एक बूँद इश्क
(14)
परेश की भाभी शुचिता वैसे तो पूरा ध्यान रख रही है रीमा का, लेकिन एक स्त्रीमन जिज्ञासु है उस भेद को जानने का जो उसके लिये बहुमूल्य खजाना हो सकता है। बेशक हैड ऑफ दी फैमिली तो माँ ही रहेगीं जब तक वो हैं..मगर उसका और रीमा का प्रतियोगियों जैसा रिश्ता है और हर प्रतियोगी जीतने की बजाय दूसरे को हराना चाहता है, यह एक बिडम्बना है। वह उम्र और ओहदे दोनों में रीमा से बड़ी है कुशल ग्रहणी है ऊँचा सम्पन्न मायका है फिर भी वह रीमा से खुद को हल्का पाती रही है। उसकी वैचारिक ऊँचाइयाँ, दिमागी तीव्रता और संवेदनशीलता हमेशा से शुचिता की शत्रु रही हैं।
काल्पनिक और मनगढ़ंत कयासों में वह उतना ही उलझी है जितना रीमा अपने अंधेरों में। अकेले में सांतवना के साथ-साथ उसका पूरा प्रयास रहता है कि रीमा के भीतर का तूफान जान ले। आखिर कोसानी में ऐसा क्या हुआ होगा जो परेश को अचानक जाना पड़ा? और लौटने पर उसके व्यवहार का बदल जाना? यह सब एक अनसुलझी पहेली है जो संवेदनाई स्तर से गुजरने के बजाय जिज्ञासु चतुराई से रू-ब-रु है। एक भी सिरा हाथ आ जाये तो पूरी कहानी साफ हो जायेगी। मगर वो सिरा है कहाँ?
आज रात आठ बजे डा. कुशाग्र से मिलना है। यह समय कुशाग्र ने स्वंय चुना है। वैसे तो उनकी ओ.पी.डी. छ: से आठ चलती है लेकिन डा. चाहते हैं रीमा को अलग से समय दिया जाये, बाकि पेशेंट से अलग। ऐसे संवेदनशील मरीज के लिये भीड़-भाड़ उपयुक्त नही। धैर्य और एकान्त कितना जरुरी हैं यह एक डाक्टर अच्छी तरह जानता है।
ठीक आठ बजे परेश रीमा को लेकर क्लीनिक पहुँच गया। उसके साथ एम. आर. आई. और दूसरी सभी रिपोर्टस भी हैं। अब इन रिपोर्टस के आधार पर कुछ निष्कर्ष निकाला जा सकेगा..शायद रीमा फिर से उसे वापस मिल जाये?
सारी की सारी रिपोर्टस नार्मल हैं। एम. आर. आई. भी एकदम ठीक है। अब सवाल ये उठता है कि आखिर बजह क्या है? हल्का सा डिप्रेशन जरुर दिखता है। उसकी कुछ दवायें कल ही ले दी थीं। जिससे रीमा को कुछ रिलैक्स मिल सके और वह आज के सवालों का जवाब बिना किसी ना-नुकुर के दे पाये। टैम्प्रेचर, वी.पी., वेट, और नब्ज यह सभी औपचारिक चीजें कुशाग्र कर चुके हैं।
सवालों का सिलसिला फिर हल्के-फुल्के अंदाज में शुरु हुआ। रीमा को आँख बंद कर लिटा दिया है। इस बार परेश रुम के बाहर नही गया, चूँकि रीमा की आँख बंद हैं तो उसके रहने या न रहने से कोई फर्क नही पड़ता।
"रीमा कैसी हैं आप? रात अच्छे से नींद आईं?" कुशाग्र ने मीठी, भरोसेमंद आवाज़ में बोलना शुरू किया। बेशक यह उनके प्रोफेशन का एक पार्ट है फिर भी यहाँ इस केस के प्रति कुशाग्र का भावात्मक जुड़ाव हो गया है।
"बोलिये रीमा?
" हमममम...."
"कैसा फील है रहा है?"
