने बताया कि यह सब तो मोबाइल कंपनियों का धंधा है। जिसे वॉयस चैटिंग कहते हैं। जहां तक उन्हें मालूम है कि ये कंपनियां अपने सभी मोबाइल यूजर्स को ऐसी चैटिंग करने के लिए मैसेज भेजती रहती हैं। मैसेज की लैंग्वेज ऐसी होती है कि पढ़ने वाला एक बार तो रिंग कर ही देता है। और इन नंबरों पर रिंग करने पर जो लड़कियां बात करती हैं उन सबकी अपनी एक आई.डी. होती है। बात करने वाला चाहे तो उसी आई.डी. पर बात करे या फिर बदलता रहे। इन लड़कियों को बात करने के बदले ये कंपनियां पैसा देती हैं। जितनी ज़्यादा बात उतना ही ज़्यादा पैसा। इसलिए लड़कियां फ़ोन करने वाले से ऐसी बातें करतीं हैं कि आदमी ज़्यादा से ज़्यादा देर तक बातें करे फ़ोन काटे न। या वह जिस तरह की बात करना चाहते हैं वैसी ही बातें करती हैं।
फ़ोन पर बिना जाने बूझे, किसी से बिना मिले दोस्ती का कोई मतलब ही नहीं होता। इसमें लड़कियों या बात करने वाला जब तक न चाहे तब तक कोई एक दूसरे का असली परिचय या मोबाइल नंबर भी नहीं जान सकता। लड़कियों की आई.डी. पर फ़ोन करने वालों का नंबर शो नहीं होता। फ़ोन करने वाले जब फ़ोन करते हैं तब कंपनी किसी आई.डी. पर कनेक्ट कर देती है। मतलब की जब तक दोनों खुद न चाहें कोई एक दूसरे को जान नहीं सकता। सारा खेल लुक-छिप के जुबानी-जुबानी मस्ती करने, पैसा कमाने का है। ज़्यादा से ज़्यादा पैसे के चक्कर में लड़कियां हर वक़्त बतियाने को तैयार रहती हैं। बात करने वाले को एक ऐसा प्लेट-फॉर्म मिल जाता है जहां वह बिना किसी लाग-लपेट, शर्म-संकोच के अपनी सारी बातें कह लेता है। एक-आध लोग तो ठीक बातें करते हैं बाकी सब वही गंदी, अश्लील और सिर्फ़ सेक्स की ही बातें करते हैं। वास्तव में ये सब अपनी दमित इच्छाओं को यहां निकालते हैं। फ़ोन करने वाले सब के सब मर्द ही होते हैं। लड़कियां, औरतें कोई भूले-भटके या रेअर ही करती हैं। इन आई.डी. पर बात करने वाली कम उम्र की लड़कियां ही नहीं हैं। बल्कि हर उम्र लड़कियां हैं, औरतें हैं। यहां तक की पचास-पचपन की औरतें भी।
सहेलियों की इन बातों ने मेरी धुकधुकी और बढ़ा दी कि यार बैठे-बैठे पैसा भी मिलता है। मुफ्त की मस्ती भरी बातें भी, मजा ही मजा है। उस दिन मैंने रात में फिर बात की। मगर नेहा की जगह किसी और की आई.डी. मिली। वह कोई बहुत मैच्योर महिला थी। घर में जैसी आवाज़ें आ रही थीं उससे साफ जाहिर था कि घर में कई लोग थे। मैं समझ नहीं पा रही थी कि वह ऐसे में कैसे बात कर ले रही है। मैंने फ़ोन काट दिया। दूसरी बार नेहा की आई.डी. फिर एंगेज मिली। ऑपरेटर की जैसे ही यह आवाज़ सुनाई दी कि आप जिनसे बात करना चाहते हैं वह अभी व्यस्त हैं, यह सुनकर मैं फ़ोन काटने ही जा रही थी कि तभी लाइन कनेक्ट हो गई।
आवाज़ बहुत ही सुरीली थी। मैंने कहा ‘नेहा’ तो वह बोली ‘मैं नग़मा बोल रही हूं।’ मैंने कहा ‘मैंने तो नेहा को मिलाया था।’ तो वह बोली ‘वह बिजी रही होगी इसलिए ऑपरेटर ने मुझे कनेक्ट कर दिया होगा।’ फिर उसने मुझसे बिना रुके बातें शुरू कर दीं। मैं फ़ोन काट न दूं इसलिए उसने वही हथकंडे अपनाने शुरू किए जो नेहा ने अपनाए थे। मुझसे पूछा ‘तापसी जानती हो तुम इतनी रात हो जाने के बाद भी क्यों जाग रही हो।’ मैंने कहा ‘नहीं’ तो वह बोली ‘क्योंकि तुम अब यंग हो रही हो और तुम्हें ऐसे रंगीन सपने दिखने लगे होंगे जो तुम्हें गुद-गुदाते होंगे, गहरी सांसें लेती होगी, एक्साइटेड होती होगी। मस्ती में डूब जाना चाहती होगी। चाहती होगी कि कोई तुम्हारे सपनों का राजकुमार हो जो तुम्हें प्यार करे, तुम्हें बांहों में भर कर ऐसा किस करे कि तुम मारे रोमांच के आंखें बंद कर उसी में समा जाओ।’
उसने देखते-देखते वाकई अपनी बातों से मुझे रोमांचित कर दिया। मेरे दिमाग से नेहा एकदम निकल गई। यह नेहा से बहुत आगे थी। चालाकी, और जानकारी दोनों में ही। बातें लंबी होती जा रही थीं, मैं उनमें उलझती जा रही थी। पापा की गाढ़ी कमाई का पैसा फुन्क रहा है यह सब भूल गई थी। नग़मा ने मुझे बांध लिया था। उसने अपनी एक से एक कहानी शुरू कर दी। जिन्हें अधूरा छोड़ने का मन सोच ही नहीं पा रहा था। उसने बताया कि उसने कैसे मात्र पंद्रह की उम्र में ही पुरुष को एकदम नग्न देखा था। फिर क्या किया, कैसे फिर बार-बार देखा। और फिर साल भर के भीतर उसका अपने एक ब्वायफ्रेंड से रिश्ता बना। पहली बार उसके साथ किया सेक्स आज भी नहीं भूली है। मगर जल्दी ही उससे ब्रेकप हो गया। क्योंकि वह कई अन्य लड़कियों से संबंध बना चुका था, उसके लिए उसके पास टाइम नहीं था। और आजकल वह अपने एक नए ब्वायफ्रेंड नमन के साथ बहुत एंज्वाय कर रही है। ही इज सो हैंडसम एंड सो हॉट।
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