Ek bund ishq - 13 in Hindi Love Stories by Chaya Agarwal books and stories PDF | एक बूँद इश्क - 13

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एक बूँद इश्क - 13

एक बूँद इश्क

(13)

कुशाग्र के क्लीनिक पर परेश और रीमा समय से आ गये हैं। वैसे तो ऑफिस से कोई जरुरी फोन सुबह ही आ गया था और उसे दस बजे पहुँचना भी था मगर इस बाबत उसने घर में किसी को कुछ नही बताया है सो उसे यहाँ लेकर आना उसी की जिम्मेदारी है। वह जानता है बात का बतंगड बनते देर नही लगती, ऐसी हालत में रीमा का घर में रहना मुहाल हो सकता है। दूसरे इस वक्त उसे भावात्मक सहारे की जरुरत है। हलाकिं रीमा रात भर चैन से सोई इस बीच उसने कोसानी का कोई भी जिक्र या घटना को याद नही किया। यही बात परेश के लिये महत्वपूर्ण है। धीरे-धीरे वह वहाँ का सब कुछ भूल जायेगी और जिन्दगी अपने नये आयामों को छूयेगी। अभी तो परिवार को आगे बढ़ाना है। भविष्य की प्लानिंग करनी है बगैहरा-बगैहरा...यह तो जीवन की शुरुआत भर है।

डा. कुशाग्र और परेश के बीच वैसे तो कोई खास मैत्री नही है पर दोनों एक ही कालेज में साथ ही पढ़े है। तो पहचान पुख्ता है। कुशाग्र उससे दो बरस सीनियर है इसलिये परेश हमेशा उससे 'डा. परेश' कह कर ही सम्बोधित करता है और कुशाग्र भी भरपूर सहयोग के लिये हमेशा तैयार। इसके अलावा उनका अपना विजनेस रिलेशन भी है। कुशाग्र के क्लीनिक की सारे मेडीकल एकूवमैंट परेश की कम्पनी ही सप्लाई करती है। बेशक उनके बीच पैसों का लेन-देन चलता रहता है फिर भी परेश ने उस रिश्ते को अलग करते हुये एक आम पेशेंट की तरह पर्चा बनवाया, यह एक अलग और परेश के व्यक्तित्व को व्यां करने वाली बात है।

रीमा जब से आई है कुछ अलग ही है। ध्वनि रहित तस्वीरों के निशां अपनी जड़ता से बैठे हुये हैं। जुवान ने खामोशी अख्तयार कर ली है और चेहरे ने गहरी विचलता। परेश को इसी बात का भी भय है, भड़ास का निकल जाना बेहतर है बजाय भरे रह कर बिस्फोट होने के।

डा. कुशाग्र ने आते ही सबसे पहले परेश को अन्दर बुला लिया। दोनों ने आत्मियता से हाथ मिलाया ।

एक उड़ती नजर रीमा के चेहरे पर डाली है कुशाग्र ने नमस्ते के साथ-साथ-

"बैठिये आप लोग....कैसे हैं?" औपचारिक वॉक्य सुन कर रीमा ने कोई प्रतोत्तर नही दिया। परेश के इशारे पर वह कुशाग्र के एग्सामिन हिस्से में बैठ गयी। यूँ तो किस्से तभी वयां होते हैं जब कोई सुनने वाला हो। न्यूरो डा. का पहला काम एक अच्छा श्रोता होना ही है। परेश ने फोन पर रीमा को लेकर पूरा कांसैप्ट बता दिया था। कुशाग्र प्रश्न कर रहा है, एक दम सामान्य प्रश्न- जैसे "आपका नाम? आपकी पसंद? आपका शौक? पिछले आठ दिन का व्योरा"....कुछ प्रश्न एकान्त में, उस वक्त परेश को बाहर कर दिया गया- "कैसा फील हो रहा है? कोई तकलीफ? अन्दर कुछ है तो निकाल दो, मेरे तक ही रहेगा, एकदम सीक्रेट।

हाँ..न...के छोटे जवाबों से ही काम चलाते हुये रीमा उखड़ी हुई सी है।

"परेश के अलावा कौन है जो आपको सबसे ज्यादा चाहता है?"

अचानक इस प्रश्न से भूचाल आ गया। वह जोर से चिल्लाई- "बैजू.......बैजू मुझे बहुत चाहता है। मैं उसके बगैर नही रह सकती।"

परेश की पहली सफलता, उसने सिरे को पकड़ लिया है। यह लगभग हिप्नोडाइज वाली स्तिथी है। जरुरत पड़ी तो वह भी किया जा सकता है। आगे सवाल जारी हैं-

"बैजू कौन है? आपका क्या रिश्ता है उससे? "

"नही पता" साँसों का तूफान तेज हो चुका है। मुमकिन है कमजोर बीज उखड़ जायें।

अब डा. कुशाग्र ने उसे सहारा देकर सोफे पर बैठा दिया। वह उसकी पुश्त के सहारे अधलेटी है।

" मैं आपको बैजू से मिलवा सकता हूँ" कुशाग्र गम्भीर है।

"डॉक्टर मुझे मेरा बैजू चाहिये...मेरा बैजू मुझे दे दो......मेरा बैजू......" वह चीख रही है। उसके आँसुओं का सैलाब परेश तक पहुँच चुका है। वह भीतर आने की कसमसाहट में चहल कदमी करने लगा- 'कौन है ये बैजू?? जो भी है रीमा से गहरा रिश्ता है इसका, जो इसे जीने नही दे रहा।' अपने हथेलियों को रगड़ते हुये परेश बुदबुदा रहा है। और अन्दर पूरा सैलाब है जो फट पड़ा है। काँच के केबिन के अन्दर की आवाजें साफ नही हैं मगर परदों के किनारों से जो कुछ भी दिखाई दे रहा है असहनीय है।

