सोमवार खत्म होने को था,अतुल के चेहरे पर अगले दिन को लेकर एक बार फिर से चिंता की लकीरे उभर आई।। "मंगलवार" इस दिन को लेकर अतुल बहुत भयभीत रहता था।। लोगों में तरह तरह के अंधविश्वास होते हैं,कोई मैदान पर खेलने जाने से पहले अपना दायां पाँव पहले रखता है,, कोई जेब में लाल रुमाल रखता है,, कोई लिखा पढ़ी काले पेन से करना ही पसन्द करता है.... शायद अतुल को इस दिन का अंधविश्वास था, इस दिन वो कोई भी महत्वपूर्ण काम नही करता.बस नही चलता वरना अतुल इस दिन घर से बाहर ही ना निकले।। जो दिन दुनिया के लिए बहुत मंगलकारी है, जिस दिन लोग उपवास रखते हैं, अतुल ख़ौफ़ खाता था। ऐसा नही की शिरु से ऐसा ही था, कभी वो भी इस दिन का भक्त हुआ करता था,, सच्चे मन और उजले तन से हर मंगल को उपवास रखता,, सुबह शाम बराबर मन्दिर जाता,,अपने हर जन्मदिन पर चन्द पेड़े और चने चिरोंजी का प्रसाद चढ़ाकर पूरे एक साल की प्रोटेक्शन ले लेता।। लेकिन जीवनयात्रा में कुछ ऐसी घटनाये इस दिन को लेकर घटीं की अब सप्ताह का ये मंगलकारी दिन अतुल के लिए सबसे अमंगलकारी बन गया।। जाहिर है जब मंगल अमंगलकारी हो तो हनुमानजी कैसे मित्रवत व्यवहार कर सकते हैं,, इस दिन तो अतुल उनकी हिट लिस्ट में सबसे ऊपर रहता ।। वो तो भला हो प्रभु राम जी का जिनका एक टुइंया सा भक्त वो भी था,,बस यही भक्ति उसका इस दिन पूरा एनकाउंटर होने से बचा लेती।।...
खैर सोमवार का सूर्य अस्त हुआ,, अतुल कल की दिनभर की कटौती की लिस्ट बनाने में जुट गया।। कौन कौन से काम कल टालने थे किन किन चीजों से कल बचना था,, यही सोचते सोचते अचानक उसके मन ने बगावत कर दी.....आखिर ये सब कब तक,, अब तो लगता है हनुमानजी से फेस टू फेस बात करना ही पड़ेगी।।... इसीलिए एक दिन पहले ही सोमवार को हिम्मत जुटाकर अतुल जेसे तैसे मन्दिर पहुंचा।। मन्दिर में मूर्ति के सामने एड़ी उचकाकर घण्टा बजाया,, और शिरु हो गया ...... *आज खुश तो बहुत होंगे आप , जो इतने सालो में कभी आपके नही आया वो आज इस तरह गिड़गिड़ा रहा है* ...नज़ारा फ़िल्मी हो चला था,, चन्द भक्त दद्दा के बाएं पाँव की मली सर पर लगाकर गर्व महसूस कर रहे थे,, कुछ साष्टांग दंडवत कर मन्त्रों की रेलगाड़ी दौड़ा रहे थे,, कुछ 6 फुटीए वीरप्पन टाइप मूंछें लिए भक्त भी थे जो लम्बा सा टीका खींचकर आँखों के क्षेत्रफल को बढ़ाते हुए भय का माहौल पैदा कर रहे थे।। शायद ऐसे ही हृद्यविधारक भक्त हनुमानजी को अति प्रिय थे।। इन सबके बीच 5 फिट 6 इंच का छोटा सा गोल मटोल निरीह प्राणी अतुल खुद को असहाय महसूस कर रहा था।। मन के उदगार होठों पर आ ही नही पा रहे थे........डर था कहीं ये विशालकाय भक्त उसकी बाते सुन ऑन द स्पॉट उसका ही लंकाकाण्ड ना कर दे ,, मन ही मन अपनी खीज निकालता रहा,, घर से क्या बोलना है मन्दिर जाकर ये सोचकर आया था, पूरी शिकायतों की लिस्ट दिमाग में थी,, लेकिन वहां के माहोल से बुरी तरह भयभीत हो चुका अतुल कुछ बोल ही नही पा रहा था।। आखिकार उसने थक हारकर इस कार्यक्रम को अधूरा छोड़ वापिस आने का मन बना लिया,, क्योंकि इन सब विशालकाय भक्तों के बीच अपनी दाल गलती ना देख बगैर प्रसाद लिए उन भयानक चेहरों वाले भक्तो के बीच दिखावटी मुस्कान के साथ मन में अपनी नाराज़गी जाहिर करता हुआ वह उलटे पाँव वापिस लौट आया।।...
