Hone se n hone tak - 43 in Hindi Moral Stories by Sumati Saxena Lal books and stories PDF | होने से न होने तक - 43

Featured Books
  • کاغذ

    زندگی کا کورا کاغذ پڑھ سکتے ہو تو پڑھ لو۔ اگر چند لمحوں کی م...

  • خواہشات کا سمندر

    خواہشوں کا سمندر دور دور تک پھیل گیا ہے۔ ایک خواہش نے زمین و...

  • ادا کیا

    آنکھیں بند کر کے پینے کی ممانعت کیوں ہے؟ شراب پینے کی کوئی م...

  • پناہ

    تباہ حال شہروں میں گھر تلاش کرنے کی بجائے۔ لوگوں کے چہروں کا...

  • سرد موسم

    خوشگوار نشہ آور موسم دل کو مائل کر رہا ہے۔ رنگ برنگے پھولوں...

Categories
Share

होने से न होने तक - 43

होने से न होने तक

43.

प्रबंधतंत्र इस तरह के हथकण्डों पर उतर आएगा ऐसा हम सोच भी नही सकते थे।

‘‘सारी पावर्स को अपने हाथ में ले लेने का तरीका है यह।’’मानसी जी ने कहा था।

पास मे खड़े कई लोगों ने हामी भरी थी।

‘‘इनके इस सर्कुलर के बाद प्रिसिपल की न तो कोई अथॉरिटी ही बची है न उनका कोई रोल ही रह गया है।’’ केतकी धीरे से बुदबुदायी थी। उसके स्वर में झुंझलाहट है।

दीपा दी के स्वर में थकान है,‘‘मैं यहॉ क्या कर रही हूं ।’’वे जैसे आत्मालाप कर रही हों,‘‘इस कुर्सी पर क्यों बैठी हूं मै?’’

अगले पीरियड की घण्टी बजी थी। दीदी ने घड़ी की तरफ देखा था और अधिकांश लोग क्लास लेने के लिए कमरे से बाहर चले गये थे।

‘‘आप कुछ करती क्यो नहीं?’’ राम चन्दर बाबू ने दुबारा कहा था,‘‘दीदी स्टाफ और आफिस में कौन आपके साथ हैं और कौन उनके साथ इसका भेद समझ लीजिए। अब सीधेपन से काम नही चलने वाला दीदी।’’

दीपा दी बाबू जी की तरफ ख़ाली सी निगाह से देखने लगी थीं जैसे ऑख खुली हो पर कुछ समझ न पा रही हों।

बाबू जी ने अपनी बात पूरी की थी, ‘‘दीदी इस सर्कुलर से ख़ुश होने वाले स्टाफ में भी कुछ लोग हैं और आफिस में भी।’’

‘‘वैसे भी कुछ हैं जिनको किसी भी नए हंगामे में मज़ा आता ही है। कुछ बात करने के लिए मिल जाती है न।’’केतकी ने कहा था।

‘‘नहीं दीदी ख़ाली वही नहीं।’’वे कुछ क्षण मौन रहने के बाद दुखी स्वर में बोले थे ‘‘असल में सांईस वाले लोग बहुऽऽतइ ख़ुश हैं।’’

दीपा दी ने बाबू जी की तरफ देखा था,‘‘साईंस वाले लोग?’’ उनके स्वर में अविश्वास व पीड़ा है।

‘‘पर वे सब तो दीपा दी को बहुत मानते हैं।’’ मानसी जी ने कहा था।

‘‘हॉ दीदी। मानती थीं। पर अब ख़ुश तो होइबे करी। उनके विभाग की टीचर राजा जो बन गयीं।’’ उन्होने मानसी जी की तरफ फिर हम सब की तरफ देखा था,‘‘जा कर देखिए वहॉ। वहॉ जश्न मनाया जा रहा है। चाट पकौड़ी चल रहे हैं।’’

दीपा दी की ऑखों से पीड़ा साफ झलकने लगी थी। लगा था उनका चेहरा स्याह पड़ गया हो। लगा था उनकी निगाहों में अकेलापन भरने लगा हो। वे धीरे से मुस्कुरायी थीं और उनकी आवाज़ कॉप गयी थी,‘‘कहॉ चूक गये हम। हम ने तो इस स्टाफ को परिवार की तरह जोड़ बटोर कर रखा था फिर सब कुछ बिखर क्यों रहा है।’’