रीमा अधसोई सी खामोशी के गहरे समुन्दर में उतरती जा रही है। कुछ दवाओं का नशा भी है।
क्या खाया था कल डिनर में? "
उसकी साँसे तेज चल रही हैं मगर वह चुप है।
" रीमा आप मेरी आवाज़ सुन रही हैं कल रात में क्या खाया था?"
"फाणु और भात"
परेश अपनी जगह से उछल गया- "यह क्या....?"
कुशाग्र ने उसे ईशारे से चुप रहने को कहा। उसने उसी कोमलता से पूछा-
"फाणु और भात ? अरे वाह...किसने पकाया??
"बैजू और मैंने...पहले उसने भात जला दिया था फिर हमने दोबारा पकाया।"
"गुड....और क्या खाया????"
"वो हमारे लिये बाजार से कुछ खरीद कर लाया था। सत्तू ने माँगा तो उसने साफ-साफ कह दिया- "यह तो हमारी चन्दा का है हम किसी को नही देगा।"
"चन्दा .....यह चन्दा कौन है?"
"मेरा नाम है चन्दा "
"हमममममम....बहुत सुन्दर नाम है. फिर.....आगे....?"
"सत्तू रूठ गया और चला गया।"
"ओहहहह.सत्तू कौन???
"सत्तू बैजू का चचेरा भाई...जो बैजू के साथ ही रहता है।
"क्या लाया था बैजू तुम्हारे लिये?"
सुबकियाँ लेती हुई वह रो पड़ी। रोते-रोते हलकान हो गयी। परेश का दिल तडपने लगा उसने कुशाग्र से आग्रह किया कि अब रहने दें। बदले में कुशाग्र ने उसे बाहर जाने का सख्त निर्देश दे डाला। वह उसके काम में बाधा डाल रहा है जिससे सारे किये कराये पर पानी फिर सकता है। यह वही स्टेज है जिस पर वह लाना चाहता है। यहाँ से सारे राज बाहर आ सकते हैं।
परेश को अपनी गलती का अहसास हुआ और फिर वह मजबूरन धैर्य को समेटे बैठा रहा। कुशाग्र के सवालों का सिलसिला चलता रहा और रीमा रोती बिलखती उगलती रही। वह निढाल सी पड़ी है और सारी वार्तालाप टेप रिकार्डर में टेप हो रही है। कुशाग्र पाषाण सा हो गया है वह उस पर जरा भी तरस नही खा रहा। शायद यह उसके ट्रीटमैंट का हिस्सा है क्रूरता नही। उसने अगला सवाल किया-
"बैजू से शादी हो गयी तुम्हारी????"
वह एकदम से तडप कर सिसक पड़ी- "बैजू और हम शादी करने वाले थे। उस दिन आसमान काले मेघों से घिरा था। कोयल कूक-कूक कर बुला रही थी। बस मेघ बरसने ही वाला था। हम नदी के किनारें आखरी बार मिले। बैजू बहुत देर तक बाँसुरी बजाता रहा मीठी....मीठी.....धुन में...हम दोनों खोये हुये थे....वह बाँसुरी बजा रहा था और हम सुन रहे थे....हम बैजू की पीठ से सटे हुये बैठे थे वह आँखें बंद किया था हमने भी पलके झुका लीं......चिड़ियें हमारे ईर्द-गिर्द जमा हो गयी वह भी रोज उसकी बाँसुरी को सुनने आती थीं पूरा तट मधुर हो उठा था....मोर पेड़ पर बैठा हुआ नाचनें को आतुर था। बंदरों का झुण्ड भी शान्त हो पेडों पर, कुछ जमीन पर, कुछ पानी में था। सब बाँसुरी की तान में मंत्रमुग्ध थे। हवाओं ने शोर कम कर दिया था। बस बाँसुरी की आवाज़ फिजाओं में गूँज रही थी। इतना गहन सन्नाटा था कि वह आवाज बार-बार पहाड़ी से टकरा कर वापस लौट रही थी। वह दुनिया नही जन्नत थी हमारी......तभी हवा के साथ पत्तों के खड़खड़ाने की तेज आवाज़ हुई...और........"