उसके मस्तिष्क में निरन्तर कल को लेकर आशंकाए जन्म ले रहीं थीं।।यही सब सोचते सोचते वो खाना खाकर सो गया......................
अचानक एक हुंकार उसके कानो में पड़ी ,, अतुल उठ कर बैठ गया,, डर से पूरा शरीर काँप रहा था.......चारों तरफ नज़र दौड़ाई कोई नही दिखा,, की फिर से वही भारी हुंकार भरी आवाज़ आई...
अब तो अतुल की आवाज़ और शरीर बुरी तरह थरथरा रहे थे,, स्मरण हुआ की आज अमावस की रात है,,जरूर कोई विलेन टाइप आत्मा उसके दस बाई दस के कमरे में घुस आई है, उसकी घिग्घी बन्ध गई,, सहसा ही हनुमान चालीसा मुह से फूट पढ़ी,, कुछ समय पहले तक बजरंग बलि में अविश्वास करने वाला अतुल अचानक हनुमानजी का दामन थामने लगा।।...
आवाज़ फिर आई....* बोल मुर्ख तू क्या कहने आया था*
अतुल की तो आवाज़ ही लटक गई......*कककककक
क कौन* .....डरते हुए बिल्ली की तरह मिमियाया......
*में हुनमान हूँ,, तेरे प्रश्नो का उत्तर देने आया हूँ,, बोल क्या बोलना चाहता है तू * अतुल क्या बोलना चाहता था , उसका तो दिमाग ही पूरी तरह फार्मेट हो चुका था,, सुन्न पड़ गया था,, पूरा शरीर हैंग हो गया,, जुबान का पोइन्टर लाख कोशिशों के बाद भी टस से मस नही हो रहा था...
हनुमानजी उसकी स्तिथि भांपकर अपनी स्टेंडर्ड छवि से थोड़ा फ्रेंडली
हो गए......* बोल बेटा , तेरी क्या शिकायत है*......अतुल की भोंए जो अब तक नासिका के मध्य बन्ध(भेंगी) चुकी थी......कुछ कुछ मूवमेंट करने लगीं......अतुल ने दोनों हाथों को जोड़कर प्रणाम किया.....और मामले की नज़ाकत को देखते हुए कंपकपाते होठो से जय श्री राम बोला......बस यही तो वीकनेस है दद्दा की........अचानक अतुल को सर पर किसी के प्यार भरे हाथ का स्पर्श महसुस हुआ।। वो सहसा ही सर को झुकाकर फट फटाकर अश्रुधारा बहाने लगा.,, लेकिन मुंह से शब्द नही फूट रहे थे.......आवाज़ फिर आई.......* बेटा में तुम्हारे प्रश्नो के उत्तर दूंगा,, तुम्हारा मानना है की मंगल का दिन तुम्हारे लिए अपशकुनी होता है, इस दिन तुम असफल ही होते हो, ठीक है में कल दिनभर तुम्हारे साथ रहूंगा......पर मुझे पहचानना तुम्हारा काम है*...आवाज़ आनी बन्द हो गई।......अतुल की नींद खुली तो उसने चारों तरफ गौर से देखा , कोई हल चल नही थी।।......उसे बढ़ी मुश्किल से चित्ते ही सोना पड़ा....... डर था की करवट लेकर सोएगा तो कोई पीछे से घूरेगा।।
