Aaj ka ravan in Hindi Short Stories by Kusum books and stories PDF | आज का रावण

The Author
Featured Books
  • ખજાનો - 81

    ઊંડો શ્વાસ લઈ જૉનીએ હિંમત દાખવી." જુઓ મિત્રો..! જો આપણે જ હિ...

  • સિક્સર

    મેથ્યુ નામનો વ્યક્તિ હોય છે. તે દૈનિક ક્રિયા મુજબ ઓફિસથી આવત...

  • જીવન ચોર...ભાગ ૧ ( ભૂખ)

    ભાગ ૧  : ભૂખ મહાદેવી શેઠાણી: એ પકડો એને... પકડો.. મારા લાખો...

  • ડેટા સેન્ટર

    ડેટા સેન્ટર : ડિજિટલ યુગના પાવરહાઉસ એઆઇના વધતા ઉપયોગ વચ્ચે ભ...

  • સંઘર્ષ - પ્રકરણ 12

    સિદ્ધાર્થ છાયા Disclaimer: સિંહાસન સિરીઝની તમામ કથાઓ તેમાં દ...

Categories
Share

आज का रावण

मैं यह रचना किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं लिख रही। यदि किसी को कुछ अच्छा न लगे तो कमी बताएं। क्षमा प्रार्थी हूं यदि कोई गलती हो तो।

"मां ओ मां कहां हो"। मेरी 18 वर्षीय बेटी बाहर से ही आवाज देती हुई अन्दर आई। मैं जो किचन में उसके लिए लंच तैयार कर रही थी, उसकी आवाज़ सुनकर किचन से बाहर आई। और उससे पूछा। " क्यों पूरा घर सिर पर उठा रखा है।" पर वो कुछ बोलने की बजाय मुझे बांहों में भर कर खुशी से मुझे गोल गोल घुमाने लगी। और बोली "मां आपको पता है हमारे काॅलेज में नाट्य प्रतियोगिता होने वाली है जिसमें हम एक पौराणिक नाटक कर रहे हैं।"जिसमें हमें उसे नये रूप में दिखाना है।

"ये तो बहुत खुशी की बात है मीठी" मैंने कहा। ( मेरी बेटी जिसे मैं प्यार से मीठी बुलाती हूं। वैसे नाम तो उसका शगुन है)
वो बोली " मां, मुझे सीता के जीवन के बारे में तााााा्ा्ा्
मैंने उसकी बातों पर विराम लगाते हुए कहा "चल पहले खाना खा ले बाकी बातें बाद में।"
वो बोली "ठीक है।" और फिर हम दोनों ने खाना खाया।
मैं और मेरी बेटी, यही मेरा पूरा परिवार है।
मेरे पति मीठी के जन्म के बाद ही एक दिन हमें छोड़कर न जाने कहां चले गए। मैं सालों ढूंढ़ती रही। कभी पुलिस स्टेशन के चक्कर लगाए, तो कभी अख़बार में छपवाया। पर कहीं से कोई सुराग़ नहीं मिला।

फ़िर धीरे धीरे मैंने खुद को और मीठी को संभाल लिया। जमा पूंजी खत्म होने तक मैंने अपने लिए स्कूल में टीचर की नौकरी ढूंढ ली।
और जैसे तैसे जीवन की नौका को आगे बढ़ाने लगी।

अब मेरी बेटी काॅलेज के प्रथम वर्ष में है। वो हिन्दी ऑनर्स कर रही है।शुरू से ही उसे हिन्दी साहित्य में रूचि रही है। मैंने भी कभी अपनी मर्जी उसके उपर नही थोपी।

उसने जब से होश संभाला है। तब से ही उसका सपना हिन्दी व्याख्याता बनने का है। और मैं उसके इस सपने के बीच नहीं आना चाहती। और अब तो हम दोनों एक दूसरे की बहुत अच्छी दोस्त हैं।

मेरी आंखों के सामने चुटकी बजाते हुए मीठी बोली "क्या मां, आप फिर से खो गई।" उसकी आवाज़ सुनकर मैं वर्तमान में वापस आई।

मीठी नए विचारों वाली युवती थी। कुछ बातों में उसके विचार सुनकर मेरा सिर चकरा जाता था।

आज बहुत से प्रश्न उसकी आंखों में तैर रहे थे।
फ़िर जब हम दोनों आराम करने लगे तो उसने पूछा
" मां मैं सीता बनूंगी, तो मुझे उनके बारे में कुछ और बताओ ना।"
मैंने कहा "सब तो तू जानती है।"
पर आज न जाने क्या हुआ था उसे?

अजीब बात पूछी "मां मेरे लिए राम जैसा लड़का चाहिए या रावण जैसा।"
मैं सिहर उठी, "कैसा सवाल है ये।"?
लेकिन वो भी आज जिद पर थी।
"मां बताओ ना।"
मैंने कहा "बेटा सभी माएं अपनी बेटी के लिए राम जैसा लड़का ही चाहेंगी।"
मीठी बोली "मां रावण को लोग इतना नापसंद क्यों करते हैं।"
मैंने उसे समझाने की कोशिश की , कि "मीठी तुम्हें राम-रावण दोनों के बारे में जानकारी है फिर भी आज ऐसे क्यो पूछ रही हो।"
मीठी बोली। "रावण की क्या गलती थी।"?
मैंने उसे घूर कर देखा, पर उसे कोई फर्क नहीं पड़ा।

वह फिर आगे बोली। "यही ना कि उसने सीता का हरण कर लिया था।"
इस बार मैने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