एक बार बगैर इजाज़त उसने अन्दर जाने की कोशिश भी की फिर.....रोक लिया खुद को, छोटी सी संवेदना मूर्खता साबित हो सकती है। रीमा सोफे से पीठ सटाये बेजान पड़ी है और कुशाग्र करीब ही स्टूल पर बैठे उससे सवाल किये जा रहे हैं। जी चाहा रोक दूँ उन्हें...'बस इतना ही काफी है ...कहीं ऐसा न हो वह अपना दिमागी संतुलन ही खो बैठे? रहने दो डा. बाकि कल पूछ लेना।'

परेश एक सख्त खोल का नारियल है, उसने आज ही जाना। कितनी पीड़ा?, कितना दुख?, कितना मर्म छुपा है उसके भीतर उसे भी नही पता था? उसने तो हालातों के ऊपर राज्य करना सीखा था। हौसले की चरमराहट उसे जरा भी मंजूर नही थी। फिर आज.....? क्या यह रीमा के प्रति मेरा प्रेम है? या मेरी जीती गयी अट्टालिकाओं का एक अंश?

खोल चटखा तो नारियल के भीतर का मीठा पानी छलकने लगा। वह बाहर उसी स्तिथी में बैठा है जैसे अन्दर रीमा। उसके पास डा. कुशाग्र नही उनके सवालों की गूँज भर है तब यह हालत? रीमा तो कब से उस उफान में पत्ते की तरह हिचकोले खा रही होगी?

" मुझे मेरा बैजू चाहिये......मैं उससे प्यार करती हूँ...अब नही रह पाऊँगी उसके विना....." रीमा ने कुशाग्र को पकड़ कर झंझोड़ दिया। रीमा लगातार चीख रही है-

"मुझे कोसानी जाना है अभी...जाना है...वहाँ वो मेरा इन्तजार कर रहा है...क्यों लेकर आ गये मुझे धोखे से?" इस बार ऐसी बेहोश हुई कि कुशाग्र को सिस्टर को बुलाना पड़ा। रीमा को सोफे पर ही लिटा दिया।

परेश दौड़ कर केबिन में घुस गया।

"परेशान मत हो परेश, अभी ठीक हो जायेगी। मैं हैरान हूँ, ऐसा केस छ:बरस की प्रैक्टिस में कभी नही देखा। यह डिप्रैशन या मैंटल प्रोबलम नही लगती। यह उन सबसे अलग है..बिल्कुल अलग। कुछ टैस्ट और एम. आर. आई. करवाने के बाद ही किसी नतीजे पर पहुँचा जा सकता है।"

"क्या लगता है आपको? कोई खतरे की बात तो नही है?" परेश के स्वर में कंपन है।

"खतरा?? बीमारी एक खतरा ही तो है? यह बात अलग है कि आज मेडिकल सांइस इतना आगे निकल चुकी है कि उस पर कंट्रोल किया जा सकता है बशर्ते लापरवाही न हो। बेशक यह केस अलग है मगर सैल्यूशन भी निकलेगा..जरुर निकलेगा। अच्छा परेश, रीमा को होश आ जाये फिर तुम इन्हें ले जा सकते हो और हाँ, सारी टैस्टिंग कराने के बाद जल्दी मिलने की कोशिश करना।"

"थैंक्यू डॉक्टर, मैं कल ही करवाता हूँ। उम्मीद का एक रेशा भी हो न..जंग जीती जा सकती है और फिर उसमें हौसले की तो कोई कमी नही।" परेश की फीकी मुस्कान उसकी चिन्ता की गवाह है।

सारा घर जान गया है रीमा बीमार है मगर बीमारी क्या है यह कोई नही जानता। खुद परेश भी नही जानता फिर वो कैसे बताये? और जितना जानता है वो बताने से फायदा नही।

कोसानी से लौटने के बाद से रीमा बहुत रो रही है। बात-बात पर आँसू भर आना और किसी से बात न करना उसकी दिनचर्या में शामिल है। इन सबमें सबसे चिन्ताजनक है उसका खाने के प्रति उदासीनता। एक-एक निवाला हाथ से खिलाना आसान नही। पहली बार परेश का ऑफिस बाधित हुआ है वरना तो हर छोटी-मोटी समस्या में वह हमेशा अपना काम देखता रहा।

उसकी गुम सुम भाव भंगिमाओं को भाँप कर कहीं आउटिंग की सलाह भी दी गयी मगर वह आउटिंग के नाम से ही सिहर जाता...फिर से किसी पहाड़ की यात्रा?? अब तो हर पहाड़ कोसानी की याद दिलाते हैं। जिनमें रोमांच से ज्यादा दहशत सी हो गयी है। परेश के भाई मयंक ने कितनी बार किसी दूसरे एक्सपीरियंसड डॉक्टर को दिखाने की सलाह भी दी मगर परेश को कुशाग्र की काबलियत और दूरदर्शिता पर पूरा भरोसा है। वह प्रैक्टिस में ज्यादा पुराना बेशक न हो मगर सबसे बेहतर है। उम्र तजुर्वे का आशवासन हो सकती है पर काबलियत की नही। सो उसका फैसला अडिग और भरोसेमंद है।

एक अजीब सी कशमकश है जो न कहते बन रही है न सहते। यह दुविधा कोसानी से लेकर आज तक के पूरे व्योरे पर है जो अभी किसी निष्कर्ष से कोसों दूर है।

क्रमशः