मंगल का सूर्य उदय हुआ, नित्य कर्मो से फारिग होकर अतुल ने स्नान आदि किआ।। मन में रात वाली घटना घूम रही थी।। गाडी को स्टार्ट कर के उबड़ खाबड़ रास्तो पर उछलते कूदते मन में क्षेत्र के विधायक को गाली निकालते हुए आगे बढ़ चला।। अतुल का -5 निरन्तर बजरंग बलि को चहु और खोज रहा था।। नाके पर जेसे ही पहुंचा एक बुजुर्ग जो शायद सिटी बस के इंतज़ार में खड़े थे.....उन्होंने अतुल को हाथ देकर रुकने का इशारा किआ,, लेकिन अतुल नही रुका......पर अचानक उसने पाँव ब्रेक पर मारा,, अपना 100 ग्राम का दिमाग दौड़ाया.....कही इन बुजुर्ग के रूप में हनुमानजी तो नही आये....अतुल फिल्मो नाटकों और धार्मिक किस्से कहानियो में काफी देख सुन चुका था......की किस तरह भगवान रूप बदल बदल कर पृथ्वी पर विचरण करने आते हैं।। अतुल ने तुरन्त गाडी पीछे ली.....और बड़े ही आदर भाव से उन बुजुर्ग से पूछा...*कहाँ जाना है आपको*...अतुल सर से पाँव तक उनको पढ़ने की कोशिश कर रहा था,, उन्हें जाना तो बहुत दूर था लेकिन चोराहे पर छोड़ने का बोलने लगे,, ताकि वहाँ से जल्दी बस मिल सके।।... अतुल ने उनको पीछे बैठाया और साइड मिरर को इस तरह सेट किया की उनकी शक्ल बराबर दिखती रहे।। थोड़ी देर में चोराहा आ गया,, लेकिन अतुल उनको इस तरह बीच में कैसे छोड़ सकता था.....यदि बजरंग बलि हुये तो??????.......नही नही में ऐसा नही करूँगा......अतुल ने उनसे झूठ बोला की मुझे भी उसी तरफ ही जाना है जिस तरफ आपको......में वहीँ छोड़ दूंगा,, बुजुर्ग खुश हो गए।।...
अतुल गाडी चलाता जा रहा था और साइड मिरर से उनको ताकता भी जा रहा था।। उसने सत्यता परखने हेतु रास्ते में पड़ने वाले राम मन्दिर के बाहर गाडी धीमी कर दी,, और मिरर में तिरछी नज़र से देखा,, लेकिन उन बुजुर्ग ने कोई खास रिस्पॉन्स नही दिया मन्दिर को.....सिर्फ नज़र झुकाकर नमन कर मुंह दूसरी तरफ कर लिया,, ये देख अतुल उदास हो गया......उसे पूरा यकीन हो गया की ये वो नही हो सकते......लेकिन चूँकि वो उनको बोल चुका था तो गन्तव्य तक छोड़ना अतुल की मजबूरी थी।। ...उनको उनके बताये नियत स्थान पर छोड़ दिया....वो उतरकर उसे आशीष देते हुए आगे बढ़ गये, और अतुल ठगा हुआ सा महसूस करते हुए उनको जाते हुए देखता रहा।।...
वापिस पलटकर वो एक टी स्टाल पहुंचा , वहाँ भाँती भाँती के चेहरे इधर उधर बिखरे पड़े थे..अतुल सबको गौर से देखने लगा..इतने में एक फटेहाल बाबा उसके पास आया..और खुद को बाहर का बताकर यहां पैसे खत्म होने पर खाने के लिए पैसे मांगने लगा..अतुल ने झिड़क दिया....वो चुपचाप चला गया.....लेकिन फिर उसके दिमाग की घण्टी बजी * कहीं ये प्रभु ही तो नही*.....उसने तुरन्त उसको आवाज़ दी......और 20 का नोट उसे दिया..वो तो जेसे बिन सावन बरसात हो गई हो इतना खुश हो गया..और दुआओं की झड़ी लगा दी.....समोसे लेकर वो एक कोने में बेठ खाने लगा.....अतुल उसपर नज़र गड़ाये हुए था.....पर वो था की खाने में ही मस्त था.....अतुल का ध्यान थोड़ा भटका और वो पता नही कहाँ गायब हो गया.....उसने खूब ढूंढा पर प्रभु के दर्शन नही हुए।। हारकर वो वहाँ से चला गया।......
