wo bhuli dasta - 4 in Hindi Moral Stories by Saroj Prajapati books and stories PDF | वो भूली दास्तां, भाग-४

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वो भूली दास्तां, भाग-४

आज चांदनी सुबह से ही खुश थी। हो भी क्यों ना कल ही रश्मि आज उससे मिलने जो आ रही थी। पूरे 25 दिन बाद! चांदनी ने सोच लिया था कि वह रश्मि को उस लड़के के बारे में जरूर बताएंगी ।
दोपहर को जैसे ही रश्मि उससे मिलने पहुंची, चांदनी उसे गले मिलते हुए बोली "भूल गई ससुराल जाकर हमें तू तो.! याद नहीं आई! फोन तो कर देती एक। उस दिन भी अपने घर आई और मुझे बताया भी नहीं!"
"अरे, बस कर आते ही एक साथ इतने सारे सवाल दाग दिए तूने तो! जरा बैठने दे सांस लेने दे मुझे! अरे भई ससुराल में थी, अपने घर में नहीं।‌ नई नई बहू होकर अगर ज्यादा फोन पर चिपकी रहूंगी तो सास जीने ना देगी मुझे। फिर घर में रिश्तेदार जमा थे। उनके सामने कैसे करती फोन। पगफेरे के लिए भी 2 घंटे के लिए लेकर आए थे। जल्दबाजी में तुझे फोन भी ना कर पाई। उसके बाद हम दोनों उड़ गए कश्मीर के लिए!"
"बस वहां जाकर तो तू मुझे क्या याद करते हैं। खोई रही होगी ‌ हमारे जीजा जी की बाहों में!"
"बस कर शर्म नहीं आती तुझे!"
"अच्छा जी सो सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली! कहकर चांदनी जोर जोर से हंसने लगी।"
तभी उसकी मां उन दोनों के लिए चाय नाश्ता लेकर आई चांदनी को हंसता देख कर रश्मि से बोली "देख ले तेरे जाने के बाद इतनी गुमसुम उदास रहती थी। आज हंसी है इतने दिनों बाद! हम तो इसकी हंसी सुनने को तरस गई थे। अच्छा बिटिया ससुराल में सब राजी खुशी!"
"हां चाची जी सब बढ़िया है"
"अच्छा तुम दोनों बातें करो। मैं थोड़ा काम निपटा लूं।" कहकर वह चली गई।
उनके जाने के बाद रश्मि ने चांदनी से पूछा "हां भई बिट्टू रानी, अब जरा तू बता किसकी यादों में तू देवदास बनी हुई है।"
"तेरी में और किसकी!"
"अब हमें तो तु चाची जितना बेवकूफ समझ मत।‌ तेरी रग रग से वाकिफ हूं मैं! अब जरा सीधे-सीधे लाइन पर आ और बता!"
"अब तुझसे क्या छुपाना! मैं तो तेरे आने का ही इंतजार कर रही थी।" कह चांदनी ने उसे शादी में मिले उस लड़के से हुई मुलाकात के बारे में सब बताया।
फिर बोली "पता नहीं रश्मि वो भी मेरे बारे में कुछ सोचता होगा भी या नहीं और मैं उसके लिए दिवानी हुई जा रही हूं।"

"ओहो! यहां तो आग दोनों तरफ बराबर लगी है!"
"क्या मतलब!" चांदनी ने हैरानी से उसकी ओर देखते हुए पूछा।
रश्मि ने अपने पर्स फोटो निकालते हुए उसकी ओर किया और बोली "क्या यह वही लड़का है!"
चांदनी ने फोटो देखते हुए हैरानी से पूछा "हां यह वही है लेकिन तेरे पास उसकी तस्वीर कैसे!"
"तेरे जीजा जी का बेस्ट फ्रेंड है यह।‌ उसने यह सारी बातें उन्हें
बताई और उन्होंने मुझे। सुनते ही मैं समझ गई थी कि तेरे सिवा कोई दूसरी हसीना हो ही नहीं सकती। जो उस सीधे सादे लड़के पर जादू चला सके। उसने हीं मुझे यह तस्वीर देकर तेरे दिल की बात जानने के लिए कहा था । और बेचारे ने कहा था कि अगर तुझे वो पसंद ना हो तो मैं तुझे राजी करूं। लेकिन यहां तो पहले ही तू उसके प्यार में घायल बैठी है। चलो मेरी मेहनत बच गई।"
उसके बात सुन चांदनी रश्मि के गले मिलते हुए बोली "सचमुच तू मेरी पक्की सहेली है। रश्मि थोड़ा और बता ना इसके बारे में!

"अब ज्यादा तू मक्खन बाजी तो कर मत। चल फिर भी मैं तेरी हालत पर तरस खातिर बता देती हूं। बहुत ही अच्छा लड़का है आकाश नाम है उसका। दो बहनों का इकलौता भाई और मां-बाप का लाडला। छोटा सा कारोबार है उनका। उसी में अपने पापा की मदद करता है। अगर उसके माता पिता राजी हो गए तो रानी बबनराज करेगी तू। वैसे तेरे जीजा जी कह रहे थे उसकी मम्मी उसकी हर बात मानती है। बस तेरी हां की देर थी। अब तो तू रिश्ता पक्का समझ और उस की रानी बनने की तैयारी कर। अच्छा अब मैं चलूं। शाम को तेरे जीजा जी लेने आएंगे उसकी तैयारी करनी है और जैसी भी बात होगी मैं तुझे जल्द से जल्द बताऊंगी।"
जैसे ही रश्मि जाने नहीं चांदनी की मम्मी ने उससे कहा " बेटा इतनी जल्दी वापस जा रही है।"
"चाची शाम को ससुराल वापस जाना है।"
"ठीक है बिटिया अब तू अपनी सहेली के लिए भी हमारे जमाई राजा जैसा अच्छा सा लड़का ढूंढ दे तो उसके भी हाथ
पीले कर दूं मैं!"
"हां हां चाची क्यों नहीं! क्या पता अगली बार इस बारे में ही मैं कोई खुशखबरी लेकर आऊं।"
"तेरे मुंह में घी शक्कर बिटिया।" कहकर उन्होंने रश्मि के सिर पर हाथ रख , विदाई के पैसे दिए।
क्रमशः
सरोज ✍️