BOYS school WASHROOM - 3 in Hindi Moral Stories by Akash Saxena "Ansh" books and stories PDF | BOYS school WASHROOM - 3

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BOYS school WASHROOM - 3

पिछले भाग में आपने पढ़ा कि कैसे यश की बस मे कुछ लड़कों से कहा सुनी हो जाती है और मामला बस इन्चार्ज तक पहुंचता है। बस में बच्चों को डरता देख टीचर बात को ज़्यादा आगे ना बढ़ाते हुए चुप चाप हर्षित,विशाल और राहुल को आगे जाकर बैठने के लिए कहता है...जिसमे से विशाल तो आगे चला जाता है पर हर्षित और राहुल अपनी सीट पर अड़े रहते हैं ,विहान भी यश के साथ आगे जाकर बैठ जाता है और लगभग तीस मिनट बाद बस स्कूल पहुंचती है।

अब आगे

चलो सब जल्दी जल्दी अपनी अपनी क्लासेस में पहुँचो "कम ऑन गाइस! हरी अप!" (अपने अपने बैग संभालते हुए सब जल्दी जल्दी बस से उतरते हैं।) 'चलो विहान जल्दी से जाओ अपना बैग उठा कर लाओ अपनी सीट से' विहान भी जल्दी से अपने बैग की तरफ कदम बढ़ाता है और अपना बैग उठाता ही है कि हर्षित उसे कस कर पीछे से पकड़ लेता है 'अब बता कहाँ जाएगा! तू और तेरा भाई तो गया बेटा'.... 'विहान! विहान! हरी अप बडी...वी र आलरेडी लैट'-यश बाहर से आवाज़ लगता है। "आ रहा हूँ भाई" विहान जैसे-तैसे अपने आप को छुड़ाकर बस से निकल जाता है।

लेकिन स्कूल का गेट अभी नहीं खुला होता।
'रुको रुको सब यहीं सर आपको प्रिंसिपल ने अपने रूम में बुलाया है।'(गार्ड की आवाज़ आती है) अच्छा ठीक है! मै जाता हूँ,तुम जब तक सब को उनकी क्लास अटेंड करने दो...नहीं पहले आप जाकर आइए। "अरे!बच्चों को क्लास में तो जाने दो,प्रिंसिपल सर से मैं बात करता हूँ।"

गेट खुलता है,इधर सभी बच्चे जल्दी जल्दी अपनी अपनी क्लास की तरफ़ बढ़ रहे होते हैं और उधर टीचर प्रिंसिपल आफिस की तरफ़ धीरे धीरे...
"मे आई कम इन सर" धीमी सी आवाज़ में प्रिंसिपल केबिन के बाहर से ही टीचर अंदर जाने के लिए पूछता है....पर प्रिंसिपल के फ़ोन पर बिजी होने की वजह से वो सुन नहीं पाते। टीचर धीरे से गेट खोलता है..'सर मे आई..मे आई कम इन!' (फ़ोन रखते हुए प्रिंसिपल ताना सा कसते हुए कहता है -"अरे! सर! सर आप! आइए! आइए! मैं आपका ही बात कर रहा था" टीचर-किस से सर?...वो आपके बस ड्राइवर...खैर! वो छोड़िये आप पहले ये बताइए कि 'क्या आपको पता है हमारे स्कूल का शहर में कितना नाम है?' -कैसी बात कर रहें हैं सर कौन नहीं जानता हमारे स्कूल के बारे में।...."फिर तो आपको ये भी पता ही होगा कि ये नाम किस वजह से है?"(प्रिंसिपल दांत भींचते हुए थोड़े गुस्से में).... -क्या सर? मतलब वो सर....प्रिंसिपल-डिसिप्लिन! हमारे स्कूल के डिसिप्लिन की वजह से ही आज काफी शहरों में हमने बड़ी मेहनत से ये नाम बना पाया है। (टीचर घबराते हुए)सर आप ऐसा क्यूँ कह रहे हैं? मेरे कुछ समझ नहीं आ रहा।...
प्रिंसिपल अपनी कुर्सी पर बैठते हुए- आज सुबह क्या हुआ? बस में क्या हुआ था आज ज़रा बताएंगे आप!......टीचर बिल्कुल शांत,गर्दन नीचे झुकाये खड़ा रहता है....'आप बता रहें हैं'...टीचर कुछ बोल पाता कि उस से पहले ही प्रिंसिपल उसके हाथ में एक सफेद लिफाफा थमा देता है-'अच्छा ठीक है!रहने दीजिए आप नहीं बताना चाहते तो कोई बात नहीं ....ये लीजिये आप शायद कुछ भूल गए हैं पर हमें याद है'...टीचर लिफ़ाफे को टटोलते हुए ये क्या है सर!...'रेसिग्नेशन लेटर! है आपका। हमने आपको जिस काम के लिए रख था वो काम आप भूल गए हैं,तो अब आप जा सकते हैं।'और बिल्कुल सन्नाटा छा जाता है केबिन में....और उसी सन्नाटे के बीच आवाज़ आती है...'सर में अंदर आऊं क्या?'(बस ड्राइवर गेट से झांकते हुए पूछता है) आप जा सकते हैं।(प्रिंसिपल टीचर को कहता है) टीचर-सिर मुझे कुछ कहने तो दीजिये,मैं बताता हूँ आपको सब। प्लीज् सर!
प्रिंसिपल-बस! अब कोई ज़रूरत नहीं,मेने दिया था आपको मौका,आप अपनी ड्यूटी भूल गए हैं शायद और रही बात क्या हुआ? क्या नहीं? तो मैं अब खुद ही पता कर लूंगा। अब आप जा सकते हैं बिना किसी प्रश्न के,धन्यवाद। अंदर आइए आप मोहन जी! (टीचर के बाहर निकलने के साथ ही प्रिंसिपल ड्राइवर को आवाज़ देता है)
मोहन-'जी सर क्या हुआ?'...मोहन जी आप बताइए कि आज सुबह बस में क्या हुआ?
और मोहन सारी बात बताता है और बात खत्म होते ही प्रिंसिपल गुस्से से पास में पड़ी घंटी को दो-तीन बार ज़ोर से बजाता है।


आगे की कहानी अगले भाग में पढ़िए,धन्यवाद।