मीठी फिर पूछने लगी कि, उसकी यदि इस गलती को छोड़ दिया जाए तो और क्या कमी थी रावण में।
इस बार मैने धीमी आवाज में कहा , "कोई नहीं",
मैं आगे बोली, "रावण बहुत ही बड़ा तपस्वी और ज्ञानी था।"

मैं आगे बोली। "जितना हमने अपने बड़ों से सुना है उसने मोक्ष प्राप्ति के लिए सीता का हरण किया था।"

अब तो जैसे मीठी को एक छोर मिल गया हो।
वो बोली "और मां राम, उन्होंने मां सीता पर इतने अत्याचार क्यों किए।"

मैं हैरान होकर अपनी बेटी को ताके जा रही थी।
आज इसे क्या हो गया है।

मीठी आगे बोली। " मां सीता मां को वनवास किसके कारण जाना पड़ा?, राम के लिए।"
फ़िर वो यदि चाहते तो, रावण का वध आसानी से कर सकते थे।
और सबसे महत्वपूर्ण बात, वनवास जाते उन्होंने स्वयं ही मां सीता को अग्नि के संरक्षण में कर दिया था।
मतलब की सीता उनके साथ नहीं थी।
फ़िर भी उनकी पवित्रता के लिए अग्नि परीक्षा ली गई।
ताकि राम की मर्यादा पुरुषोत्तम राम की छवि पर कहीं कोई आंच ना आए।
और फिर अयोध्या पहुंच कर एक धोबी की बात सुनकर उन्हें ऐसी स्थिति में, घर से बाहर निकाल दिया, जब सीता को उनकी सबसे ज़्यादा ज़रुरत थी।
क्या प्रजा को उन्हें यह नहीं सिखाना चाहिए था कि विश्वास सर्वोपरि होता है।
जो कुछ हुआ उसमें कहीं भी सीता की कोई गलती नहीं थी।
राम को अपने पिता के वचन निभाना तो याद रहा।
लेकिन सीता के साथ अग्नि के सामने लिए वचन निभाना याद नहीं रहा।

वह फिर आगे बोली। " मां बताओ ऐसा आपकी बेटी के साथ हो तो क्या आप सह पाओगी।"?

उसकी आखिरी बात सुनकर तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए।
मैं बोली। "बेटी कोई मां अपने बच्चे के लिए खासकर बेटी का ऐसा वैवाहिक जीवन नहीं चाहेगी।"
लेकिन मीठी तो आज किसी और ही धुन में थी।

वो आगे बोली। " मां दूसरी तरफ रावण, जिसने सीता को मोक्ष प्राप्ति के लिए हरा था।"

फ़िर रूककर मीठी ने पानी पिया।
मैं इतनी देर उसे निनिर्मेष देखती रही।

मेरी हैरान नज़र से अनजान नहीं थी वो।
लेकिन वो आगे बोली। "मां रावण ने सीता के साथ कभी दुर्व्यवहार नहीं किया था।
जबरदस्ती करने की कोशिश नहीं की।
यदि रावण को दैहिक सुख चाहिए होता तो उसके लिए कमी न होती।"

"मां रावण ने तो अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया था।
और उनसे सोने की लंका को ले लिया था।"

मैं बहुत देर से मीठी की बात सुन रही थी।
मैंने उसे कहा। " बेटी ये सब पौराणिक कथाओं में है और मैं भी आज तक यही मानती आई हूं।"

मेरी बात सुनकर मीठी बोली " मां यदि आप आज के समय अनुसार देखो तो भी आज राम और रावण में कोई अन्तर नहीं है।"

आप राम जैसा वर ढूंढना चाहते हो और मैं रावण जैसा।।।।

तब का रावण भी अच्छा था आज के राम से।
आज स्त्रियों के साथ इतने अत्याचार हो रहे हैं।
छोटी छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार हो रहे हैं।

और कानून या व्यवस्था कुछ भी नहीं कर रही।
यहां तक कि हम लोग भी एक दूसरे की मदद नहीं करते। यदि करते तो सबकी नहीं तो कुछ जानें तो बच ही सकतीं हैं।

उस रावण की एक गलती पर हम आज तक उसे जलाते हैं, लेकिन उससे अधिक खतरनाक रावण तो खुले आम घूम रहे हैं।
उन्हें न समाज का डर न कानून का ।
कब तक राम या रावण की करनी की सज़ा सीता भुगतती रहेगी।

मैं मन्त्रमुग्ध सी उसकी बात सुन रही थी ।।
इतने में ही वह मेरे गले से झूलते हुए बोली
"कैसी लगी मेरी एक्टिंग मां।"

मैं हैरान होकर उसकी तरफ देखने लगी।
मीठी मेरी उलझन भांपकर बोली। "मां मैं तो अपने नाटक के लिए रिहर्सल कर रही थी।"

मैं आगे बढ़ी और मीठी को गले से लगा लिया।
और फिर उससे बोली। "तभी कहूं आज़ मेरी बेटी ये भारी भरकम बातें कैसे कर रही है।"

इतने में उसका फ़ोन बजा और वो सुनने चली गई।

लेकिन नाटक के माध्यम से ही सही पर बात बड़ी सटीक बोल गई। ऐसे राम के साथ कैसे भेज दे कोई मां अपनी बेटी को।

और दूसरी बात आज के रावण, कानून व्यवस्था, समाज की मानसिकता, प्रशासन व्यवस्था आदि पर मेरे सामने बहुत से सवाल छोड़ गई।