रीमा बताते-बताते फूट-फूट कर रोने लगी।
"फिर...आगे क्या हुआ???"
रीमा बेहोश हो चुकी है। उसने चेहरे को एक तरफ लटका दिया है। परेश दौड़ कर उसके करीब आ गया। उसने रीमा का हाथ पकड़ लिया...आज परेश की आँखों में पानी है- "किस दुख से गुजर रही हो रीमा..? कैसे सहन कर पाओगी उन यादों के बिछोह को? दो दिन में ही कितनी कमजोर दिख रही हो.....यह चेहरा इतना पीला क्यों है तुम्हारा???"
परेश घबरा गया। उसने कुशाग्र की तरफ देखा। कुशाग्र अपनी रिवाल्विग चेयर पर बैठ चुका है और पर्चे में कुछ लिख रहा है। उसने बगैर देखे ही परेश को सांतवना दी-
"परेश, मैं किसी धोखें में नही रखूँगा। जानता हूँ तुम स्ट्रांग हो सिचूयेशन को हैंडिल कर सकते हो इसलिये ध्यान से सुनो- 'रीमा का यह पुनर्जन्म है यह बात सच है। मैं मेडिकल सांइस को चुनौती देता हूँ अगर कोई इसे नकार दे। वह इतना सब मनगढ़ंत नही बोल सकती..न ही यह किसी फिल्म की कहानी है। हाँ एक बात जरूर हो सकती है। शायद कभी कोई कहानी या किताब पढ़ी हो इन्होनें जिसमें यही कहानी हो और उसे इन्होनें अपने जहन में उतार लिया हो।"
"अब क्या होगा डा.?" परेश चिन्तित है।
"कभी- कभी कुछ बेइन्ताह इमोशनल लोग ऐसी घटनाओं को पढ़ कर उससे खुद को जोड़ लेते हैं और फिर पात्रों की संवेदना उनके अन्दर उतरने लगती है। यह एक बनावटी दृश्यों का समूह है जो भावुकता के सानिध्य में जीवन्त हो उठता है और फिर वहाँ पर जाकर पैठ बना लेता है जो शरीर का सबसे कमजोर हिस्सा हो। भीतरी तौर पर बात करें तो दिल ही वो हिस्सा है जहाँ से व्यक्ति की सारी एक्टिविटी संचालित होती हैं, खास कर इमोशनल लोगों के लिये।"
"तो क्या संभव है यह पुनर्जन्म न होकर कोई कहानी का प्रभाव हो?"
"मैं अभी श्योर नही हूँ। तुम्हें राहत देने के लिये कहानी की बात कही है यह संभव भी हो सकता है और नही भी, इस केस में मुझे कहानी वाली संभावना कम लगती है। जिस तरह वह रियेक्ट कर रही है निन्यानबे परसेंट उसका पास्ट है, इस जन्म से पहले का हिस्सा..जो वह भूली नही है।"
"ये कैसे हो सकता है? अगर यह हो सकता है तो मुझे क्यों नही? आपको क्यों नही? अकेले रीमा को ही क्यों?"
"अटूट आसक्ति में इच्छाओं का अधूरापन, फिर चाहे वह प्रेम हो घृणा हो या कुछ और , वाकि रह जाता है तो वह सारी सृष्टि से बगावत कर बैठता है। उसकी अक्रामक माँगें इतनी प्रबल हो जाती हैं कि सृष्टि बगैर तोले उसे दे देती है, परिणाम की परवाह किये बगैर।"
रीमा को होश आने लगी। जानबूझ कर डॉक्टर ने उसे आराम करने दिया था।
"परेश, तुम रीमा को लेकर घर जा सकते हो। कल इन्हें आराम करने दो। परसों तक कुछ रिलैक्स हो जायेगा। मैंने मैंटल रिलैक्सेशन के लिये कुछ दवायें लिख दीं हैं उन्हें टाइम से देते रहना।" पर्चे पर कुछ दवायें लिख कर कुशाग्र ने उसे थमा दिया।
क्रमशः