karm path par - 57 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | कर्म पथ पर - 57

Featured Books
Categories
Share

कर्म पथ पर - 57




कर्म पथ पर
Chapter 57



माधुरी पत्थर का बुत बन गई थी। रामरती उसे समझाती थी कि स्टीफन ‌अब वापस नहीं आएगा। पर उसकी निशानी तुम्हारे पेट में है। अब तुम्हें उसके लिए जीना है। स्टीफन भी यही चाहता था कि तुम और उसका बच्चा सुरक्षित रहें। लेकिन वह बस गुमसुम सी बैठी रहती थी।
रामरती के बहुत कहने पर माधुरी बड़ी मुश्किल से कुछ खाने को तैयार हुई थी। रामरती थाली लेने चली गई। तभी मारिया अपने पति अल्फ्रेड के साथ उससे मिलने आई। अल्फ्रेड ने दुख जताते हुए कहा,
"डॉ. स्टीफन के जाने का बड़ा अफसोस है।"
माधुरी की आँखें भर आईं। खुद को संभाल कर वह बोली,
"स्टीफन जैसे अच्छे इंसान ने उसका क्या बिगाड़ा था। उसे जो चाहिए था वह ले जाता।"
कह कर माधुरी रोने लगी। मारिया उसे सांत्वना देने लगी। माधुरी की बात सुनकर अल्फ्रेड कुछ सोंच कर बोला,
"मिसेज़ स्टीफन... आपको यही लगता है कि वह एक चोर था। सिर्फ चोरी करने के इरादे से यहाँ आया था।"
माधुरी ने उसकी तरफ आश्चर्य से देखा। वह इतनी परेशान थी कि उसने किसी और तरह से सोंचा ही नहीं था। अल्फ्रेड ने कहा,
"किस चोर के पास पिस्तौल होती है ? मिसेज़ स्टीफन पुलिस को भी यही लगता है कि किसी ने आप लोगों को मारने कै लिए ही यहाँ भेजा था। किस्मत से आप बच गईं।"
उसी समय रामरती खाने की थाली लेकर आई। उसे देखकर माधुरी ने कहा,
"मिस्टर जॉन मेरे बचने का कारण अम्मा हैं। अगर इन्होंने हिम्मत ना दिखाई होती तो मैं कुछ भी नहीं कर पाती।"
मारिया और अल्फ्रेड ने रामरती को प्रशंसा भरी नज़रों से देखा।
माधुरी ने पूँछा,
"आप कह रहे थे कि पुलिस को भी यही लगता है। क्या उनके हाथ कोई सबूत लगा है ? वो चोर या जो भी था तो अब रहा नहीं।"
"कोई सबूत तो नहीं पर अनुमान है। जो कुछ उस दिन घटा उससे तो यही लगता है। हाँ अगर वो आदमी अपना बयान दे पाता तो अच्छा होता। पर फिर भी पुलिस कोशिश कर रही है।"
अल्फ्रेड की बात सुनकर माधुरी चिंता में पड़ गई। रामरती ने माधुरी के सामने थाली रखते हुए कहा,
"अब खाना खा लो।"
माधुरी का मन खाने को नहीं था। उसने मना कर दिया। मारिया ने कहा,
"मिसेज़ स्टीफन इस हालत में भूखे रहना ठीक नहीं है। आप खाना खाकर आराम करिए। हम चलते हैं।"
अल्फ्रेड ने भी खड़े होते हुए कहा,
"अगर किसी भी तरह की मदद चाहिए तो संकोच मत कीजिएगा।"
मारिया और अल्फ्रेड चले गए। रामरती के ज़ोर देने पर माधुरी ने थोड़ा सा खाना खाया। लेकिन इस समय वह बहुत उलझन में थी। वह अपने कमरे में आराम करने चली गई।
पुलिस ने जो शक जताया था वह उसकी चिंता का कारण था। उसे और स्टीफन को मारने के लिए उस आदमी को केवल हैमिल्टन ही भेज सकता था। इसका मतलब था कि वह जिस खतरे को टल गया समझती थी वह फिर से उसके सर पर मंडरा रहा था। स्टीफन की जान चली गई थी। अब वह और उसका बच्चा खतरे में थे।
यह बात मन में आते ही वह अपने बच्चे के लिए फिक्रमंद हो गई। उसने सोंचना शुरू किया कि वह इस खतरे से कैसे बच सकती है। उसे खयाल आया कि सबसे पहले इस जगह से निकलना ज़रूरी है। हैमिल्टन को पता चल गया है कि वह यहाँ है।
माधुरी सोंचने लगी कि यहाँ से कहाँ जाया जा सकता है। उसे सिर्फ अपने अम्मा बाबूजी का घर ही समझ में आया। उसने अभी तक उन्हें स्टीफन की मौत की खबर नहीं दी थी। उसने तय किया कि वह अपने अम्मा बाबूजी के पास ही जाएगी।
बैंक में कुछ पैसा था। स्टीफन के अस्पताल से भी कुछ मिलना था। अल्फ्रेड इस काम में उसकी मदद कर सकता था। घर जाते समय उसने कहा भी था कि जो भी मदद चाहिए निसंकोच कह दे।
माधुरी ने अपना मन पक्का कर लिया था। इसलिए वह समय बर्बाद नहीं करना चाहती थी।‌ वह तैयार होकर रामरती के पास आई। रामरती ने पूँछा,
"कहाँ जाने की तैयारी कर रही हो बिटिया ?"
"अम्मा मिस्टर जॉन के यहाँ जा रही हूँ। ज़रूरी काम है।"
"अभी तो दोनों पति पत्नी आए थे। ऐसा क्या काम आ गया अचानक ?"
"अम्मा सब बताऊँगी‌। अभी जा रही हूँ।"
रामरती को उसका अकेला जाना ठीक नहीं लगा। उसने कहा,
"ठहरो मैं भी साथ चलती हूँ।"
"अम्मा बगल के घर तक ही जाना है। वैसे भी शाम का समय है। मेरे जाने के बाद दरवाज़ा बंद कर लेना।"
माधुरी के जाने के बाद रामरती ने दरवाज़ा बंद कर दिया।