एक परिचित को अस्पताल देखने जाना था,, सो वहां चला गया,....वहां अचानक उसकी नज़र एक बूढी औरत पर पढ़ी,, वो वार्ड में एक पलंग के पास बेठी थी और राम नाम जप रही थी...अतुल की आँखो में चमक आ गई,, जाकर देखा तो पलंग पर एक दुबली पतली औरत लेटी थी.....जो शायद उसकी बेटी थी वो शक्ल से ही काफी बीमार लगती थी......अतुल निराश हो वहाँ से वापिस मुड़ा ही था की डॉक्टर की आवाज़ उसके कानो में पढ़ी......डॉक्टर उनसे कह रहा था , खून की जरूरत पड़ेगी.....बाहर से ब्लड आने में समय लगेगा......और कुछ दवाइयाँ यहाँ गरीबी कोटे में नही मिल पाएंगी......उन्हें बाहर से ही खरीदना पड़ेगा.....वो बूढी अम्मा लाचारी के हाथों मजबूर थी....उसकी आँखों से आंसू निकल पड़े.....अंदर दया भावना का कीड़ा कुलबुला गया,, और उसने डॉक्टर से उस महिला का ब्लड ग्रुप पूछा,, आश्चर्य वही ब्लड ग्रुप अतुल का था,.उसने तुरन्त उसको ब्लड दिया,,, और जो दवाई वहाँ नही मिल पाई थी बाहर से खरीदकर बूढी अम्मा को लाकर दी,,बस फिर क्या था उस बूढी आँखों ने भी उसके लिए दुआओं का सेलाब ला दिया।। लेकिन वो हताश होकर वापिस चला गया।........
मंगलवार आधे से ज्यादा बीत चुका था और अभी तक अतुल को बजरंग बलि के अवतारी स्वरूप के दर्शन नही हुए थे।।
शाम को निराश होकर अतुल ने वापिस घर की तरफ कदम बढ़ा दिए..अभी वो रास्ते में ही था की एक गरीब बच्चे को कुछ बेचते हुए देखा..लेकिन विचारो में मगन अतुल बिना ध्यान दिए आगे बढ़ गया।। वो बालक अगरबत्ती बेचते हुए कह रहा था की * ले लो बाबूजी , पूजा में इसे जलाओगे तो रामजी खुश हो जायँगे ......ये क्या???.......*..जेसे ही सुना अचानक अतुल की गाडी के ब्रेक फिर लग गए,, आँखों में फिर एक अलग चमक आ गई..हो ना हो ये तो वही हैं..अतुल उस बालक के पास गया..और उसे बड़े गौर से देखने लगा........दिन भर धूप में अगरबत्ती बेचते बेचते उसका पूरा शरीर झुलस गया था..बढ़ी उम्मीदों से वो अतुल को देख रहा था,,और अतुल उसे..दोनो ही एक दूसरे में कुछ खोज रहे थे..उसकी आँखों में मजबूर मासूमियत देख अतुल को दया आ गई.....उसने उसे कुछ पैसे देने चाहे लेकिन वो नन्हा स्वाभिमानी जीवन का महत्वपूर्ण पाठ उसे पढ़ा रहा था..अतुल ने उसकी खुद्दारी का सम्मान करते हुये सारी अगरबत्ती खरीद ली..और वापिस घर आ गया।।
घर आते ही माँ ने उदास चेहरा देख अतुल से पूछा.....लगता है आज फिर तेरा दिन बेकार गया..वो माँ की बात का जवाब देता इससे पहले ही पूरे दिन की दिन चर्या उसकी नज़रों में घूम गई..आज उसका कुछ बुरा नही हुआ था..बल्कि उलटा कई दुआओं से सराबोर हो वो घर आया था..अतुल को उत्तर मिल चुका था..... वो स्वयं निरुत्तर हो स्तब्ध सा खड़ा था.." वाह प्रभु वाह कितने सुंदर ढंग से आज आपने मुझे जीवन का अनमोल पाठ पढ़ाया था...इंसान के कर्म उसके भाग्य का निर्माण करते हैं.....वो जैसा सोचता है वैसा ही होता है....जैसा देखता है संसार वैसा ही दिखता है..आज दिन भर में जिन चेहरों पर मेरी वजह से मुस्कान आई , में उसके सुखद अहसास से ही गदगद हो उठा..और भला में कौन था किसी की मदद करने वाला , ये तो सब बजरंग बली ने कराया था.."......... अतुल सोचकर मुस्कुरा दिया.....
उसने माँ के पैर छुए और सिर्फ इतना कहा...
* आज में दिन भर हनुमानजी के साथ था माँ*..दिन कैसे बुरा बीत सकता था।। .... ...
जय सिया राम.....👍