talaash - 7 in Hindi Fiction Stories by RICHA AGARWAL books and stories PDF | तलाश... एक औरत के अस्तित्व की - 7

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तलाश... एक औरत के अस्तित्व की - 7

कहते हैं हर इंसान में एक छटी इंद्री होती है जो उसे आने वाले खतरे से आगाह करती है सुहानी को भी कुछ अच्छा नहीं लग रहा था पता नहीं क्यों उसे ऐसा लग रहा था कि यहाँ अगर उसका रिश्ता यहाँ हुआ तो उसकी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी लेकिन वह चाह कर भी इस रिश्ते का विरोध नहीं कर पायी थी।
संदीप से बात करने पर उसका व्यवहार उसे थोड़ा अटपटा तो लगा था पर उसकी सास के व्यवहार ने उसके मन मे उठ रहीं सारी शंकाओं पर पूर्णविराम लगा दिया था । फिर भी न जाने क्यों, उसे लग रहा था जैसे उसकी जिंदगी में होने जा रहा ये फैसला सही नही है ।
फिर क्या था संदीप के घरवालों ने उसे पसंद कर लिया और उसी वक्त रिश्ता पक्का कर दिया गया।और कुछ माह बाद ही सुहानी दुल्हन बनकर सन्दीप के घर आ गई ।सुहानी अपनी नई जिंदगी में बहुत खुश थी ।कुछ माह इसी तरह मौज मस्ती और सैर सपाटे में गुजर गए ।लेकिन उसे अपनी सासु माँ का व्यवहार कुछ परेशान करता था ।वह सुहानी से बहुत कम या यूँ कहो न के बराबर बात करती थीं।सुहानी सोचती शायद इनका स्वभाव ही ऐसा होगा ये इसलिये ये कम बात करती हैं।
विदा होकर जब दुबारा ससुराल गई थी तभी से उसने सारा घर संभाल लिया था ।काम से तो उसे कभी परेशानी न थी लेकिन वो सासुमां के दो मीठे बोलों के लिये तरसती थी ।असलियत तो तब उसके सामने आई जब त्योहार शुरू हुए ।जब भी किसी त्यौहार पर उसके मायके से कुछ आता घर में क्लेश जरूर होता क्योंकि सासूमाँ को त्यौहार का सामान पसंद नहीं आता था।अब जब भी कोई त्योहार आता सुहानी को टेंशन होती पता नहीं सासूमाँ को पसंद आएगा कि नहीं और पता नहीं कौनसी कमी निकाल कर घर में क्लेश होगा।दरअसल सुहानी का पति और ससुराल वाले शादी में मिले दहेज से खुश नहीं थे जबकि उन्होंने पहले तो उन्होंने कहा था कि हमें कुछ नहीं चाहिये।अब तो मायके से कोई लेने आता तो उसे भेजा नहीं जाता। किसी त्यौहार पर बहुत मिन्नतें करने के बाद भेज भी दिया जाता तो अगले दिन ही संदीप का फ़ोन आ जाता कि मम्मी की तबियत खराब है तुरंत चली आओ फिर वो अपने पापा के साथ बापस आ जाती ।
सारी गृहस्थी का बोझ 24 साल की सुहानी के ऊपर डाल दिया अपने सास ससुर और पति को हर चीज हाथ में पकड़ाना ,झाड़ू पोछा बर्तन खाना ,कपड़े धोना ,कपड़ों पर स्त्री करना सारे के काम सुहानी अकेले ही करती थी उस पर भी किसी भी काम में जरा भी देरी हो जाती तो सुहानी को अपमानित किया जाता जैसे वो घर की बहु न होकर घर की गुलाम है।कभी कपड़े समय पर स्त्री नहीं हुए, कभी शर्ट का बटन टूटा है टांक नहीं सकती थी कभी कमरे की अलमारियाँ इतनी गंदी हैं सफाई नहीं कर सकती थी घर के चूल्हे चौके से ही फुर्सत नहीं मिलती करेगी कहाँ से।कभी सब्जी में मिर्च ज्यादा कभी नमक ज्यादा सुहानी पूरी कोशिश करती कि कोई कमी कोई गल्ती न हो लेकिन उसकी कोई न कोई कमी ढूँढ़ ही ली जाती।वो तो इस घर में बिन पैसे की नौकरानी बनकर रह गई थी।
उसको इस बात की भी इजाजत नहीं थी कि कभी बीमार होने पर आराम भी कर ले।कभी किसी त्यौहार पर उसके लिये कुछ लाना तो दूर वह तो ये दुआ करती थी कि घर में क्लेश न हो।इस प्रकार एक डर और तनाव के साये में सुहानी की जिंदगी गुजर रही थी।शुरू शुरू में संदीप ने उसका सपोर्ट किया फिर तो वो भी अपनी माँ के रंग में रंग गया था।फिर कुछ महीने बाद उसे पता चला कि वह माँ बनने वाली है वो और संदीप दोनों बहुत खुश थे लेकिन उनकी यह खुशी ज्यादा दिन टिक न सकी और काम के बोझ के कारण और तनाव के कारण उसका एबॉर्शन हो गया। उसके बाद भी उसको खूब ताने सुनने को मिले कि हमारे तो कभी आधे अधूरे बच्चे नहीं हुए हमारे तो पूरे पाटे बच्चे हुए ।इसी प्रकार नाना प्रकार की मुश्किलों से सुहानी जद्दोजहद करती रही।और ईश्वर से प्रार्थना करती रही भगवान इन लोगों के दिलों में मेरे लिये थोड़ा सा प्यार और अपनापन पैदा कर दे।

To be continued.....