‘‘दीदी प्लीज़ ऐसा मत कहिए। ऐसा सोचिए भी नहीं। हम सब आपको कितना मानते हैं यह आप समझ भी नहीं सकतीं।’’ अंजलि ने कहा था।

‘‘बाकी को क्या हो गया?’’ दीपा दी धीमें से फुसफुसायी थीं। शायद वे आगे इस विषय में कोई बातचीत कोई संवाद नहीं चाहतीं इसलिए अनायास ही जाने के लिए उठ कर खड़ी हो गयी थीं।

राम चन्दर बाबू ने शायद सही कहा था कि इस निर्णय से साईंस वाले बहुत ज़्यादा ख़ुश थे। हम लोगो को समझ नहीं आ रहा था कि अचानक ही स्टाफ साईंस और आर्ट फैकल्टी के दो खेमों में बॅट गया था। कामर्स कालेज का तीसरा फ्रन्ट बन चुका था। पर लगा था उन्हे कोई फर्क ही नहीं पड़ा था...न ख़ुशी न ग़म...। प्रबंधक ने भले ही इतनी दूर तक न सोचा हो पर डिवाईड एण्ड रूल की चाल चल चुकी थी। स्टाफ विभाजित हो चुका था। पूरी स्थिति प्रबंध तंत्र के अनूकूल थी। सांईस से दीपा वर्मा को मान देने वाली टीचर्स भी अपनी फैकल्टी में सत्ता के इस आगमन से बेहद प्रसन्न थीं। वैसे भी उन में से अधिकांश ने शायद यह भी नही समझा था कि ऐसा करने से डाक्टर शुभा वर्मा का सम्मान घटा है। दमयन्ती अरोरा भावी प्राचार्या के रूप मे प्रोजेक्ट की गयी हैं और दीपा वर्मा की कुर्सी के नीचे से सत्ता का बहुत बड़ा हिस्सा खिसकाया जा चुका था। प्राचार्या के पद पर होते हुए भी वे एक ही दिन में बीत गयी हस्ती दिखने लगी थीं...आधी अधूरी...निरीह सी। आधी सत्ता का हस्तांतरण साईंस फैकल्टी के हाथो में हुआ था इस लिए साईंस वाले अपने आप को गौरान्वित महसूस कर रहे थे जैसे पहली बार उनका पावना उन्हे साधिकार मिला हो,जैसे विद्यालय मे उन सब का कद ऊॅचा हो गया हो। अभी तक तो वे लोग जब भी हिसाब लगाते तब दूर तक उस कुर्सी पर अपने साईंस की किसी टीचर को पदासीन नही देख पाते...अभी दीपा वर्मा...उनके बाद करीब दस साल के लिए रोहिणी पंत...फिर कुछ सालों के लिए मोहिनी द्विवेदी...उतने लंबे वर्षो के हिसाब के बाद सालो की गिनती करना वे लोग बंद कर देते। फिर शायद साईन्स फैकल्टी के सीनियर तब तक सभी रिटायर हो जाने वाले थे। साईंस फैकल्टी आर्ट फैकल्टी के काफी साल बाद खुली थी शायद इसी कारण से ऐसा था और शायद साईंस वालों का अपने आप को वचिंत महसूस करना स्वभाविक था। अचानक ही उन सब को लगा था जैसे प्रिंसिपलशिप उन लोगों के हाथों मे आ गयी हो। वैसे भी उन लोगों को लगता कि कालेज में आर्ट फैकल्टी की टीचर्स को अधिक मान सम्मान और अपनापन मिलता है। भले ही डाक्टर दीपा वर्मा ने किसी विभाग या संकाय के आधार पर कोई भेद भाव न किया हो पर यह समझ सकने की बुद्धि और मनःस्थिति उस समय उन सबके पास नही थी कि नीता,मीनाक्षी ,केतकी मानसी और मैं प्राचार्या के आस पास कालेज के हर काम में केवल अपनी अतिरिक्त भागीदारी के कारण हैं। हमारा आर्ट्स फैकल्टी मे होना उसका कारण नही है। फिर एैडमिन्सिट्रेटिव ब्लाक के आस पास हम सबके लैक्चर रूम्स होने के कारण भी शायद आते जाते हम लोगों का दीपा दी से मिलना और उनके साथ बैठना अधिक हो जाता है। कभी कभी दीपा दी भी ख़ाली समय होने पर बड़े मित्र भाव से हमारे स्टाफ रूम में आ कर बैठ जाती हैं...कामर्स और साईंस के ब्लाक काफी दूर पर बने हुए हैं इसलिए अकारण उनका उधर जाना कम ही होता है।