मारिया और अल्फ्रेड अपने गार्डन में बैठे थे। अब्राहम वहीं खेल रहा था। माधुरी को देखकर बोला,
"गुड ईवनिंग मिसेज़ स्टीफन।"
माधुरी ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेर कर कहा,
"कैसे हो अब्राहम ?"
"मैं ठीक हूँ..."
मारिया ने उठकर माधुरी का स्वागत किया। उसे पास पड़ी कुर्सी पर बैठा कर पूँछा,
"कोई काम था ?"
माधुरी ने अल्फ्रेड की तरफ देखकर कहा,
"मिस्टर अल्फ्रेड...आपने कहा था कि अगर मुझे मदद की ज़रूरत हो तो आपसे कह सकती हूँ।"
"मिसेज़ स्टीफन आपको जो भी मदद चाहिए मैं करूँगा।"
"स्टीफन के अस्पताल से कुछ रा‌शि मिलनी है। बैंक में भी कुछ जमा है। मैं वो सब निकालना चाहती हूँ।"
उसकी बात सुनकर मारिया ने कहा,
"माफ कीजिएगा मिसेज़ स्टीफन। पर क्या आप कहीं जा रही हैं ?"
माधुरी ने ‌जवाब दिया,
"इधर मन कुछ बेचैन रहता है। यहाँ बार बार खून से लथपथ स्टीफन की याद आती है। इस तरह तो बच्चे पर बुरा असर पड़ेगा। इसलिए सोंचती हूँ कि लखनऊ अपने घर चली जाऊँ।"
माधुरी ने जानबूझकर कर यह छिपाया कि उसके अम्मा बाबूजी पंजाब में हैं। उसे डर था कि बाद में अगर हैमिल्टन पता भी करेगा तो वह सोंचेगा कि माधुरी लखनऊ में है। उसने सोंचा था कि यहाँ से लखनऊ जाएगी और वहाँ से पंजाब चली जाएगी।
माधुरी की बात सुनकर अल्फ्रेड ने कहा,
"इतना पैसा लेकर यात्रा करना ठीक रहेगा ?"
"मिस्टर जॉन बड़ी रकम नहीं है। कुछ पैसा मैं अम्मा को दे दूँगी। बाकी जो बचेगा लेकर चली जाऊँगी।"
"ठीक है कब चलना है ?"
"हो सके तो कल ही करवा दीजिए यह काम।"
अल्फ्रेड कुछ देर सोंच कर बोला,
"कल नहीं... परसों सुबह तैयार रहिएगा।"
"ठीक है.... फिर परसों सुबह चलते हैं।"
माधुरी चलने के लिए खड़ी हो गई। मारिया ने चाय के लिए रुकने को कहा। पर माधुरी उन्हें धन्यवाद देकर चली गई।

रामरती की आँखों में नमी थी। अपना सामान बांध कर वह घर जाने को तैयार थी। अपनी धोती के पल्लू से आँखें पोंछकर बोली,
"तुम अपने माँ बाप के पास जा रही हो। अच्छा है बिटिया। एक बार बच्चा हो जाता तो ठीक था। अब चिंता बनी रहेगी।"
"अम्मा तुम तो जानती हो कि यहाँ बार बार स्टीफन का खयाल आता था। इसलिए जा रहे हैं। पर तुम परेशान ना होना। मैं अपना खयाल रखूँगी।"
"भगवान करे सब अच्छा हो।"
रामरती ने अपनी गठरी उठाते हुए कहा,
"फिर चल रहे हैं बिटिया‌। सदा सुखी रहो।"
माधुरी ने कुछ पैसे निकाल कर रामरती के हाथ में रख दिए। रामरती ने कहा,
"ये क्यों बिटिया। हमारी तनख्वाह तो समय पर दे देती थीं।"
माधुरी ने रामरती का हाथ पकड़ कर कहा,
"वो तो तनख्वाह थी। ये एक बेटी अपनी अम्मा को दे रही है। तुमने हमेशा माँ की तरह देखभाल की है मेरी।"
"बिटिया वो तो हमारा फर्ज था।"
"अम्मा ये मेरा फ़र्ज है। उस मुसीबत की घड़ी में तुमने हिम्मत ना दिखाई होती तो मैं और मेरा बच्चा भी जीवित ना रहते।"
रामरती को संकोच हो रहा था। माधुरी ने समझाया,
"अम्मा रख लो काम आएंगे। अधिक नहीं हैं। पर कुछ दिन काम चल जाएगा।"
रामरती ने एक कपड़े में बांध कर पैसे गठरी में रख लिए। उसकी आँखों में आंसू बहने लगे। माधुरी ने उसे गले से लगा कर कहा,
"कभी किसी लायक बनी अम्मा तो तुम्हें अपने पास बुला कर रखूँगी।"
रामरती को गांव के लिए बस पकड़नी थी। बाहर तांगा खड़ा था। रामरती उस पर बैठ गई। तांगा चल दिया। माधुरी ने देखा की रामरती अपने आंचल से अपनी आँखें पोंछ रही थी। कुछ आगे जाकर तांगा मुंड़ गया।