अगले भाग मैं हमने देखा की आरव का जन्मदिन आया और उसने माँ पिता के चरणों मैं झुक कर आर्शीवाद लिया और कहा की वही मेरे लिए सबसे बड़ी अमूल्य भेट है | फिर आरव की माँ ने पूछा की बेटा , तुम्हें क्या चाहिए? फिर आरव ने कहा चाहिए तो कुछ भी नहीं पर हाँ , माँ आप मेरे लिए आज लड्डू ही बना देना उसमे मेरा सब कुछ आ गया | फिर आरव की माँ ने लड्डू बनाया और आरव भी ख़ुशी के मारे पागल हो रहा था क्यूंकि उन्हें लड्डू बहुत पसंद थे | देखते ही देखते मैं आरव के दोस्त भी उनके घर पहुँच गए और ढेर सारी बधाईया और भेट दी | पर उनमे से आरव का एक दोस्त बहुत करीब था और आरव को उनके साथ सगे भाई की जैसा बनता था | हर वक़्त मैं , हर पल मै वो दोनों साथ ही रहते थे और पढ़ाई भी हररोज़ साथ मै ही किया करते थे | और आरव के जन्मदिन पर उसने एक घड़ी भेट मैं दी | तब आरव बहुत खुश हुआ और वही भेट उसने बहुत अच्छे से संभालकर रख दी और वो उनकी पहली भेट थी जो आरव के खास मित्र ने दी उसका नाम राघव था | आरव और राघव दोनों ऐक जैसे ही थे इसलिए तो उनके वर्ग मैं भी ये दोनों भाई है ? वही समझते थे | आरव और राघव की दोस्ती 7 वीं कक्षा मैं हुई और राघव आरव के घर के पास ही रहता था पर राघव किसी दूसरे पाठशाला मैं अभ्यास करता था | राघव और आरव दोनों बचपन से ही अच्छे दोस्त थे साथ मैं ही खेलना और साथ मैं ही पढ़ाई करना | कभी कभी तो खाना भी साथ मैं होता था | ऐसे ही आरव का जन्मदिन का पूरा दिन बीत गया | राघव भी अपने घर चला गया | 10 वीं कक्षा मैं पढ़ाई कुछ दिन की छुट्टी के बाद शुरू हुई फिर थोड़े दिन आरव को भी थोड़ा पढ़ना मुश्किल लगने लगा था पर उसने हिम्मत नहीं हारी उसने ठान ही लिया की वो सब कर शकता है |
5 महीने बाद.....
आरव की 10 वीं की पहली परीक्षा थी और उसमे भी अच्छे से उत्तीर्ण हो गया और उनका दोस्त राघव भी अच्छे से पास हुआ | वो 9 वीं कक्षा से दोनों साथ मैं ही थे | अच्छी तरह से वो दोनों हर काम निपट लेते थे मिलजुल कर... फिर बोर्ड की परीक्षा भी शुरू होने वाली थी और काफ़ी नज़दीक वक़्त था और ज़ब आरव ने पहेली परीक्षा मे अच्छा मार्क्स मिला और अच्छे से उत्तीर्ण हुए उसके दोस्त ये उनकी अच्छाई और सच्चाई को परख नहीं पाते थे | लेकिन कहते है ना की हर कोई इंसान को तभी काम आता है ज़ब उसे ज़रूरत होती है | आरव के वर्ग मैं भी ऐसे कई दोस्त थे जो आरव की हर बात को सही तरीके से नहीं पहचान शकता था और तो और आरव सब के साथ मिलजुल कर रहता था वो भी उनसे देखा नहीं जाता था और आरव तो पहलेसे ही दयालु और सहजता से काम लेता था | किसी को भी बुराई करे या फिर किसी की बात का बतंगड़ बनाए वो आरव को पहले से ही पसंद नहीं था | क्यूंकि उन्हों ने अपने माता पिता से यही सीखा था की , कोई चाहे जितना भी बोले और कितना कुछ कहे लेकिन हमें हर हालत मैं सावधानी से काम लेना चाहिए उसे पलट कर उत्तर किसी भी हाल मैं मत देना |
वैसे ही मेरे हिसाब से कहु तो कौन व्यक्ति कैसा है और धनवान है या नहीं ? ये सब मायने नहीं रखता पर माता पिता और गुरूजी को दिया हुआ संस्कार और परवरिश मैं ही हर कोई व्यक्ति की पहचान बन जाती है | ठीक उसी तरह के सारे गुण राघव और आरव मैं भी थे | इसलिए वो कभी भी किसी पे चीज पर आंच नहीं आने देता था फिर चाहे उनके परिवार हो या उनकी छात्रा... !!
अब क्या होगा ऐसा की आरव की बोर्ड की परीक्षा मैं ?
कुछ क्या हुआ होगा ऐसा और क्या आरव के जीवन की परीक्षा अब शुरू होगी?
वो पढ़ने के लिए देखते है भाग : 4 के साथ ......
- Honey Lakhlani