दमयन्ती अरोरा गाहे बगाहे प्रबंधक के कमरे में बैठी दिखने लग गयी थीं। फिसिक्स डिपार्टमैंन्ट में क्लास फोर का आवागमन दिखने लग गया था। सुना यह भी था कि चपरासी उनके घर पर भी काम के लिए बुलाए जाने लगे हैं। लगभग सभी चपरासी दमयन्ती के प्रति अतिरिक्त रूप से शिष्ट दिखने लगे थे। सच बात यह भी है कि सत्ता का दुरुपयोग करने वाला ही आस पास वालों को पूरी तरह से सत्ताधारी लगता है...धरती पर अपने साथ बने रहने वाले लोग तो प्रायः साधारण ही लगते हैं...पावर लैस।

दीपा वर्मा और प्रबंध तंत्र के बीच खुला तनाव दिखने लगा था। सुना यह भी था कि दमयन्ती अरोरा की वाइस प्रिंसिपल के रूप में दो महीने पहले की बैक डेट में ज्वाइनिंग दिखा कर दीपा दी की एक महीने की छुट्टी की तारीख़ो में कागज़ों पर मनमाने दस्तख़त कराए गए हैं। रामचन्दर बाबू ने ही बतायी थी यह बात। हम सब सुन कर स्तब्ध रह गये थे,‘‘ऐसा कैसे कर सकते हैं ?’’हममे से कई ने एक साथ कहा था।

‘‘किसी साजिश में प्रबंधतंत्र और दफ््तर एक साथ मिल जाए तो फिर कुछ्छौ कर सकते हैं दीदी।’’ रामचन्दर बाबू ने कहा था,‘‘हैं न अपने बड़े बाबू उनकी स्याह सफेद में उनके साथ।’’

हर बात पर सिनिकल सी हो जाने वाली केतकी एकदम बौखला गयी थी,‘‘हाऊ कुड दमयन्ती अरोरा स्टूप सो लो? हाऊ कैन मैनेजमैंण्ट बिहेव लाइक दिस? लोग इतने गिरे हुए कैसे हो सकते हैं ?”

बाबू जी फींका सा हॅसे थे,‘‘अरे दीदी गिरे हुए आदमी के लिए गिरने की कोई सीमा थोड़ो हुआ करती है। गिरी न होतीं वह तो दीदी के साथ ऐसा छल कर सकती थीं भला।’’

कालेज की हवाओं में दुर्भावना और साजिश की गंध आने लगी थी। दीपा दी बिल्कुल अकेली सी दिखने लगी थीं। चपरासी की एक पोस्ट फिर से ख़ाली हुयी थी और प्रबंधक के आदेश पर चयन का दिन तय किया गया था और दमयन्ती अरोरा के हस्ताक्षर से अभ्यार्थियो को काल लैटर भेज दिए गये थे। नियत समय पर चयन समीति में बैठने के लिए दीपा वर्मा को सूचना भेज दी गयी थी। प्रबंध तंत्र जानता है यह बात कि वे कालेज के अंदर दमयन्ती को कोई भी पद दे दें पर ज़ोनल आफिस मे कागज़ भेजने के लिए दीपा वर्मा के दस्तख़त ज़रूरी हैं। आफिस वालों को लगा था कि वे उस दिन विद्यालय नही आऐंगी। पर वे आयी थीं। आराम से अपने कमरे मे बैठी रही थीं। सामने के कमरे में प्रबंधक और दमयन्ती अरोरा को आ गया देख कर वे पर्स पकड़ कर कालेज का राउण्ड लेने निकल पड़ी थीं। इधर उधर घूमते हुये वे नीता के कमरे में रुक गयी थीं। थोड़ी देर में उन्हें ढूंडते हुए रमेश बाबू जागरफी के लैब में पहुंचे थे ‘‘दीदी मैनेजर साहब चपरासियों के सैलैक्शन के लिए आपका इंतज़ार कर रहे हैं।’’

वे वैसे ही बैठी रही थीं, ‘‘बाबू जी उनको बता दीजिए कि क्लास फोर के अपायन्टमैंन्ट में केवल प्रिंसिपल बैठती है। वह वन पर्सन सैलैक्शन कमेटी होती है। कोई भी अन्य व्यक्ति पिं्रसिपल के कहने पर ही उसमें बैठ सकता है। पर मैंने अपने साथ बैठने के लिए किसी को भी नहीं बुलाया है और सलैक्शन के लिए काल लैटर भी मैंने नही भेजे हैं।’’ उन्होने पर्स से निकाल कर एक लिफाफा रमेश बाबू को पकड़ा दिया था,‘‘यह पत्र उनको दे दीजिएगा।’’

उसके बाद अपने कमरे में लौट कर उन्होने तुरंत क्षेत्रीय अधिकारी से फोन पर बात की थी और पूरा प्रकरण उनको विस्तार से बताया था और विरोध में पूरे प्रकरण की व्याख्या के साथ एक पत्र वहॉ भेज दिया था। प्रबंधक और दमयन्ती अरोरा ने चयन किया था और उप प्राचार्या के दस्तख़त से पत्र क्षेत्रीय कार्यालय भेज दिया गया था। दो दिन में ही क्षेत्रीय अधिकारी के कार्यालय से पत्र आ गया था जिसमें पूरी प्रक्रिया को निरस्त कर दिया गया था। प्रबंधतंत्र की आपाद कालीन बैठक बुलायी गयी थी। दीपा वर्मा से काफी कुछ कहा गया था किन्तु वे अपनी बात पर अड़ी रही थीं। प्रबंध समीति में कुछ लोगों की सहानुभूति उनके साथ थी पर शायद उनमें से किसी के पास भी अपने सत्य के साथ खड़े हो पाने का मनोबल नही था। उनमें उतना झंझट मोल लेने की इच्छा भी नही थी। सदस्यो की इसी मानसिकता के चलते अपने पूरे कार्यकाल मे शशि अंकल मनमानी करते रहे। अब मिसेज़ चौधरी और गुप्ता। शायद इन सोते हुए सदस्यों का एक मात्र मकसद शहर की कई सारी संस्थाओं से अपने नाम को जोड़े रखना, समय समय पर कुछ फंक्शन्स में जाते रहना होता है। सीधे सादे शब्दों मे अपने आप को मोबाइल बनाए रखना, अपने आप के महत्वपूर्ण होने का भ्रम पाले रखना होता है। यह एक भिन्न प्रकार की किटी पार्टियॉ हैं जिनसे कुछ ख़ाली बैठे लोगों के अहम् का तुष्टिकरण होता है।

प्रबंधक और अध्यक्षा के तरकश से एक से एक शक्ति शाली तीर निकल कर दीपा वर्मा पर वार होने लगे थे और वह उन्हे काउन्टर करने मे लगी रही थीं। अब वह एक खुला युद्ध था। तभी लाईब्रेरी के फिसिकल वैरीफिकेशन का आदेश प्रबंधक की ओर से आया था। यानि कि रजिस्टर के साथ एक एक किताब का सत्यापन। दमयन्ती अरोरा को यह काम सौंपा गया था और इसके लिए उन्हें एक टीम बनाने के लिए कहा गया था। परीक्षॉए निकट हैं किन्तु लाइब्रेरी विद्यार्थियों के लिए बन्द कर दी गयी थी। काफी दिनों की मेहनत के बाद खोयी हुयी पुस्तकों की सूचि तैयार की गयी थी और दमयन्ती ने उसे प्रबंधक को भेज दिया था। पुस्कालय में एक सौ चौहत्तर किताबें कम मिली थीं। उन किताबों के नाम और नम्बर के साथ लिस्ट भेजी गयी थी। अगले ही दिन उस सूचि के साथ प्राचार्या को कारण बताओ का नोटिस भेज दिया गया था और कार्यालय को उनका वेतन रोक लेने का आदेश दे दिया गया था।

Sumati Saxena Lal.

Sumati1944@gmail.com